मनरेगा में भ्रष्टतम है मध्य प्रदेश
पांच सालों से नहीं की विजलेंस मानीटरिंग कमेटी की बैठक
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) में भ्रष्टाचार की गूंज के बीच देश का हृदय प्रदेश इसका सरताज बनता जा रहा है। मध्य प्रदेश सहित बिहार, पंजाब, गुजरात, झारखण्ड, उत्तराखंड जैसे राज्यों मंे पिछले पांच सालों से मनरेगा के लिए सूबाई और जिला स्तर पर बनी विजलेंस मानीटरिंग सिमितियों की एक भी बैठक न होने से भ्रष्टाचार फलने फूलने के मार्ग प्रशस्त होते जा रहे हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय ने मनरेगा के अस्तित्व में आने के साथ ही इसके कार्यों की निगरानी के लिए एक विजलेंस मानीटरिंग कमेटी का गठन किया था। इसके गठन के पीछे यह उद्देश्य था कि जिला कलेक्टर्स द्वारा नियमित तौर पर मनरेगा के नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं से सरकार को आवगत करवाया जाए, ताकि इसमें वांछित सुधार किया जा सके। ग्रामीण विकास विभाग के सूत्रों का कहना है कि खराब प्रदर्शन करने वाले कलेक्टर्स को दंडित करने का प्रावधान भी किया गया है।
विभाग ने इस साल अप्रेल तक विजलेंस मानीटरिंग कमेटी की बैठकों के बारे में पांच साल का पूरा ब्योरा प्रस्तुत किया तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। इसके मुताबिक महाराष्ट्र ने महज 9, राजस्थान एवं यूपी ने 3 3, छत्तीसगढ़ ने दो ही बैठकों का आयोजन किया है। विभाग के आला अधिकारियों का कहना है कि पिछले पांच सालों में देश में कम से कम 330 बैठकों का आयोजन किया जाना था, जिनमें से महज 56 बैठकें ही आहूत हो सकी हैं।
गौरतलब होगा कि मनरेगा के नियमों में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य स्तर पर इसकी साल में कम से कम दो और जिला स्तर पर कम से कम चार बैठकें आयोजित करना अनिवार्य है। इसमें सांसदों और विधायकों को शरीक करवाने का दायित्व भी जिला कलेक्टर्स के कांधों पर ही डाला गया है। सूत्रों का कहना है कि विभाग का मानना है कि विजलेंस मानीटरिंग समिति की बैठक न होना ही इसमें भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है।
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