मंगलवार, 21 जून 2011

मनमोहन के झुनझुने से अक्सर बहल जाते हैं चौहान

पीएम से मिलकर गदगद हो जाते हैं शिवराज

मनमोहन के झुनझुने से अक्सर बहल जाते हैं चौहान

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा हृदय प्रदेश की भाजपा सरकार के साथ किए जाने वाले अन्याय पर चीखने वाले सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान जब भी वजीरे आजम मनमोहन सिंह से मिलकर आते हैं उनके चेहरे के भाव बताते हैं मानों उन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया हो। बीते छः माहों में अनेक बार पीएम से मिलन के बाद पत्रकारों से रूबरू शिवराज केंद्र के बारे में उतने आक्रमक नजर नहीं आए जितने मुलाकात के पहले रहे।

दिसंबर जनवरी माह में शीतलहर और पाले के कारण मध्य प्रदेश में हुई फसलों की क्षति के मुआवजे के मसले पर जब शिवराज सिंह चौहान ने 13 फरवरी को अनशन का स्वांग भी रचा था। बाद में राज्यपाल की मध्यस्थता के बाद प्रधानमंत्री से हुई बातचीत के बाद उन्होंने आश्चर्यजनक तौर पर अनशन समाप्त कर दिया था। इसके बाद जब वे दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले तब मनमोहन सिंह ने गु्रप ऑफ मिनिस्टर का गठन कर दिया था। उपवास समाप्ति के चार माह बीतने पर भी केंद्र सरकार ने जीओएम की बैठक नहीं बुलाई है, और न ही किसानों को मुआवजा ही दिया है। शिवराज सिंह का दावा था कि राज्य सरकार ने अपने हिस्से की राशि किसानों को बांट दी है।

किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान फरवरी के बाद आधे दर्जन से ज्यादा बार दिल्ली होकर आ गए हैं और वे प्रधानमंत्री कृषि मंत्री सहित अनेक मंत्रियों से भी बतिया चुके हैं। मध्य प्रदेश के सांसदों के साथ भी वे बैठ चुके हैं किन्तु शिवराज सिंह चौहान ने किसानों की सुध लेना उचित नहीं समझा। छः माह से अधिक समय बीतने के बाद भी ओला, पाला और शीतलहर के कारण हुई फसलों की तबाही का मुआवजा किसानों को नहीं मिलना आर्श्चजनक ही है।

गौरतलब है कि पाला अभी राष्ट्रीय आपदा की फेहरिस्त में शामिल नहीं है, इसे इसमें शामिल करवाने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया था, तभी डॉ.मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में गु्रप ऑफ मिनिस्टर्स का गठन कर शिवराज ंिसंह को भी उसका सदस्य बना दिया था। इसके गठन के साढ़े तीन माह बाद भी इसकी एक भी बैठक नहीं हो सकी है। शिवराज हर बार प्रधानमंत्री से मिलकर गदगद और संतुष्ट नजर आते हैं, लगता है प्रधानमंत्री के आभामण्डल के आगे वे सारी समस्याएं ही भूल जाते हैं।

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