गुरुवार, 3 जून 2010

निहित स्‍वार्थ में उलझते



निहित स्वार्थ को परे रखें जनसेवक 
 
वर्ष 2011 के लिए जनगणना के लिए भारत सरकार की सेनाएं (कर्मचारियों की फौज) सज गई हैं। हर घर जाकर भारत की वर्तमान जनसंख्या के बारे में आंकडे जुटाए जा रहे हैं। इस प्रक्ति्रया के पहले चरण में जनगणना में लगे अधिकारी लोगों के पास पहुंचने आरंभ हो गए हैं। बावजूद इसके संसद में बैठे जनसेवकों का एक बहुत बडा धड़ा आज भी इस बात पर आमदा ही नजर आ रहा है कि जनगणना को जातिगत आधार पर कराया जाए। आखिर जातिगत आधार पर जनगणना का औचित्य क्या है, इस बात पर कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, बस मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग की कहावत चरितार्थ करने में लगे हैं सारे जनसेवक। जाति के अधार पर जनगणना के मासले पर केंद्रीय कैबिनेट भी किसी नतीजे पर नहीं पहंुच सकी है। यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि समय रहते इस मामले में विचार-विमर्श नहीं किया गया। आखिर क्या वजह है कि जनसेवकों के तर्क-कुर्तक पर केंद्र सरकार ठोस तर्क से लेस होकर सामने आने से घबरा रही है। जनगणना का काम आरंभ हो चुका है, फिर उसे करने या न करने में सरकार का संशय समझ से परे ही है। अगर देखा जाए तो भारत जैसा देश दुनिया में बिरला ही होगा, जहां हर वर्ग, धर्म, सम्भाव के लोगों को अपनी मनमर्जी के काम करने की पूरी आजादी है। इन परिस्थितियों में भारत में जनगणना को जाति, वर्ग, संप्रदाय से पूरी तरह मुक्त ही रखा जाना चाहिए था। एक तरफ तो भारत सरकार यह बात जोर-शोर से कहती है कि हम सिर्फ भारतीय हैं, वहीं दूसरी ओर जनगणना में जाति, वर्ग, संप्रदाय की बात कहना बेमानी ही होगा। भारत में जाति आधारित जनगणना का आगाज 1881 में हुआ था, जिसे 1931 में समाप्त कर दिया गया था। 1931 से 2001 तक किसी को भी जाति आधारित जनगणना नहीं किए जाने से कोई आपत्ति नहीं हुई। भारत गणराज्य के संविधान निर्माताओं ने भी जाति आधारित जनगणना को समर्थन नहीं दिया। देखा जाए तो जब बच्चा स्कूल में पढ़ता है, तब उसे यह पता नहीं होता है कि वह जिसके बाजू में बैठकर अध्ययन कर रहा है वह किस जाति का है। स्कूल में रोजाना आधी छुट्टी के वक्त जिसके साथ बैठकर वह अपना टिफिन शेयर करता है, वह किस जाति का है, उसे इससे कोई लेना देना नहीं होता है। बाद में जब वह पढ़-लिखकर नौकरी के लिए जाता है, तब जरूर उसे पता चलता है कि फलां नौकरी उसके उसी बाल सखा को मिल गई, क्योंकि वह पिछड़ा था, और वह इसलिए वंचित रह गया, क्योंकि वह अगड़ी जाति के घर में जन्म लेकर दुनिया में आया है। इस तरह के भेदभाव को जन्म देने वाली व्यवस्था को तत्काल से रोकने की जरूरत है। 
 
रोजनामचा ब्लॉब में लिमटी खरे

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