बुधवार, 2 जून 2010

शोभा की सुपारी बने सरकारी अस्‍पताल

अब कामरेडों का उठा भरोसा सरकारी अस्पताल से
मकपा, भाकपा के नेता चले कार्पोरेट अस्पताल की ओर

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली 02 जून। किफायत से चलने के लिए मशहूर कामरेड बीमार पडने पर अब सरकारी अस्पतालों के बजाए निजी अस्पतालों की ओर रूख करने लगे हैं। निजी तौर पर फाईव स्टार संस्कृति वाले अस्पालों को प्रमोट करने की गरज से सरकार द्वारा अपने स्वामित्व वाले सरकारी रूग्णालयों को दुर्दशाग्रस्त करने में कोई कसर नहीं रख छोड रही है। मामला चाहे केंद्र सरकार के अस्पतालों का हो या राज्यों की सरकारों के अधीन चलने वाले अस्पतालों का, हर जगह ही अस्पताल अपनी दुर्दशा पर खुद ही आंसू बहाने पर मजबूर हैं। कल तक माना जाता था कि कामरेड मतलब सादगी पसंद, मितव्ययता के साथ चलने वाला इंसान। आज कामरेड के मायने बदल गए हैं, आज कामरेड विलासिता को अंगीकार करने से नहीं चूक रहे हैं। कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत के घर संपन्न हुए विवाह में जिस कदर का शोशा किया गया था, वह किसी से छिपा नहीं है।

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु जब बीमार पडे तो इलाज के लिए उन्हें कोलकता के एक कार्पोरेट अस्पताल में दाखिल करवाया गया। पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी जब अस्वस्थ्य हुए तब उन्हें भी कार्पोरेट अस्पताल में तीमारदारी के लिए ले जाया गया। मकापा के संस्थापक सदस्य हरकिशन सिंह सुरजीत को अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान में दाखिल करवाने के उपरांत नोएडा स्थित कार्पोरेट अस्पताल में इलाज हेतु गए। उनका इलाज मंहगे आलीशान ‘‘मेट्रो अस्पताल‘‘ में किया गया था।

पिछले दिनों ‘हर एक नागरिक को निशुल्क इलाज मुहैया करवाने‘‘ के प्रस्ताव पर स्वास्थ्य संबंधी कामों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘प्रयास‘ और जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा राजधानी में आयोजित एक परिचर्चा में देश भर से आए स्वास्थ्य एक्टिविस्ट ने एक स्वर से यही बात कही थी कि देश भर में निजी अस्पतालों को बढावा देने के लिए सरकारों द्वारा जनबूझकर ही सरकारी अस्पतालों को दुर्दशा ग्रस्त छोड दिया गया है। मंहगे आलीशान अस्पतालों में गरीबों को इलाज के लिए धक्के खाने पडते हैं। गौरतलब है कि पिछले पांच सालों में राजधानी के मंहगे फोर्टिस अस्पताल ने सरकारी नियम कायदों को धता बताते हुए महज पांच गरीब मरीजों का ही इलाज किया था, रही बात सरकारी सुविधाओं की तो इस अस्पताल ने सरकार से मिलने वाली सारी सुविधाओं को पर्याप्त मात्रा में उपभोग किया जा रहा है।

देश के सबसे बडे सरकारी अस्पताल ‘एम्स‘ को भगवान भरोसे ही छोड दिया गया है। कहने को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एम्स में अपनी बायपास सर्जरी करवाई थी, पर कम ही लोग इस बात को जानते हैं कि देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई से निजी अस्पताल के एक कुशल सर्जन को इसके लिए पाबंद किया गया था, जिसने अपने साथ समूचा आपरेशन थियेटर ही लेकर आए थे। देश के सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा को देखकर सादगी पसंद कामरेड भी अब कार्पोारेट अस्पतालों की ओर रूख करने पर मजबूर हो गए हैं।

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