शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

रक्षित वन और पेंच के हिस्से से गुजरने वाली सडक कभी भी एनएच को हस्तांतरित ही नहीं हुई

फोरलेन विवाद का सच ------------02

2008 में ही रोक दिया गया था फोरलेन निर्माण का काम
 
वन विभाग की भूमि को अपना बताकर एनएच ने आरंभ करवा दी थी कटाई
 
वन विभाग ने कायम किया था अवैध वन कटाई का मामला
  
(लिमटी खरे)

सिवनी। अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में स्वर्णिम चतुर्भज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे से सिवनी का नामोनिशान मिटाने की कवायद 2008 में विधानसभा चुनावों के पहले ही आरंभ हो चुकी थी। मध्य प्रदेश के वाईल्ड लाईफ विभाग द्वारा इस सडक के निर्माण हेतु अपनी सहमति के साथ प्रस्ताव केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा था। इसी दौरान दक्षिण सिवनी सामान्य वन मण्डलाधिकारी द्वारा अक्टूबर 2008 में ही इस मामले में पेंच फसाने आरंभ कर दिए थे।
 
दक्षिण सिवनी सामान्य वन मण्डल के डीएफओ द्वारा 25 अक्टूबर 2008 को जारी एक पत्र में इस बात का लेख साफ तौर पर किया गया है कि उनके कार्यालय में एसा कोई भी अभिलेख मौजूद ही नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि वन विभाग के आधिपत्य वाले भाग से गुजरने वाले राजमार्ग क निर्माण या चौडीकरण के लिए लोक निर्माण विभाग अथवा राष्ट्रीय राजमार्ग को भूमि कभी हस्तांतरित की गई हो। साथ ही नेशनल हाईवे विभाग द्वारा भी डीएफओ के समक्ष एसे कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किए गए हैं जिससे साबित हो सके कि आरक्षित वन भूमि एनएच विभाग या लोक कर्म विभाग को कभी हस्तांतरित की गई हो। इस सडक के सालों साल रखरखाव और नवीनीकरण की जानकारी भी डीएफओ नार्थ टेरीटोरियल सिवनी के पास मौजूद नहीं है।
 
इन परिस्थितियों में यक्ष प्रश्न तो यह है कि अगर यह भूमि वन विभाग के आधिपत्य की है तो अब तक सालों साल लोक निर्माण विभाग के एनएच डिवीजन ने आखिर इस सडक का रखरखाव किस मद से किया है। पत्र में यह बात भी साफ तौर पर उल्लेखित की गई है कि राष्ट्रीय राजमार्ग वन के 03 वनखण्ड के 06 कक्षों से गुजरता है। उक्त संरक्षित वन अधिसूचना (असाधारण राजपत्र) नंबर 3060 - 404 - ग्यारह दिनांक 15 सितम्बर 55 को प्रकाशित होना बताया गया है।
 
सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय राजमार्ग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने डीएफओ को पत्र लिखकर कहा था कि राईट ऑफ वे के तहत यह भूमि उनके स्वामित्व की है, और इस पर खडे वृक्ष कंट्रोल ऑफ राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम वर्ष 2002 के तहत उनकी सम्पत्ति हैं, एवं सडक के चौडीकरण के दौरान कार्य करने तथा उनकी कटाई करने हेतु वन सरंक्षण अधिनियम के प्रावधान इस पर लागू नहीं होते हैं। इसी तारतम्य में उन्होंने राजमार्ग के राइट ऑफ वे में खडे समस्त वृक्षों की नीलामी कर कटाई का काम भी आरंभ करवा दिया था।
 
सूत्रों के अनुसार वन विभाग द्वारा इस कटाई को अवैध मानते हुए पीपरखुंटा वन खण्ड के कक्ष नंबर पी - 266 में राष्ट्रीय राजमार्ग के अनाधिकृत ठेकेदार द्वारा 26 पलाश और 47 सागौन के वृक्ष काटने पर दिनांक 15 अक्टूबर 2008 को वन अपराध नंबर 1897/22 के तहत मामला दर्ज कर लिया था।
 
माना जा रहा है कि उपर के निर्देशों पर वन विभाग चूंकि इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुका था अतः वह इस मामले को हर तरह से रोकने पर ही आमदा नजर आ रहा था। डीएफओ नार्थ टीटी ने मुख्य वन संरक्षक सिवनी सहित जिला कलेक्टर सिवनी को यह भी सूचित किया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग द्वारा मार्ग में खडे वृक्षों को राईट ऑफ वे के तहत राष्ट्रीय प्रजाति के वृक्षों को निजी क्रेताओं को सीधे सीधे ही बेच दिया गया है, जिससे मध्य प्रदेश वनोपज व्यापार अधिनियम 1969 की की धारा 5 का उल्लंघन हो रहा है।

वन विभाग द्वारा मामले को प्रदेश सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को अग्रिम आदेश और मार्गदर्शन के लिए प्रेषित कर दिया गया था। इस तरह देखा जाए तो नवंबर 2008 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव और 2009 मई में संपन्न लोकसभा चुनावों के पहले ही सिवनी जिले को एनएचएआई के उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे से गायब करने का ताना बाना बुन लिया गया था।

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