2011 में ही बिदा हो सकते हैं मनमोहन!
बजट के बाद बड़े फेरबदल के दिए थे पीएम ने संकेत
कांग्रेस प्रबंधक चाहते हैं विधानसभा चुनावों के उपरांत मन की बिदाई
कांग्रेस प्रबंधक चाहते हैं विधानसभा चुनावों के उपरांत मन की बिदाई
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। वर्ष 2010 और 2011 वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह के लिए बहुत शुभ नहीं कहा जा सकता है। इन दोनों ही सालों में मनमोहन सिंह का मन बड़ा ही व्यथित रहा। इसका कारण एक के बाद एक घपले घोटाले, भ्रष्टाचार से उनकी उज्जवल धवल छवि का दागदार होना है। मनमोहन सिंह चाहते हैं कि वे अपनी छवि को पहले जैसी चमका लें और फिर बिदा हो जाएं प्रधानमंत्री निवास से। उधर कांग्रेस के प्रबंधक भी अब इसका ताना बाना बुन रहे हैं कि किस तरह पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, असम पुद्दुचेरी और केरल चुनावों के बाद प्रधानमंत्री के पद से डॉ.मनमोहन की बिदाई सुनिश्चित की जा सके।
इस साल के आरंभ में केंद्रीय मंत्रीमण्डल में फेरबदल के बाद डॉ.मनमोहन सिंह ने कहा था कि बजट सत्र के बाद बड़ी सर्जरी की तैयारी है। इसके बाद ही पीएम ने मीडिया के छोटे से समूह (चुनिंदा टीवी चेनल्स के संपादकों) को बुलाकर सत्तर मिनिट की पत्रकार वार्ता की थी। इस दौरान पीएम अकेले ही खड़े दिखे थे। खुद को मजबूर बताकर सीवीसी मामले में खेद प्रकट करने वाले मनमोहन सिंह को बताया गया है कि इन दोनों ही कदमों से उनकी गिरती साख को और अधिक धक्का लगा है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष का सरकारी आवास) के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि सोनिया मण्डली ने उन्हें मशविरा दिया है कि पांच राज्यों में चुनावों के होते ही नए नेता का चयन कर लिया जाए। उधर 7 रेसकार्स रोड़ (प्रधानमंत्री आवास) के सूत्रों का कहना है कि भ्रष्टाचार, घपले घोटालों से आजिज आ चुके डॉ.मनमोहन सिंह खुद भी इस दायित्व से मुक्त होने को आतुर दिख रहे हैं, किन्तु वे चाह रहे हैं कि उनके नाम को फिर से वापस पुराने जैसा साफ सुथरा बना दिया जाए तब वे पीएमओ से अपने आप को दूर कर लेंगे।
प्रधानमंत्री ने बजट सत्र के बाद बड़े बदलाव के संकेत देकर इस ओर इशारा कर दिया था कि वे भ्रष्ट मंत्रियों को बजट सत्र के बाद बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। यही कारण है कि जनवरी के फेरबदल में उन्होंने पार्टी अध्यक्ष की मंशा को महत्व दिया था। अब मनमोहन किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं दिख रहे हैं।
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