बुधवार, 28 जुलाई 2010

सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (6)

सर्कस के बाजीगर ही जा सकते हैं वाहन से सेंट फ्रांसिस शाला

 सिवनी। ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में पालकों को सीबीएसई का लोभ दिखाकर जिला मुख्यालय में संचालित निजी तौर पर संचालित होने वाली शालाओं द्वारा लूट सके तो लूट को मूल मंत्र अपनाया जा रहा है, और प्रशासन ध्रतराष्ट्र की भूमिका में ही दिख रहा है. जिला मुख्यालय में कितनी शालाओं के पास सीबीएसई की मान्यता है, यह बात कोई नहीं जानता है, बावजूद इसके जिला प्रशासन द्वारा इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया जाना आश्चर्यजनक की माना जा सकता है. शालाओं पर नियंत्रण के लिए जवाबदेह जिला शिक्षा अधिकारी ही जब अपने आप को इस मामले से दूर रखते हुए शाला संचालकों के पक्ष में परोक्ष तौर पर आकर खडे हो गए हों, तब विद्यार्थियों और पालकों का तो भगवान ही मालिक है.
 
 मध्य प्रदेश के लिए सीबीएसई बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय राजस्थान के अजमेर में स्थित है. वहां स्थित सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में अब तक किसी भी शाला को सीबीएसई से संबद्धता नहीं प्रदान की गई है, अलबत्ता सीबीएसई की मान्यता लेने की कार्यवाही अवश्य ही कुछ शालाओं द्वारा दी गई है. सूत्रों का कहना है कि जब तक सीबीएसई बोर्ड की मान्यता शाला को नहीं मिल जाती तब तक शाला के द्वारा अपने आप को सीबीएसई से संबद्ध होने की बात प्रसारित प्रचारित नहीं की जा सकती है.
 
 बताया जाता है कि जिला मुख्यालय में संचालित होने वाली कुछ शालाओं द्वारा मीडिया में विज्ञापन, पंपलेट आदि साधनों के माध्यम से अपने आप को सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध होना बताया जा रहा है. प्रशासन की निष्क्रियता के चलते इन शाला संचालकों का आलम यह है कि ये विद्यार्थियों को ढोने में प्रयुक्त होने वाले वाहनों में भी सीबीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त का ठप्पा लगाकर चोरी और सीना जोरी कर रहे हैं. यहां उल्लेखनीय होगा कि जिन वाहनों में यह लिखा है, वे शाला के लिए निर्धारित किए गए पीले रंग के स्थान पर सफेद रंग से रंगे हुए हैं. इन वाहनों में निर्धारित से अधिक बच्चों को भी ढोया जा रहा है.
 
 परिवहन कार्यालय में गौरतलब होगा कि निजी उपयोग के लिए पंजीबद्ध होने के बावजूद इन वाहनों का पूरी तरह से व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है, और यातायात पुलिस के साथ ही साथ क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी का कार्यालय भी आंख बंद किए हुए बैठा है. इस तरह आपसी सांठ गांठ के चलते परिवहन विभाग को दिए जाने वाले करों के रूप में लाखों रूपए की सीधी सीधी क्षति पहुंचाई जा रही है. जिन वाहन संचालकों ने बाकायदा यात्रीकर या अन्य मदों में बाकायदा कर जमा किया है, उनमें रोष और असंतोष की स्थिति बनती जा रही है.
 
 इसी क्रम में जिला मुख्यालय में कचहरी चौक में रिहाईशी इलाके में इसाई मिशनरी द्वारा संचालित होने वाले सेंट फ्रांसिस स्कूल द्वारा आनन फानन अपनी शाला को शहर से लगभग सात किलोमीटर दूर जबलपुर रोड पर स्थानांतरित कर दिया गया है. आधे अधूरे भवन में स्थानांतरित इस शाला को संभवतरू सीबीएसई बोर्ड के अधिकारियों के निरीक्षण के उददेश्य से स्थानांतरित किया गया है. बताया जाता है कि जुलाई माह में ही किसी दिन सीबीएसई बोर्ड के द्वारा पाबंद किए गए दो प्राचार्य आकर इसका निरीक्षण करेंगे कि शाला का संचालन सीबीएसई के मापदण्डों के मुताबिक किया जा रहा है, अथवा नहीं. अगर यह पाया गया कि उक्त शाला का संचालन सीबीएसई के मापदण्डों के हिसाब से नहीं किया जा रहा है तो वे अपने प्रतिवेदन में प्रतिकूल टिप्पणी अवश्य करेंगे, जिससे इस शाला का सीबीएसई से एफीलेशन खटाई में पड सकता है.
 
 वर्तमान में बारिश के माह में शाला की स्थिति काफी दयनीय बताई जा रही है. बताया जाता है कि मुख्य मार्ग से शाला पहुंच मार्ग पूरी तरह से कीचड से सना हुआ है. इस मार्ग पर अगर कोई पालक, विद्यार्थी अथवा शिक्षक अपना वाहन लेकर शाला तक पहुंचता है तो रास्ते में अनेक बार उसका दुपहिया वाहन हिचकोले खाता रहता है. वाहन चालकों को डर बना रहता है कि कहीं वह फिसलकर दुर्घटना ग्रस्त न हो जाए. अनेक वाहन चालक इस मार्ग पर अपने वाहनों से गिर भी चुके बताए जा रहे हैं. पालकों, विद्यार्थियों या शिक्षकों की इस परेशानी से शाल प्रबंधन को कुछ लेना देना नहीं है, शोर शराबा होने पर शाला प्रबंधन द्वारा रस्म अदायगी के लिए रोलर आदि चलवाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है. चर्चाओं के अनुसार इस मार्ग पर वाहन चलाना अब सिर्फ सर्कस के बाजीगरों के बस की ही बात रह गई है, क्योंकि सर्कस के बाजीगर ही अपना बेलेंस साधने में मास्टरी रखते हैं.
 
व्याप्त चर्चाओं के अनुसार इस शाला में पूर्व में सीबीएसई के निर्धारित मापदण्डों के हिसाब से चालीस छात्र प्रति कक्षा के बंधन को भी तोडा जा रहा है. मई और जून माह में प्रवेश पर बंदिश लगाने के बाद अब धडल्ले से इस शाला में प्रवेश देने का सिलसिला चल पडा है, जिससे लगने लगा है कि शाला प्रबंधन को अपने विद्यार्थियों को पढाई आदि की गुणवत्ता से ज्यादा चिंता किसी और चीज की है. इतना सब कुछ होने के बावजूद भी अगर सांसद, विधायक, जिला प्रशासन सहित सत्ताधारी भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस चुप्पी साधे बैठी हो तो फिर शहर के बच्चों के भविष्य पर प्रश्रचिन्ह स्वयंमेव ही लग जाता है.
(क्रमशः जारी)

कोई टिप्पणी नहीं: