शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

कमल ताल पर मुजरा करती हृदय प्रदेश की भाजपा

कमल ताल पर मुजरा करती हृदय प्रदेश की भाजपा
 
(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश मंे भारतीय जनता पार्टी के शासन के सात साल पूरे होने को आ रहे हैं। इन सात सालों में 2010 में सत्ता और संगठन में तालमेल की कमी जबर्दस्त परिलक्षित हो रही है। मामला चाहे निगम मण्डलों में लाल बत्ती बांटने का हो अथवा केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के मंत्रियों के साथ जुगलबंदी का, हर मामले में सत्ता और संगठन का रूख अलग अलग ही साफ तौर पर दिखाई देता है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और लोक कर्म मंत्री नागेंद्र सिंह भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तारीफों में न केवल कशीदे गढ़ते हैं, वरन् मंत्री मुख्यमंत्री की छवि निर्माण का काम संभालने वाला जनसंपर्क महकमा भी कमल नाथ एवं अन्य मंत्रियों के साथ ‘‘सोजन्य भंेट‘‘ की अनेकानेक तस्वीरें बारंबार भेजता है, जिसमें उभय पक्ष मुस्कुराते हुए एक दूसरे का अभिवादन करते दिखते हैं। कभी मध्य प्रदेश भाजपा द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गों की दुर्दशा के लिए कमल नाथ को घेरने का कार्यक्रम बनाकर उसे अमली जामा नहीं पहनाया जाता है, तो अब एक बार फिर एमपी के निजाम शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्रीमण्डल सहयोगियों के साथ वजीरे आजम डॉ. मनमोहन सिंह से मिलकर भूतल परिवहन मंत्रालय के द्वारा किए जाने वाले पक्षपात की शिकायत करने का तान छेड़ रही है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं मध्य प्रदेश भाजपा के कमल नाथ घेरो अभियान की तरह इस बार भी यह कार्यक्रम टांय टांय फिस्स न हो जाए, होता भी है तो हो इससे जनसेवकों को क्या लेना देना, अंत्तोगत्वा पिसना तो निरीह जनता जनार्दन को ही है। मजे की बात तो यह है कि इस मर्तबा शिवराज मंत्रीमण्डल सिर्फ और सिर्फ नर्मदापुरम के दो राष्ट्रीय राजमार्ग की दुर्दशा के लिए पीएम से मिलने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश में जिस जिस जिले से होकर नेशनल हाईवे गुजरता है, उन जिलों में शिवराज सरकार की केबनेट की बैठक रख दी जाए तो कम से कम इन जिलों की किस्मत चमकने के मार्ग ही प्रशस्त होने की उम्मीद जग जाएगी।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मण्डली ने नर्मदापुरम को जोड़ने वाले दो राष्ट्रीय राजमार्गों की बदहाली पर अफसोस जाहिर किया जाना आश्चर्यजनक माना जा रहा है। देखा जाए तो शिवराज मंत्रीमण्डल में समूचे सूबे के हर क्षेत्र को प्रतिनिधित्व दिया गया है, इन क्षेत्रों में से अनेक विधायक एसे भी हैं, जिनके विधानसभा क्षेत्र से नेशनल हाईवे होकर गुजर रहा है। इसके अलावा जब भी मुख्यमंत्री या मंत्री सड़क मार्ग से विचरण करते हैं, तब वे सड़कों की बदहाली से दो चार हुए बिना नहीं रहते हैं। बावजूद इसके मंत्रियों ने अपने अपने क्षेत्र या अन्य नेशनल हाईवे की दुर्दशा पर मौन ही साध रखा है।
संसदीय कार्य और विधि विधाई मंत्री एवं शिवराज सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने भोपाल में मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि 15 नवंबर के पहले मंत्रीमण्डल के सदस्य शिवराज सिंह की अगुआई में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह से भेंट कर मध्य प्रदेश के नेशनल हाईवे की दुर्दशा का कच्चा चिट्ठा उनके समक्ष रखेंगे। राष्ट्रीय राजमार्ग का संधारण एवं निर्माण केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय की महती जवाबदारी है, जाहिर है यह मामला भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के खिलाफ ही जाएगा।
 
इसके पहले सितम्बर माह में मध्य प्रदेश भाजपा का कहना है कि वह 5 से 7 अक्टूबर तक नेशनल हाईवे पर पड़ने वाले कस्बों और ग्रामों में हस्ताक्षर अभियान चलाएगी फिर 22 से 24 अक्टूबर तक इन्ही ग्रामों में मानव श्रंखला बनाई जाने के उपरांत 10 नवंबर को भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे। भाजपा के इस निर्णय से कमल नाथ और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती और तेज हो गई थी। अब जबकि पांच से सात अक्टूबर और 22 से 24 अक्टूबर की तिथि भी निकल चुकी है, तब भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर यह बहस तेज हो गई है कि आखिर वे कौन से हिडन रीजन और वेस्टेज इंटरेस्ट (छिपे हुए कारण, और निहित स्वार्थ) हैं जिनके चलते भाजपा जनता से सीधे जुड़े मुद्दे पर भी कमल नाथ को घेरने में अपने आप को असफल ही पा रही है।
 
जब मध्य प्रदेश में सत्ताधारी और केंद्र में विपक्ष में बैठी भाजपा का आलम यह है तो गरीब गुरबों की कौन कहे, वह भी तब जबकि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की आसनी पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सालों साल सींची गई मध्य प्रदेश की विदिशा संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीती सुषमा स्वराज विराजमान हों, तब भी मध्य प्रदेश की सड़कें इस तरह से बदहाल हो रही हो, केंद्र के मंत्री मध्य प्रदेश के साथ अन्याय कर रहे हों, इस अन्याय के बाद भी पता नहीं किस बात से उपकृत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और सूबे के लोक निर्माण मंत्री दोनों ही केंद्र सरकार को कोसकर भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तारीफों में तराना गा रहे हों, साथ ही साथ भाजपा द्वारा कमल नाथ के द्वारा प्रदेश के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने के आरोप में सड़कों पर उतरने की बात की जाए तो यह तथ्य निश्चित तौर पर शोध का ही विषय माना जाएगा।
 
दरअसल सड़कों या आवागमन के साधनों का राज्य, जिला, विकासखण्ड, कस्बों के विकास में महत्वपूर्ण रोल रहता है। राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण दो सूबों को आपस में जोड़ने की गरज से किया गया था। जब भी कोई व्यक्ति एक सूबे से दूसरे सूबे में उद्योग धंधे के लिए जाता है तो सबसे पहले वह आवागमन के साधनों पर नजरें इनायत करता है। पूर्व में राजा दिग्विजय सिंह के शासनकाल मंे पर्यटकों को मध्य प्रदेश लाने वाली संस्थाओं ने यहां की बदहाल सड़कों को देखकर हाथ खड़े कर दिए थे। राजा दिग्विजय सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल के अंतिम सालों में पांच सौ करोड़ के बांड सड़कों के लिए जारी किए थे, जिन्हें भुनाया था शिवराज सरकार ने।
 
बहरहाल, इसके पहले मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री ने दिल्ली में एक समारोह में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तबियत से तारीफ की और यहां तक कहा कि मध्य प्रदेश को सिर्फ और सिर्फ सड़कों के मामले में केंद्र से पर्याप्त सहयोग और समर्थन मिल रहा है। मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री के कथन के बाद मध्य प्रदेश की ओर से दिल्ली में बैठे जनसंपर्क महकमे के अधिकारियों ने भी एमपी के चीफ मिनिस्टर शिवराज सिंह और केंद्रीय राजमार्ग मंत्री कमल नाथ के बीच मुस्कुराकर बातचीत करने वाले छाया चित्र और खबरें जारी कर दीं। मजे की बात तो यह है कि बारंबार शिवराज सिंह चौहान ने भी कमल नाथ को एक उदार मंत्री होने का प्रमाण पत्र जारी किया है।
बुरदलोई मार्ग स्थित मध्य प्रदेश भवन में पत्रकारों से रूबरू मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब केंद्र पर भेदभाव का आरोप मढ़ा तब पत्रकारों से शिवराज से पूछा था कि उनके लोक निर्माण विभाग के मंत्री तो कमल नाथ के पक्ष में कोरस गा रहे हैं, तब चिढकर शिवराज ने कहा था कि लोक निर्माण मंत्री क्या वे (शिवराज सिंह चौहान) भी कमल नाथ से मिलते हैं और कमल नाथ मध्य प्रदेश की मदद कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके लोक निर्माण मंत्री द्वारा कांग्रेस नीत संप्रग सरकार में कांग्रेस के कोटे के मंत्री कमल नाथ द्वारा उदार भाव से अपने प्रदेश की भाजपा सरकार को मुक्त हस्त से मदद करने की बात जब फिजा में तैरी तो कमल नाथ की छवि दलगत राजनीति से उपर उठकर मदद करने वाले राजनेता की बन गई।
 
दिल्ली में हुई इसी पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दंभ भरकर कहा था कि केंद्र सरकार सिवनी जिले के साथ भेदभाव कर रही है। सिवनी जिले से होकर गुजरने वाला उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे का काम भी केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण ही रूका हुआ है। बाद में जब उनकी जानकारी में यह लाया गया कि काम 18 दिसंबर 2008 को तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के एक आदेश के तहत रोका गया है, न कि केंद्र सरकार की नीतियों के कारण। तब शिवराज सिंह चौहान ने एसे किसी आदेश के बारे में अनिभिज्ञता ही प्रकट की थी।
 
बहरहाल कल तक केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तारीफों में कशीदे गढ़ने वाले मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह को अब अचानक (संगठन के कड़े रूख के उपरांत) दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब उन्हें भान हुआ है कि सबसे बड़े ‘‘सियासी जादूगर‘‘ कमल नाथ ने उन्हें अब तक जो सपने दिखाए थे, वे महज छलावा ही थे। सियासत के अखाड़े के स्वयंभू अपराजित अजेय (1997 में उपचुनाव में सुंदर लाल पटवा के हाथों जबर्दस्त पटकनी खाने को छोड़कर) योद्धा कमल नाथ ने एक ही धोबी पाट में प्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्रियों को धूल चटवा दी है। अपने पत्र में नागेंद्र सिंह लिखते हैं कि प्रदेश से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गो का रखरखाव पूरी तरह एनएचएआई के हवाले कर दिया जाए या फिर इसके संधारण का काम पूरी तरह से मध्य प्रदेश सरकार को सौंप दिया जाए।
 
वैसे नागेंद्र सिंह की पीड़ा जायज है। कमल नाथ को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा न तो मई 2010 में केंद्र को भेजे गए राष्ट्रीय राजमार्गों के प्रस्तावों को मंजूरी दी जा रही है, और न ही केंद्र द्वारा खुद ही उसका संधारण किया जा रहा है, नतीजतन ये राजमार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। नागें्रद सिंह को चाहिए कि वे इस बात को भी जनता के सामने लाएं कि उन्होंने लोक कर्म मंत्री रहते हुए मध्य प्रदेश की किन किन सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील करने के प्रस्ताव कंेद्र को भेजे थे।
 
सियासी गलियारों में इस बात को लेकर भी तरह तरह की चर्चाएं हैं कि क्या कारण था कि बहुत ही कम यातायात दबाव वाले एवं कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा से गुजरने वाले नरसिंहपुर, हर्रई, सिंगोड़ी, छिंदवाड़ा, उमरानाला, सौंसर, सावनेर, नागपुर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग मंे तब्दील करने का प्रस्ताव उनके द्वारा केंद्र सरकार को भेजा गया था? जिस प्रस्ताव पर योजना आयोग ने कम यातायात दबाव के चलते अपना अडंगा लगा दिया है। सियासी जादूगर कमल नाथ ने एक एसा तीर चलाया था, जिसमें भाजपा के कुशाग्र बुद्धि के धनी समझे जाने वाले जनसेवक उलझकर रह गए हैं। राज्य की अनेक सड़कों को राष्ट्रीय राजमाग में तब्दील कराने का प्रस्ताव भेजकर प्रदेश सरकार ने इन सड़कों का संधारण बंद कर दिया था।
 
राज्य सरकार को लगने लगा था कि ये सड़कें जल्द ही राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील हो जाएंगी और फिर इनके रखरखाव या निर्माण का सरदर्द केंद्र के भरोसे ही होगा, जिससे इसमें व्यय होने वाले धन से राज्य सरकार पूरी तरह मुक्त होगी। वस्तुतः एसा हुआ नहीं, ये सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील नहीं हुई और आज भी ये प्रदेश सरकार की संपत्ति ही हैं। इतना ही नहीं दीगर राष्ट्रीय राजमार्गों का संधारण भी केंद्र द्वारा नही किए जाने से, संधारण के अभाव में इन सड़कों के धुर्रे पूरी तरह से उड़ चुके हैं। आम जनता को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि ये सड़कंे किसके स्वामित्व में हैं, वह तो राज्य से गुजरने वाली हर सड़क की दुर्दशा के लिए राज्य सरकार को ही पूरी तरह दोषी मानती है, भले ही केंद्र सरकार द्वारा इसका पैसा नहीं दिया जा रहा हो।
 
सड़कों बदहाली पर जनता के गुस्से को देखकर भाजपा की शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली सरकार बुरी तरह खौफजदा साफ दिखाई दे रही है। यही कारण है कि केंद्र सरकार को घेरने के लिए वह अब राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह जगह नोटिस बोर्ड लगाने का मन बना रही है, जिसमें इस बात का उल्लेख होगा कि इन सड़कों की बदहाली के लिए राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार कतई जवाबदार नही है। सूबे की सरकार मान रही होगी कि एसा करके कम से कम इन मार्गों पर चलने वालों को सच्चाई से रूबरू तो करवा ही दिया जाएगा।
 
जनता को इस बात से कतई लेना देना नहीं है कि सड़कें किसकी संपत्ति हैं, या इसके रख रखाव का जिम्मा किसका है। राज्य सरकार अगर बोर्ड लगा रही है तो फिर राज्य सरकार को उस नोटिस बोर्ड पर इस बात का उल्लेख भी करना चाहिए कि इसका संधारण करने वाला लोक कर्म विभाग का राष्ट्रीय राजमार्ग महकमा मूलतः किस राज्य की सेवा का अंग है। वस्तुतः इसके मातहत मध्य प्रदेश सरकार के कर्मचारी ही होते हैं। कर्मचारी मध्य प्रदेश के जिम्मेदारी केंद्र सरकार की अगर दोनों ही जगह एक दल की सरकार है, तब तो सामंजस्य बना रह सकता है, किन्तु अगर सरकारें अलग अलग दलों की हैं तो फिर सामंजस्य का अभाव निश्चित तौर पर परिलक्षित ही होगा।
 
सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि दीनदयाल उपाध्याय के बताए सिद्धांत पर चलने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने ही आदर्श पुरूष और मौखटे की अघोषित संज्ञा पाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना स्वर्णिम चतुर्भुज और उसके अंग उत्तर दक्षिण तथा पूर्व पश्चिम गलियारे में फच्चर फंसाने वाली कांग्रेस के मंत्रियों के खिलाफ जनता को दिखाने के लिए तो तलवारें पजा ली जातीं है, पर जब रण में उतरने की बारी आती है तो तलवारें रेत में गड़ाकर शतुर्मुग के मानिंद अपना सर जमीन में गड़ा दिया जाता है।
 
पूर्व में भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई द्वारा केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा मध्य प्रदेश के साथ किए जाने वाले अन्याय का तराना बजाया था। इसके पहले भाजपा सरकार के ही मंत्री केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ का चालीसा  गान कर रहे थे। मध्य प्रदेश से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर हस्ताक्षर अभियान, मानव श्रंखला और 10 नवंबर को प्रदेश भाजपाध्यक्ष प्रभात झा के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से मिलने का कार्यक्रम निर्धारित किया था, जो बाद में ‘अपरिहार्य‘ कारणों से परवान नहीं चढ़ सका।
 
अब शिवराज सरकार ने कमल नाथ के खिलाफ प्रत्यंचा चढ़ाई है, तरकश से तीर निकालने का स्वांग रचा है। जनता सब कुछ देख सुन रही है, समझ भी रही है। शिवराज सरकार के मंत्री तो आलीशान सरकारी वाहनों में सफर करते हैं। रही बात जनसेवकों की तो उनके लिए भी कथित तौर पर ‘‘उद्योगपति, करोबारी मित्रों‘‘ द्वारा विलासिता वाले वाहनों का प्रबंध कर दिया जाता है। इन वाहनों में चलने वालों को इस बात का किंचित मात्र भी भय नहीं होता है कि धुर्रे उड़ी सड़कों पर वाहन का कचूमर निकल जाएगा। आम जनता अपने गाढ़े पसीने की कमाई से खरीदे गए वाहन को बहुत ही संभाल कर चलाता है, फिर भी बदहाल सड़कें उसे राहत नहीं प्रदान कर पाती हैं।
 
अब उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे का ही उदहारण लिया जाए तो इसमें मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में विधानसभा उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह द्वारा नेशनल हाईवे के गड्ढे भरने के काम का बड़े ही भव्य कार्यक्रम में भूमिपूजन किया। 11 अक्टूबर से चार चरणों में होने वाले थिगड़े लगाने के इस काम को यह भी कहा गया कि इसे दो माह पूर्व ही स्वीकृत करवा लिया गया था। विडम्बना है कि आज 18 दिन बाद भी नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) द्वारा यह कार्य आरंभ नहीं करवाया गया है। भाजपा इस मामले में मौन साधे हुए है, न जाने किस मुहूर्त का इंतजार कर ही है भाजपा।
 
हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सियासी दल चाहे अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी, किसी को भी आम आदमी की पीड़ा से कोई लेना देना नहीं है। सभी नेताओं की नैतिकता मानो मर चुकी है। आम आदमी मरता है तो मरता रहे, किन्तु जनसेवा का बीड़ा उठाने वालों को इससे कोई सरोकार नहीं है। भाजपा की एमपी इकाई द्वारा नेशनल हाईवे को लेकर बनाई गई रणनीति के फिस्स हो जाने के बाद अगर शिवराज सरकार की कमल नाथ को घेरने की रणनीति भी औंधे मुंह गिर जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
 
यहां एक बात का उल्लेख करना भी लाजिमी होगा कि मध्य प्रदेश भाजपा की कमान जब से प्रभात झा ने संभाली है, तब से संगठन में तो जान आती दिख रही है, किन्तु सत्ता और संगठन के बीच गहरी होती खाई अलग ही समझ में आ रही है। भाजपाध्यक्ष बनने के उपरांत प्रभात झा ने 09 मई को संगठन की सत्ता का विकेंदीकरण करने की घोषणा की थी। उन्होंने पार्टी क सह मुख्यालय छिंदवाड़ा, मण्डला और झाबुआ में बनाने की मंशा व्यक्त की थी। विडम्बना ही कही जाएगी कि इस घोषणा को किए हुए छः माह बीतने को हैं, पर अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी है। कहा जा रहा है चूंकि इस मामले में भी केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ का संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा जिला होने के कारण मामला ठंडे बस्ते के हवाले हो गया है। माना जा रहा है कि अगर पार्टी का सह कार्यालय छिंदवाड़ा में स्थापित हो जाएगा तो आने वाले दिनों में छिंदवाड़ा जिला भाजपा और छिंदवाड़ा जिला कांग्रेस की जुगलबंदी और नूरा कुश्ती पर विराम लग जाएगा।

आखिर सियासी जादूगर कमल नाथ का आभामण्डल है ही एसा। कमल नाथ का संसदीय क्षेत्र मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा जिला है, वह भी 1980 से। मूलतः व्यवासाई कमल नाथ को इंदिरा गांधी ने अपना तीसरा बेटा कहकर मध्य प्रदेश और छिंदवाड़ा को सौंपा था। तीस सालों में उन्हें मध्य प्रदेश से कितना मोह हुआ है, इस बात का उदहारण उनके केंद्र मंे वन एवं पर्यावरण, वस्त्र, वाणिज्य और उद्योग के उपरांत भूतल परिवहन मंत्री बनने से मिलता है। कमल नाथ के मंत्री बनने के उपरांत मध्य प्रदेश की झोली में इन विभागों में क्या क्या आया यह बात किसी से छिपी नहीं है। हालात देखकर हमें यह कहने में कोई संकोच अनुभव नहीं हो रहा है कि केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की सुर और ताल पर मध्य प्रदेश भाजपा मुजरा कर रही है।

सीबीएसई बोर्ड की तथा कथा

सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी शाला ने नान कमर्शियल होने का शपथ पत्र दिया है : खुशाल सिंह

सिवनी केंद्रीय शिक्षा बोर्ड की मान्यता के संबंध में मध्य प्रदेश के

सिवनी जिले के सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल के पिछले साल के निरीक्षण

में अनेकानेक कमियां पाई गईं थीं, जिसके चलते शाला का आवेदन निरस्त कर

दिया गया था। शाला ने अब अंडरटेकिंग दी है कि उसके द्वारा कमियां पूरी कर

दी गईं हैं, जिसके चलते एक बार फिर से निरीक्षण दल का गठन किया गया है,

जो मौके पर जाकर वास्तविकता का पता लगाकर अपना प्रतिवेदन केंद्रीय शिक्षा

बोर्ड को सौंपेगा, उसी आधार पर तय हो सकेगा कि इस शाला को सीबीएसई का

एफीलेशन दिया जा सकता है अथवा नहीं, उक्ताशय की बात केंद्रीय शिक्षा

बोर्ड के नई दिल्ली में प्रीत विहार स्थित एफीलेशन ब्रांच के सहायक सचिव

खुशाल सिंह ने दैनिक यशोन्नति के साथ दूरभाष पर चर्चा के दौरान कही।

श्री सिंह ने कहा कि सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल का प्रकरण उनकी

जानकारी में है, इस शाला के बारे में उन्हें काफी मात्रा में पत्र और फोन

भी प्राप्त हो रहे हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि पिछली बार के निरीक्षण

के दौरान मिले प्रतिवेदन के उपरांत शाला के आवेदन को निरस्त करने संबंधी

पत्र क्रमांक सीबीएसई-एफी-एसएल-१७०१-१०११-२०१० दिनांक १२ मई २०१० श्री

सिंह के हस्ताक्षरों से ही जारी हुआ था। उन्होंने कहा कि पिछले साल

निरीक्षण के दौरान मिली विसंगतियों के बारे में शाला प्रबंधन द्वारा

अंडरटेकिंग देने के बाद ही दुबारा आईसी कमेटी का गठन किया गया है।

उपरोक्त संदर्भित पत्र में नया आवेदन देने की बात पर श्री सिंह ने चुप्पी

साध ली कि नए आवेदन के बजाए पुराने आवेदन पर अंडरटेकिंग देने पर निरीक्षण

दल का गठन किस आधार पर कर दिया गया।

इसके अलावा सीबीएसई की एफीलेशन ब्रांच के सहायक सचिव ने कहा कि शाला

प्रबंधन ने यह कम्पलायंस भी दिया है कि उन्होंने कमियों को पूरा कर दिया

गया है। इसी कम्पलायंस के आधार पर सीबीएसई बोर्ड द्वारा कमेटी का गठन कर

दिया गया है। अब यह कमेटी मौके पर जाकर देखेगी कि पिछली बार जो कमियां

पाई गईं थीं, वे वास्तव में दुरूस्त कर दी गई हैं अथवा नहीं। गौरतलब होगा

कि पिछली बार निरीक्षण दल द्वारा दिए गए प्रतिवेदन में छ: कंडिकाओं वाला

निरस्तीकरण पत्र शाला प्रबंधन को सौंपा गया था, जिसमें साफ तौर पर कमियां

पाए जाने का उल्लेख किया गया था, इसके अलावा शाला नए भवन में स्थानांतरित

हो चुकी है, इस नए भवन में विद्यार्थियों की सुविधाओं के अनुरूप माहौल है

अथवा नहीं, पठन पाठन का स्तर कैसा है, आदि बातों का निरीक्षण भी निरीक्षण

दल द्वारा किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि शाला प्रबंधन द्वारा किसी भी प्रकार की केपीटेशन फीस

नहीं ली जा सकती है, जिसमें बिल्डिंग फंड आदि का समावेश है। दूरभाष पर

चर्चा करते हुए श्री सिंह ने कहा कि इसके साथ ही शाला प्रबंधन से सीबीएसई

ने नान कमर्शियल होने का शपथ पत्र भी लिया है। गौरतलब होगा कि

कुकुरमुत्ते के मानिंद खुल चुकी शालाओं में शिक्षा को व्यवसाय बना दिया

गया है।

श्री सिंह ने आगे कहा कि अगर किसी पालक या नागरिक को किसी भी तरह की

आपत्ति है तो वे अपनी आपत्ति को सचिव, सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकन्ड्री

एजूकेशन, शिक्षा केंद्र, 2, कम्युनिटी सेंटर, प्रीत विहार, विकास मार्ग,

नई दिल्ली ११००९२ के पते पर लिखित तौर पर अथवा दूरभाष क्रमांक ०११ -

२२५०९२५६ अथवा २२५०९२५९ पर सचिव या उनसे चर्चा कर दे सकता है। बताया जाता

है कि निरीक्षण दल में शामिल एक सदस्य प्राचार्य केंद्रीय विद्यालय,

खमरिया, जबलपुर भी हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे बहुत ही ज्यादा

नियमपसंद हैं। सूत्रों का कहना है कि अगर किसी को किसी भी प्रकार की शंका

कुशंका हो तो वे प्राचार्य से ०७६१ - २६०१७०३ पर सूचना दे सकते हैं। इन

सूचनाओं पर कार्यवाही करना अथवा नहीं करना प्राचार्य के विवेक पर ही

निर्भर करता है। वैसे निरीक्षण दल में शामिल दोनों ही मेम्बर पिछली बार

भी निरीक्षण में शामिल थे।

सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

टुम बोले टुम बोले हम टो टुप्पई टाप!

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

टुम बोले टुम बोले हम टो टुप्पई टाप!
पुरानी कहानी है कि एक परिवार के तीन तोतलों की शादी नहीं हो पा रही थी। पिता ने हिदायत दी कि इस बार जो लडकी वालों के सामने बोलेगा उसको घर से निकाल दिया जाएगा। लकड़ी वाले आए, बडे बोला -‘पितादी ती बात याद है न।‘‘ मंझला बोला -‘‘टुप्प भईया।‘‘ छोटा बोल उठा -‘‘टुम बोले टुम बोले हम टो टुप्पई टाप!‘‘ इस तरह तीनों की पोल खुल गई। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार में भी कमोबेश एसा ही कुछ होता दिख रहा है। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने बैतूल में कहा कि गरीब दोनांे टाईम खाने लगा है, इसलिए मंहगाई बढ़ी। कृषि मंत्री शरद पवार कहते हैं कि शक्कर नहीं खाने से भारतवासी मर नहीं जाएंगे। अब योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने अपनी जुबान खोली है मंहगाई के बारे में। बकौल अहलूवालिया मंहगाई बढ़ने का कारण ग्रामीण हैं। गांवों की समृद्धि और खुशहाली के कारण मंहगाई आसमान की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस के बड़बोले मंत्रियों और सिपाहसलारों को यह बात याद रखनी चाहिए कि वजीरे आजम ने साफ कहा था कि दिसंबर तक मंहगाई पर काबू पा लिया जाएगा। दिसंबर आने को है न तो मनमोहन मंहगाई पर ही काबू पाने में सफल हो पाए हैं और न ही अपने बड़बोले मंत्रियों की कैंची की तरह चलती जुबान पर।

कलमाड़ी ने पढ़ा राहुल चालीसा
2010 में भीषणतम भ्रष्टाचार के लिए जबर्दस्त चर्चित रहे राष्ट्रमण्डल खेलों के समापन के बाद अब आयोजन समिति पर जांच के बादल मण्डराने लगे हैं। लगने लगा है कि जल्द ही जांच होगी और आयोजन समिति के सरगनाओं की गर्दनें नप जाएंगी। आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को भी अब 33 करोड़ देवी देवताआंे की याद आनी आरंभ होना स्वाभाविक ही है। कलमाड़ी ने देवताआंे के साथ ही साथ समस्त आकाओं को भी सिद्ध करना आरंभ कर दिया है। आश्चर्य तो तब हुआ जबकि समापन समारोह में सुरेश कलमाड़ी ने अतिविशिष्ट लोगों के साथ ही साथ कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी का नाम भी ले लिया। कलमाड़ी के राहुल चालीसा पढ़ते ही राहुल गांधी चौंके और उन्होंने हवा में प्रश्नवाचक तौर पर हाथ लहरा दिया, कि कामन वेल्थ गेम्स में भला उनकी भूमिका क्या रही? विशेषकर तब जब कामन वेल्थ गेम्स का आयोजन पूरी तरह से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका हो, तब इसका मैला उठाने के समय कोई भी अपना नाम इससे जोड़कर अपनी मिट्टी खराब तो कतई नही करना चाहेगा।

दिग्गी राजा से भयाक्रांत हैं पचौरी
भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी में क्या समानता है? जी है, दोनों ही ने आज तक कोई चुनाव नहीं जीता है और दोनों ही राज्य सभा की बैसाखी के सहारे राजनीति करते रहे हैं। चौबीस साल तक पिछले दरवाजे अर्थात राज्य सभा से संसदीय सौंध तक पहुंचने वाले सुरेश पचौरी इन दिनों कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह से खासे खौफजदा नजर आ रहे हैं। राजनैतिक विश्लेषक यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर क्या कारण है कि वे राजा के खिलाफ मुंह नहीं खोल पा रहे हैं। राजा दिग्विजय सिंह लगातार ही भोपाल आते रहते हैं। गाहे बेगाहे वे काफी हाउस पहुंचकर पत्रकारों के साथ ठहाके भी लगा लेते हैं। इनमें वे ही पत्रकार होते हैं जो राजा से उनके मुख्यमंत्रित्व काल में उपकृत हुए हैं। राजा कभी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय नहीं जाते हैं, इस बात की शिकायत पचौरी द्वारा अब तक कांग्रेस आलाकमान से न किया जाना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।

महाराष्ट्र की राजनीति में ‘‘आदित्य‘‘ का उदय
नब्बे के दशक से महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में ठाकरे परिवार की भूमिका अहम रही है। शिवसेना को पालने पोसने वाले वयोवृद्ध नेता बाला साहेब ठाकरे अब उमर दराज हो चुके हैं। उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने जब शिवसेना की कमान संभाली तब ठाकरे परिवार में वर्चस्व की जंग सामने आई और ठाकरे परिवार में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर दिखा दिया कि वे बाला साहेब की टक्कर में खड़े होने की स्थिति में आ चुके हैं। वैसे भी राजनैतिक विरासत का हस्तांतरण पारिवारिक विरासत की तरह ही होता आया है, राहुल गांधी, वरूण गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, सचिन पायलट की तर्ज पर अब ठाकरे परिवार की नई पेशकश के तौर बाला साहेब ने अपने पौत्र आदित्य का विधिवत अभिषेक कर दिया है। मुंबई में हाल ही में संपन्न शिवसेना की रैली में लाखों शिवसैनिकों के सामने बाला साहेब ने आदित्य को सभी से न केवल परिचित करवाया वरन् उसे आर्शीवाद देकर शिवसेना की सेवा के लिए कृतसंकल्पित भी किया। आदित्य यद्यपि अभी महज बीस बरस के हैं, किन्तु उनके तेवर देखकर लगने लगा है कि वे राज ठाकरे पर बीस ही पड़ सकते हैं।

सेवानिवृति के लिए किसकी अनुमति चाहते हैं प्रणव
पचहत्तर साल केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अब राजनैतिक तौर पर सेवानिवृति चाहते हैं। नेहरू गांधी परिवार के कथित हिमायती प्रणव मुखर्जी का शुमार कांग्रेस के कुशल प्रबंधकों में किया जाता है। यद्यपि वे अनेक बार नेहरू गांधी परिवार के खिलाफ भी खड़े दिखे किन्तु सोनिया गांधी की मजबूरी प्रणव को लेकर चलने की रही है। मीडिया को दिए साक्षात्कार में प्रणव दा कहते हैं कि अगले आम चुनावों में राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। प्रणव की बात को सच मान लिया जाए तो अब प्रधानमंत्री पद पर डॉ.मनमोहन सिंह के दिन गिनती के ही बचे हैं। इसके साथ ही उन्होंने राजनैतिक तौर पर रिटार्यमेंट की इच्छा भी जताई है। प्रणव मुखर्जी संभवतः पहले राजनेता होंगे जो पद में रहते हुए सेवानिवृति की इच्छा जताई हो, वरना अब तक तो जनता द्वारा नकारे जाने या अल्लाह को प्यारे होने पर ही लोग राजनीति से हटे हैं। विडम्बना देखिए कि सरकारी नौकरी में सेवानिवृति की आयु 60 वर्ष निर्धारित है, किन्तु सरकार पर शासन करने वालों के लिए कोई सीमा नहीं। नए सरकारी नौकरों को पेंशन का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है, किन्तु अखिल भारतीय सेवाओं और जनसेवकों के लिए आज भी पेंशन का प्रावधान है, इस तरह की विसंगतियां भारत गणराज्य में ही दिख सकती हैं।

अरूण जेतली: भाजपा के नए ट्रबल शूटर
प्रमोद महाजन जब तक भाजपा में रहे तब तक उन्होने भारतीय जनता पार्टी के लिए संकट मोचक की भूमिका ही अदा की। उनके निधन के उपरांत भाजपा के अंदर नए ट्रबल शूटर की तलाश शिद्दत के साथ आरंभ हो गई थी। अनेक लोगों पर दांव लगाने के बाद अब भाजपा का संकटमोचक चेहरा सामने आया है वह है अरूण जेतली का। पिछले कुछ दिनों से जब भी भाजपा पर संकट के बादल गहराए, तब तब अरूण जेतली के मशविरों ने भाजपा को उबारा है। राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली का परिवार इस बात से खासा प्रभावित होता दिख रहा है। दरअसल जब भी पार्टी के अंदर, यूपीए सरकार में, या फिर सूबाई सरकारों पर कोई संकट आता है तब अरूण जेतली का ज्यादातर समय फोन पर ही बतियाने में निकल जाता है। मामला चाहे सी.पी.ठाकुर के त्यागपत्र का हो या कर्नाटक प्रहसन, हर बार जेतली ही संकट मोचक बने। जेतली का परिवार करे भी तो क्या, क्योंकि भाजपा में संकट हैं गले तक और संकट मोचक उंगलियों में गिने जाने योग्य।

अब दमोह में जिंदा जला दी गई शिवराज की भांजी
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सूबे की हर कन्या को अपनी भांजी माना जाता है, फिर भी उनकी अपनी ही सरकार के रहते हुए बालिकांए सुरक्षित नहीं हैं। पिछले दिनों टीकमगढ़ की एक बाला को दिल्ली ले जाकर बेच दिया गया था, और उसके साथ दुराचार होता रहा था। अब मध्य प्रदेश के ही दमोह जिले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में बारहवीं की एक छात्रा के साथ प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर मे अध्ययनरत एक किशोर द्वारा न केवल ज्यादती की गई, वरन् जब पीड़िता ने इसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज करानी चाही तो आरोपी ने अपने परिजनों के साथ उक्त बाला को जिंदा ही जलाकर मार डाला। पीडिता ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करानी चाही किन्तु बारह बजे रात तक उसकी सुनवाई नहीं हुई अगले दिन सुबह ही आरोपी और उसके परिजन आ धमके और केरोसीन डाल आग लगाकर पीडिता की इहलीला ही समाप्त कर दी। पीडिता ने मृत्युपूर्व बयान में इसका उल्लेख कर दिया है।

कांग्रेस का नया त्रिफला चर्चा में
कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में मध्य प्रदेश के शूरवीरों की कमी नहीं है। बावजूद इसके पिछले लगभग दस सालों में मध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन बीमार पड़ा तीमारदारी के लिए तरस रहा है। कांग्रेस के मध्य प्रदेश के क्षत्रपांे ने कांग्रेस आलाकमान के दफ्तर में भले ही अपनी पैठ जमा ली हो, राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी को आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर अपने नंबर बढ़वाते रहे हों, पर जमीनी हकीकत इस सबसे उलट ही है। हाल ही में कांग्रेस की इंटरनल केमस्ट्री कुछ बदली बदली नजर आ रही है। कांग्रेस के दूर जाते तीन धु्रव अचानक ही एक साथ एक सुर में आलाप करते नजर आ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री कमल नाथ, कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिह और युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच प्रतिस्पर्धा की बर्फ पिघलती दिख रही है। नाथ, सिंह और सिंधिया का नया त्रिफला क्या रंग लाएगा यह तो वक्त ही बताएगा, किन्तु इसके पहले बडे मियां (कमल नाथ) और छोटे मियां (राजा दिग्विजय सिंह) की जोड़ी ने दस साल तक मध्य प्रदेश के सारे क्षत्रपों को पानी भरने पर मजबूर अवश्य किया था।

चुनाव के साथ ही आए याद करोड़ों
बिहार में रण भूमि सज चुकी है। चुनाव में अब आरोप प्रत्यारोप का चुनाव तक न थमने वाला सिलसिला आरंभ हो चुका है। चुनाव संपन्न होते हुए इन आरोप प्रत्यारोपों के जहर बुझे तीर अपने आप ही तरकश में वापस चले जाएंगे। छः साल से केंद्र की कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को अपने रिमोट से चलाने वाली कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने भी बिहार चुनाव के यज्ञ में अपनी आहूति डालना आरंभ कर दिया है। पांच साल की नितीश कुमार की सरकार को केंद्र द्वारा दिए गए करोड़ों रूपयों का आडिट करने श्रीमति गांधी बिहार पहुंच गई हैं। गौरतलब है कि आडिट हर साल किया जाना चाहिए, किन्तु सियासी नफा नुकसान के मद्देनजर रख केंद्र ने भी जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों अरबों रूपए जो बिहार सरकार को दिए थे, उसका कोई हिसाब किताब नहीं रखा। मान लिया जाए कि बिहार की नितीश सरकार ने केद्र की करोड़ों अरबो रूपए की इमदाद को आग के हवाले कर दिया हो, किन्तु यह सब होता देख केंद्र सरकार घ्रतराष्ट्र की भूमिका में कैसे रही? इसका जवाब दे पाएंगी कांग्रेस की राजमाता?

बोला रावण: आई विल नाट डाई
इस बार दशहरे में ताजमहल को अपने दामन में समेटने वाले आगरा शहर में एक अजीब किन्तु मजेदार वाक्या प्रकाश में आया। आगरा में पिछले एक सदी (एक सौ साल) से चली रही रामलीला के इतिहास में नया मोड़ उस वक्त आ गया, जब भगवान राम द्वारा रावण को मारने का प्रयास किया जा रहा था, और रावण बोल उठा -‘‘आई विल नाट डाई।‘‘ हुआ यूं कि इस साल रामलीला के आयोजन में बहुत विलंब हो गया, जिससे जल्दी जल्दी ही कुछ प्रसंगों को निपटाकर राम रावण के अंतिम युद्ध को मंचित किया जा रहा था। समय की पाबंदी और कमी को देखकर आयोजकों के द्वारा रावण से कहा गया कि जल्द ही राम के तीर से अपना संहार करा ले। उधर दर्शकों के बीच हर एक संवाद पर जबर्दस्त करतल ध्वनि गूंज रही थी। रावण चाह रहा था कि वह अपने किरदार को पूरा जिए, सो बीच में ही उसने कह दिया -‘‘आपको जो कराना हो करो, बट, इतनी जल्दी, आई विल नाट डाई।‘‘

दीदी सुपर सीएम, कौन होगा रेल मंत्री
पश्चिम बंगाल में चुनाव पूर्व बह रही बयार को देखकर लगने लगा है कि राईटर्स बिल्डिंग पर त्रणमूल कांग्रेस अपना कब्जा बना ही लेगी। सूबे में अफरशाही के घोडे भी अब दीदी के इशारों पर दौड़ने लगे हैं। अभी चुनाव होने में लगभग आठ माह बाकी हैं, फिर भी बंगाल में वाम सरकार अपने आप को शासन में असहज महसूस कर रही है। इसका कारण यह है कि शासन के महत्वपूर्ण अंग नौकरशाहों ने अपनी निष्ठा दादा के बजाए दीदी के प्रति प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया है। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले नौकरशाहों से वाम सरकार सकते में है, वह कोई भी बड़े निर्णय को अमली जामा नहीं पहना पा रही है। भारत गणराज्य में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी कि रेल मंत्री ने अपना कार्यभार ग्रहण करते ही अघोषित तौर पर रेल मंत्रालय को ही पश्चिम बंगाल स्थानांतरित करवा लिया। कोलकता में रहकर ममता बनर्जी रेल मंत्री कम पश्चिम बंगाल की सुपर सीएम की भूमिका में ज्यादा नजर आ रही हैं। त्रणमूल के पक्ष में बह रही हवा के चलते त्रणमूल कांग्रेस ने जनवरी में ही चुनाव करवाने का दबाव बढ़ा दिया है।

आंखे जाने के बाद जिंदा जलाने की गुहार!
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मण्डला जिले के योगीराज अस्पताल में मोतियाबिन्द का आपरेशन कराने आए ढाई दर्जन से अधिक लोगों ने मोतियाबिन्द के आपरेशन के दौरान अपनी आंखें ही गवां दी। कल तक दुनिया देखने वालों को जब मोतियाबिन्द के कारण कुछ धुंधला दिखना आरंभ हुआ तो उन्होंने आपरेशन कराने की सोची पर उन्हें क्या पता था कि वे अपनी आंखों को ही गंवा देंगे। महाकौशल अंचल में आदिवासियों की जनसंख्या सबसे अधिक मण्डला और डिंडोरी जिले में है। इन आदिवासियों के हितों के संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा करोड़ों अरबों रूपयों की इमदाद भेजी जाती है। विडम्बना यह है कि इन जिलों में पदस्थ होने वाले अधिकारियों द्वारा इस इमदाद में से अपना बड़ा हिस्सा वसूल लिया जाता रहा है। बहरहाल मोतियाबिन्द के गलत आपरेशन के कारण हुए संक्रमण का शिकार लोगों का कहना है कि आंखों में अब तक दर्द बना हुआ है, कहीं पीप मवाद बह रहा है। योगीराज अस्पताल के लोगों ने तो अपना काम कर दिखाया, अब इस बेरंग दुनिया में हम जीकर क्या करेंगे, बेहतर होगा कि हमें जिंदा ही जला दिया जाए। आश्चर्य की बात यह है कि मीडिया की चीख पुकार के बावजूद भी 16 सितंम्बर से अब तक इस घटना की जांच के लिए उप संचालक स्तर के एक अधिकारी के अलावा किसी को पाबंद नहीं किया गया है।

पुच्छल तारा
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, सड़कें खुदी हैं, ट्राफिक जाम है, सड़कों पर पानी भरा है, पैदाल पार पुल गिर गया, मेट्रो का पिलर गिर गया, और न जाने किन किन आरोपों के उपरांत अंततः कामन वेल्थ गेम्स निपट ही गए। अब बारी है भ्रष्टाचार की जांच की। पूर्व खेल एवं युवा मामलों के मंत्री मणि शंकर अय्यर ने भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ इन खेलों के दौरान दिल्ली से बाहर रहने की मंशा जताई थी। प्रशासन ने कुत्तों और भिखारियों को भी दिल्ली से बाहर कर दिया था। अब खेल खतम पैसा हजम। सो भोपाल से नंद किशोर जाधव एक ईमेल भेजकर सरकार को जगाने का प्रयास कर रहे हैं। नंद किशोर लिखते हैं कि राष्ट्र मण्डल खेल समाप्त हो गए हैं। अब सरकार को चाहिए कि वह मुनादी पिटवा दे कि अब दिल्ली की सरहद में कुत्ते, भिखारी और मणिशंकर अय्यर वैगरा लौट सकते हैं।

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

आवाम ए हिन्द 12 अक्टूबर

आवाम ए हिन्द 12 अक्टूबर

वास्तु

राज्य व शहर का वास्तु दोष दूर करने के लिये पंचवटी लगायें

सभी व्यक्ति ये चाहते हैं कि उनके घर, आफिस, फैक्ट्री आदि स्थानों में किसी भी प्रकार का कोई वास्तु दोष न हो ताकि वह स्वस्थ व प्रसन्न रह सकें, किंतु यदि सम्पूर्ण राज्य व शहर के हिसाब से वास्तु दोष को दूर करने की बात हो तो इस राज्य व शहर के निवासियों को प्रत्येक 10 मीटर की दूरी पर पंचवटी लगाना चाहियें ।
पंचवटी का अर्थ हैं कि पॉंच वृक्षों का ऐसा झुण्ड, जिसे लगाने से आसपास के वातावरण को स्वस्थ बनाया जा सकता हैं । पीपल, बरगद, आंवला, बेल और अशोक के वृक्ष ऐसे वृक्ष हो जो कि मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति प्राकृतिक रूप से करते हैं, पीपल के वृक्ष से प्रतिदिन हर घण्टे 1800 किलो की दर से आक्सीजन का उत्सर्जन होता हैं, बरगद का वृक्ष प्राकृतिक एयरकण्डीशनर का काम करता हैं, आंवले का वृक्ष विटामिन सी भरपूर मात्रा में देकर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं, बेल का वृक्ष पाचन तंत्र के लिये बहुत फायदेमंद होता हैं और अशोक का वृक्ष महिलाओं को कई बीमारियों से बचाता हैं ।

पंचवटी के वृक्ष को किस दिशा में किस प्रकार लगाना चाहियें, इसकी जानकारी निम्नानुसार हैं-

वृक्ष            दिशा                    लाभ
1-पीपल        पूर्व                    1800 किलो प्रति घण्टे की दर से
                                              आक्सीजन का उत्सर्जन
2-बरगद        पश्चिम            प्राकृतिक एयरकण्डीशनर के रूप में
                                            काम करता हैं ।
3-आंवला        दक्षिण          विटामिन सी से भरपूर प्रतिरोधक
                                            क्षमता बढ़ाता हैं ।
4-बेल            उत्तर            पाचन तंत्र के लिये फायदेमंद हैं ।
5-अशोक        दक्षिण-पूर्व        महिलाओं को कई बीमारियों से
                                                बचाता है।

सभी पौधों के बीच कम से कम 10 मीटर की दूरी रहेगी, किंतु यदि ये वृक्ष घर में या फैक्ट्री में लगा रहे हो तो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहियें कि पीपल के वृक्ष की जड़े जमीन के अंदर बहुत दूर तक फैलती हैं तथा इसे घर के पूर्व दिशा में लगाने से इसकी छाया घर के ऊपर पड़ने से छायावेद्व उत्पन्न हो जाता हैं । इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता डॉं0 प्रदीप कुमार श्रीवास्तव के अनुसार रामायण में वर्णित पंचवटी, वैज्ञानिकों का ध्यान खींचने में कायमयाब रही, रिसर्च में इसके कई चमत्कारी नतीजे सामने आयें, पंचवटी के ईद गिर्द रहने से बीमारियों की आशंका कम हो जाती हैं । उत्तर प्रदेश राज्य में सरकार ने इस प्रोजेक्ट को हरी झण्डी दिखा दी हैं, आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में हर स्कूल में पंचवटी लगाने की योजना हैं, पुलिस महकमा भी विभिन्न थानों में यह झुण्ड लगाने की अपील कर रहा हैं । हमारी भी सिवनी जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन व म0प्र0 सरकार से यह अपील हैं कि इस योजना के लाभों को देखते हुये इस प्रोजेक्ट को म0प्र0 राज्य में भी हरी झण्डी दिखाई जायें ।
 संकलनकर्ता
                        अनुराग अग्रवाल
                    ज्योतिष, अंकशास्त्र एवं वास्तु विशेषज्ञ
            अग्रवाल हाऊस, सुभाष वार्ड सिवनी म0प्र0, मो0 09425445623


गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

दिग्विजयी तीर से हो ही गया लालू का सफाया

अंततः दिग्विजयी तीर से हो ही गया लालू का सफाया

(लिमटी खरे)

देश के हृदय प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री रहे सुंदर लाल पटवा ने कांग्रेस के वर्तमान महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में कहा था कि ‘‘दिग्विजय शोध का विषय हैं।‘‘ भाजपा के वयोवृद्ध और अनुभवी नेता सुंदर लाल पटवा की बात आज भी अक्षरशः सत्य ही साबित होती दिखती है। कहा जाता है कि राजा दिग्विजय सिंह जिसके कंधे पर हाथ रख दें, उसका विनाश सुनिश्चित है। कांग्रेस आलाकमान ने राजा दिग्विजय सिंह को बिहार की कमान सौंपी और बिहार से लालू प्रसाद यादव का सफाया हो गया। साल दर साल बिहार पर राज करने वाले लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल का बिहार में अब नामलेवा नहीं बचा है। कल तक स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव को न तो केंद्र मंे और न ही अपने सूबे में ही आधार मिल पा रहा है। बिहार मंे वैसे भी बाहुबलियों का राज रहा है। कांग्रेस ने ही इन बाहुबली, धनपति, अपराधियों को प्रश्रय देकर बिहार की राजनति को प्रदूषित कर दिया है। क्षेत्रवाद, भाषावाद की राजनीति के चलते बिहार के लोगों को महाराष्ट्र विशेषकर मुंबई से वापस भागने पर मजबूर होना पड़ रहा है। केंद्र और मध्य प्रदेश में कांग्रेसनीत सरकारें सत्तारूढ हैं, फिर भी बिहार के लोगों को संरक्षण न मिल पाना निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए डूब मरने की बात है, क्योंकि बिहार ही एसा प्रदेश है जिसने देश के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण जैसी विभूतियां दी हैं।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के पहले चरण में कांग्रेस को केंद्र में सरकार बनाने में पसीना आ गया था। उस वक्त कांग्रेस ने चारा घोटाला के प्रमुख आरोपी लालू प्रसाद यादव को अपने साथ मिलाकर नैतिकता की समस्त वर्जनाएं तोड दी थीं। संप्रग के पहले कार्यकाल में लालू प्रसाद यादव ने रेल्वे मंत्रालय लेकर कांग्रेस पर खासा दवाब बनाया था। इस कार्यकाल में लालू प्रसाद यादव ने रेल्वे को फायदे में लाने की बात कहकर खुद को ‘स्वयंभू प्रबंधन गुरू‘ के तौर पर स्थापित कर लिया था। इस कार्यकाल में लालू यादव ने देश विदेश के आला दर्जे के मेनेजमेंट कालेज में जाकर व्याख्यान भी दिए थे। लालू यादव ने दबाव बनाकर कांग्रेस को बहुत ही हलाकान कर दिया था। यहां तक कि लालू के उपर चारा घोटाले के आरोप में जब भी सीबीआई का दबाव कांग्रेस ने बनाया तब तब लालू यादव और अधिक ताकतवर होकर उभरे थे। आलम यह था कि कांग्रेस के हर हथकंडे पूरी तरह से फ्लाप ही साबित हुए। थक हारकर जब आलाकमान ने बीसवीं सदी में कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह को लालू यादव को साईज में लाने का काम सौंपा तब जाकर कांग्रेस को चैन आया।
 
राजा दिग्विजय सिंह ने अपने सधे कदमों से बिहार में कांग्रेस का ग्राफ उंचा करने और लालू प्रसाद यादव के कद को कम करने के प्रयास आरंभ कर दिए। पिछले विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनावों में भी लालू यादव को गहरा झटका लगा। इसके बाद संप्रग की दूसरी पारी में कांग्रेस ने लाल यादव के कुशल प्रबंधन को दर किनार करते हुए मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब लालू यादव अर्श से उतरकर फर्श पर आ गए हैं। कल तक कांग्रेस की कालर पकड़कर धमकाने वाले लालू यादव आज कांग्रेस के साथ बातचीत करने की स्थिति तक में नहीं रह गए हैं, यह सब राजा दिग्विजय सिंह की नीतियों का पुण्य प्रताप ही माना जा सकता है।
 
हाल ही में बिहार विधानसभा चुनावों के जो सर्वे सामने आ रहे हैं, उससे साफ होने लगा है कि इस बार भी लालू प्रसाद यादव का चमत्कार चलने नहीं वाला है। एक सर्वेक्षण के अनुसार इस बार जो परिदृश्य सामने आ रहा है, उसमें चौंकाने वाले नतीजे ही सामने आ रहे हैं। सभी सर्वेक्षणों को मिला लिया जाए तो जो स्थिति बनती है, उसके अनुसार इस बार जनता दल यूनाईटेड और भारतीय जनता पार्टी की जुगलबंदी वापस लौट सकती है।
 
बिहार की 243 सीटों में से जदयू और भाजपा की सरकार को पिछले बार की 143 के मुकाबले 27 सीटें ज्यादा मिल सकती हैं। इसका आंकड़ा 170 को पार करने की उम्मीद जताई जा रही है। दूसरे नंबर पर लालू यादव की राजद और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी है जिसे पिछली बार मिली 64 के मुकाबले 34 सीटें ही मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस इस बार कुछ फायदे में दिख रही है। कांग्रेस को इस बार 09 के स्थान पर 22 सीटें मिलने की आशा है। चौथे स्थान पर अन्य दलों के रहने की संभावना है। पिछली बार 13 के मुकाबले इस बार इसका आंकड़ा नौ तक सिमट सकता है। बसपा इस बार 04 के स्थान पर महज 02 सीट ही पा सकती है। निर्दलीय की संख्या भी इस बार कम होने की उम्मीद है। पिछली मर्तबा निर्दलीय की संख्या 10 थी जो घटकर 06 हो सकती है।
 
बिहार चुनाव 24 नवंबर को पूरे हो जाएंगे। सुरक्षा और निष्पक्षता को ध्यान में रखकर बिहार में चुनाव छः चरणों में कराने का फैसला लिया गया है। वैसे भी बिहार में धनबल और बाहूबल (मसल पावर) का जलजला सदा से ही रहा है। इस बार के चुनावों में राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव बहुत ज्यादा अपसेट दिखे वे अपने ही कार्यकर्ताओं को गरियाते पाए गए। इससे साफ हो जाता है कि लालू यादव को कांग्रेस विशेषकर राजा दिग्विजय सिंह ने इस कदर हलाकान कर रखा है कि वे अपना आपा खोते जा रहे हैं। उधर सधी राजनीतिक पायदानों को चलते हुए राजा दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का आभा मण्डल बिहार में भी बिखेरने का प्रयास किया जा रहा है। नेशनल मीडिया को भी इसके लिए पूरी तरह मैनेज करने की तैयारी की जा रही है। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की बिहार यात्राओं के कवरेज के लिए कांग्रेस ने पूरा पूरा सकारात्मक एंगल भी सुनियोजित कर लिया है, ताकि राहुल गांधी को राष्ट्रीय राजनीति मंे स्थापित किया जा सके।
 
कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने भी बिहार को अब तक केंद्र सरकार द्वारा दी गई करोड़ों अरबों रूपयों की इमदाद के बारे में पूछकर थमे हुए पानी में कंकर मार दिया है, जिसकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। उधर बिहार मूल के मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष प्रभात झा ने कहा है कि बिहार को मिली केंद्रीय मदद कांग्रेस की बपौती नहीं बिहार का हक था। लोगों का मानना है कि बिहार को अब तक पांच सालों में दी गई राशि का हिसाब किताब पूछने की जहमत कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी अब क्यों उठा रही हैं। क्या पिछले पांच सालों में उन्हें इस बारे में मालूमात करने की फुर्सत नहीं मिली? अब जब चुनाव सर पर हैं तब आना पाई से हिसाब किताब करने का क्या ओचित्य? क्या यह पूछ परख राजनैतिक षणयंत्र का हिस्सा नहीं है?
 
बिहार का पिछड़ापन किसी से छिपा नहीं है। बिहार में अब तक जंगलराज की स्थापना ही हुई है। पिछले पांच सालों में इस जंगल राज को पटरी पर लाने में नितीश कुमार की सरकार बहुत ज्यादा नहीं पर कुछ हद तक तो कामयाब रही है। बिहार के लोगों को लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी के राज और नितीश कुमार के राज में सुशासन और कुशासन का अंतर अवश्य ही समझ में आया होगा। बिहार में जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के अग्रणी नेता रहे शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान, सुबोध कांत सहाय आदि ही एक मतेन नहीं हो पा रहे हों तो किस पर दोषारोपण किया जाए।
 
उधर महाराष्ट्र और दिल्ली में रोजी रोटी कमाने गए बिहार के वाशिंदों को दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे और शिवसैनिकों के कोप का भाजन होना पड़ा। राज ठाकरे के फरमान के आगे बिहार के वाशिंदे डरे सहमे रहे, किन्तु भारत गणराज्य में कांग्रेस नीत प्रदेश और केंद्र सरकार राज ठाकरे के आगे पूरी तरह बेबस नजर आई। न तो प्रधानमंत्री, न ही सोनिया गांधी और न ही सूबे की सरकार ने राज ठाकरे की मश्कें कसने का उपक्रम किया। कुल मिलाकर बिहार के लोगों के घाव रिसते रहे और कांग्रेस ने उनके घावों पर मरहम लगाने के बजाए चुप्पी साधकर नमक छिड़कने का ही काम किया है।
 
बिहार में जातिवाद बहुत अधिक हावी है। यहां ठाकुर, भूमिहार ब्राम्हण, लाला, कुर्मी आदि अनेक जातियों के बीच रार किसी से छिपी नहीं है। राजनैतिक दल भी जातिवाद को हवा देकर उसी जात के उम्मीदवार को मैदान में उतारती है, जिस जाति के लोगों का उस निर्वाचन क्षेत्र में आधिक्य होता है। बिहार तपोभूमि कही जाती रही है। यहां गोतम बुद्ध और महावीर स्वामी की अनमोल वाणियां गुंजायमान होती रही हैं, विडम्बना ही कही जाएगी कि आज इन अनमोल वाणियों के बजाए लोगों के बीच लट्ठ, गालियों, गोलियों की आवाजें गूंज रही हैं।
 
दुख तो तब होता है जब सच्चाई सामने आती है कि देश पर आधी सदी से ज्यादा समय तक शासन करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता की मलाई चखने की गरज से बिहार को आताताईयों, सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाली जातिवाद की पोषक ताकतों के हवाले कर दिया। बिहार में कांग्रेस का ग्राफ भले ही चंद फीसदी उठता दिख रहा हो, किन्तु यह भी सच है कि बिहार में कांग्रेस का नामलेवा अब नहीं बचा है। 

चुनाव के दरम्यान आरोप प्रत्यारोप नेताओं का पुराना शगल रहा है। युवराज राहुल गांधी, विदेश मूल की भारतीय बहू सोनिया गांधी आदि के आकर्षण और चुनावी धुन तरानों के बीच भीड़ तो इकट्ठी की जा सकती है, किन्तु इस भीड़ को वोट में तब्दील करना बहुत ही दुष्कर काम है। सोनिया, राहुल या सुषमा स्वराज अपने उद्बोधनों में एकाध लाईन बिहारी में बोलकर तालियों की गड़गड़ाहट तो बटोर सकतीं हैं, किन्तु यह वोट में तब्दील हो यह बात मुश्किल ही लगती है। बिहार के लोग परिश्रमी होते हैं, समझदार होते हैं, वे जानते हैं कि रोजी रोटी के जुगाड़ मंे जब वे मुंबई दिल्ली जाते हैं तो उन्हें ‘‘बिहारी‘‘ कहकर बेईज्जत किया जाता है। उनके साथ मारपीट की जाती है। उन्हें जबरन धकियाकर भगाया जाता है, पर यह सब कुछ देखने सुनने के बाद भी राजनैतिक दल और उनके राजनेताओं के कानों में जूं तक नहीं रेंगती। चुनाव सर पर हैं, बिहार के लोगों का अपना आंकलन होगा, किसकी सरकार बने या न बने यह फैसला बिहार की जनता को ही करना है, किन्तु राजनेताओं को चाहिए कि भारत के संविधान के अनुरूप देश की एकता अखण्डता बनी रहे इस दिशा में अवश्य ही प्रयास करे, अन्यथा आने वाली पीढ़ी उन्हें शायद ही माफ कर पाए।

सीबीएसई बोर्ड की तथा कथा

सीबीएसई का निरीक्षण दल नवंबर में आ सकता है सेंट फ्रांसिस

सिवनी। सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंड्री एजुकेशन (सीबीएसई) के एफीलेशन की कतार में खडे शहर के उत्कृष्ठ शिक्षा के लिए जाने पहचाने जाने वाले सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल सिवनी के निरीक्षण के लिए सीबीएसई का निरीक्षण दल नवंबर माह में सिवनी आकर शाला भवन और अन्य सुविधाओं व्यवस्थाओं का मुआयना करने नवंबर माह में सिवनी आ सकता है। गौरतलब होगा कि पिछले साल इस शाला का सीबीएसई का आवेदन निरस्त कर दिया गया था। सीबीएसई के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस साल सीबीएसई द्वारा अब तक जनरेटेड निरीक्षण दल (इंस्पेक्षन कमेटी) के सदस्यों के बारे में सूचना शाला को प्रेषित कर दी गई है। सूत्रों ने कहा है कि इस साल सिवनी जिले से महज एक ही शाला को इस फेहरिस्त में शामिल किया गया है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि आधे अधूरे भवन और अन्य सुविधाओं के अभाव के चलते इस साल भी इस बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली शाला का आवेदन अक्षम प्रबंधन के चलते कहीं निरस्त न कर दिया जाए।

सीबीएसई के सूत्रों ने आगे बताया कि वर्ष २०१० - २०११ के लिए प्राप्त आवेदनों में सिवनी जिले से महज सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल के लिए ही आई सी मेम्बरान निर्धारित कर दिए हैं। इसकी विधिवत सूचना भी शाला प्रबंधन को प्रेषित कर दी गई है। उधर शाला के सूत्रों का कहना है कि शाला प्रबंधन को इस बारे में पहले ही जानकारी मिल गई थी, जिसके चलते शाला प्रबंधन ने अपनी व्यवस्थाएं प्रदर्शन के लिए चाक चौबंद करना आरंभ कर दिया था। शाला के सूत्रों का आगे कहना है कि इसके लिए बाकायदा एक एक विद्यार्थी का रिकार्ड रखने के लिए अपने टीचर्स को पाबंद कर दिया गया है।

सूत्रों ने आगे बताया कि शैक्षणिक सत्र २०१० - २०११ के लिए जितने आवेदन प्राप्त हुए थे उनमें से सिवनी जिले के सिर्फ सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल के लिए ही निरीक्षण दल का गठन अब तक किया गया है। यह गठन २९ सितम्बर २०१० को किया गया है। इसे सेकन्डरी लेवल तक के लिए प्र्रोवीजनल एफीलेशन के लिए किया गया है। सूत्रों की मानें तो निरीक्षण दल अगले माह सिवनी आकर शाला का निरीक्षण कर अपना प्रतिवेदन सीबीएसई बोर्ड को सौंप सकता है। सूत्रों ने आगे कहा कि सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल के लिए इस साल के एफीलेशन के लिए जो पंजीयन नंबर प्रदान किया गया है, वह एसएल - ०१७०१ - १०११ है। इस आवेदन में स्कूल का पता स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के बाजू में बारापत्थर ही दर्शाया गया है। बताया जाता है कि सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल का शैक्षणिक सत्र इस साल से आनन फानन में लूघरवाडा के आगे वाले नए आधे अधूरे भवन में आरंभ करवा दिया गया था।

सीबीएसई के सूत्रों ने दैनिक यशोन्नति को बताया कि इस निरीक्षण दल में जबलपुर के केंद्रीय विद्यालय केएमएम के प्राचार्य और बालाघाट के जवाहर नवोदय विद्यालय के प्राचार्य का शुमार किया गया है। उक्त दोनों ही अधिकारी अगले माह नवंबर में सिवनी आकर शाला का निरीक्षण कर अपना प्रतिवेदन सीबीएसई बोर्ड को सौंप सकते हैं।

सूत्रों ने आगे कहा कि शैक्षणिक सत्र वर्ष २०११ - २०१२ के लिए भी सीबीएसई बोर्ड को आवेदन मिलने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। सिवनी जिले से मिले आवेदनों में सीबीएसई बोर्ड को जिनके आवेदन पूरी तरह निर्धारित प्रारूप में मिले हैं, उनमें उदय पब्लिक स्कूल, लूघरवाडा सिवनी, मिशन इंग्लिश सीनियर सेकन्डरी स्कूल, मिशन कंपाउंड, सिवनी और सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल, लूघरवाडा, जबलपुर रोड, सिवनी के आवेदन शामिल हैं। इनमें से उदय पब्लिक स्कूल सिवनी को पंजीयन क्रमांक एस एल - ०००७४ - १११२, मिशन इंग्लिश सीनियर सेकन्डरी स्कूल को एसएल - ००३५५ - १११२ एवं सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल को एसएल - ०११९१ - १११२ प्रदान किया गया है।

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

विवादों में एमपी भाजपा महिला मोर्चा

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

जलजला कम हो गया है पीएम इन वेटिंग का
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी की पूछ परख अब बेहद कम हो गई है। माना जा रहा था कि अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के आने के बाद राथ यात्रा कर भाजपा का जनाधार बढ़ाने वाले एल.के.आड़वाणी को लोग हाथों हाथ लेंगे, वस्तुतः एसा कुछ हुआ नहीं। हाल ही में बिहार चुनाव के बिगुल बजने के बाद सूबे में पूर्व उप प्रधानमंत्री आड़वाणी को प्रचार में बुलाने के लिए कोई विशेष मांग दिखाई नहीं दे रही है। भाजपा की केंद्रीय इकाई के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि आड़वाणी के लिए आधा दर्जन सभाओं की मांग भी नहीं आई है। प्रदेश भाजपा से प्राप्त सूची के अनुसार सुषमा स्वराज के लिए 77, पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह के लिए 42 - 42, के अलावा नितिन गड़करी, अरूण जेतली, हेमा मालिनी, स्मृति ईरानी, वेंकैया नायडू के लिए मांग दहाई में तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग रहे लाल कृष्ण आड़वाणी के लिए महज पांच आम सभाओं की ही मांग अब तक आ सकी है। वैसे भी भाजपा और संघ ने आड़वाणी को हाशिए पर लाकर खड़ा कर ही दिया है।
. . . तो इसलिए सड़ाया गया था अनाज!
देश में बड़ी मात्रा में अनाज सड़ गया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी इसकी गंभीरता को देखकर संज्ञान लिया है। केंद्र सरकार के पास कोई जवाब नहीं है कि आखिर अनाज क्यों और कैसे सड़ गया जबकि अनाज के रखरखाव के लिए केंद्र सरकार ने वेयर हाउस के लिए तगड़ी सब्सीडी भी दी थी, जिसका लाभ लाखों लोगों ने उठाया। अब अनाज सड़ने की बात पर भारतीय जनता पार्टी ने नया शिगूफा छोड़ दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव किरीट सौमेया ने आरोप लगाया है कि शराब कारखानांे को सड़ा अनाज देकर लाभ पहुंचाने के लिए अनाज को जानबूझकर सड़ाया है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा सड़ा अनाज शराब कारखानों को देने का कानून भी बना दिया है। देश के कृषि मंत्री शरद पंवार खुद महाराष्ट्र सूबे के हैं, और वे शराब और शक्कर लाबी के खासे पोषक माने जाते हैं, तब सौमेया के आरोपों को बल मिलना स्वाभाविक ही है।
लालू पुत्र की गर्जना
संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल में स्वयंभू प्रबंधन गुरू बनकर उभरे तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के क्रिकेटर पुत्र तेजस्वी यादव ने राजनीति के मैदान में भी चौके छक्के मारने आरंभ कर दिए हैं। बिहार चुनावों के पहले तेजस्वी ने बहुत ही कांफीडेंस के साथ आम सभा को संबोधित कर सभी को चौंका दिया। अपने रटे रटाए भाषण में तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नितिश कुमार को जमकर कोसा। लोगों को आश्चर्य तब हुआ जब राजनैतिक परिदृश्य से गायब हो चुके स्वच्छ छवि के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को तेजस्वी ने आड़े हाथों लिया। तेजस्वी का आरोप था कि अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने कार्यकाल में भी बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया है। पटना में चुनावी सभा को संबोधित करने के दौरान तेजस्वी ने भले ही हर लाईन पर भाड़े की तालियां बटोरी हों, पर अटल बिहारी बाजपेयी पर आरोप लगाकर उन्होंने अपनी अपरिपक्वता साबित कर ही दी।
दिल्ली मंे बिकी शिवराज की भांजी!
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बहन की बेटी का अपहरण कर उसे दिल्ली ले जाकर बेच दिया गया! जी हां, यह सच है कि मध्य प्रदेश के हर बच्चे के मामा कहलाते हैं शिवराज सिंह चौहान। उनके सूबे की हर महिला उनकी बहन है। टीकमगढ़ जिले के डुडीयन खेरा गांव की एक 15 साल की बच्ची का अपहरण गांव के ही रतिराम लोधी ने लगभग छः माह पहले कर उसे दिल्ली ले जाकर राकेश पाल नामक युवक को 15 हजार रूपए में बेच दिया। उस युवती के साथ दो लोगों ने मुंह काला भी किया, जिससे उक्त नाबालिक बाला का पांव भारी हो गया। बताते हैं कि किसी तरह उक्त बाला इन दुराचारियों के चंगुल से बचकर वापस अपने गांव पहुंची। आश्चर्य तो इस बात पर है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की मानस पुत्री या भांजी छः माह से अपने घर से गायब रही और उनके सूबे की पुलिस हाथ पर हाथ रखे चुपचाप बैठी रही!
राजा ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें
साठ हजार करोड़ रूपए के 2 जी स्पेक्ट्रम के कथित घोटाले में फंसे केंद्रीय दूर संचार मंत्री ए.राजा ने कांग्रेस को परेशानी में डाल दिया है। सर्वोच्च न्यायालय की भ्रष्टाचार पर टिप्पणी आने के बाद कांग्रेस के प्रबंधक पशोपेश में हैं कि वे राजा को लेकर क्या स्टेंड लें। अगर वे राजा के खिलाफ कोई कदम उठाते हैं तो डीएमके के मुख्यमंत्री करूणानिधि की नाराजगी कांग्रेस को झेलनी पड़ सकती है और अगले साल तमिलनाडू में चुनाव हैं। वर्तमान में सीबीआई जांच के आधार पर सरकार ने राजा के खिलाफ कार्यवाही को विराम दे रखा है। सीबीआई का कहना है कि वह कुछ मीडिया पर्सन्स और ए.राजा के बीच फोन पर हुई बातचीत के ब्योरे की तह में जाने का प्रयास कर रही है। उधर करूणानिधी ने सरकार को धमकाया है कि अगर राजा को सरकार से हटाया गया तो उनके विरोधियों को हथियार मिल जाएगा। वैसे भी 18 सांसदों के साथ डीएमके ने यूपीए सरकार को बैसाखियों पर टांग रखा है।
विवादों में एमपी भाजपा महिला मोर्चा
मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की दूसरी पारी में उसका शनि कुछ भारी ही दिख रहा है। एक के बाद एक परेशानियों का सामना करने के उपरांत अब भाजपा को अपनी सूबाई महिला मोर्चा की कार्यकारिणी की घोषणा के साथ ही विवादों से दो चार होना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा के अध्यक्ष पद की कमान परिसीमन के उपरांत समाप्त हुई सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद और सिवनी की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया को सौंपी गई है। उन्होंने अपनी कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है। घोषणा के साथ ही यह कार्यकारिणी विवादों में आ गई है। अव्वल तो लाल बत्ती की जुगत में श्रीमति पटेरिया ने इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अर्धांग्नी श्रीमति साधना सिंह को बतौर उपाध्यक्ष शामिल कर लिया है। लोग अब दबी जुबान से कहने लगे हैं कि एमपी में भी अब राबड़ी देवी को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलावा कहते हे। कि इसमें नीता पटेरिया ने अपने सचिव की पत्नि उमा विश्वकर्मा को भी कार्यसमिति में स्थान दिया है। सबसे अधिक अपत्तिजनक तो यह है कि उनकी लिस्ट में भाजपा से निष्काशित रानी बघेल को भी विशेष आमंत्रित में शामिल कर लिया गया है।
कहां गए 22 हजार करोड़?
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में कांक्रीट जंगल ही चहुं और दिखाई पड़ते हैं। राज्य में खुले मैदान या खेत नाम मात्र को रह गए हैं। दिल्ली के पर्यावरण का हाजमा भी खेती किसानी और वनों के न होने से बिगड़ता रहा है। विडम्बना देखिए कि कृषि प्रधान भारत वर्ष की राजनैतिक और व्यवसायिक राजधानी दोनों ही में खेती किसानी के लिए कोई जगह नहीं है, उसके बाद भी केंद्र सरकार की नींद नही टूूट रही है। दिल्ली वैसे तो भांति भांति के कारनामों के लिए मशहूर है किन्तु दिल्ली ने एक मामले में जो कारनामा कर दिखाया है उसे देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा सकता है। दिल्ली में खेत नहीं के बराबर ही हैं, फिर भी दिल्ली का कृषि ऋण 22 हजार करोड़ रूपए का है। किसानी के कर्ज के मामले में दिल्ली देश में आंध्र, तमिलनाडू, महाराष्ट्र, पंजाब के उपरांत पांचवी पायदान पर है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि खेतों के बिना भी दिल्ली ने यूपी, एमपी, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा को पीछे छोड़ दिया है।
स्थाई समिति बनेगी कांग्रेस के लिए सरदर्द
केंद्र में कांग्रेस और भाजपा की नूरा कुश्ती धीरे धीरे लोगों के समझ में आने लगी है। देश की जनता का दोनों ही प्रमुख सियासी दलों के उपर से विश्वास उठने लगा है। कांग्रेस तो अभी सत्ता की मलाई जमकर चख रही है। आम चुनाव 2014 में हैं इस लिहाज से कांग्रेस के पास अभी चार साल का समय माना जा सकता है, पर भाजपा अपने गिरते जनाधार से खासी चिंता में आ चुकी है। भाजपा के प्रबंधकों ने कांग्रेस के साथ नूरा कुश्ती बंद कर अब आम जनता के लिए लड़ाई लड़ने का नया प्रहसन लिखा है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज के निर्देशन में इस प्रहसन को खेला जाने वाला है। अब संसद की स्थाई समिति के माध्यम से भाजपा द्वारा कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया जाएगा। अब तक नियम कायदों की जानकारी के अभाव में सांसदों द्वारा स्थाई समिति के सदस्य होने के बाद भी चुपचाप हां में हां मिला दी जाती है। सुषमा स्वराज इन सांसदों को प्रशिक्षण देंगी, कि किस तरह से संसद में अपन पक्ष रखना है। भाजपा भूल जाती है कि अब वह खुद ही नैतिकता का पाठ भूल चुकी है तो फिर सांसदों से इसकी उम्मीद बेमानी ही है।
दागियों का बोलबाला है बिहार चुनावों में
सियासी दलों द्वारा भले ही बार बार अपना दामन पाक साफ करने की गरज से दागियों से पीछा छुडाने की बात सार्वजनिक तौर पर चीख चीख कर कही जाती हो, किन्तु जब उसे अमली जामा पहनाने की बारी आती है तब इन्हीं राजनैतिक दलों द्वारा चुप्पी साध ली जाती है। बिहार के चुनाव मंे यह बात साफ तौर पर दिखाई दे रही है कि कौन सा राजनैतिक दल कितने दागियों को प्रश्रय देने पर मजबूर है। चुनाव के पहले चरण में दागियों के मामले में भाजपा ने बजाजी मर ही है। नेशनल इलेक्शन वॉच नामक गैर सरकारी संगठन के अध्ययन के अनुसार भाजपा ने 21 में से 14 (67 फीसदी), जनता दल यूनाईटेड ने 26 में से 12 (46 फीसदी), कांग्रेस ने 47 में से 20 (42 फीसदी), राष्ट्रीय जनता दल ने 31 में से 12 (39 फीसदी), लोकशक्ति जनशक्ति पार्टी ने 26 में से 10 (63 फीसदी), बसपा ने 45 में से 17 (38 फीसदी) लोगों को मैदान में उतारा है। महज 47 सीटों के लिए 154 दागी मैदान में हैं, जिनमें से 98 पर हत्या का मुकदमा, हत्या का प्रयास जैसे आरोप हैं।
काश्मीर मसले में देवबंद की सराहनीय पहल
काश्मीर किस देश की मिल्कियत है, इस सवाल पर भारत और पाकिस्तान के बीच सदा से रार ठनी हुई है। काश्मीर मसले पर हर एक राजनैतिक दल ने तबियत से सियासत की है। पहली मर्तबा देवबंद के उलेमाओं ने काश्मीर समस्या पर कोई बात कही है। देवबंद की जमियत - उलेमा - ए - हिन्द द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और दुश्मन की ताकतें उसके टुकड़े करना चाहती हैं। उलेमाओं की बैठक के बाद यह राय उभरकर सामने आई है। बैठक में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि काश्मीर समस्या का हल भारतीय संविधान के दायरे में रहकर ही संभव है, और काश्मीर के लोग भी इस राय से इत्तेफाक रखते हैं। बोर्ड ने दो टूक शब्दों में कहा है कि मौजूदा हालातों में कोई भी पाकिस्तान के साथ जाने को अपनी रजामंदी नहीं देने वाला है। गौरतलब है कि देवबंद के उलेमाओं का कथन अपने आप में बहुत ज्यादा मायने रखता है।
खुशखबरी: रोमिंग हो सकती है समाप्त
मोबाईल धारकों के लिए यह खुशखबरी है कि आने वाले दिनों में अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो उन्हें अपने सेवा प्रदाता के एक सर्किल से दूसरे सर्किल मंे जाने पर लगने वाली रोमिंग से निजात मिल सकती है। दूरसंचार विभाग द्वारा गठित एक आयोग ने अपनी सिफारिशों में उक्ताशय की व्यवस्था देने की बात कही है। आयोग की सिफारिशंे जताती हैं कि देश को मोबाईल के वर्तमान 22 सर्किल के बजाए महज चार सर्किल में ही बांट दिया जाए। वर्ममान में मोबाईल धारकों को लोकल काल 1 रूपए चालीस पैसे, एसटीडी 2 रूपए चालीस पैसे और इनकमिंग काल के तौर पर एक रूपए पचहत्तर पैसे अधिकतम की सीमा निर्धारित है। अगर सरकार ने रोमिंग के मामले में अपने नियम कायदों में संशोधन किया तो निश्चित तौर पर मोबाईल सेवा प्रदाता इससे खासे खफा हो जाएंगे और फिर वे सरकार पर दबाव बनाएंगे कि रोमिंग समाप्त न की जाए। इसका कारण यह है कि मोबाईल कंपनियों को रोमिंग से 12 हजार करोड़ रूपए का सालाना राजस्व मिलता है। सियासी गलियारे में यह चर्चा भी आम हो गई है कि दूरसंचार के टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसे ए.राजा पर तलवार लटकने के चलते वे अपनी चला चली की बेला में कंपनियों पर दबाव बनाकर माल खीचने की तैयारी में भी लग रहे हैं।
आर्थिक राजधानी से होगा ओबामा के दौरे का आरंभ
दुनिया के चौधरी अमेरिका के पहले नागरिक बराक ओबामा अगले माह भारत आने वाले हैं। ओबामा के स्वागत के लिए भारत पलख पांवड़े बिछाए बैठा है। प्रधानमंत्री कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि ओबामा चाह रहे हैं कि वे अपने दौरे की शुरूआत भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से करें। इसके पीछे कुछ ठोस कारण सामने आ रहे हैं। अव्व्ल तो ओबामा द्वारा देश पर अब तक हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों को श्रृद्धांजली अर्पित की जाएगी, फिर वालीवुड के हालीवुड में बढ़ते प्रभाव से भी वे प्रभावित हैं। वैसे भी आतंकियों की नजरें मुंबई पर जमकर लगी हैं, इसलिए ओबामा की दिलचस्पी मंुबई में अधिक है। एफबीआई और सीआईए के अधिकारियों का बार बार भारत और विशेषकर मुंबई आना इसी बात की ओर इशारा करता है कि ओबामा की भारत मंे पहली पसंद मंुबई बनकर ही उभरा है।
सलमान पर आयकर विभाग की नजरंे तिरछी
वालीवुड में तहलका मचाने वाले सलमान की एक थाप पर भले ही देश के अनेक युवा, युवतियां, बुजुर्ग झूमते हों, किन्तु वर्तमान में आयकर विभाग की ताल पर सलमान खान कत्थक करते नजर आ रहे हैं। सलमान खान से चार करोड़ रूपए वसूलने आयकर विभाग ने मंुबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल सलमान खान पर वर्ष 2000 और 2001 के वित्तीय वर्ष में आय कम बताने के मामले में आयकर विभाग ने यह कदम उठाया है। इस वित्तीय वर्ष में सलमान ने अपनी आय नौ करोड़ 32 लाख रूपए बताई थी, जबकि आयकर विभाग का मानन है कि इस वित्तीय वर्ष मंे सलमान की आय 13 करोड़ 61 लाख रूपए थी। आय छिपाने के मामले में आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल के फैसले के उपरांत अब आयकर विभाग ने उच्च न्यायालय की शरण ली है। पहले आयकर विभाग और भी नामी गिरामी अभिनेता अभिनेत्रियों को अपनी चपेट में ले चुका है। कहा जा रहा है कि आयकर विभाग की यह कार्यवाही किसी राजनैतिक दुर्भावना से प्रेरित होकर ही की गई है।
पुच्छल तारा
देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर कर राष्ट्रव्यापी बहस का आगाज कर दिया है। कोर्ट का कहना सच है कि अगर भ्रष्टाचार समाप्त नहीं कर सकते तो कम से कम इसे वेध ही कर दिया जाना चाहिए। अब गली, मोहल्ला, चौराहे, पान के खोकों पर भ्रष्टाचार के शिष्टाचार बनने की कथाएं गढ़ी जा रही हैं। इस समय सबसे हाट टापिक भ्रष्टाचार ही बन गया है। भ्रष्टाचार की टीआरपी जबर्दस्त हो गई है। केरल के त्रिप्यार से रश्मि पिल्लई ने इस मामले में एक शानदार ईमेल भेजा है। रश्मि लिखती हैं कि सुप्रीम कोर्ट की चिंता बेमानी है। देश में वैसे भी भ्रष्टाचार अघोषित तौर पर वेध ही समझा जाना चाहिए, क्योंकि इसमें लिप्त कोई भी सरकारी नुमाईंदा दंडित होता तो नहीं दिखता। अलबत्ता वह पदोन्नति की पायदान तेजी से चढ़ते दिखते हैं।‘‘

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

साधुवाद के पात्र हैं भोजराज मदने और राजेश त्रिवेदी


साधुवाद के पात्र हैं भोजराज मदने और राजेश त्रिवेदी

(लिमटी खरे)

सिवनी जिले को दुर्भाग्य से उबारने के लिए किए गए सद्प्रयासों के लिए पूर्व पार्षद भोजराज मदने और नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी को तहे दिल से सिवनी के सारे निवासी साधुवाद दे रहे होंगे, इसका कारण यह है कि दोनों ही के प्रयासों से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल की महात्वाकांक्षी परियोजना स्वर्णिम चर्तुभुज के अभिन्न अंग उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे के मामले में कम से कम कुछ राहत तो जिले के निवासियों को मिल सकी है। यह अलहदा बात है कि केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आपसी सामंजस्य के अभाव के चलते फोरलेन का विवाद अब तक सुलझ नहीं सका है। ममला सर्वोच्च न्यायालय में अवश्य लंबित है किन्तु कहा जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में महज नो किलोमीटर का ही झगड़ा पहुंचा है, जबकि भूतल परिवहन मंत्रालय के अडंगेबाजी के कारण सिवनी से जबलपुर और नागपुर मार्ग पर लगभग चालीस किलोमीटर का काम जबरिया तरीके से रूका हुआ है। गौरतलब है कि राजेश त्रिवेदी पूर्व में कमल नाथ से मिले और सिवनी की सड़कों को दुरूस्त करवाने का आग्रह किया था। इतना ही नहीं पूर्व पार्षद भोजराज मदने की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के बाद सड़कों पर कुछ स्थानों के उड़े धुर्रे सुधरवाने का काम आरंभ किया जा रहा है। डर इस बात का है कि कहीं श्रेय की गंदी सड़ांध मारती राजनीति में सिवनी की सड़कों का काम आरंभ तो हो जाए पर मंथर गति से उसे चलाकर सिवनी वासियों को प्रताडित किया जाए। हाल ही में संपन्न युवराज राहुल गांधी के दौरों के उपरांत अगर फोरलेन मामले में कोई प्रयास हुए हैं, तो सबसे अधिक आश्चर्य इस बात पर हो रहा है कि किसी भी कांग्रेसी कार्यकर्ता ने युवराज राहुल गांधी का आभार व्यक्त करने के बजाए कमल नाथ का अभार कैसे व्यक्त कर दिया।

वैसे तो सिवनी का दुर्भाग्य किसी से छिपा नहीं है, हर मामले में सिवनी उठकर भोपाल और दिल्ली पहुंचे सियासतदारों ने सिवनी को छलने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है। सड़क के मामले में सिवनी वासियों का गंभीर दुर्भाग्य आरंभ हुआ 2008 के बीतने के साथ ही। इस साल विधान सभा चुनावों के चलते ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय की साधिकार समिति (सीईसी) गुपचुप तरीके से सिवनी आई और बिना किसी मुनादी के उसने 18 दिसंबर 2008 तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के माध्यम से एक एसा आदेश जारी करवा दिया, जो सिवनी वासियों के गले की फांस बन गया। 18 दिसंबर 2008 को जारी आदेश में जिला कलेक्टर ने पूर्व के जिला कलेक्टर्स द्वारा मोहगांव से खवासा तक वन और गैर वन भूमियों पर दी गई वृक्षों की कटाई की अनुमति पर रोक लगा दी थी। जाहिर सी बात है कि जब पेड़ ही नहीं हटेंगे तो सड़क उस स्थान पर कैसे बन पाएगी? इस बात की जानकारी पिछले साल मई माह के बाद ही लोगों को लगना आरंभ हुआ। यहां उल्लेखनीय होगा कि इस रोक के स्थलों पर सड़क के निर्माण में लगे ठेकेदारों द्वारा जगह जगह पुल पुलिया और कलवर्टस आदि का काम कराया गया है।

बताते हैं कि जैसे ही ठेकेदार पर ‘‘उपरी‘‘ दबाव बना ठेकेदार द्वारा काम को कच्छप गति से करना आरंभ कर दिया। यहां तक कि ‘‘उपरी आकाओं‘‘ को प्रसन्न करने की गरज से ठेकेदारों द्वारा जिस स्थान पर रोक नहीं है, उन स्थानों पर भी काम रोक दिया गया। ठेकेदारों के काम से प्रसन्न उपरी आकाओं ने ठेकेदारों को पुरूस्कृत करने में देर नहीं लगाई और एक ठेकेदार को बहुत ही मलाई वाला काम भी मिल चुका है। वैसे भी संसद की स्थाई समिति ने इस बारे में अपनी तल्ख टिप्पणी के साथ राय दी थी कि सड़क परियोजनाओं में की जाने वाली देरी में फंसने वाले अडंगों को अधिकारी, जनप्रतिनिधि मिलकर ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से ही फसाते हैं। बावजूद इसके सड़क परियोजनाओं में जबर्दस्त तरीके से विलंब किया जाता रहा है।

सभी लोगों का ध्यान लगातार इस दिशा में रहा कि किसी भी तरह से फोरलेन के निर्माण में लगे अडंगे दूर हो जाएं ताकि 1545 में शेर शाह सूरी के जमाने की बनाई सड़क का अस्तित्व बना रहे। इसी बीच जिला मुख्यालय सिवनी सहित जिन कस्बों में बायपास का निर्माण करा दिया गया अथवा निर्माणाधीन हैं उन कस्बों में शहर के अंदरूनी भाग की सड़कों के धुर्रे पूरी तरह से उड़ चुके थे। हमने अपने पूर्व के आलेखों में सड़क के धुर्रे उड़ने की बात का अनेक मर्तबा उल्लेख किया है। सिवनी से होकर गुजरने वाले वाहनों के कलपुर्जे इस तरह की जर्जर सड़कों पर से गुजरने के कारण पूरी तरह हिल चुके हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यहां गौरतलब होगा कि जब तक सड़क को आरंभ नहीं करवा दिया जाता तब तक निर्माणाधीन अथवा विवादित या शहर की सीमा के अंदर के मार्गों के रखरखाव की जवाबदारी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के कांधों पर ही आहूत होती है।

अब जबकि एनएचएआई द्वारा 11 अक्टूबर से द्वारा 4 चरणों में सिवनी शहर के अंदर से होकर गुजरने वाले एवं अन्य कस्बों के अंदर से होकर गुजरने वाले मार्ग का पुर्ननिर्माण का काम आरंभ करवाया जा रहा है, तब इस पुर्ननिर्माण का श्रेय लेने की भी गलाकाट स्पर्धा आरंभ हो गई है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए। गौरतलब होगा कि हाल ही में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का सिवनी प्रवास और सबसे महत्वपूर्ण बात कि रात्रि विश्राम भी सिवनी में ही हुआ, तब कांग्रेस सहित अनेक नेताओं ने फोरलेन के मामले में सिवनी वासियों की पीड़ा से युवराज राहुल गांधी को आवगत भी कराया। मीडिया में प्रचारित वक्तव्यों से यही आभास होता है कि फोरलेन के मसले को हर किसी ने बड़ी ही गंभीरता और संजीदा तरीके से युवराज के सामने रखा है।

कांग्रेस ने इस मामले में विधानसभा उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह और भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को इसका श्रेय देते हुए उनका धन्यवाद अदा करना आरंभ कर दिया है। सबसे अधिक आश्चर्य का विषय तो यह है कि अखबारों में प्रचारित वक्तव्यों और खबरों के आधार पर कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा अपने युवराज राहुल गांधी के समक्ष इस बात को पुरजोर तरीके से तो रखा किन्तु जब श्रेय देने की बात आई तो इस बात का श्रेय राहुल गांधी को किसी ने देना मुनासिब ही नही समझा। हो सकता है कांग्रेस के विज्ञप्तिवीर और विज्ञापनवीर कार्यकर्ताओं के दिल दिमाग पर राहुल गांधी की चमचागिरी नहीं चलेगी की बात घर कर गई हो, किन्तु भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की ओर से एसा कोई वक्तव्य न आने पर कांग्रेसियों ने उन्हें सिद्ध करना आरंभ कर दिया हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। किसी भी कांग्रेसी द्वारा यह न सोच पाने कि हो सकता है राहुल गांधी ने कमल नाथ से इस बारे में जवाब तलब किया होगा, तो राहुल को संतुष्ट करने की गरज से कमल नाथ ने दो साल बाद सिवनी के जर्जर शहरी मार्गों की सुध ली, पर बेहद विस्मय होता है।

इस मामले में ठाकुर हरवंश सिंह का वक्तव्य भी हास्यास्पद ही माना जाएगा कि 11 अक्टूबर से आरंभ हुए चार सड़क सुधार कार्य दो माह पहले ही स्वीकृत करवा लिए गए थे। हास्यास्पद इसलिए कि श्रेय की इस लड़ाई में भला किसी के पास इतना धेर्य होता है कि वह दो माह तक पूर्व स्वीकृत कार्यों का ढिंढोरा न पीटे। मान भी लिया जाए कि बारिश के कारण उक्त कार्य अब आरंभ हो रहे है, किन्तु अगर वाकई में दो माह पूर्व भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने इस कार्य को स्वीकृत करा दिया था तो उसी वक्त विज्ञप्तिीवीर कांग्रेस ने जिला वासियों को यह बात क्यों नहीं बताई कि ये कार्य स्वीकृत हो चुके हैं और दो माह बाद अर्थात बारिश बीतने के साथ ही इन्हें आरंभ करवा दिया जाएगा! कम से कम यह बात ही सिवनी वासियों के रिसते घावों पर मरहम का काम कर जाती। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर भी हो रहा है कि कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली महासचिव राहुल गांधी के आगमन पर भी फोरलेन फोरलेन गूंजने के बाद भी कांग्रेस के किसी क्षत्रप ने इस दो माह पूर्व के रहस्य पर से पर्दा नहीं उठाया! इसके अलावा कमल नाथ का पत्र ठाकुर हरवंश सिंह को 09 अक्टूबर को फिर कैसे मिला जिसमें उन्होंने जीर्णोद्धार के काम का शुभारंभ करने की बात कही थी।

भाजपा का यह आरोप काफी हद तक सही प्रतीत हो रहा है कि जब फोरलेन के निर्माण का काम आरंभ करवाया गया था तब तो इस तरह के किसी भी भूमिपूजन या शुभारंभ का आयोजन नहीं किया गया था, फिर अचानक ही कांग्रेस और कमल नाथ को क्या सूझी कि आनन फानन में ही पुर्नरूद्धार के काम का शुभारंभ कार्यक्रम आयोजित करवा दिया गया। सिवनी वासियों की स्मृति में यह बात ताजा ही होगी कि लखनादौन से बरास्ता सिवनी होकर खवासा तक के मार्ग को फोरलेन में तब्दील करने का काम आरंभ किया गया था तब तो किसी भी तरह के तामझाम के साथ किसी भी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया था, फिर आज अचानक कांग्रेस को क्या आवश्यक्ता आन पड़ी कि इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन करना पड़ा। आरोप प्रत्यारोप करना कांग्रेस और भाजपा का शगल हो सकता है किन्तु इस मामले में सिवनी वासियों को उबड़ खाबड़ सड़क से गुजारने का क्या ओचित्य जबकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के बालाघाट के भाजपाई सांसद के.डी.देशमुख, मण्डला के कांग्रेसी सांसद बसोरी सिंह, केवलारी के कांग्रेसी विधायक ठाकुर हरवंश सिंह, बरघाट के भाजपाई विधायक कमल मस्कोले, लखनादौन की भाजपा की विधायक श्रीमति शशि ठाकुर एवं सिवनी की भाजपा की विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया को सिवनी जिले की जनता ने ही जनादेश देकर जिताया है।

इस मामले में बहुत ज्यादा नहीं बस एकाध पन्ना ही पलटने से स्मृति ताजा हो सकती है। हाल ही में भाजपा की महारैली के उपरांत नगर पलिका परिषद सिवनी के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी ने भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से व्यक्तिगत भेंट कर सिवनी शहर के अंदर से होकर गुजरने वाले मार्ग की दुर्दशा की ओर आकर्षित कराया था। कमल नाथ ने उस समय राजेश त्रिवेदी से कहा था कि फोरलेन के प्रकरण में उनका कोई हाथ नहीं है, और न ही उनकी कोई एसी मंशा है कि इसे सिवनी से छीना जाए। बाद मंे राजेश त्रिवेदी द्वारा स्वयं और कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रपों के हाथों एक प्रस्ताव बनाकर भी कमल नाथ को भिजवाया था। शहर के विकास के लिए कांग्रेस के क्षत्रपों का राजेश को दिया सहयोग निश्चित तौर से दलगत भावना और श्रेय की गंदी राजनीति से उपर उठकर शहर विकास की सोच का परिचायक ही माना जाएगा।

इसके उपरांत एक बात और सिवनी की फिजां में तैरी है कि पूर्व पार्षद की जनहित याचिका पर प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार के लोक कर्म विभाग और राजमार्ग के भोपाल स्थित उच्चाधिकारी को नोटिस भेजकर जवाब भी मांगा था। भोजराज मदने की याचिका स्वीकार कर नोटिस जारी करने के उपरांत हरकत में आए एनएचएआई ने 11 अक्टूबर से अगर इन मार्गों की सतह के नवीनीकरण की सुध ली है तो इसका श्रेय भोजराज मदने को जाना चाहिए, किन्तु चूंकि भोजराज मदने भारतीय जनता पार्टी से जुडे रहे हैं, और सिवनी शहर के मध्य से गुजरने वाली सड़क के लिए प्रयास करने वाले राजेश त्रिवेदी भी भाजपा की पृष्ठ भूमि से हैं, अतः कांग्रेस उनको श्रेय कैसे दे सकती है। हमारी नितांत निजी राय में इस पुनीत काम के लिए भाई भोजराज मदने और राजेश त्रिवेदी दोनों ही साधुवाद के पात्र हैं, इन दोनों की तारीफ की जाना चाहिए, बल्कि सार्वजनिक स्तर पर इस पुनीत काम के लिए भूतल परिवहन मंत्रालय को जगाने के लिए इनका सम्मान भी किया जाना चाहिए।

वैसे भारतीय जनता पार्टी का एक कदम अवश्य अचरज भरा ही लग रहा है। कल जिला स्तर के नेताओं के खिलाफ प्रेस में कथित तौर पर वक्तव्य देने के मामले में भाजपा ने भोजराज मदने को एक नोटिस जारी कर दिया था। इसके बाद भाजपा द्वारा भोजराज से पूरी तरह परहेज ही किया जाता रहा है। अब जबकि भोजराज मदने की याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लिया गया है, तब भाजपा उन्हें पूरा सम्मान देते हुए अपनी विज्ञप्ति में उन्हें कार्य समिति का सदस्य भी निरूपित कर रही है।

इस पूरे मामले में चकित करने वाली बात यह सामने आ रही है कि सिवनी के इतिहास में संभवतः यह पहला मौका होगा जबकि किसी मार्ग के पुर्ननिर्माण के शुभारंभ का बाकायदा कार्यक्रम भी आयोजित किया जा रहा है। चार चरणों में सिवनी शहर, बण्डोल, छपारा और गणेशगंज के शहरी अंदरूनी मार्गों के पुर्ननिर्माण के शुभारंभ का कार्यक्रम आयोजित हो रहा है, जो अपने आप में सचमुच अनोखा ही माना जाएगा। इस मामले में एक पहलू भी पीड़ाजनक ही माना जाएगा कि जब सर्वोच्च न्यायालय में महज नौ किलोमीटर के विवाद पर मामला निर्धारित होना लंबित है तब मोहगांव से खवासा और बंजारी से गनेशगंज के पहले के मार्ग का पुर्ननिर्माण आखिर किसके कहने पर रोक कर रखा गया है?