सोमवार, 30 अगस्त 2010

ममता से वसूले जाएं 11 लाख

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

ममता से वसूले जाएं 11 लाख
केंद्र में रेल मंत्री का दायित्व संभालने वाली पश्चिम बंगाल की क्षत्रप सुश्री ममता बनर्जी ने नैतिकता की सारी हदें पार कर दी हैं। उन्होंने देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली को छोड़कर पश्चिम बंगाल में ज्यादा समय बिताया जा रहा है। ममता बनर्जी ने सबसे पहले तो दिल्ली से हटकर कोलकता में पदभार ग्रहण कर सुर्खियां बटोरी थीं। इसके बाद उन्होंने त्रणमूल कांग्रेस के कोटे के मंत्रियों को साफ तौर पर हिदायत दी कि वे पश्चिम बंगाल में अपना ज्यादा समय व्यतीत करें। ममता शायद भूल जातीं हैं कि पश्चिम बंगाल के साथ ही साथ देश के अन्य सूबों को भी उनकी ममता की आवश्यक्ता है, पर ममता हैं कि पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने के जतन में न जाने कितनी वर्जनाओं को क्षतिग्रस्त करती जा रही हैं। अब भारतीय रेल के अफसरों पर 11 लाख रूपए खर्च किए जाने की खबरें प्रकाश में आईं हैं, यह खर्च ममता के पश्चिम बंगाल में रहने के कारण उनके मातहत अफसरान को उनसे फाईल क्लियर करवाने के लिए पश्चिम बंगाल की यात्राओं पर किया गया व्यय है। सवाल यह उठता है कि आम जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को अगर इस तरह हवा में ही उड़ाया जाएगा और गरीब गुरबों की खैर ख्वाह बनने का ढोंग करने वाली कांग्रेस चुपचाप सब कुछ देखे सुने तो अपराधी किसे माना जाएगा?
अमिताभ हैं झारखण्ड के मुखबिर!
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने रूपहले पर्दे पर अपने लंबे केरियर में न जाने कितने किरदार किए होंगे, फिल्म ‘मजबूर‘ मंे उन्होंने मुखबिर का किरदार जीवंत किया था। उमरदराज हो चुके अमिताभ बच्चन अब झारखण्ड में खुफिया सेवा के ‘मुखबिर‘ की भूमिका में हैं। जी हां, यह सच है, आपको आश्चर्य हो रहा होगा। झारखण्ड के पूर्व पुलिस महानिदेशक और वर्तमान में नगर सेना के महानिदेशक वी.डी.राम ने अमिताभ बच्चन को न केवल पुलिस का मुखबिर ही बना दिया वरन उनके नाम से 21 लाख छः हजार पांच सौ रूपए की राशि का आहरण भी करवा दिया। आश्चर्य तो तब हुआ जब इक्कीस लाख रूपए की रकम को पुलिस ने मुखबिर के लिए 17 मार्च 2006 को एक ही दिन में महज दो ही रसीदें बनवाकर भुगतान करवा दिया। एक रसीद अठ्ठारह लाख रूपए तो दूसरी तीन लाख साढ़े छः हजार की है। अब तो जनता जनार्दन समझ ही सकती है कि लालू प्रसाद यादव चारा, सुखराम दूरसंचार, कामन वेल्थ का सुरेश कलमाड़ी जैसे नेता कर सकते हैं तो भला फिर नौकरशाह पीछे क्यों रहें?
समग्र स्वच्छता अभियान का जमीनी सच
केंद्र सरकार द्वारा जनता से करों के माध्यम से वसूले गए अरबों रूपए समग्र स्वच्छता अभियान में झोंक दिए जाते रहे हैं, बावजूद इसके देश में समग्र स्वच्छता अभियान परवान नहीं चढ़ सका है। यह बात हम नहीं कह रहे हैं, केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री सौगत राय ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया है कि संयुक्त राष्ट्र की जलापूर्ति और सफाई के लिए गठित संयुक्त निगरानी समिति का प्रतिवेदन कहता है कि दुनिया भर में खुले में शौच करने वालें की कुल आबादी का साढ़े उननचास फीसदी हिस्सा भारत गणराज्य में है। बिडम्बना है कि 1999 से देश में आरंभ किए गए आवास एवं शहरी गीबी उन्नमूलन मंालय एकीकृत कम लागत सफाई प्रोग्राम का क्रियान्वयन केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। अब तक खरबों रूपए से ज्यादा व्यय करने के बाद भी देश में खुले में दिशा मैदान अर्थात शौच जाने वालों की बढ़ी तादाद निश्चित तौर पर भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के लिए शर्म की बात है, किन्तु मोटी खाल ओढ़े जनसेवकों को इस बात से शर्म शायद ही आए। ग्यारह साल से चलने वाले समग्र स्वच्छता अभियान की कलई खुलने के बाद भी कांग्रेसनीत केंद्र सरकार मदमस्त हाथी के मानिंद ही चल रही है।
ऑफ द रिकार्ड नेताओं की शामत आई भाजपा में
मीडिया से गलबहियां कर ऑफ द रिकार्ड बात कहकर अपनी भड़ास निकालने और दूसरों के मुसीबत बनने वाले नेताओं पर अब भारतीय जनता पार्टी के नए आलाकमान ने नजर रखना आरंभ कर दिया है। भाजपा की गत बनाने वाले इन बड़बोले नेताओं की मश्कें कसती साफ नजर आ रही हैं। अपने किसी ‘‘खासुल खास‘‘ के मशविरे पर भाजपा के निजाम नितिन गडकरी ने खुफिया विभाग के एक सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी को इन नेताओं की कारगुजारियों से आवगत कराने का जिम्मा दिया है। उक्त अधिकारी की सालाना पगार बहत्तर लाख रूपए सालाना है। इतनी मोटी पगार से साफ जाहिर है कि भाजपा के सिरमोर चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में पार्टी की बेहतर छवि जनता के सामने आए। उक्त सेवानिवृत अधिकारी आजकल भाजपा के नेशनल हेडक्वार्टर 11 अशोक रोड़ में चहलकदमी करते दिख जाते हैं। बताते हैं कि उक्त अधिकारी द्वारा अपने प्रभावों का इस्तेमाल कर बड़बोले घर के भेदी नेताओं और पत्रकारों के बीच हुई फोन या मोबाईल की चर्चा के काल डिटेल आसानी से निकलवा लिए जाते हैं, फिर उन्हें खबरों के साथ जोड़कर अपनी रिपोर्ट सौंप दी जाती है गडकरी को। भाजपा के नेता भयाक्रांत ही नजर आ रहे हैं इससे। आलम यह है कि भाजपा बीट को कव्हर करने वाले पत्रकारों से इस तरह के नेताओं द्वारा पर्याप्त दूरी बनाकर रखी जा रही है।
कलमाडी ही नहीं शीला, रेड्डी, गिल भी हैं निशाने पर
कामन वेल्थ गेम्स में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का पैसा पानी की तरह उड़ाया जा रहा है। इसके लिए खेलों की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है। मीडिया को मैनेज कर अनेक चेहरों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। देखा जाए तो इस मामले में शीला दीक्षित को 16 हजार पांच सौ साठ करोड़ रूपए राजधानी को अपग्रेड करने के लिए दिए गए थे। शीला ने पहले भी कहा था कि समय की कमी को देखकर उनके हाथ पांव फूल रहे हैं। यमुना के साथ अक्षरधाम के करीब बने खेल गांव को खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल ने नेहरू स्टेडियम के पास लोधी रोड़ के पास बनाने का प्रस्ताव दिया था। अगर यह वहां बन जाता तो करदाताओं के पैसों में आग लगने से बच जाती। शीला के गुदड़ी के लाल संदीप दीक्षित के लोकसभा क्षेत्र को संवारने के लिए सारी बातों पर धूल डाल दी गई। इसी तरह शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी की देखरेख में लगभग अठ्ठाईस हजार करोड़ रूपए को पानी में बहा दिया गया। यह सच्चाई जनता के सामने इसलिए नहीं आ सकी क्योंकि इन सभी के मीडिया मेनेजमंेट तारीफे काबिल रहे।
मुखर्जी की मौत का दस्तावेज गायब!
भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के दस्तावेज भारत सरकार के पास हैं ही नहीं। मजे की बात तो यह है कि भारतीय जनसंघ की बैसाखियों पर चलने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में तीन बार देश पर राज किया फिर भी किसी को इस बात की सुध नहीं आई कि अपने पितृपुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के बारे में मालुमात कर सकें। गौरतलब है कि मुखर्जी का निधन 55 वर्ष पूर्व काश्मीर की एक जेल में हुआ था। गृह मंत्रालय के अधिकारियों के पास भी इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है, सूचना के अधिकार में चाही गई जानकारी के जवाब में गृह मंत्रालय का कोई स्पष्ट जवाब नहीं आना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। इंडिया लीगल एड फोरम से जुडे आवेदक जयदीप मुखर्जी के सवाल का जवाब उन्हें नहीं मिल सका है। मुखर्जी ने पूछा था कि क्या श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन से संबंधी दस्तावेज गोपनीय थे, इस बारे में भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मौन ही साधा हुआ है।
रिक्शा खीचने पर मजबूर बूढ़ी हड्डियां
पांच पांच पुत्रों के होने के बावजूद भी मुजफ्फरपुर के सकल राम को 85 साल की उमर में रिक्शा खीचना मजबूरी बन गया है, हो क्यों न? उन्हें अपना और अपनी अर्धांग्नी का पेट जो भरना है। पेट की आग बुझाने को सकल राम रोज सुबह रिक्शा लेकर सवारियों का इंतजार करते रहते हैं। कभी कभी तो यह स्थिति भी आती है कि वे अचानक ही चक्कर खाकर गिर जाते हैं। कभी कभी देखने वाले उन पर तरस खाकर वैसे ही उनकी रोजी रोटी का इंतजाम कर देते हैं, पर सकल राम चाहते हैं कि जब तक उनके शरीर में जान है तब तक वे अपनी आजीविका की व्यवस्था खुद ही करेंगे। इस मंहगाई के जमाने में भी सकल राम बस बीस तीस रूपए जमा होते ही अपने घर को लौट जाते हैं। सकल राम जैसे न जाने कितने व्यक्ति होंगे भारत में जो अपनी आजीविका के लिए दर दर भटकने पर मजबूर होंगे। भारत सरकार और सूबाई सरकारों की निराश्रित पेंशन योजना की कलई खोलने के लिए इस तरह के वाक्ये पर्याप्त माने जा सकते हैं।
अंडरवर्ल्ड की नई नामवाली!
कल तक अंडरवर्ल्ड में मुच्छड़ के नाम से पहचाना जाने वाला दाउद इब्राहिम का नया नामकरण हो गया है। पुलिस को छकाने के लिए अंडरवर्ल्ड के लोगों ने नई नामावली को अंजाम दिया है। यह बात मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच द्वारा कुछ संदिग्ध फोन और मोबाईल की टेपिंग के उपरांत सामने आई है। पुलिस के सूत्रों ने बताया कि फोन पर अपनी बात कहने और किसी को समझ न आने के डर से गुर्गांे द्वारा तरह तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। बताया जाता है कि पुलिस वालों को पूर्व में बाबू या पांडू कहा जाता था जो अब उलिस्पा के नाम से जाना जाने लगा है। लंबी दाढ़ी के कारण दाउद को अब हाजी साहेब, बंदूक को मां तो गोलियों को चाकलेट की जगह अब बेटा, छोटा शकील को सीएसबी अर्थात छोटा शकील भाई और उसकी हेयर स्टाईल के कारण उसे पाउ टकला भी कहा जाने लगा है, नाना के नाम से जाना जाने वाला छोटा राजन को सेठ, मुखबिर को जीरो कहा जा रहा है।
दिल्ली में इंदौरी पोहा!
मूलतः मध्य प्रदेश के मालवा और महाराष्ट्र के हल्के नाश्ते चावल के पोहे के स्वाद से अब दिल्ली वासी भी रूबरू हो चले हैं। चटपट बनने वाला कम तेल आहर का पोष्टिक पोहा एमपी के मालवा विशेषकर इंदौर की शान माना जाता है। राजधानी दिल्ली में यमुना पार लक्ष्मी नगर के मंगल मार्केट में स्टेट बैंक के सामने रेहडी लगाने वाले मुरैना निवासी रवि ने दिल्ली में हल्के नाश्ते के शौकीनों को इंदौरी पोहा का स्वाद दिलाया। लक्ष्मी नगर में रहने वाले विद्यार्थियों को इंदौर का पोहा इतना भाया कि आसपास में स्कूल ब्लाक, पड़पड़गंज, प्रीत विहार कड़कड़डूमा आदि क्षेत्र के लोग भी इस पोहे का स्वाद लेने लालायित दिखने लगे हैं। वैसे दिल्ली में सुबह के नाश्ते में मूलतः ब्रेड पकौड़ा, समोचा, कचौड़ी, छोले भटूरे का ही रस्वादन किया जाता है, किन्तु इन सबमें तेल की मात्रा बहुत अधिक रहती है, कम तेल के पोष्टिक आहार पोहे की दीवानगी दिल्ली में शनैः शनैः बढ़ती दिखने लगी है।
बाबा की अदालत का इंसाफ
क्या आप यकीन कर सकते हैं कि किसी गांव का एक भी आपराधिक प्रकरण पुलिस थाने में दर्ज नहीं हो। जी हां, जालंधर जिले का एक ऐसा गांव है जहां एक भी मामला पुलिस के रोजनामचे में दर्ज नहीं है। होशियारपुर मार्ग पर अवस्थित ग्राम लेसड़ी वाल में यह कारनामा हो रहा है। यह क्षेत्र थाना आदमपुर के इलाके में आता है। यहां पीर मियां मिट्ठे शाह की दरगाह है। यह दरगाह सड़क से 20 फिट की उंचाई पर है। कहते हैं कि गांव का एक भी घर इसे अधिक उंचाई का नहीं है। जो भी इससे उंचा मकान बनाने का प्रयास करता है, उसका मकान अपने आप ही ध्वस्त हो जाता है। यह दरगाह मुगल काल में स्थापित हुई थी। यहां सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि गांव में चोरी होती ही नहीं है, अगर किसी ने धोखे से चोरी कर भी ली तो चोर सामान लेकर गांव के बाहर जा ही नहीं पाता है, धारणा है कि अगर वह बाहर गया तो उसे दिखना बंद हो जाएगा। इक्कीसवीं सदी में भी इस तरह के चमत्कार अगर हों तो उन्हें नमस्कार ही करना होगा।
पीएम ने जताई पटेल से नाराजगी
भारत के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने संभवतः पहली बार किसी मंत्री के प्रति अपनी नाराजगी का इजहार किया है। पीएम ने नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के मंत्रालय के एक नीतिगत निर्णय पर कड़ा रूख अपनाया है। दरअसल नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस साल मार्च में अपने सभी पूर्व सचिवों को एयर इंडिया की घरेलू और समुद्र पारीय उड़ानों में परिवार सहित मुफ्त टिकिट अपग्रेडेशन सुविधा का नीतिगत निर्णय लिया है। दिल्ली से लंदन की रिटर्न टिकिट का किराया इकानामी क्लास में पचास हजार रूपए तो प्रथम श्रेणी में यह दो लाख रूपए के करीब है। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने इस मामले में अपनी नाराजगी जाहिर की है। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री इस बाते से खासे नाराज हैं कि नौकरशाहों को इस तरह जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को उड़ाने के लिए स्वतंत्र कैसे छोड़ा जा सकता है। प्रफुल्ल पटेल का मंत्रालय है कि प्रधानमंत्री के खफा होने का उस पर कोई असर होता दिख नहीं रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री के आदेश के बाद भी नागर विमानन मंत्रालय ने इस मामले में खामोशी ही अपनाई हुई है।
अंततः झुकना ही पड़ा साई बाबा के संस्थान को
शिरडी के फकीर साई बाबा के अनन्य भक्तों की कमी इस देश और विदेशों में कहीं भी नहीं है। सत्तर के दशक में मनोज कुमार ने शिरडी के साई बाबा पर वालीवुड में चल चित्र बनाकर साई बाबा की कीर्ति को कोने कोने में पहुंचा दिया था। चालीस सालों में महाराष्ट्र के अहमदपुर जिले के शिरडी कस्बे के हालात बहुत बदल चुके हैं। बाबा के भक्तों की तादाद में अचानक ही बहुत तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। बाबा के भक्त मुक्त हस्त से बाबा के लिए सब कुछ अर्पण करने को आमदा प्रतीत होते हैं। बाबा की प्रसिद्धि को देखकर साई बाबा संस्थान शिरडी ने कुछ सदस्य बाबा की चरण पादुकाओं को भारत गणराज्य पर दो सौ साल राज करने वाले ब्रितानियों के देश की राजधानी लंदन में 19 सितम्बर को होने वाले साई भक्त सम्मेलन में ले जाने पर आमदा थे। जब यह बात उजागर हुई तब साई भक्तों के बीच रोष और असंतोष की स्थिति बन गई। साई भक्तों के विरोध के आगे अंततः साई बाबा संस्थान को झुकना पड़ा और साई पादुका को लंदन ले जाने का प्रोग्राम निरस्त ही करना पड़ा।
पुच्छल तारा
भारत के लोग क्या नहीं कर सकते, हर कुछ है भारतीयों के बस में। हिन्दुस्तानियों के नाम और हुनर का डंका आज दुनिया भर में बज रहा है। देश के मीडिया को आज देश के गौरव से ज्यादा प्रियंका की साड़ी या उनकी हेयर स्टाईल को स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी के समान बताने में ज्यादा दिलचस्पी है। इसी बात को रेखांकित करते हुए बनारस से समीर शर्मा ने एक ईमेल भेजा है। वे लिखते हैं कि वक्त वक्त की बात है। ब्रितानियों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश पर दो सौ साल से अधिक राज किया, वह आज एक भारतीय द्वारा खरीद ली गई है। संजीव मेहता ने इस कंपनी को डेढ़ सौ बिलियन डालर में खरीदा है। मीडिया को इस खबर में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है कि जिसने देश पर राज किया उसे ही आज एक भारतीय ने खरीद लिया। समीर शर्मा कहते हैं कि मीडिया को भले ही फुर्सत न हो पर हम ही मीडिया बनकर एक दूसरे को ईमेल भेजकर मीडिया का रोल अदा करें।

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 19

छिंदवाड़ा होकर जा ही नहीं सकता उत्तर दक्षिण गलियारा

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के निवासी भले ही इस भ्रम में हों कि भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ द्वारा स्वर्णिम चतुर्भज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण चतुष्गामी सड़क को छिंदवाडा से होकर ले जाने का प्रयास किया जा रहा हो, पर कमल नाथ अपने प्रयासों में इसलिए सफल नहीं हो सकते हैं क्योंकि जिस क्षेत्र से होकर यह सड़क या नरसिंहपुर छिंदवाड़ा नागपुर नेशनल हाईवे का गुजरना प्रस्तावित है, वहां से तो केंद्र सरकार द्वारा सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर का काम एक साल पहले ही आरंभ किया जा चुका है। इतना ही नहीं छिंदवाड़ा से नागपुर अमान परिवर्तन का काम भी इसी कॉरीडोर के मध्य से होकर गुजर रहा है। इस हिसाब से कमल नाथ के प्रयास बेकार ही जाया हो सकते हैं, क्योंकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय एक ही मामले में दो तरह की नीति को अपना नहीं सकता है। भारत गणराज्य में प्रजातंत्र है कोई हिटलरशाही नहीं कि एक मामले में हां और उसी तरह के दूसरे मामले में न।
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 30 अगस्त। ईंधन और समय की बचत को लेेकर केंद्र सरकार की अभिनव परियोजना के अंग स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग बने उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी और खवासा मानचित्र पर रहेगा या नहीं इसे लेकर तरह तरह की भ्रांतियां बन चुकी हैं। लोगों को यह बताया गया कि इस मार्ग को भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा से होकर गुजारने के लिए प्रयासरत हैं। राज्य सभा में कमल नाथ ने कुछ इस तरह का बयान भी दिया था।
 
पिछले साल जून माह में जब यह बात सिवनी की फिजां में तैरी कि उत्तर दक्षिण गलियारे का काम सिवनी जिले में किसी षणयंत्र के तहत रोक दिया गया है, तो सिवनी के निवासियों के दिलो दिमाग में रोष और असंतोष जबर्दस्त तरीके से उबल पड़ा। इसकी परिणिति जनता के मंच के रूप में अस्तित्व में आए ‘‘जनमंच‘‘ के द्वारा 21 अगस्त 2009 को आहूत सिवनी बंद के रूप मंे सामने आई। उस समय सारे दिन लोगों के हुजूम शहर भर में यत्र तत्र अपना विरोध प्रदर्शित करते नजर आए।
 
21 अगस्त 2009 को रूष्ठ सिवनी के नागरिकों ने अपनी शांति और अमन चैन के स्वभाव से विपरीत अपना रोद्र रूप दिखाया। इस दिन लोगों ने कमल नाथ के अनेक पुतले फूंके और उनकी शव यात्रा तक निकाल दी। मजे की बात तो यह है कि किसी ने भी यह जताने का प्रयास नहीं किया कि एक जनप्रतिनिधि अपने संसदीय क्षेत्र के लिए चाहे जो कर सकता है। इस मामले में जवाबदेह सिवनी के जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही के प्रति किसी का ध्यान न जाना और न ही आकर्षित कराना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।
 
मूलतः तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी के आदेश के तहत यह काम रोका गया था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की साधिकार समिति ने मध्य प्रदेश शासन से एसा करने का आग्रह किया था। तत्कालीन जिला कलेक्टर के आदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त काम को राज्य शासन से निर्देश प्राप्त होने की प्रत्याशा में रोका गया था। राज्य शासन द्वारा इस संबंध में जिला कलेक्टर को कोई निर्देश दिए गए हैं या नहीं यह बात भी अब तक स्पष्ट नहीं हो सकी है।
 
‘कौआ ले गया कान, चले कौए के पीछे‘ की तर्ज पर कथित तौर पर इस आंदोलन का नेतृत्व करने वालों ने भी यह जताने का प्रयास नहीं किया कि चूंकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से इस भाग में से वन क्षेत्र की अनुमति नहीं मिली है, अतः यह काम आरंभ नहीं किया जा पा रहा है। मंत्रालय द्वारा वन भूमि पर सड़क निर्माण की अनुमति दी जाना प्रस्तावित थी, किन्तु गैर वन क्षेत्रों के बारे में तो कोई संशय की स्थिति शायद ही बनी हो।
 
इसके बाद शनैः शनैः यह आंदोलन ठंडे बस्ते के हवाले ही होने लगा। कुछ नेता मीडिया की भूमिका पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने लगे कि उनकी खबरों को जानबूझकर सेंसर किया जा रहा है। अगर देखा जाए तो किस खबर को कितनी प्राथमिकता से और किसी कितना स्थान देकर छापना है यह मूल अधिकार संपादक का ही होता है। संपादकों और पत्रकारों के अधिकारों और कर्तव्यों को सरेआम चुनौति दी जाती रही और मीडिया मूकदर्शक बना सब कुछ देखता सुनता रहा।
 
बहरहाल अब इस मामले पर से कुहासा हटता सा दिख रहा है। पिछले साल मध्य प्रदेश के सतपुड़ा नेशनल पार्क, पेंच नेशनल पार्क और महाराष्ट्र के मेलघाट को मिलाकर सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर का काम आरंभ किया जा चुका है। जब इस मार्ग का काम आरंभ किया ही जा चुका है तब नरसिंहपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा, सौंसर, सावनेर नागपुर मार्ग को नेशनल हाईवे के तौर पर बनाना असंभव ही प्रतीत हो रहा है, क्योंकि संभवतः इसी आधार पर ही सिवनी से खवासा नागपुर मार्ग के बीच का काम रोका गया है, क्योंकि एसा कहा जा रहा है कि यह उत्तर दक्षिण गलियारा वर्तमान में पेंच नेशलन पार्क और कान्हा नेशनल पार्क के बीच के प्रस्तावित किन्तु काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर के बीच से गुजर रहा है।

अगर वाईल्ड लाईफ के आवागमन और पर्यावरण असंतुलन के आधार पर सिवनी जिले में काम रोका जा सकता है तो फिर क्या वजह होगी कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नरसिहपुर छिंदवाड़ा नागपुर के स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में तब्दील करने में अपनी आनापत्ति प्रदान की जाएगी? जबकि यह मार्ग सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर को दो जगहों पर बाधित कर रहा है। इस कॉरीडोर के अंदर से छिंदवाड़ा नागपुर रेलमार्ग का काम भी युद्ध स्तर पर ही जारी है।

मुख्यमंत्री चौहान राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार 2010 से पुरस्कृत

मध्यप्रदेश खेलों के लिये रोल मॉडल बना
नई दिल्ली, । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल द्वारा ’’राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार’’ से पुरस्कृत किया गया। ’’राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर गरिमामय समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया। पुरस्कार समारोह में मध्यप्रदेश के खेल मंत्री तुकोजीराव पवार एवं विभागीय अधिकारी मौजूद थे। 
 
देश में उत्कृष्ट खेल अकादमियों की स्थापना और खेलों को प्रोत्साहन देने के लिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रपति श्रीमती पाटिल ने पुरस्कृत किया। पुरस्कृत करते हुए जो प्रशस्ति पत्र दिया गया उसमें कहा गया कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किये गये इस प्रशंसनीय कार्य से मध्यप्रदंेश सरकार अन्य राज्यों द्वारा अनुकरण करने योग्य एक रोल मॉडल बन गया है। उत्कृष्ट खेल अकादमियों की स्थापना और प्रबंधन में मध्यप्रदेश के योगदान को मान्यता प्रदान करते हुए भारत सरकार ने मध्यप्रदेश को वर्ष 2010 के राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार से पुरस्कृत किया है। 
 
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री चौहान ने इस अवसर पर बताया कि प्रदेश में 16 खेल अकादमियां स्थापित की गयी हैं। इन अकादमियों के लिये 15 करोड़ रूपये की राशि आवंटित की गयी है। इन 16 अकादमियों में 369 बच्चों को बोर्डिंग एवं डे बोर्डिंग में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन अकादमियों में सभी खेल उपकरण और अन्य सुविधायें उपलब्ध करायी गयी हैं।  गोपीचंद फुलेला और अनेक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को कोच नियुक्त किया गया है। खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सभी खेल सुविधायें उपलब्ध करायी जा रही हैं। इसके कारण प्रदेश के 700 खिलाड़ियों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक मिले हैं। प्रदेश के खेल बजट में भी वृद्धि करके 70 करोड़ रूपये किया गया है। श्री चौहान ने बताया कि मध्यप्रदेश के लिये यह खुशी की बात है कि राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार पहली बार किसी राज्य सरकार को प्राप्त हुआ है।

रविवार, 29 अगस्त 2010

नक्‍सलवाद आया कहां से

स्‍टार न्‍यजू एजेंसी 19 अप्रेल 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 18

पेंच कान्हा तो काल्पनिक पर पेंच सतपुड़ा करीडोर पर चालू है काम

सतपुड़ा के टाईगर्स की सैरगाह बनेगा पेंच और महाराष्ट्र

खटाई में पड़ सकता है नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा नागपुर एनएच

जुड़ जाएंगे सतपुड़ा, पेंच और मेलघाट

बिना रोकटोक आ जा सकेंगे वन्य जीव

करीडोर का दायरा होगा साढ़े तेरह हजार हेक्टेयर

पेंच और सतपुड़ा कारीडोर के बीच से प्रस्तावित है नरसिंहपुर छिंदवाड़ा नागपुर एनएच

प्रस्तावित है सतपुड़ा, पेंच टाईगर रिजर्व कारीडोर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 29 अगस्त। मध्य प्रदेश के सिवनी और छिंदवाड़ा जिले में फैले पेंच टाईगर रिजर्व, होशंगाबाद जिले के सतपुड़ा टाईगर रिजर्व और महाराष्ट्र के मेलघाट टाईगर रिजर्व को मिलाकर ‘सतपुड़ा टाईगर रिजर्व‘ बनाना प्रस्तावित है, जिससे नरसिंहपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा, सौंसर नागपुर जाने वाले प्रस्तावित राष्ट्रीय राजमार्ग के बनने के मार्ग प्रशस्त होते नहीं दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस मार्ग को उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में शामिल कराने के षणयंत्र का ताना बाना बुना जा रहा है।

मध्य प्रदेश वाईल्ड लाईफ बोर्ड के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा देश के तीन बड़े टाईगर रिजर्व सतपुड़ा, पेंच और मेलघाट को आपस में जोड़कर सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर पिछले साल प्रस्तावित किया था, इसका काम अचानक ही कुछ दिनों बाद ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया गया है। सूत्रांे ने आगे कहा कि इस कारीडोर का काम अगर निर्विध्न पूरा कर लिया जाता है तो तीनों टाईगर रिजर्व के बाघ देश के हृदय प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक की आसानी से सैर कर सकेंगे।

सूत्रों ने कहा कि बाघों पर आए संकट और उनकी कम होती संख्या के मद्देनजर इस तरह के कारीडोर बनाने का काम का फैसला राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा लिया गया है। इससे बाघों की सुरक्षा आसान हो जाएगी। पिछले साल के अगस्त माह में सतपुड़ा नेशनल पार्क प्रबंधन ने आरंभ भी कर दिया था।

भौगोलिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो इन तीनों ही पेंच, सतपुड़ा और मेलघाट टाईगर रिजर्व की सीमाएं आपस में मिलती हैं। इससे वन्य जीव इन तीनों में ही स्वच्छंद विचरण करते रहते हैं। इन परिस्थितियों में बाघ एवं अन्य दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव सदा ही शिकारियों के निशानों पर रहा करते हैं। माना जा रहा है कि तीनों टाईगर रिजर्व की सीमाओं को जोड़कर कारीडोर बनाने से सुरक्षा के साथ ही साथ अन्य दूसरी समस्याओं का समाधान भी आसानी से ही निकाला जा सकता है।

सूत्रों ने आगे कहा कि इस कारीडोर में होशंगाबाद के अलावा, छिंदवाड़ा, बैतूल के साथ ही साथ महाराष्ट्र प्रदेश के कुछ हिस्सों का समावेश इसमें किया जाना प्रस्तावित है। इस प्रस्तावित सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर में तीनों नेशनल पार्क मिलकर वन्य जीवों की सुरक्षा का दायित्व निभाएंगे। अगर कोई वन्य जीव एक नेशनल पार्क से निकलकर दूसरे नेशनल पार्क में जा पहुंचता है तो वहां के सुरक्षा कर्मी उस पर निगरानी रखेंगे। विभाग का मानना है कि कॉरीडोर बनने से बाघों की सुरक्षा और अधिक मजबूत होगी।

पिछले साल 05 सितम्बर को एक राष्ट्रीय अखबार को दिए साक्षात्कार में पेंच नेशनल पार्क के पूर्व और सतपुड़ा नेशनल पार्क के क्षेत्र संचालक नयन सिंह डुगरियाल ने इस बात को स्वीकारा था कि सरकार ने सतपुड़ा, पेंच और मेलघाट के टाईगर रिजर्व को मिलाकर कॉरीडोर बनाना तय किया है। योजना पर काम आरंभ किया जा चुका है। कराीडोर बनने के बाद तीनों नेशनल पार्क के बाघों की सुरक्षा बढ़ जाएगी, वे दूसरे नेशनल पार्क में आराम से विचरण कर सकेंगे।

सतपुड़ा कॉरीडोर के अस्तित्व में आने के बाद इसका दायरा 13 हजार 346 हेक्टेयर हो जाएगा। इसकी जद में 63 वन ग्राम और 6781 परिवार आ रहे हैं। इस कारीडोर की कुल मानवीय आबादी बढ़कर 35 हजार 323 हो जाएगी। उल्लेखनीय होगा कि इन लोगों को कारीडोर में संचालित होने वाली समस्त योजनाओं का लाभ विशेष तौर पर मिल सकेगा।

यहां उल्लेखनीय होगा कि पेंच और कान्हा नेशनल पार्क के बीच के काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर को ध्यान में रखकर उत्तर दक्षिण कारीडोर का काम रोकने के लिए एक गैर सरकारी संस्था सर्वोच्च न्यायायल में अपील दायर की है। पेंच और कान्हा का कॉरीडोर काल्पनिक है, पर सतपुड़ा, पेंच और मेलघाट के लिए तो बाकायदा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्रस्तावित किया गया है। बावजूद इसके न तो केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग और न ही वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट जैसे गैर सरकारी संगठन को इस बात की कोई परवाह है कि इसके बीच से होकर गुजरने वाले नरसिंहपुर छिंदवाड़ा, सौंसर नागपुर नेशनल हाईवे को न केवल हरी झंडी दिखाई गई है, वरन छिंदवाड़ा से नागपुर ब्राडगेज रेल लाईन का काम भी जोर शोर से किया जा रहा है।

मजे की बात तो यह है कि इस मामले में अब किसी का ध्यान नहीं गया है। हर कोई नरसिंहपुर से लखनादौन सिवनी, खवासा होकर नागपुर जाने वाले उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे का काम रूकवाने के लिए भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को दोषी मानकर नरसिंहपुर से छिंदवाड़ा होकर नागपुर जाने वाले प्रस्तावित नेशनल हाईवे में अडंगा लगाने की बात कह और सोचकर इसको रूकवाने की तैयारी रहा है, जबकि उसमें यह पेंच तो अपने आप पहले ही फंस चुका है।

अब माननीय सर्वोच्च न्यायायल भी अगर सिवनी से खवास के मार्ग को पेंच नेशनल पार्क और वन्य जीवों के लिए खतरे की बात को मानकर इसका निर्माण रोकना प्रस्तावित करता भी है तो एक बात तो तय हो चुकी है कि यह मार्ग सिवनी से छिंदवाड़ा सोंसर होकर नागपुर तो किसी भी कीमत पर नहीं जा पाएगा, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा ही पेंच सतपुड़ा और मेलघाट को मिलाकर सतपुड़ा टाईगर कारीडोर बनाने का काम पिछले साल आरंभ करवा चुका है।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

बढ़ सकते हैं सीमेंट के दाम

सावधान! मानसून के बाद बढ़ सकते हैं सीमेंट के दाम

मानसून के बाद तेज माल होगा सीमेंट का

प्रति व्यक्ति सीमेंट की खपत 136 किलोग्राम

(लिमटी खरे)

देश के महानगरों के अलावा छोटे मंझोले शहरों में भी अब कांक्रीट जंगल खड़े होना आरंभ हो गए हैं। मकान पक्के हों या कच्चे हर जगह सीमेंट का उपयोग अवश्यंभावी ही है। बिना सीमेंट कोई भी दीवार खड़ी नहीं हो सकती है। यही कारण है कि सीमेंट उद्योग में दिन दोगनी रात चौगनी बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। सत्तर के दशक के उत्तरार्ध से लेकर अस्सी के दशक के आरंभ तक सीमेंट की मांग और उत्पादन में कमी के चलते सीमेंट तक की राशनिंग कर दी गई थी। लोग मकान बनाते वक्त सीमेंट खरीदने के लिए पर्ची बनवाने के लिए रतजगा तक किया करते थे। इस दौर में सीमेंट की कालाबाजारी करने वालों की पौ बारह हो गई थी।

मानसून की बिदाई की बेला आते आते रियल्टी सेक्टर के कदम तालों में तेजी आना आरंभ हो गया है। सितम्बर और अक्टूबर माह में सीमेंट, इंफ्रा और रियल्टी सेक्टर में उफान आने की भविष्यवाणियां होना आरंभ कर दी गई हैं। सीमेंट उत्पादन से जुड़े लोगों का भी मानना है कि अगले माह से सीमेंट के दामों में जबर्दस्त उछाल दर्ज होने की संभावनाएं हैं। त्योहारी मांग को देखकर भी सीमेंट की कीमतों में इजाफे से इंकार नहीं किया जा सकता है।

अमूमन सीमेंट के तीन ही उपभोक्ता होते हैं, इनमें बिल्डर, इंफ्रास्टक्चर संस्थाएं और व्यक्तिगत प्रमुख हैं। एक आंकलन के मुताबिक कुल उत्पादन का चालीस फीसदी हिस्सा व्यक्तिगत तौर पर ही उपयोग में लाया जाता है। वैसे सरकार की इंफ्रास्टक्चर क्षेत्र के प्रति नजदीक और लचीला रवैए के साथ ही साथ त्योहारी आकर्षण में बिल्डर्स द्वारा छूट के साथ मकानों के बेचने की घोषणा के चलते सीमेंट की मांग में तेजी से इजाफा होने का अनुमान है।

वैसे भी मानसून में निर्माण कार्य बाधित ही हुआ करते हैं, यही कारण है कि बारिश के चार माहों में सीमेंट की खपत न्यूनतम ही हुआ करती है। सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में इजाफा किया जा चुका है। पेट्रोल, डीजल, कोयला, लाजिस्टिकल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के चलते सीमेंट की कीमतों में वैसे ही उछाल दर्ज किया जा सकता है। अनुमान तो यह लगाया जा रहा है कि सीमेंट की कीमतों में दस से बीस रूपए प्रति बैग की वृद्धि दर्ज हो सकती है।

आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2008 - 2009 में 18.61 करोड़ टन सीमेंट का उत्पादन किया गया था। इसी वित्तीय वर्ष में 1850 करोड़ डालर का कुल टर्न ओवर था सीमेंट उद्योग का। सीमेंट इंडस्ट्री के माध्यम से इस वक्त दुनिया में चौदह खरब लोग अपने परिवार की क्षुदा शांत कर रहे हैं। रही बात भारत की तो भारत में इस वक्त 365 छोटे और सफेद सीमेंट के प्लांट अस्तित्व में हैं। जिनमें से 148 बड़े सीमेंट प्लांटस हैं।

आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि भारत गणराज्य विश्व में सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक देश है। भारत की सीमेंट इंडस्ट्री की उत्पादन क्षमता वित्तीय वर्ष 2009 - 2010 में बढ़कर 21.9 करोड़ टन हो गई है। देश में इस वक्त कुल 46 कंपनियां सीमेंट उत्पादन के कार्य में लगी हुई हैं। चालू माली साल के बाद वर्ष 2011 - 2012 में सीमेंट इंडस्ट्री का उत्पादन लक्ष्य बढ़ाकर 29.8 करोड़ टन होने की उम्मीद है।

सीमेंट के बढ़ते उपयोग और मांग को देखकर अगले तीन सालों में सीमेंट इंडस्ट्री के दस फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। विश्व के मान से अगर देखा जाए तो प्रति व्यक्ति सीमेंट का औसत उत्पादन विश्व में 250 किलोग्राम होता है, जबकि दुनिया के चौधरी बनने की होड़ में शामिल चीन द्वारा 450 किलोग्राम सीमेंट का उत्पादन प्रति व्यक्ति किया जाता है। भारत में यह औसत 115 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। जबकि खर्च की दर 136 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है।

एक समय था जब लोग घरों को मिट्टी से बनाया करते थे। उसके पहले दीवारों को खड़ा करने और जोड़ने के लिए मिट्टी के साथ ही साथ अनेक प्राकृतिक चीजों का उपयोग भी किया जाता था। आज के सीमेंट के जोड़ से वे प्राकृतिक चीजों का जोड़ कहीं ज्यादा टिकाउ और मजबूत होता था। कालांतर में मिट्टी का प्रयोग दीवारें खड़ी करने के लिए किया जाने लगा। मिट्टी के बने मकान पूरी तरह पर्यावरण और मौसम के अनुकूल ही हुआ करते थे।

जब से सीमेंट इंडस्ट्री ने अपने पैर पसारे हैं तब से समूचा विश्व इसकी जद में आ गया है। सीमेंट के अत्याधिक प्रयोग के चलते पर्यावरण का असंतुलन भी साफ तौर पर दृष्टिगोचर होने लगा है। सीमंट के बने मकानों में स्वच्छ हवा और रोशनी की कमी के कारण तरह तरह की समस्याओं ने पैर पसारने आरंभ कर दिए हैं।

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 17

किसी संस्था द्वारा खवासा में कराई जा रही है वाहनों की गिनती

सात सौ वाहनों की आवाजाही है औसत इस मार्ग पर

सड़क आरंभ हो या न हो पर टोल प्लाजा हो सकता है चालू

गुजरने वालेे वाहनों को आधी अधूरी सड़क का ही देना होगा टोल टेक्स

प्रशासन नहीं है इस प्लाजा के आरंभ करने के पक्ष में

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 27 अगस्त। मध्य प्रदेश महाराष्ट्र सीमा पर खवासा में किसी एजेंसी द्वारा वाहनों की गिनती कराए जाने की बात प्रकाश में आई है। इस बात को लखनादौन के पास उत्तर दक्षिण गलियारे पर निर्मित टोल प्लाजा के चालू होने के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि इस साल दीपावली के आसपास ही टोल प्लाजा को सरकारी तौर पर आरंभ करवा दिया जाएगा और यहां से गुजरने वाले वाहनों को आधी अधूरी सडक के लिए ही टोल टेक्स देने पर मजबूर होना पड़ सकता है। उधर प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि जिला प्रशासन इस टोल प्लाजा को आरंभ करवाने के पक्ष में कतई दिखाई नहीं पड़ रहा है।

बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश के आगरा जिले से आए किसी कंपनी के मुलाजिमों द्वारा दिन रात बैठकर छोटे, मझोले और बड़े वाहनों को एक्सल के आधार पर गिना जा रहा है। उक्त कंपनी के दो मुलाजिमों में से एक के द्वारा खवासा से नागपुर की ओर जाने वाले तो दूसरे द्वारा खवासा से जबलपुर की ओर जाने वाले वाहनों की गणना की जा रही है। यह गणना चोबीसों घंटे जारी है। उक्त कार्य इन कारिंदों द्वारा विभिन्न ढाबों में बैठकर गुपचुप तरीके से किया जा रहा है, ताकि जनता की नजरों से यह छिपा रहे।

प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले लगभग दो माहों से जारी इस गणना में प्रति दिन का औसत सात सौ वाहनों के आसपास आया है। कहा जा रहा है कि इस साल दीपावली के आसपास लखनादौन के पास बने टोल प्लाजा को आरंभ करवा दिया जाएगा, जिसके बाद यहां से गुजरने वाले हर वाहन (सरकारी, सांसद, विधायकों द्वारा प्रयुक्त वाहनों को छोड़कर) को गुजरने के लिए निर्धारित शुक्ल अदा करना आवश्यक हो जाएगा।

माना जा रहा है कि जल्द ही सिवनी जिले में टोल प्लाजा आरंभ होने वाला है, और संभवतः यही कारण है कि किसी एजेंसी द्वारा वाहनों के यातायात दबाव का विभिन्न श्रेणियों में सर्वे कराया जा रहा है ताकि टोल प्लाजा से होने वाली वास्तविक कमाई का आंकलन किया जा सके। संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि किसी एजेंसी को इसका काम देने के लिए उच्चाधिकारियों द्वारा सैद्धांतिक सहमति बना दी गई हो, तभी उक्त कंपनी ने जोर शोर से सारे आंकड़े जुटाए जाकर अनुमान लगाए जाने के काम को अंजाम दिया जा रहा हो।

गौरतलब है कि उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में नरसिंहपुर से लखनादौन, जिला मुख्यालय सिवनी होकर खवासा तक के मार्ग का निर्माण कराया जाना प्रस्तावित था, जिसमें से लखनादौन और सिवनी के बीच बंजारी के पास तथा सिवनी से खवासा के बीच मोहगांव से खवासा तक का मार्ग का निर्माण रोक दिया गया है। विडम्बना है कि एनएचएआई द्वारा अगर यह टोल प्लाजा आरंभ करवा दिया गया तो आने वाले समय में इस सड़क के एक बहुत बड़े हिस्से में गड्ढ़े युक्त सड़क पर से गुजरने के बावजूद भी वाहन चालकों को टोल टेक्स देने पर मजबूर होना पड़ेगा।

उधर जिला प्रशासन के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि जिला प्रशासन का मन इस टोल प्लाजा को आरंभ कराने के लिए अपनी सैद्धांतिक सहमति देने का नहीं है। अगर टोल प्लाजा आरंभ करने की बात अस्तित्व में आती है तो जिला प्रशासन द्वारा इसके लिए अपनी नकारात्मक टिप्पणी के साथ इसे आरंभ कराने के ओचित्य पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है।

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

नए क्‍लेवर में दिखेगी सरकार और कांग्रेस संगठन

पितरों के पहले खिली खिली नजर आएगी कांग्रेस

लगातार चौथी बार कांग्रेस की सत्ता को संभालने के लिए सोनिया गांधी बेहद आतुर नजर आ रही हैं। हालात देखकर उनकी ताजपोशी मुकम्मल ही मानी जा रही है। अपनी नई पारी में सोनिया गांधी के तेवर कड़े होने की बात कही जा रही है। खामोशी के साथ लंबे समय से कांग्रेस और सरकार का तांडव देख रहीं सोनिया अपनी चौथी पारी में कांग्रेस के साथ ही साथ सरकार को भी नए क्लेवर में प्रस्तुत कर सकतीं हैं। मजे की बात यह है कि इस काम में वे किसी घाट राजनेता के बजाए अपनी व्यक्तिगत मित्रमण्डली और राहुल गांधी की मदद ले रही हैं, आखिर राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी जो करनी है।
 
(लिमटी खरे)

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चेहरा सवा सौ साल पुराना हो चुका है। कांग्रेस ने अपने इस जीवनकाल में अनेक उतार चढ़ाव देखे होंगे पर पिछले दो दशकों में कांग्रेस ने अपना जो चेहरा देखा है, वह भूलना उसके लिए आसान नजर नहीं आ रहा है। वैसे भी जब से श्रीमति सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद संभाला है, उसके बाद से उनका दिन का चैन और रात की नींद हराम ही नजर आ रही है। दस साल से अधिक के अपने अध्यक्षीय सफर के उपरांत अब श्रीमति सोनिया गांधी ने कांग्रेस और कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का चेहरा मोहरा बदलने की ठान ही ली है।

इस साल सितम्बर माह के मध्य में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर श्रीमति सोनिया गांधी की ताजपोशी में कोई संदेह नहीं दिख रहा है। इसके लिए यह आवश्यक होगा कि 2 सितम्बर तक कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कोई अपनी दावेदारी पेश न करे। अगर एसा होता है तो 02 सितम्बर के उपरांत चुनाव अवश्यंभावी हो जाएंगे। वैसे तो उम्मीद की जा रही है कि 02 सितम्बर तक कोई कांग्रेसी नेता अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत न करे। अगर एसा होता है तो 02 सितम्बर को नामांकन की समय सीमा की समाप्ति के साथ ही श्रीमति सोनिया गांधी की चौथी मर्तबा ताजपोशी की घोषणा कर दी जाएगी।

कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि यूपीए सरकार पार्ट टू में सरकार की मुश्किलों और परेशानी बढ़ाने वाले नुमाईंदों पर सोनिया गांधी ने बारीक नजर रखी है। अब तक चुप्पी साधे रखने वाली श्रीमति सोनिया गांधी आने वाले दिनों में अनेक खद्दरधारी नेताओं को नागवार गुजरने वाले कड़े कदम और फैसले लेने वाली हैं।

गौरतलब है कि कांग्रेसजन अपनी राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी पर यह दबाव बना रहे है कि 2014 में होने वाले आम चुनावों के पहले युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी मुकम्मल कर दें, इसलिए सरकार और संगठन दोनों ही पर राहुल गांधी का नियंत्रण सार्वजनिक तौर पर सामने आने लगे। वर्तमान में राहुल गांधी की छवि विशुद्ध उत्तर प्रदेश विशेषकर अमेठी और रायबरेली के शुभचिंतक के तौर पर बनती जा रही है।

खबरें तो यहां तक हैं कि सत्ता और संगठन के कामकाज को लेकर मां बेटे अर्थात राहुल गांधी और श्रीमति सोनिया गांधी के बीच चर्चाओं के कई दौर हो चुके हैं। दोनों की ही भाव भंगिमाएं देखकर लगने लगा है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के आला मंत्रियों और कार्यकर्ता यहां तक कि पदाधिकारी भी नेतृत्व की चिंता किए बिना अनर्गल बयानबाजी जारी रखे हुए हैं।

पार्टी के अंदरूनी मामलातों में वरिष्ठ पदाधिकारियों का ढीला पोला रवैया, कांग्रेस की सूबाई इकाईयों का सुसुप्तावस्था में होना, एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट की सरासर अनदेखी, मंत्रियों, पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं के बीच खाई पाटने के बजाए दूरी बढ़ते जाना, संगठनात्मक चुनावों में अनावश्क विलंब, जिन राज्यों मेें कांग्रेस विपक्ष में बैठी है, वहां बार बार जनता के बीच जाने के मुद्दे मिलने के बाद भी प्रदेश इकाईयों का पूरी तरह निष्क्रीय होना, युवाओं एवं पढ़े लिखों के साथ ही साथ कांग्रेस का परांपरागत आदिवासी वोट बैंक का धरातल खिसकना आदि बातो ंपर सोनिया गांधी बहुत ही चिंतित प्रतीत हो रही हैं।

इंडियन प्रीमियर लीग में कांग्रेस के मंत्रियों की हुई फजीहत, कामन वेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार की जबर्दस्त गूंज, लंबे समय तक मंहगाई का बना रहना, शर्म अल शेख से लेकर पाकिस्तान में इस्लामाद तक हुई फजीहत, काश्मीर के आतंकवादी, पूर्वोत्तर में अलगाववादी, देश भर में नक्सलवादी चुनौतियां, मंत्रियों की आपस में खींचतान और पार्टी लाईन से हटकर अनर्गल बयानबाजी, नौकरशाही में शीर्ष पदों पर काबिज होने के लिए मची होड़ और इसके लिए सरकार को बार बार कटघरे में खड़ा करना, महिला आरक्षण बिल का परवान न चढ़ पाना, खाद्य सुरक्षा विधेयक के मामले में सरकार और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का अलग अलग सुरों में राग अलापना, देश की जनता के फटेहाल रहने के बावजूद भी सांसदों का वेतन बढ़ाने को लेकर हंगामा और फिर वेतन बढ़ाने की सिफारिश के बाद सरकार का सांसदों के सामने घुटने टेकना, शिक्षा के अधिकार कानून का औंधे मुंह गिर जाना, करोड़ों टन अनाज का सड़ जाना, आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक, दलित जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सरकारी नीतियों का कागजों पर ही सिमटे होना जैसे अनेक मामलों को लेकर कांग्रेस का नेतृत्व निश्चित तौर पर अपने आप को असहज ही महसूस कर रहा होगा।

मामला कुछ इस तरह का भी सामने आया है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के उपर भारी दबाव है कि वे राहुल गांधी को जल्द ही फ्रंटफुट पर लाएं वरना आने वाले दिनों में कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचेगा। संभवतः यही कारण है कि पिछले दिनों कुछ समाचार चेनल्स ने सोनिया गांधी की पुत्री श्रीमति प्रियंका वढेरा के हेयर स्टाईल को देखकर ही सारे दिन खबर चलाई और प्रियंका की तुलना उनकी नानी एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी से करना आरंभ कर दिया है। इसके पहले लोकसभा चुनावों के दरम्यान चेनल्स ने प्रियंका द्वारा श्रीमति इंदिरा गांधी की साड़ी पहनने की खबरें दिखाकर उस समय भी प्रियंका की तुलना श्रीमति इंदिरा गांधी से की गई थी। अरे भई, प्रियंका कोई और नहीं स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की नातिन है, सो वह लगेंगी ही इंदिरा जी जैसी इसमें अजूबे वाली क्या बात है? जो इलेक्ट्रानिक मीडिया पिल पड़ा एक साथ।

कहा जा रहा है कि अगर श्रीमति सोनिया गांधी की ताजपोशी चौथी बार अध्यक्ष के तौर पर हो गई तो संसद सत्र के अवसान के उपरांत और 25 सितम्बर से पितरों के मास आरंभ होने के पहले कांग्रेस और सरकार दोनों ही नए क्लेवर में नजर आने वाले हैं। वैसे भी योजना आयोग द्वारा मंत्रियों के कामकाज की एक साल के उपरांत की पहली तिमाही की समीक्षा लगभग पूरी होने को है, इसके उपरांत योजना आयोग अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप देगा।

अमूमन जैसा होता आया है कि इस रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी सर जोड़ कर बैठ जाएंगे, फिर मंत्रियों को साईज में लाने का काम किया जाएगा। इस दौरान अनेक मंत्रियों के विभागों को बदलकर या तो वजनदार विभाग या फिर कम महत्व के विभाग सौंपे जाएंगे। यह काम सिर्फ कांग्रेस के कोटे के मंत्रियों के साथ ही संभव होगा, क्योंकि गठबंधन की बैसाखी को छेड़ना श्रीमति सोनिया गांधी के बूते की बात दिख नहीं रही है, तभी तो शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे मंत्री पूरी तरह से मनमानी पर उतारू हैं, और कांग्रेस अध्यक्ष हैं कि मूकदर्शक बनी बैठी हैं।

सरकार का नया चेहरा बनाने के उपरांत फिर बारी आएगी कांग्रेस के अपने संगठन की, सो इसमें सोनिया गांधी तबियत से कैंची चला सकती हैं। कांग्रेस में पद धारण करने वाले निष्क्रिय होने का तगमा धारित अनेक पदाधिकारियों को संगठन के महत्वपूर्ण पदों से हटाया जा सकता है, साथ ही युवा एवं काम करने वाले लोगों को पारितोषक मिलने की उम्मीद भी जगने लगी है। सोनिया द्वारा अगर अपने पुत्र राहुल गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद से नवाज दिया जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 16

उखडने लगी हैं सद्भाव द्वारा बनाई गई नई बनी सडकें

गोपालगंज के आसपास चल रहा है मेंटिनेंस

बरसात के बाद खोला जा सकता है बायपास

दीवाली के आसपास हो सकती है टोल टेक्स वसूली आरंभ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 26 अगस्त। सिवनी जिले में एनएचएआई द्वारा हाल ही में युद्ध स्तर पर सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा बनाई गई सड़कों के धपड़े उखड़ने लगे हैं। सिवनी से खवासा के बीच मोहगांव के बाद विवादित सड़क के पहले बनी सड़क पर बारिश की पहली फुहार का असर साफ तौर पर दिखाई पड़ने लगा है। सड़क बनी नहीं कि उसके रखरखाव का काम आरंभ करवा दिया गया है। अगर शुरूआती साल में ही यही आलम है तो आने वाले समय में इस सड़क के हाल ठीक उसी तरह हो जाएं जिस तरह के पूर्व के जिला मुख्यालय में एस.के.बनर्जी द्वारा निर्मित बायपास के हुए थे, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

गौरतलब होगा कि मध्य प्रदेश गृह निर्माण मण्डल द्वारा जबलपुर से मण्डला, बरघाट और कटंगी रोड़ को जोड़ते हुए नागपुर रोड़ तक बायपास का निर्माण करवाया गया था। इस बायपास पर टोल टेक्स की वसूली आज भी जारी है। आरोपित है कि टोल टेक्स की वसूली करने के उपरांत भी भारी वाहनों को शहरी सीमा के अंदर से होकर लगातार गुजारे जाने से अनेकों बार विवाद की स्थिति भी बनी। इस मामले में अनेकों बार पुलिस को भी हस्ताक्षेप करना पड़ा था।

उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में निर्माणाधीन सड़कों का लगभग नब्बे फीसदी हिस्सा आवागमन के लिए खोल दिया गया है। इस मार्ग में मोहगांव से खवासा तक और बंजारी माता से गणेशगंज तक के मार्ग का काम आज भी रूका हुआ है। इस मार्ग में जिला मुख्यालय से दक्षिणी दिशा में महाराष्ट्र सीमा तक के हिस्से में सिवनी से दवसें किलोमीटर से गोपालगंज बायपास तक के मार्ग को सिवनी से नागपुर जाने और नागपुर से सिवनी आने की दिशा में आने जाने वाले वाहनों के लिए गोपालगंज से सिवनी वाले भाग को खोला गया है। सिवनी से गोपालगंज की दिशा में जाने वाले मार्ग पर सड़क के उड़े चिथड़ों को भरने का काम सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा किया जा रहा है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि जब आरंभिक सालों में सड़क का आलम यह है तो फिर आने वाले समय में इस सड़क के धुर्रे उड़ने से कोई नहीं रोक सकता है।

जानकारों का कहना है कि समय सीमा और समय सीमा के उपरांत भारी भरकम जुर्माने के भय से ठेकेदारों द्वारा आनन फानन सड़क निर्माण का काम कराया जा रहा है। उक्त काम गुणत्ता विहीन होने की खबरें भी आम हो गई हैं। कहा जा रहा है कि समूचा काम आईएसओ सर्टिफाईड होना चाहिए किन्तु सिवनी जिले में न तो सद्भाव और न ही मीनाक्षी कंस्ट्रक्श कंपनी ने आईएसओ के नार्मस का पालन किया है।

एनएचएआई के सूत्रों का कहना है कि वैसे तो सिवनी के पश्चिमी दिशा में निर्माणाधीन बायपास का काम तय सीमा से बहुत विलंब से चल रहा है, इसका कारण संभवतः एस.के.बनर्जी द्वारा बनाए गए बायपास की वसूली से जोड़कर भी देखा जा रहा है। इसके साथ ही साथ अगर इस बायपास को बारिश में आरंभ करवा दिया गया होता तो यातायात के दबाव में बायपास में गड्ढे ठीक उसी तरह उभरकर सामने आ जाते जिस तरह पूर्व में जबलुपर से मण्डला, बरघाट, कटंगी रोड़ होकर नागपुर मार्ग्र को जोड़ने वाले बायपस के में निकले थे।

एनएचएआई के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि लखनादौन के करीब बने टोल प्लाजा को दीपावली के आसपास आरंभ कराया जा सकता है। इसके लिए विभाग में अंदर ही अंदर तैयारियां जारी हैं। आधे अधूरे मार्ग पर से गुजरने वाले वाहन चालकों को इस टोल प्लाजा में भारी मात्रा में टोल टेक्स चुकाकर गुजरने का प्रमाण पत्र लेना होगा। सूत्रों के अनुसार इस टोल टेक्स से सिवनी जिले के स्थानीय व्यवसायिक वाहन चालकों को भी कोई छूट या राहत नहीं मिलेगी, क्योंकि यह मामला केंद्र सरकार का है, और वह इसमें छूट या राहत देने के पक्ष में कतई नहीं दिख रही है।

बुधवार, 25 अगस्त 2010

राजनीति चुनाव फिर जनसेवा

क्या निस्वार्थ सेवा का अपमान है तीन गुना वेतन!

राजनीति करना या चुनाव लड़ना जीतकर फिर जनसेवा करना, यह सब कुछ निस्वार्थ सेवा की श्रेणी में ही आता है। आजादी के मतवालों ने ब्रितानी हुकूमत को खदेड़ने के लिए सियासत की, भीड़ का नेतृत्व किया, लोगों को सही पथ पर चलने का आव्हान किया, कुछ नरमी से पेश आते थे वे नरम दल के सदस्य बने और जो गरमी से मारकाट पर विश्वास रखते थे, वे गरम दल उनकी गिनती गरम दल में होने लगी। इसी बीच अहिंसा का पाठ पढ़ाकर आधी धोती पहनकर डेढ़ सौ साल राज करने वाले गोरी चमड़ी वालों को देश से खदेड़ने का जिम्मा महात्मा गांधी ने उठाया। आजादी के बाद जनसेवा और चुनाव लड़ने के मायने बदल गए हैं, निस्वार्थ सेवा करने की गरज से राजनीति में आने वालों को तीन गुना वेतन की सिफारिशें भी कम लगी जो दस सरकार ने दस हजार रूपए और बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है।

(लिमटी खरे)

कमर तोड़ मंहगाई में भारत गणराज्य की आवाम भले ही भूखे पेट, बिना पर्याप्त कपड़े और छत के गुजर बसर करे पर उसी जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद सदस्यों को भरपेट भोजन सारी सुविधाएं निशुल्क के साथ ही साथ भारी भरकम वेतन और भत्ते ही नहीं आजीवन आराम के साथ जीवन गुजारने के लिए कुछ जरूरी सुविधाओं के साथ ही साथ भारी भरकम पेंशन की राशि भी चाहिए। देश की बुनियादी समस्याओं की तरफ बेरूखी का रूख करने वाले संसद सदस्यों को वर्तमान वेतन भत्तों में तीन गुना वृद्धि भी नागवार गुजर रही थी, सो सरकार ने उसमें दस हजार रूपए की बढोत्तरी करने का निर्णय ले लिया है। क्या कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने सोचा है कि यह रकम आएगी कहां से? जाहिर है भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस का एक हाथ आवाम ए हिन्द की गरदन पर तो दूसरा जेब पर है। एक हाथ से कांग्रेस जनता की गर्दन दबा रही है तो दूसरे हाथ से उसकी जेब में जो कुछ भी है वह लूट रही है।
 
आजादी के उपरांत 26 जनवरी 1950 को भारत का गणतंत्र स्थापित हुआ था। भारत प्रजातांत्रिक देश है, और प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जब विपक्ष ही वेतन भत्तों की मांग पर संसद में नंगा नाच आरंभ कर दे तो भारत की गरीब जनता को दोनों हाथ उपर कर ‘‘हेण्डस अप‘‘ की भूमिका में आ जाना होगा। अघोषित तौर पर कांग्रेस द्वारा गन प्वाईंट पर जनता को लूटा जा रहा है। बेबस जनता विपक्ष की ओर नम और आशा भरी निगाहों से देख रही है, पर विपक्ष है कि निरीह कराहती जनता के दुख दर्द को देखने, सुनने और समझकर उसे दूर करने के बजाए सत्ताधारी कांग्रेस के सुर में सुर मिलाते हुए असुरों की भांति अट्टहास ही लगा रहा है। जनता कई सालों से कांग्रेस, भाजपा और अन्य सहयोगी दलों की नूरा कुश्ती देख देखकर आजिज आ चुकी है।
 
इसके बाद थकी हारी जनता की आखिरी उम्मीद प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ अर्थात मीडिया पर आकर आयत होती है। मीडिया है कि अपना स्वरूप बहुत ही तेजी से बदल चुका है। मीडिया से लंबे समय से जुड़े होने के कारण हमें यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि नब्बे के दशक के शुरूआती सालों के उपरांत मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता को खोना ही आरंभ किया है। जब से मीडिया की कमान धनाड्य लोगों के हाथों में गई है तबसे मीडिया में कार्पोरेट संस्कृति का श्रीगणेश हो चुका है। पिछले कुछ माहों से पेड न्यूज पर चली देशव्यापी बहस इसी संस्कृति के गर्भ से पैदा हुआ छोटा सा विकृत, अर्धविकसित, बेडोल वह शिशु है, जिसको जीवन भर पालना इसके पालकों की मजबूरी होगी।
 
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और थिंक टेंक की नैतिकता शायद धूप में रखे कपूर की तरह उड़ चुकी है, यही कारण है कि खालिस और निस्वार्थ जनसेवा के पारितोषक या मासिक मेहनताने के तौर पर भारत गणराज्य जैसे देश में जहां औसत आम आदमी की दैनिक कमाई 20 रूपए और मासिक छः सौ रूपए से भी कम है, उसमें जनता के चुने हुए नुमाईंदे जो निस्वार्थ जनसेवा का दंभ भरते हैं को आम आदमी की औसत कमाई से लगभग ढाई सौ गुना ज्यादा मासिक इन ‘माननीयों‘ जिन्हें सब कुछ निशुल्क मिलता है, को देने का प्रस्ताव दिया है।
 
कांग्रेस के आला नेताओं को शर्म से डूब मरना चाहिए। कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने सांसद, विधायकों को नैतिकता की सीख देते हुए यह आव्हान करे कि इस बढ़ी हुई तनख्वाह को कांग्रेस कतई स्वीकार नहीं करेगी, चाहे सरकारें क्यों न चली जाएं। विडम्बना यह है कि पूर्व में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने जनसेवकों से अपने वेतन का कुछ अंश प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा करने के निर्देश दिए थे। इक्कसीवीं सदी में राजपाट करने का तरीका बदल गया है, सो राजमाता के निर्देशों को हवा में ही उड़ा दिया उनकी पार्टी के चुने हुए जनसेवकों ने। हां इक्कसीवीं सदी में सब कुछ बदल गया है, सिवाए एक बात के, आज भी जनता का शोषण उसी स्तर पर जारी है जिस स्तर पर आदि अनादि काल से होता आया है।
 
दरअसल इक्कीसवीं सदी में भारत के प्रजातंत्र पर कार्पोरेट सेक्टर की गहरी छाप देखने को मिल रही है। पिछले दो दशकों से लोकसभा और राज्य सभा में पहुंचने वाले जनसेवकों में करोड़पति और व्यवसायियों की तादाद बढ़ती जा रही है। हालात देखकर लगने लगा मानो आजादी के उपरांत कांग्रेस के भविष्यदृष्टाओं ने भारत में जिन उद्देश्यों से प्रजातंत्र की स्थापना की गई थी, उस मूल अवधारणा से कांग्रेस की वर्तमान पीढ़ी पूरी तरह भटककर चंद पैसे वालों, रसूख वालों, बाहुबल वालों और व्यवसाईयों के हाथ की लौंडी बनकर रह गई है। यह कैसा प्रजातंत्र जहां आम आदमी दो वक्त की रोजी रोटी के लिए जद्दोजहद में अपना पूरा जीवन बिता दे और वहीं दूसरी ओर शासकों पांचो उंगलियां घी में सर कड़ाई में और पूरा का पूरा धड़ जमीन के बजाए झारे पर पड़ा हो।
 
कांग्रेस को उस वक्त शर्म नहीं आई जब सांसदों का वेतन 16000 रूपए से बढ़ाकर पचास हजार और भत्ते आदि मिलाकर एक लाख तीस हजार किया जा रहा था। कांग्रेस शायद भूल गई कि 2006 में सांसदों का मूल वेतन 4000 रूपए ही था। मंदी के दौर से गुजरते भारत गणराज्य में कांग्रेस ने बहुत ही नायाब उदहारण प्रस्तुत किया है। अमूमन मंदी के दौर में कास्ट कटिंग के चलते या तो सुविधाओं में कटौती की जाती है या फिर कर्मचारियों में। यह भारत गणराज्य है जहां न तो सांसदों की लोकसभा या राज्य सभा की सीटें ही कम की गईं हैं, और न ही उनकी सुविधाएं। बढ़ा है तो उनके वेतन भत्तों को बोझ वह भी आम जनता के कांधों पर।
 
करेला वह भी नीमचढ़ा की तर्ज पर सांसदों के वेतन भत्तों के मामले में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सांसदों के भत्तों में दस हजार रूपए की बढोत्तरी कर सांसदों को एक उपहार और जनता को एक करारा तमाचा मारा है। सांसद जानते हैं कि अभी कांग्रेस की पूंछ परमाणु करार बिल के कारण दबी हुई है। कांग्रेस के कुशल प्रबंधकों द्वारा विपक्ष विशेषकर भारतीय जनता पार्टी को इसके लिए राजी किया जा रहा है। मौका देखकर स्वयंभू प्रबंधन गुरू रहे लालू प्रसाद यादव सरीखे नेताओं ने सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाने की मांग रख दी। कांग्रेस अब ‘‘हुई गति सांप छछूंदर केरी, उगलत निगलत पीर घनेरी‘‘ मुहावरा गुनगुना रही है, क्योंकि अगर सांसदों की इस मनभावन मांग को वह अनसुना करती है परमाणु करार विधेयक लटक जाएगा, और जब मान रही है तो जनता के नाराज होने का खतरा उसके सर मण्डराने लगा है।
 
आज के समय में वैसे भी लोकसभा के 544 और राज्य सभा के 245 सांसद मिलकर हर साल सरकार पर चार सौ करोड़ रूपए का बोझा डालते हैं। इसके अलावा सूबों में विधायक, विधान परिषद सदस्य, जिला जनपद पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम नगर पंचायत आदि में मिलने वाले वेतन भत्तों को अगर जोड़ लिया जाए तो साफ हो जाता है कि जनता का कचूमर तो देश पर राज करने वाले जनसेवक मिलकर ही निकाल रहे हैं।

चोदहवीं लोकसभा में करोड़पति सांसदों की संख्या 154 तो पंद्रहवीं लोकसभा में इनकी संख्या में लगभग दो गुना इजाफा होकर अब यह तीन सौ पर पहुंच गई है। क्या अपना वेतन भत्ते का स्वयं निर्धारण करने वाले सांसद और उनकी अनैतिक मांगों को मानकर देश की आम जनता का गला दबाने वाली कांग्रेस में इतना माद्दा है कि वे एक बिल पास करवाएं कि देश के अंतिम आदमी की माली हालत सुधरने तक अगले किसी भी चुनावों में वही व्यक्ति नामांकन दाखिल कर सकेगा जो यह शपथ पत्र प्रस्तुत करे कि ‘‘वे किसी भी तरह का वेतन नहीं लेंगे‘‘। निश्चित तौर पर एसा होगा नहीं क्योंकि आज राजनीति और जनसेवा का शाब्दिक अर्थ तो निस्वार्थ सेवा ही है पर इसके मायने बदल चुके हैं।

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 15

मुख्यतः वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने नहीं दिया है क्लीयरेंस 

क्यों अडंगा लगा रहे हैं जयराम रमेश
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 25 अगस्त। उत्तर दक्षिण सड़क गलियारे का काम पूरी मुस्तैदी से जारी होने के बाद भी मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में इसके काम को रोक दिया गया है। जिला मुख्यालय से दक्षिण की ओर नागपुर के मार्ग का काम तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी के 18 दिसंबर 2008 के आदेश से रूका है किन्तु उत्तरी सीमा में बंजारी माता से लेकर गनेशगंज के पास तक का काम किसके आदेश से रूका है, यह बात स्पष्ट नहीं हो सकी है।
 
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि यह सारा काम इसलिए रोका गया है क्योंकि रक्षित वन और पेंच नेशनल पार्क के भाग से गुजरने वाली सड़क में क्लीयरेंस देने का काम वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा अभी तक नहीं दिया गया है। गौरतलब होगा कि 19 अगस्त को राजधानी दिल्ली के मध्य प्रदेश भवन में पत्रकारों से रूबरू मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सिवनी जिले के साथ अन्याय होने की बात कही गई थी।
 
एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में कुछ माह पूर्व केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि उत्तर दक्षिण गलियारा पेंच नेशनल पार्क से होकर गुजर रहा है, जिस पर उन्होंने रेड सिग्नल दिखा दिया है। रमेश ने कहा था कि उन्होने स्वयं ही जाकर वास्तविकता देखी थी। साथ ही रमेश वहीं स्पष्ट भी कर गए कि उन्होंने जबलपुर जाकर मौके का मुआयना किया। जयराम रमेश कब सिवनी आए और पेंच नेशनल पार्क के बारे में उन्होने मालुमात की यह बात तो सिर्फ और सिर्फ वे ही बता सकते हैं, क्योंकि पेंच नेशनल पार्क के हिस्से में आने वाली सड़क की दूरी जिला मुख्यालय जबलपुर से कम से कम 180 किलोमीटर दूर है, सो जो हकीकत उनके सामने लाई गई होगी वही हकीकत अगर वे जबलपुर आने की जहमत न उठाते तो उन्हें दिल्ली में बैठे बैठे ही पता चल जाती।
 
सूत्रों ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि चूंकि डॉ.मनमोहन सिंह सरकार की पहली पारी में कमल नाथ केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग विभाग के केबनेट मंत्री थे, एवं जयराम रमेश उनके मातहत राज्य मंत्री थे। इसी दौरान किसी बात को लेकर दोनों में अनबन हो गई थी, जिसे जयराम रमेश आज तक निभा रहे हैं। इसके साथ ही साथ जयराम रमेश को यह बात भी बता दी गई है कि उक्त सड़क वर्तमान भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र से होकर गुजर रही है, अतः इसको लाल झंडी दिखाना अनिवार्य है। इस बात में कितनी सच्चाई है यह बात तो जयराम रमेश ही जाने पर दूसरी सच्चाई यह है कि पिछले दो सालों में भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इस सड़क के पेंच और रक्षित वन से गुजरने की अनुमति अब तक प्रदान ही नहीं की गई है।

तुम मरो भूखे हम तो खाएंगे खीर पुडी

सांसद क्‍यों करें आम आदमी की चिंता

सोमवार, 23 अगस्त 2010

अंधेरे में रहने पर मजबूर है राजमाता की रियाया

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

अंधेरे में रहने पर मजबूर है राजमाता की रियाया

भारत गणराज्य मंे छोटे बच्चे से अगर पूछा जाए कि देश पर वास्तव में शासन कौन कर रहा है तो निश्चित तौर पर उसका जवाब होगा ‘सोनिया गांधी‘। नेहरू गांधी परिवार के नाम पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस ने अघोषित तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को अपनी राजमाता और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को अपना युवराज मान ही लिया है। क्या आप जानते हैं कि राजमाता और युवराज की सल्तनत का आलम क्या है? जी हां अमेठी और रायबरेली में रियाया को महज दो से तीन घंटे बिजली ही मिल पा रही है। मतलब यहां की जनता 21 से 22 घंटे बिना बिजली के ही गुजर बसर करने पर मजबूर है, वहीं दूसरी ओर इसी जनता के जनादेश के बलबूते देश पर परोक्ष तौर पर हुकूमत करने वाली श्रीमति सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी पूरे नवाबी शौक के साथ देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली मंे विलासिता का जीवन जी रहे हैं। यह मामला तब प्रकाश में आया जब उत्तर प्रदेश विधानसभा में इस मामले को उठाया गया। यह है भारत गणराज्य का आजादी के तिरेसठ साल बाद का नजारा। जब देश पर शासन करने वाली कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की नैया के खिवैयों का यह हाल है तो बाकी गरीब गुरबों के बारे में अनुमान लगाने से ही रूह सिहर उठती है।

घर फूंक कर तमाशा देख रही है केंद्र सरकार

विश्व भर में भारत के सत्तर फीसदी लोगों की भुखमरी, बेरोजगारी, लाचारी पर आए दिन जगहसाई होती रहती है, इस सब से ‘बाखबर‘ होते हुए भी बेखबर होने का स्वांग रचने वाली केंद्र सरकार की आखों के नीचे कामन वेल्थ गेम्स के नाम पर अरबों रूपयों के वारे न्यारे हो रहे हैं। इसी तारम्य में अब नई बात सामने आई है। कामन वेल्थ गेम्स की ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी में दर्शकों के मनोरंजन के लिए 12 मीटर से ज्यादा उचंाई के एक गुब्बारे को स्टेडियम में उड़ाया जाएगा। इस गुब्बारे की कीमत 38 करोड़ रूपए बताई जा रही है। इस गुब्बारे का लाईव प्रदर्शन देखने के लिए देश की जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को हवा में उड़ाने के लिए आर्गनाईजिंग कमेटी के स्पेशल डीजी जी.जी.थामस, भर बाला और विराफ सरकारी सहित एक उच्च स्तरीय दल लंदन भी रवाना हो गया है। इस विशेष दल के खर्चे का हिसाब अलग से रखा जाएगा। कुल मिलाकर कामन वेल्थ गेम्स के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, वह किसी भी दृष्टि से उचित कतई नहीं कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने स्वाधीनता दिवस के उद्बोधन में इसे राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाने की बात कही थी। अगर कोई पर्व हमारी लाचारी, बेचारगी, गरीबी का माखौल उड़ाए तब उसे मनाने का क्या ओचित्य?

महिला विरोधी हैं संसद सदस्य

देश की सबसे बड़ी पंचायत में बैठकर फैसला करने वाले सांसद क्या महिलाओं के घोर विरोधी हैं? हालात देखकर तो यही लगता है कि सांसद नहीं चाहते कि महिलाएं किसी भी कीमत पर चौका चूल्हा छोड़कर बाहर आएं और मर्दों की बराबरी करें। अपने वेतन भत्ते बढ़ाने के मामले में सारे सांसद एकजुट ही नजर आए। मसखरी के सरगना लालू प्रसाद यादव ने साफ कह दिया कि सांसदों का वेतन तो जूनियर क्लर्क से भी कम है। लालू को कौन समझाए कि सांसदों की योग्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो वे जूनियर क्लर्क बनने लायक भी नहीं हैं। सांसदों के दबाव के आगे केंद्र सरकार ने घुटने टेके और केबनेट ने सांसदों की पगर बढ़ाने की बात पर अपनी सहमति दे दी। यक्ष प्रश्न यह है कि सालों से टलते आ रहे महिला आरक्षण बिल के मामले में लालू यादव या अन्य सांसदों ने एसी एकजुटता क्यों नहीं दिखाई। महिला आरक्षण के मामले मंे सांसदों के रवैए को देखकर लगने लगा है कि सांसद महिलाओं के विरोधी हैं।

झाडू लगाती और बर्तन मांझती छात्राएं!

दिल्ली सहित किसी भी भाग में अगर आपका बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने जा रहा है तो सप्ताह में एक बार जाकर अपने बच्चे के हाल चाल जरूर ले लीजिएगा, जरूरी नहीं कि आपका बच्चा स्कूल में जाकर शिक्षा ग्रहण कर रहा हो। राजधानी दिल्ली के कदीपुर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक बालिका विद्यालय का नजारा देखकर लगता है कि बालिकाएं यहां झाडू लगाने और बर्तन मांझने ही आती हैं। छात्राओं के अनुसार सुबह आते ही सबसे पहले उन्हें शाला के कक्षों में साफ सफाई करने हेतु झाडू लगाना पड़ता है। इसके बाद मध्यान्न भोजन को तैयार करना और उसे परोसना फिर जूठे बर्तन तक धोना उनकी जिम्मेदारियों मंे शामिल कर दिया गया है। हो सकता है शाला प्रशासन यह सोच रहा हो कि बालिकाओं को कल ब्याह कर दूसरे घर जाना है अतः उन्हें साफ सफाई और बर्तन धुलाई का व्यवहारिक प्रशिक्षण भी लगे हाथ दे ही दिया जाए पर यह मानवाधिकार हनन की श्रेणी में तो आता ही है।

मंदी और मंहगाई की छाया से कोसों दूर हैं सियासी दल

देश की आधी से अधिक आबादी दिन भर में महज बीस रूपए कमा पाए या न कमा पाए पर इसी गरीबी को मुद्दा बनाकर सियासत करने और सत्ता पाने वाले सियासी दलों के खजाने में दिन दूनी रात चौगनी बढ़ोत्तरी हो रही है। राजनैतिक दलों द्वारा जब आयकर विवरणी दाखिल की गई तब देशवासियों की आंखें चकाचौध होना स्वाभाविक ही थीं। कमाई के मामले में सबसे अव्वल कांग्रेस है, जिसे आठ सालां में 1518 करोड़ तो पिछले साल 497 करोड़ की कमाई हुई। दूसरी पायदान पर रहने वाली आदर्शों को अपनने वाली पार्टी भाजपा ने इसी अवधि में 754 करोड़ रूपए अर्जित किए और पिछले साल 220 करोड़ की खालिस कमाई हुई है भाजपा को। बैंक खातों पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो कांग्रेस के 549 करोड़, बसपा के 286 करोड़, भाजपा के 245 करोड़, समाजवादी पार्टी के 177 करोड़, माकपा के 135 करोड़, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के 32 करोड़, भाकपा के 6 करोड़ रूपए तो लालू यादव की राजद के खाते में महज 58 लाख रूपए ही जमा हैं।

मंत्री जी को मिलता है बढ़िया खाना

सांसदों की शिकायत है कि एयर इंडिया में मिलने वाला भोजन बेस्वाद और घटिया होता है। नागर विमानन मंत्री हैं कि सांसदों की शिकायत को सिरे से खारिज कर रहे हैं। विमान में मिलने वाले घटिया क्वालिटी के खाने को लेकर लगभग सभी पार्टी के सांसदों ने नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जमकर घेरा। संसद में नोक झोंक के दौरान जब एक सांसद ने कहा कि मंत्री ने अपने जवाब में स्वयं ही लिखा है कि घरेलू उड़ाने में उन्हें 22 तो समुद्रपारीय उड़ानों में इस तरह की 19 शिकायतें मिली हैं। इस पर पटेल का जवाब था कि हजारों उड़ानों में अगर दस बीस शिकायतें मिली भी हैं तो यह औसत काफी कम है। मंत्री जी के जवाब को सुनकर बसपा सांसद गंगा चरण राजपूत उखड़ गए और बोले उन्होंने खुद ही दस शिकायतें की हैं, पर एक पर भी कार्यवाही नहीं हुई है। बाद में राजपूत ने चुटकी लेते हुए कहा कि लगता है मंत्री जी जब भी विमान में जाते हैं उन्हें बेहतरीन और लजीज भोजन मिलता है तभी तो वे शिकायतें सुनना नहीं चाह रहे हैं।

मुकदमों को लटकाने की प्रवृति से सुप्रीम कोर्ट खफा

मुकदमों में अनावश्यक होने वाली देरी पर देश की सबसे बड़ी पंचायत ने अपनी नाराजगी जताई है। सर्वोच्च न्यायायल की एक खण्डपीठ ने इलाहबाद उच्च न्यायायल द्वारा हतया के एक मामले में 36 साल पहले लगाई गई एक रोक पर यह नाराजगी जताई है। इस मामले में 36 सालों में सुनवाई ही नहीं हो पाई है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि न्याय मिलने में देरी और न्याय न मिलने की दशा में लोग कानून को अपने हाथों में लेने लगेंगे, जिससे समाज में अव्यवस्थ बढ़ेगी और न्याय पालिका पर से लोगों का विश्वास घटने लगेगा। आज न्यायालयों में 01 से 09 वर्ष वाले लंबित प्रकरणों की संख्या 8129, 10 से 20 साल की अवधि वाले 1453, 20 से 30 साल की अवधि वाले 902 और 30 से 36 साल पूर्व वाले उन प्रकरणों की संख्या जिसमें स्थगन लिया हुआ है 43 है। एमाईकस क्यूरी ने सुझाव दिया कि उच्च न्यायलयों को यह निर्देश दिए जाएं कि 10 साल या उससे अधिक पुराने मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निष्पादित किया जाए। इसके लिए हाईकोर्ट को अधिकतम छः माह का समय दिया जाना चाहिए।

रेलगाड़ियों में खाना परोसती नजर आएंगी परिचारिकाएं

भारतीय रेल के खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) से रेलों में खान पान का अधिकार अपने पास वापस लेने के बाद अब भारतीय रेल इसमें अमूल चूल बदलावा की तैयारी में दिख रहा है। खबर है कि आने वाले समय में भारतीय रेल की सभी गाडियों में परिचारिकाएं खाना परोसती नजर आएंगी। वर्तमान में शताब्दी में ट्रॉली के माध्यम से पुरूष परिचारक खाना परोसते हैं। कुछ समय पूर्व स्वर्ण शताब्दी में परिचारिका रखने का प्रयोग किया जा चुका है। कहा जा रहा है कि शताब्दी के साथ ही साथ राजधानी और दुरंतो एक्सप्रेस में महिला परिचारिकाओं के जरिए खाना परोसा जाएगा। यह प्रयोग अगर सफल रहा तो आने वाले दिनों में लंबी दूरी की मेल एक्सप्रेस गाड़ियों में भी इसे लागू किया जा सकता है। मंत्रालय के सूत्र कहते हैं कि यह योजना तभी परवान चढ़ पाएगी जब ममता दीदी पश्चिम बंगाल से निकलकर भारतीय रेल की ओर नजरें इनायत करना आरंभ करेंगी।

पतंग के मामले में हार गया चीन

भारत के बाजार में चीनी सामान का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। सस्ते और आकर्षक होने के कारण लोगों का मोह चीनी ड्रेगन की ओर होना स्वाभाविक ही है, किन्तु पतंगों के मामले में चीन पिछड़ गया है। पन्नी की बनी चीनी पतंगों के बजाए अब देशी कमची यानी बांस की खपच्ची की पतंगों की मांग जबर्दस्त तरीके से बढ़ी है। लोगों का मानना है कि पन्नी की चीनी पतंगे उड़ाने में उन्हें बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, पर खपच्ची की बनी देशी पतंग को आसमान मंे जैसा चाहे वैसे ठुमके लगवा लो। पंद्रह अगस्त पर दिल्ली वासियों के दिलो दिमाग पर पतंग का जुनून देखते ही बनता है। दिल्ली में पतंग का कारोबार सौ करोड़ रूपए से अधिक का है। दिल्ली में बरेली, रामपुर, अमरोहा, जयपुर, अहमदाबाद, लखनऊ आदि से आती हैं। इसके अलावा रील और मन्झा बरेली, अहमदाबाद, आगरा, जयपुर, बरेली आदि से बुलाया जाता है। पतंग बाजों के लिए धागा रखने का चरखा सौ से दो सौ रूपए तक की कीमत का होता है, जिसमें तीन हजार मीटर तक मन्झा भरा जा सकता है।

विवादित होना आमिर खान की फितरत!

मशहूर अभिनेता आमिर खान की किस्मत में विवादित होना बदा ही है। चाहे उनकी फिल्म थ्री ईडियट हो या पीपली लाईव, हर बार वे किसी ने किसी विवाद से अपना नाता जोड़ ही लेते हैं। मामला चाहे जो भी हो पर लगता है आमिर और विवाद का चोली दामन का साथ है। पहले थ्री ईडियट्स में उनका विवाद लेखक चेतन भगत के साथ हुआ, अब पीपली लाईव में विवादों के साए में आ गए हैं आमिर। देश के हृदय प्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम सेहरा निवासी कुंजी लाल ने आमिर खान को एक नोटिस भेजकर पीपली लाईव से होने वाली आय का आधा हिस्सा मांगा है। कुंजी लाल का कहना है कि पीपली लाईव की कहानी उनकी आपबीती को व्यक्त कर रही है। उन्होंने अपने वकील के माध्यम से भेजे नोटिस में कहा है कि इसका आधार 20 अक्टूबर 2005 को बैतूल से दस किलो मीटर दूर ग्राम सेहरा के निवासी कुंजी लाल का कथन है, जिसमें वह खुद के मरने की घोषणा करता है। यद्यपि कुंजी लाल जिंदा है पर उस समय देश भर के मीडिया ने उसे सर पर उठा रखा था।

दस नंबरी होगी लेण्ड लाईन

दूरसंचार नियामक आयोग (ट्राई) चाहता है कि मोबाईल के नंबरों की तरह ही लेण्ड लाईन के नंबर भी दस अंकों के हों। इस आशय का परिचर्चापत्र ट्राई ने लेण्ड लाईन सेवा प्रदाता कंपनियों को जारी किया है। अब तक मोबाईल पर तो दस अंको के नंबर होते हैं किन्तु लेण्ड लाईन के नंबरों में पर्याप्त मात्रा में असमानता ही दिखाई देती है। ट्राई का कहना है कि फिक्सड और मोबाईल सेवाआं के लिए एकीकृत नंबर योजना को 31 दिसंबर 2011 तक लगू किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उसके अनुसार आने वाले तीस चालीस सालों के लिए देश में मौजूदा सेवाओं और प्रस्तावित या भविष्य की योजनाओं के लिए पर्याप्त संख्या में नंबर उपलब्ध हो सकेंगे। ट्राई शायद यह भूल गया कि वर्तमान की योजना एनएनपी 2003 को 75 करोड़ कनेक्शन के मद्देनजर रखकर 2030 तक के लिए बनाया गया था, किन्तु पिछले साल ही मोबाईल के लिए तय कनेक्शन की संख्या पार की जा चुकी है।

क्रिकेट की पिच पर उखड़ने लगे हैं महाराज के पांव

कांग्रेस के सांसद और केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा मध्य प्रदेश के भाजपा के विधायक और वाणिज्य और उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच राजनैतिक जंग जिस भी स्तर पर हो किन्तु अब दोनों ही के बीच मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर जबर्दस्त जंग मची हुई है। 22 अगस्त को संपन्न होने वाले चुनावों में संभवतः पहली बार ही एसा होगा कि चुनाव मतदान से होगा, वरना तो आम राय से ही अध्यक्ष बना दिया जाता था। विजयवर्गीय इंदौर जिला क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने जाने के बाद एमपीसीए का अघ्यक्ष बनने की जुगत में हैं। सिंधिया ने संसद के सत्र को तजकर इंदौर में डेरा डाल दिया है। उनकी ओर से कमान भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के संयुक्त सचिव संजय जगदाले ने संभाल रखी है। अब सभी की निगाहें इस पर जाकर टिक गईं हैं कि इस रण में विजय किसकी होती है।

हमसे नहीं अलगाववादियों से करो चर्चा

काश्मीर की स्थिति सुधारने की गरज से वजीरे आजम डॉ.मन मोहन सिंह द्वारा पीडीपी से चर्चा की पेशकश को पीडिपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने ठुकरा दी है। पीडीपी का कहना है कि काश्मीर में अमन अगर लाना है तो वजीरे आजम को चाहिए कि पीडीपी से चर्चा करने के बजाए यह चर्चा घाटी के अलगाववादियों से की जाए। पीडीपी का दो टूक कहना है कि वे तो भारत के साथ हैं, और पीडीपी के नेताओं से चर्चा करने भर से कोई हल निकलने वाला नहीं है। गौरतलब होगा कि पूर्व में कांग्रेस के एक महासचिव और केंद्रीय मंत्री के हवाले से यह खबर आई थी कि पीडीपी नेता सईद घाटी के हालातों को लेकर जल्द ही प्रधानमंत्री से मिलने वाले हैं, किन्तु सईद वर्तमान में चेन्नई में अपने परिवार के साथ हैं और उनकी जल्द वापसी की कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही है। पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार अगर घाटी में अमन कायम करना चाह रही है तो अलगाववादियों से चर्चा कर इसका हल निकाला जाना चाहिए।

पुच्छल तारा

देश भर में इन दिनों दो ही चर्चे ज्यादा हो रहे हैं अव्वल तो यह कि कामन वेल्थ गेम्स में खेल खेल में अरबों का खेल हो गया है और दूसरा इस गेम का थीम सांग जिसे बक्का बक्का से हर मायने में बेहतर बनाना है और जो ए.आर.रहमान द्वारा गढ़ा जा रहा है। इसी बातों को जोड़ते हुए शाहजहांनाबाद से मणिका सोनल एक ईमेल भेजती हैं। मणिका लिखती हैं कि रहमान के मन में चाहे जो घुमड़ रहा हो, पर वे यह बात जरूर सोच रहे होंगे कि देश की जनता भले ही कॉमन वेल्थ गेम्स की तैयारियों पर ‘‘हक्का बक्का‘‘ हो रही हो, पर इसका थीम सांग ‘‘वक्का वक्का‘‘ से बेहतर ही होगा।

रविवार, 22 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------------ 14

एमपी वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने दी थी सड़क बनाने पर सहमति
 
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग ने फसाया है फच्चर
 
वन क्षेत्र में सड़क निर्माण की अनुमति नहीं जारी हुई अब तक
 
अगर सड़क रूकी तो स्वर्णिम चतुर्भुज की अवधारणा ही हो जाएगी गलत साबित
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 23 अगस्त। सिवनी जिले से होकर गुजरने वाली फोरलेन सड़क को बनाने के लिए मध्य प्रदेश वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने अपनी सहमति देकर प्रस्ताव को अनुमोदन के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा था। केंद्रीय वन एवं पयावरण विभाग ने मध्य प्रदेश सरकार से प्राप्त सारे प्रस्तावों को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है। यही कारण है कि इस सड़क के कुछ हिस्सों में पड़ने वाले रक्षित वन और पेंच नेशनल पार्क के क्षेत्र में सड़क का काम रोका गया है।
 
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इस तरह के प्रस्ताव मंत्रालय को प्राप्त हुए हैं जिनमें 1545 में निर्मित लगभग चार सौ पेंसठ साल पुराने इस मार्ग को बरकरार रखने की बात कही गई है। मध्य प्रदेश के वन विभाग और मध्य प्रदेश वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने भी इस सड़क के निर्माण में वन्य जीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से ज्यादा इस बात की चिंता जताई गई है जिसमें कहा गया है कि अगर मार्ग को रोक दिया गया तो उत्तर से दक्षिण जाने वाले लोगों को बहुत लंबा चक्कर लगाना पड़ सकता है।
 
गौरतलब होगा कि देश के चार महानगरों को आपस में जोड़ने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना को प्रस्तावि किया गया था। इस योजना में बाद में उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम गलियारे को भी शामिल किया गया था। इस योजना को इस बात को ध्यान में रखकर बनाया गया था कि इस मार्ग के बनने के बाद लोगों का समय और इंधन की बचत हो सके। यही कारण है कि इसका एलाईंमेट बहुत ही बारीकी से बनाया गया था। मार्ग में पड़ने वाले अनेक मोड़ों को भी समाप्त कर सड़क को सीधा ही रखने का प्रयास किया गया था।
 
अगर इस सड़क को लखनादौन से नागपुर, बरास्ता सिवनी, कुरई खवासा होकर नहीं गुजारा जाता है तो लखनादौन से नागपुर की दूरी बढ़ जाएगी, जिससे स्वर्णिम चतुर्भुज योजना की मूल अवधारणा ही गलत साबित हो जाएगी। बताया जाता है कि एक तरफ एनएचएआई द्वारा यह कहा जा रहा है कि कुरई घाटी में बनने वाले फ्लाई ओवर के निर्माण में आने वाला 900 करोड़ रूपए का खर्च वहन करना विभाग के लिए आसान नहीं है, वहीं दूसरी तरफ इस काम के लगभग दो साल से रूके होने के कारण ठेकेदारों द्वारा विभाग से वसूली की जाने वाली पेनाल्टी की राशि भी करोड़ों में पहुंच चुकी है।
 
बताया जाता है कि रक्षित वन और पेंच राष्ट्रीय उद्यान के भाग में सड़क न बन पाने के पीछे वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की नाराजगी ही प्रमुख है। रमेश के करीबी सूत्रों का कहना है कि इस मामले में अब तक किसी ने भी जयराम रमेश से मिलकर वास्तविकता से आवगत कराने की जहमत नहीं उठाई है।