कोला मामले में सख्त हुआ कोर्ट का रूख
सरकार पर बरसा न्यायालय: कहा क्या तब तक जनता जहर पीती रहेगी
शक के दायरे में है सरकार की नीयत
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 05 मई। कोला मामला सरकार के गले की फांस ही बनता जा रहा है। कोला मामले में केंद्र सरकार द्वारा नोटिफिकेशन करने में बहुत विलंब किया जा रहा है, जो न्यायालय को रास नहीं आ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को फटकारते हुए इसमें विलंब के कारण जानने चाहे, जब सरकार की ओर से तीन चार माह के वक्त की दरकार की गई तो कोर्ट का कहना था कि क्या तब तक जनता जहर ही पीती रहेगी। सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2004 में सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन (सीपीआईएल) द्वारा एक याचिका दायर की थी, जिसमें एक जनहित याचिका के माध्यम से कोला में सेहत के लिए हानिकारक पदार्थों की मिलावट का शक जाहिर किया गया था, साथ ही सॉफ्ट ड्रिंक की गुणवत्ता पर नजर रखने की मांग की थी।
गौरतलब है कि भारत गणराज्य की सरकार को एक नोटिफिकेशन जारी करना था, जिसके उपरांत कोला और पेप्सी के निर्माताओं द्वारा अपने उत्पादों में मिलाए जाने वाले असली तत्वों की मात्रा के बारे में बोतल पर जानकारी देना जरूरी हो जाएगां गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय में सीपीआईएल द्वारा दायर इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करने में अपनी असमर्थता जताते हुए 90 दिनों का समय मांगा। फूड सेफ्टी एण्ड स्टेंडर्ड अथॉरिटी के द्वारा बार बार विलंब करना न्यायालय को कतई रास नहीं आया। जैसे ही अर्थारिटी के वकील द्वारा समय की मांग की गई वैसे ही विद्वान न्यायधीश जस्टिस सुधा मिश्रा ने उक्त वकील को फटकारते हुए कहा कि क्या तब तक जनता को जहर पीना होगा।
जस्टिस सुधा मिश्रा और जस्टिस दलवीर की युगल बैंच ने सरकार को इस बात के लिए भी आडे हाथों लिया कि उत्पाद की गुणवत्ता की जांच के लिए बनाए गए साईंटिक पेनल में सरकार द्वारा इन उत्पादक कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों को क्यों शामिल किया है। जस्टिस मिश्रा ने सरकार की ओर से पैरवी करने वाले अतिरिक्त सालीसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह से यह भी पूछा है कि उन लोगों को पेनल का सदस्य कैसे बनाया जा सकता है, जिनके खिलाफ ही प्रकरण हो। कोई भी व्यक्ति अपने ही केस में जज की भूमिका में कैसे हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि आम जनता को सरकार के जांच पेनल पर भरोसा होना चाहिए। निजी हितों वाले लोगों को इसका हिस्सा कतई नहीं बनाया जा सकता है।
1 टिप्पणी:
सिर्फ कोला ही नहीं नकली और मिलावटी सामान जो भी हो ,जिससे मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव परता हो ,उसके ऊपर सख्त कार्यवाही की जरूरत है / इसमें किसी प्रकार का भेद भाव नहीं किया जाना चाहिए /
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