स्कूलों से चमडे के जूतों की बिदाई जल्द
चमडे के बजाए कपडे के जूतों में नजर आएंगे विद्यार्थी
मेनका गांधी ने किया शंखनाद
विद्यार्थियों के गणवेश में बदलाव जरूरी
(लिमटी खरे)
चमडे के बजाए कपडे के जूतों में नजर आएंगे विद्यार्थी
मेनका गांधी ने किया शंखनाद
विद्यार्थियों के गणवेश में बदलाव जरूरी
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 19 मई। औपनिवेशिक दासता का प्रतीक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह चमडे के चमचमाते जूतों से लैस विद्यार्थियों के पैरों में अब कपडे के पीटी शू नजर आएंगे। आने वाले दिनों में केनवास के कपडे वाले जूते ही स्कूली विद्यार्थियों के पैरों की शोभा बढाएंगे। शालेय संस्थाओं में इस मामले में सैद्धांतिक सहमति बना ली गई है, अब इंतजार है सरकार के औपचारिक आदेश का। अभी तक इस तरह के जूतों को बच्चे व्यायाम यानी पीटी या खेलकूद के दौरान ही पहना करते थे, अब रोजाना ही बच्चे अपनी यूनीफार्म के साथ इसे पहने दिखेंगे।
पशुओं के बचाने के मसले पर बेहद संजीदा रहने वाली नेहरू गांधी परिवार की बहू श्रीमति मेनका गांधी द्वारा इस तरह का प्रस्ताव दिया था, जिसे सीबीएसई, सीआईएससीई, के अलावा अनेक स्कूल बोर्ड द्वारा स्वीकार कर लिया गयाहै। श्रीमति मेनका गांधी द्वारा जुलाई 2009 में इस आशय का एक प्रस्ताव केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र के माध्यम से दिया था। मेनका का कहना था कि स्कूल की वर्दी के साथ औपनिवेश दासता का प्रतीक चमडे के जूते की अनिवार्यता को समाप्त किया जाना चाहिए।
मेनका ने अपने पत्र में लिखा था कि हिन्दुस्तान के लोगों को चमडे के जूते पहनने का फैसला ब्रितानियों ने जबरिया थोपा था। मेनका कहतीं हैं कि फिरंगियों का यह फैसला न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानीकारक है, वरन् पर्यावरण की दृष्टि से भी उचित नहीं कहा जा सकता है। बकौल मेनका केनवास के जूतें से एक ओर जहां बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड पाएगा, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों के पैसों की बचत भी हो सकेगी।
देश में शिक्षा नीति के निर्धारक माने जाने वाले मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अनुरोध किया था कि वह एक आदेश जारी कर शालाओं से चमडे के जूतों को बेदखल कर दे। मेनका के पत्र को मंत्रालय ने भी हल्के में नहीं लिया। मंत्रालय ने इस बारे में शालाओं से संबंधित बोर्ड से बाकायदा रायशुमारी भी की थी। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सीआईएससीई और सीबीएसई बोर्ड ने मेनका के प्रस्ताव से इत्तेफाक जताया है। दोनों ही शिक्षा बोर्ड चमडे के जूतों को पर्यावरण विरोधी और बच्चों की सेहत के लिए बहुत ही ज्यादा नुकसानदेह मानते हैं। बोर्ड का मानना है कि चमडे के जूते पसीना नहीं सोख पाते तथा उसके अंदर गंदगी पनपती रहती है, जबकि कपडे के जूते एक ओर पसीना सोख लेते हैं, वहीं दूसरी और केनवास शूज को धोकर साफ किया जा सकता है।
एक अनुमान के अनुसार आज निन्यानवे फीसदी सरकारी और गैर सरकारी शालाओं में गणवेश के साथ चमडे के जूतों का प्रयोग किया जाता है। जानवरों के हितों के लिए काम करने वाली संस्था पीपुल फार एनिमल (पीएफए) द्वारा भी चमडे जूतों को बच्चों के लिए हानीकारक ही माना गया है। संस्था का मानना है कि इससे ज्यादा चमडे की आवश्यक्ता होती है और पशुओं के प्रति क्रूरता को बढावा ही मिलता है। पीएफए के इस अभियान को देश भर में खासा समर्थन मिल रहा है, चेन्नई शहर में सोलह स्कूलों ने गणवेश के साथ चमडे के जूतों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
1 टिप्पणी:
इतना सुन्दर, प्रगामी और पर्वावरणहितकारी विचार रखने के लिये मेनका जी को लाख-लाख बधाइयाँ।
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