ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
टुम बोले टुम बोले हम टो टुप्पई टाप!
पुरानी कहानी है कि एक परिवार के तीन तोतलों की शादी नहीं हो पा रही थी। पिता ने हिदायत दी कि इस बार जो लडकी वालों के सामने बोलेगा उसको घर से निकाल दिया जाएगा। लकड़ी वाले आए, बडे बोला -‘पितादी ती बात याद है न।‘‘ मंझला बोला -‘‘टुप्प भईया।‘‘ छोटा बोल उठा -‘‘टुम बोले टुम बोले हम टो टुप्पई टाप!‘‘ इस तरह तीनों की पोल खुल गई। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार में भी कमोबेश एसा ही कुछ होता दिख रहा है। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने बैतूल में कहा कि गरीब दोनांे टाईम खाने लगा है, इसलिए मंहगाई बढ़ी। कृषि मंत्री शरद पवार कहते हैं कि शक्कर नहीं खाने से भारतवासी मर नहीं जाएंगे। अब योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने अपनी जुबान खोली है मंहगाई के बारे में। बकौल अहलूवालिया मंहगाई बढ़ने का कारण ग्रामीण हैं। गांवों की समृद्धि और खुशहाली के कारण मंहगाई आसमान की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस के बड़बोले मंत्रियों और सिपाहसलारों को यह बात याद रखनी चाहिए कि वजीरे आजम ने साफ कहा था कि दिसंबर तक मंहगाई पर काबू पा लिया जाएगा। दिसंबर आने को है न तो मनमोहन मंहगाई पर ही काबू पाने में सफल हो पाए हैं और न ही अपने बड़बोले मंत्रियों की कैंची की तरह चलती जुबान पर।
कलमाड़ी ने पढ़ा राहुल चालीसा
2010 में भीषणतम भ्रष्टाचार के लिए जबर्दस्त चर्चित रहे राष्ट्रमण्डल खेलों के समापन के बाद अब आयोजन समिति पर जांच के बादल मण्डराने लगे हैं। लगने लगा है कि जल्द ही जांच होगी और आयोजन समिति के सरगनाओं की गर्दनें नप जाएंगी। आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को भी अब 33 करोड़ देवी देवताआंे की याद आनी आरंभ होना स्वाभाविक ही है। कलमाड़ी ने देवताआंे के साथ ही साथ समस्त आकाओं को भी सिद्ध करना आरंभ कर दिया है। आश्चर्य तो तब हुआ जबकि समापन समारोह में सुरेश कलमाड़ी ने अतिविशिष्ट लोगों के साथ ही साथ कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी का नाम भी ले लिया। कलमाड़ी के राहुल चालीसा पढ़ते ही राहुल गांधी चौंके और उन्होंने हवा में प्रश्नवाचक तौर पर हाथ लहरा दिया, कि कामन वेल्थ गेम्स में भला उनकी भूमिका क्या रही? विशेषकर तब जब कामन वेल्थ गेम्स का आयोजन पूरी तरह से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका हो, तब इसका मैला उठाने के समय कोई भी अपना नाम इससे जोड़कर अपनी मिट्टी खराब तो कतई नही करना चाहेगा।
दिग्गी राजा से भयाक्रांत हैं पचौरी
भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी में क्या समानता है? जी है, दोनों ही ने आज तक कोई चुनाव नहीं जीता है और दोनों ही राज्य सभा की बैसाखी के सहारे राजनीति करते रहे हैं। चौबीस साल तक पिछले दरवाजे अर्थात राज्य सभा से संसदीय सौंध तक पहुंचने वाले सुरेश पचौरी इन दिनों कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह से खासे खौफजदा नजर आ रहे हैं। राजनैतिक विश्लेषक यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर क्या कारण है कि वे राजा के खिलाफ मुंह नहीं खोल पा रहे हैं। राजा दिग्विजय सिंह लगातार ही भोपाल आते रहते हैं। गाहे बेगाहे वे काफी हाउस पहुंचकर पत्रकारों के साथ ठहाके भी लगा लेते हैं। इनमें वे ही पत्रकार होते हैं जो राजा से उनके मुख्यमंत्रित्व काल में उपकृत हुए हैं। राजा कभी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय नहीं जाते हैं, इस बात की शिकायत पचौरी द्वारा अब तक कांग्रेस आलाकमान से न किया जाना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।
महाराष्ट्र की राजनीति में ‘‘आदित्य‘‘ का उदय
नब्बे के दशक से महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में ठाकरे परिवार की भूमिका अहम रही है। शिवसेना को पालने पोसने वाले वयोवृद्ध नेता बाला साहेब ठाकरे अब उमर दराज हो चुके हैं। उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने जब शिवसेना की कमान संभाली तब ठाकरे परिवार में वर्चस्व की जंग सामने आई और ठाकरे परिवार में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर दिखा दिया कि वे बाला साहेब की टक्कर में खड़े होने की स्थिति में आ चुके हैं। वैसे भी राजनैतिक विरासत का हस्तांतरण पारिवारिक विरासत की तरह ही होता आया है, राहुल गांधी, वरूण गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, सचिन पायलट की तर्ज पर अब ठाकरे परिवार की नई पेशकश के तौर बाला साहेब ने अपने पौत्र आदित्य का विधिवत अभिषेक कर दिया है। मुंबई में हाल ही में संपन्न शिवसेना की रैली में लाखों शिवसैनिकों के सामने बाला साहेब ने आदित्य को सभी से न केवल परिचित करवाया वरन् उसे आर्शीवाद देकर शिवसेना की सेवा के लिए कृतसंकल्पित भी किया। आदित्य यद्यपि अभी महज बीस बरस के हैं, किन्तु उनके तेवर देखकर लगने लगा है कि वे राज ठाकरे पर बीस ही पड़ सकते हैं।
सेवानिवृति के लिए किसकी अनुमति चाहते हैं प्रणव
पचहत्तर साल केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अब राजनैतिक तौर पर सेवानिवृति चाहते हैं। नेहरू गांधी परिवार के कथित हिमायती प्रणव मुखर्जी का शुमार कांग्रेस के कुशल प्रबंधकों में किया जाता है। यद्यपि वे अनेक बार नेहरू गांधी परिवार के खिलाफ भी खड़े दिखे किन्तु सोनिया गांधी की मजबूरी प्रणव को लेकर चलने की रही है। मीडिया को दिए साक्षात्कार में प्रणव दा कहते हैं कि अगले आम चुनावों में राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। प्रणव की बात को सच मान लिया जाए तो अब प्रधानमंत्री पद पर डॉ.मनमोहन सिंह के दिन गिनती के ही बचे हैं। इसके साथ ही उन्होंने राजनैतिक तौर पर रिटार्यमेंट की इच्छा भी जताई है। प्रणव मुखर्जी संभवतः पहले राजनेता होंगे जो पद में रहते हुए सेवानिवृति की इच्छा जताई हो, वरना अब तक तो जनता द्वारा नकारे जाने या अल्लाह को प्यारे होने पर ही लोग राजनीति से हटे हैं। विडम्बना देखिए कि सरकारी नौकरी में सेवानिवृति की आयु 60 वर्ष निर्धारित है, किन्तु सरकार पर शासन करने वालों के लिए कोई सीमा नहीं। नए सरकारी नौकरों को पेंशन का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है, किन्तु अखिल भारतीय सेवाओं और जनसेवकों के लिए आज भी पेंशन का प्रावधान है, इस तरह की विसंगतियां भारत गणराज्य में ही दिख सकती हैं।
अरूण जेतली: भाजपा के नए ट्रबल शूटर
प्रमोद महाजन जब तक भाजपा में रहे तब तक उन्होने भारतीय जनता पार्टी के लिए संकट मोचक की भूमिका ही अदा की। उनके निधन के उपरांत भाजपा के अंदर नए ट्रबल शूटर की तलाश शिद्दत के साथ आरंभ हो गई थी। अनेक लोगों पर दांव लगाने के बाद अब भाजपा का संकटमोचक चेहरा सामने आया है वह है अरूण जेतली का। पिछले कुछ दिनों से जब भी भाजपा पर संकट के बादल गहराए, तब तब अरूण जेतली के मशविरों ने भाजपा को उबारा है। राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली का परिवार इस बात से खासा प्रभावित होता दिख रहा है। दरअसल जब भी पार्टी के अंदर, यूपीए सरकार में, या फिर सूबाई सरकारों पर कोई संकट आता है तब अरूण जेतली का ज्यादातर समय फोन पर ही बतियाने में निकल जाता है। मामला चाहे सी.पी.ठाकुर के त्यागपत्र का हो या कर्नाटक प्रहसन, हर बार जेतली ही संकट मोचक बने। जेतली का परिवार करे भी तो क्या, क्योंकि भाजपा में संकट हैं गले तक और संकट मोचक उंगलियों में गिने जाने योग्य।
अब दमोह में जिंदा जला दी गई शिवराज की भांजी
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सूबे की हर कन्या को अपनी भांजी माना जाता है, फिर भी उनकी अपनी ही सरकार के रहते हुए बालिकांए सुरक्षित नहीं हैं। पिछले दिनों टीकमगढ़ की एक बाला को दिल्ली ले जाकर बेच दिया गया था, और उसके साथ दुराचार होता रहा था। अब मध्य प्रदेश के ही दमोह जिले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में बारहवीं की एक छात्रा के साथ प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर मे अध्ययनरत एक किशोर द्वारा न केवल ज्यादती की गई, वरन् जब पीड़िता ने इसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज करानी चाही तो आरोपी ने अपने परिजनों के साथ उक्त बाला को जिंदा ही जलाकर मार डाला। पीडिता ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करानी चाही किन्तु बारह बजे रात तक उसकी सुनवाई नहीं हुई अगले दिन सुबह ही आरोपी और उसके परिजन आ धमके और केरोसीन डाल आग लगाकर पीडिता की इहलीला ही समाप्त कर दी। पीडिता ने मृत्युपूर्व बयान में इसका उल्लेख कर दिया है।
कांग्रेस का नया त्रिफला चर्चा में
कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में मध्य प्रदेश के शूरवीरों की कमी नहीं है। बावजूद इसके पिछले लगभग दस सालों में मध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन बीमार पड़ा तीमारदारी के लिए तरस रहा है। कांग्रेस के मध्य प्रदेश के क्षत्रपांे ने कांग्रेस आलाकमान के दफ्तर में भले ही अपनी पैठ जमा ली हो, राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी को आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर अपने नंबर बढ़वाते रहे हों, पर जमीनी हकीकत इस सबसे उलट ही है। हाल ही में कांग्रेस की इंटरनल केमस्ट्री कुछ बदली बदली नजर आ रही है। कांग्रेस के दूर जाते तीन धु्रव अचानक ही एक साथ एक सुर में आलाप करते नजर आ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री कमल नाथ, कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिह और युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच प्रतिस्पर्धा की बर्फ पिघलती दिख रही है। नाथ, सिंह और सिंधिया का नया त्रिफला क्या रंग लाएगा यह तो वक्त ही बताएगा, किन्तु इसके पहले बडे मियां (कमल नाथ) और छोटे मियां (राजा दिग्विजय सिंह) की जोड़ी ने दस साल तक मध्य प्रदेश के सारे क्षत्रपों को पानी भरने पर मजबूर अवश्य किया था।
चुनाव के साथ ही आए याद करोड़ों
बिहार में रण भूमि सज चुकी है। चुनाव में अब आरोप प्रत्यारोप का चुनाव तक न थमने वाला सिलसिला आरंभ हो चुका है। चुनाव संपन्न होते हुए इन आरोप प्रत्यारोपों के जहर बुझे तीर अपने आप ही तरकश में वापस चले जाएंगे। छः साल से केंद्र की कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को अपने रिमोट से चलाने वाली कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने भी बिहार चुनाव के यज्ञ में अपनी आहूति डालना आरंभ कर दिया है। पांच साल की नितीश कुमार की सरकार को केंद्र द्वारा दिए गए करोड़ों रूपयों का आडिट करने श्रीमति गांधी बिहार पहुंच गई हैं। गौरतलब है कि आडिट हर साल किया जाना चाहिए, किन्तु सियासी नफा नुकसान के मद्देनजर रख केंद्र ने भी जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों अरबों रूपए जो बिहार सरकार को दिए थे, उसका कोई हिसाब किताब नहीं रखा। मान लिया जाए कि बिहार की नितीश सरकार ने केद्र की करोड़ों अरबो रूपए की इमदाद को आग के हवाले कर दिया हो, किन्तु यह सब होता देख केंद्र सरकार घ्रतराष्ट्र की भूमिका में कैसे रही? इसका जवाब दे पाएंगी कांग्रेस की राजमाता?
बोला रावण: आई विल नाट डाई
इस बार दशहरे में ताजमहल को अपने दामन में समेटने वाले आगरा शहर में एक अजीब किन्तु मजेदार वाक्या प्रकाश में आया। आगरा में पिछले एक सदी (एक सौ साल) से चली रही रामलीला के इतिहास में नया मोड़ उस वक्त आ गया, जब भगवान राम द्वारा रावण को मारने का प्रयास किया जा रहा था, और रावण बोल उठा -‘‘आई विल नाट डाई।‘‘ हुआ यूं कि इस साल रामलीला के आयोजन में बहुत विलंब हो गया, जिससे जल्दी जल्दी ही कुछ प्रसंगों को निपटाकर राम रावण के अंतिम युद्ध को मंचित किया जा रहा था। समय की पाबंदी और कमी को देखकर आयोजकों के द्वारा रावण से कहा गया कि जल्द ही राम के तीर से अपना संहार करा ले। उधर दर्शकों के बीच हर एक संवाद पर जबर्दस्त करतल ध्वनि गूंज रही थी। रावण चाह रहा था कि वह अपने किरदार को पूरा जिए, सो बीच में ही उसने कह दिया -‘‘आपको जो कराना हो करो, बट, इतनी जल्दी, आई विल नाट डाई।‘‘
दीदी सुपर सीएम, कौन होगा रेल मंत्री
पश्चिम बंगाल में चुनाव पूर्व बह रही बयार को देखकर लगने लगा है कि राईटर्स बिल्डिंग पर त्रणमूल कांग्रेस अपना कब्जा बना ही लेगी। सूबे में अफरशाही के घोडे भी अब दीदी के इशारों पर दौड़ने लगे हैं। अभी चुनाव होने में लगभग आठ माह बाकी हैं, फिर भी बंगाल में वाम सरकार अपने आप को शासन में असहज महसूस कर रही है। इसका कारण यह है कि शासन के महत्वपूर्ण अंग नौकरशाहों ने अपनी निष्ठा दादा के बजाए दीदी के प्रति प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया है। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले नौकरशाहों से वाम सरकार सकते में है, वह कोई भी बड़े निर्णय को अमली जामा नहीं पहना पा रही है। भारत गणराज्य में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी कि रेल मंत्री ने अपना कार्यभार ग्रहण करते ही अघोषित तौर पर रेल मंत्रालय को ही पश्चिम बंगाल स्थानांतरित करवा लिया। कोलकता में रहकर ममता बनर्जी रेल मंत्री कम पश्चिम बंगाल की सुपर सीएम की भूमिका में ज्यादा नजर आ रही हैं। त्रणमूल के पक्ष में बह रही हवा के चलते त्रणमूल कांग्रेस ने जनवरी में ही चुनाव करवाने का दबाव बढ़ा दिया है।
आंखे जाने के बाद जिंदा जलाने की गुहार!
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मण्डला जिले के योगीराज अस्पताल में मोतियाबिन्द का आपरेशन कराने आए ढाई दर्जन से अधिक लोगों ने मोतियाबिन्द के आपरेशन के दौरान अपनी आंखें ही गवां दी। कल तक दुनिया देखने वालों को जब मोतियाबिन्द के कारण कुछ धुंधला दिखना आरंभ हुआ तो उन्होंने आपरेशन कराने की सोची पर उन्हें क्या पता था कि वे अपनी आंखों को ही गंवा देंगे। महाकौशल अंचल में आदिवासियों की जनसंख्या सबसे अधिक मण्डला और डिंडोरी जिले में है। इन आदिवासियों के हितों के संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा करोड़ों अरबों रूपयों की इमदाद भेजी जाती है। विडम्बना यह है कि इन जिलों में पदस्थ होने वाले अधिकारियों द्वारा इस इमदाद में से अपना बड़ा हिस्सा वसूल लिया जाता रहा है। बहरहाल मोतियाबिन्द के गलत आपरेशन के कारण हुए संक्रमण का शिकार लोगों का कहना है कि आंखों में अब तक दर्द बना हुआ है, कहीं पीप मवाद बह रहा है। योगीराज अस्पताल के लोगों ने तो अपना काम कर दिखाया, अब इस बेरंग दुनिया में हम जीकर क्या करेंगे, बेहतर होगा कि हमें जिंदा ही जला दिया जाए। आश्चर्य की बात यह है कि मीडिया की चीख पुकार के बावजूद भी 16 सितंम्बर से अब तक इस घटना की जांच के लिए उप संचालक स्तर के एक अधिकारी के अलावा किसी को पाबंद नहीं किया गया है।
पुच्छल तारा
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, सड़कें खुदी हैं, ट्राफिक जाम है, सड़कों पर पानी भरा है, पैदाल पार पुल गिर गया, मेट्रो का पिलर गिर गया, और न जाने किन किन आरोपों के उपरांत अंततः कामन वेल्थ गेम्स निपट ही गए। अब बारी है भ्रष्टाचार की जांच की। पूर्व खेल एवं युवा मामलों के मंत्री मणि शंकर अय्यर ने भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ इन खेलों के दौरान दिल्ली से बाहर रहने की मंशा जताई थी। प्रशासन ने कुत्तों और भिखारियों को भी दिल्ली से बाहर कर दिया था। अब खेल खतम पैसा हजम। सो भोपाल से नंद किशोर जाधव एक ईमेल भेजकर सरकार को जगाने का प्रयास कर रहे हैं। नंद किशोर लिखते हैं कि राष्ट्र मण्डल खेल समाप्त हो गए हैं। अब सरकार को चाहिए कि वह मुनादी पिटवा दे कि अब दिल्ली की सरहद में कुत्ते, भिखारी और मणिशंकर अय्यर वैगरा लौट सकते हैं।
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