अब दक्षिण राज्यों और छत्तीसगढ सरकार की तर्ज पर शिवराज भी मध्यप्रदेश में 3 रू प्रति किलो गेहूं बाटेंगे
(विदुर सरकार)
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दक्षिण राज्यों और छत्तीसगढ़ सरकारों की तर्ज पर अभी से 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी बिसात बिछाना शरू कर दिया है और लोक लुभावने निर्णय लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जिससे की उनकी सरकार पार्टी के जनाधार को व्यापक तरिके से भी बडा सके। इसी क्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अभी पिछले ही सप्ताह प्रधानमंत्री से मुलाकात कर प्रदेश में रिकार्ड गेहूं की पैदावार से उत्पन्न भण्डारण की समस्या से अवगत कराया और साथ ही पर्याप्त गोदाम न होने के कारण ज्यादातर गेहूं खुले में पडा है जिससे उसके खराब होने की सम्भावना को देखते हुये आग्रह किया कि केन्द्र सरकार गेहूं का प्रदेश को एक साल का अग्रिम आवंटन कर दे जिससे कि भण्डारया की समस्या हल भी हो जाएगी और राज्य सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों को तीन रूपये किलो की दर से अनाज उनमें बांट देगी। इससे अनाज का भी सही उपयोग हो जायेगा और साथ ही जरूरतमंदों को भी सस्ते दाम पर अनाज मिल जाएगा। इस समय लगभग 18 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले में रखा है जिससे सुरक्षित भण्डारया की आवश्यकता है।
अव्वल तो यह सम्भव नही है कि केन्द्र सरकार एक साल का अग्रिम आवंटन राज्य सरकार को कर दे और अगर कर देती है तो शिवराज सिंह चौहान 18 लाख मीट्रिक टन गेहूं को गरीबों को 3 रूपये प्रति किलो की दर से बांट कर कई लाख परिवारों को इसका लाभ पहूचा सकेंगे जो इस समय कमर तोड़ महंगाई से जूझ रहे है वे सरकार के क्रर्ताथ होगे। जो बाद में विधान सभा चुनाव के दौरान शिवराज सरकार की वाह-वाही का गुनगान कर वोटो में तब्दील हो सकते है। कुछ इसी तरह का फायदा छत्तीसगढ़ और दखिण राज्यों ने 1 रू किलो की दर से चावल गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालो को सौगात मे दीये थे।
अगर इस पूरे मुददे का बारीकी से देखे तो 3 रू प्रति किलो का गेहू गरीबी की रेखा के नीचे वाले परिवारों को बांटने से राजनैतिक लाभ को अवश्य दिख रहा है। लेकिन इसके अर्थशास्त्र अथवा आर्थिक पक्ष को जरा बारिकी से अध्ययन करे तो पायेंगे की पूरा का पूरा मुददा हवा-हवाई लगता है जिसको की यथार्थ रूप लेने में राज्य सरकार की अर्थव्यवस्था ढगमगा जाएगी और इसको पूरा करना राज्य सरकार की आज की आर्थिक स्थिति को देखते हुए सम्भव कर पाना सपना सा लगता है।
अगर हम आकडों पर जाए तो मुख्यमंत्री के अनुसार लगभग 18 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले में पडा है। जिससे सुरक्षित भण्डारण की आवश्यकता है। अगर हम मान ले की केन्द्र सरकार 18 मीट्रिक टन गेहूं को प्रदेश को साल भर कर अग्रिम आबंटन कर देती है तो 18 लाख मीट्रिक को हम किलो में करें तो 18 करोड किलो गेहूं हुआ। अगर हम गेहूं के समर्थन मुल्य 11 रू की दर मान ले तो इस पर 8 रू की राज्य सरकार को आर्थिक सब्सीडी देगी। 8 रू प्रति किलो के हिसाव से राज्य सरकार पर केवल गेहूं की सब्सीडी का लगभग 14.500 करोड़ का अतिरिक्त भार पडेगा। जिसको की राज्य सरकार का अपनी ही वार्षिक योजना से लेना होगा। यह भार गैर योजना मद से लेना होगा।
अब प्रश्न यह उठता है की राज्य सरकार अपनी 2011-12 की कुल वार्षिक योजना 23000 मे से यह गैर योजना गत राशि खर्च कर पाना सम्भव है क्या और अगर राज्य सरकार जैसा कह रही है अगर करेगी तो राज्य सरकार को एक मद का पैसा गैर योजना मद मे खर्च करना पडेगा तो क्या अन्य कल्याणकारी क्षेत्र जैसे शिक्षा ,स्वास्थ्य, उर्जा, कृषि, उधोग, अधोसंरचना आदि की योजना पर प्रतिकूल असर नही पडेगा।
अव्वल तो ऐसा करना प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन के लिहाज से ठीक नही होगा और व्यवहारिक रूप से भी यह सम्मभव नहीं है। तो क्या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गेहूं के मुददे पर राजनीति कर रहे है और केन्द्र सरकार से ऐसी मांग कर रहे है। जो सामान्यता केन्द्र सरकार मानेगी नही अगर नही मानेगी तो गेहूं का सड़ना और गरीबी रेखा के नीचे वाले परिवारों को पर्याप्त मात्रा में गेहूं सस्ते दामों में न उपलबध कराने का ठीकरा भी केन्द्र सरकार पर मड दिया जाता, और यदि अगर केन्द्र सरकार खुदा न खासता खुले में पडे गेहूं को राज्य सरकार को एक साल का अग्रिम में आवंटन करने को राजी हो जाती है तो मुख्यमंत्री को गेहूं को समर्थन मुल्य पर लेकर गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों में 3 रूपये प्रति किलो के हिसाब से बांटना राज्य सरकार के लिए गले की हडडी बन जाएगी जो न निगलते बनेगी और न उगलते बनती। अर्थात सिर्फ राजनैतिक लाभ लेने के लिए राजनेता कुछ भी लुभावने वायदे अथवा घोषणा करने से गुरेजते नही है। विकास के मूलमंत्र पर दोबारा सत्ता पर आसिन शिवराज अब तीसरे पारी के लिए अभी राजनैतिक बिसात बिछा रहे है पर उनको शायद यह नही पता की कभी-कभी इस तरह का वार उल्टा पड सकता है और कलई खुल सकती है।
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