गरीबों की पहुंच से दूर निजी शालाएं
नई दिल्ली (ब्यूरो)। देश भर में शिक्षा के अधिकार कानून की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रहीं हैं। राज्य और सीबीएसई से मान्यता प्राप्त शालाओं में गरीब बच्चों के दाखिलों को लेकर बने दिशा निर्देश हवा में उड़ रहे हैं और संबंधित महकमे के कर्मचारी हाथ पर हाथ धरे सब कुछ देख रहे हैं। देश की राजनैतिक राजधानी में ही केंद्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे दिल्ली नगर निगम से मान्यता प्राप्त 783 शालाओं में केवल 608 बच्चों को ही दाखिला दिया गया है।
ज्ञातव्य है कि कांग्रेस नीत केद्र सरकार की अति महात्वाकांक्षी परियोजना शिक्षा के अधिकार के कानूनी स्वरूप में आ जाने के बाद अब शाला की कुल छात्र क्षमता का पच्चीस फीसदी हिस्सा गरीबों के बच्चों के लिए सुरक्षित रखना अनिवार्य है। इन विद्यार्थियों को शाला द्वारा निशुल्क शिक्षा प्रदाय किए जाने का प्रावधान किया गया है।
देश भर में चल रही शिक्षा की दुकानों अर्थात शैक्षणिक संस्थाओं में गरीबों को दरवाजे से ही भगाए जाने की घटनाएं प्रकाश में आईं हैं। डर दहशत और पचड़े में फंसने से बचने के लिए गरीब गुरबों द्वारा इसकी शिकायत नहीं की जाती है। सीबीएसई के एक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि जिला प्रशासन को चाहिए कि वह हर शाला को ताकीद करे कि शाला प्रबंधन इस बात की मुनादी पिटवाए कि उसकी शाला में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदाय किए जाने का प्रावधान है।
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