कब तक इम्तेहान देती रहेगी रियाया?
(लिमटी खरे)
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आक्रांताओं द्वारा एक के बाद एक हमले किए जा रहे हैं और देश के शासक मौन साधे अपनी कुर्सी बचाने के लिए ‘गठबंधन धर्म‘ का बखूबी निर्वहन किया जा रहा है। इक्कीसवीं सदी में भारत गणराज्य के समस्त दलों के नेताओं के इस ‘गठबंधन धर्म‘ के आगे ‘राष्ट्र धर्म‘ पूरी तरह बौना हो गया है। एक के बाद एक हमलों में चाहे वे आतंकी हों या नक्सली अथवा और किसी भी तरह के, हर बार देश के करदाता नागरिक को ही इसका भोगमान अपनी जान देकर भोगना पड़ा है। 2008 में मुंबई में अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमलों के बाद भी सत्ता के मद में चूर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई, जिसका परिणाम था 13 जुलाई का सीरियल बम ब्लास्ट। 2008 में नैतिकता के आधार पर तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को त्यागपत्र देना चाहिए था, जो नाटकीय तरीके से लिया गया। अब हर मोर्चे पर विफल पलनिअप्पम चिदम्बरम की बारी है, किन्तु नेहरू गांधी परिवार की वर्तमान पीढ़ी की चरण वंदना करने वाले नेताओं की कुर्सी का एक भी पाया नहीं हिलाया जा सकता है। कांग्रेस के लिए ट्रबल शूटर की भूमिका में राजा दिग्विजय सिंह हैं, जो उल जलूल बयानबाजी से लोगों का ध्यान मुख्य मुद्दे से भटकाते आए हैं।
बीते दो दशकों से आतंकवाद पर सियासी पार्टियों का ध्यान कुछ ज्यादा ही केंद्रित हो गया है। हर एक राजनैतिक दल आतंकवाद के दर्द को उभारकर राजनीति करने से बाज नहीं आ रहा है। आतंकवाद के सफाए की ओर इन दलों का ध्यान जरा सा भी नहीं जा रहा है। तगड़ी सुरक्षा घेरे में चलने वाले राहुल, सोनिया सहित अन्य राजनेताओं को आजाद भारत गणराज्य के ‘असुरक्षित‘ आम आदमी का दर्द महसूस नहीं हो पाता है। देश में अराजकता इस कदर फैल गई है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ग्रामीण स्तर से लेकर केंद्रीय स्तर तक हर एक सरकार की नुमाईंदगी करने वाला हर एक बंदा अपनी जेब भरने में लगा हुआ है।
नब्बे के दशक के आरंभ के साथ ही देश में बढ़े आतंकी हमलों के बाद कमोबेश हर राजनैतिक दल ने इस पर बयानबाजी करना ही मुनासिब समझा है। कितनी शर्म की बात है कि लगभग दो दशकों से आतंकवाद हमारे देश में फल फूल रहा है, और हमारे देश के नीति निर्धारक महज कोरी बयानबाजी कर जनता को गुमराह करने से नहीं चूक रहे हैं। इसके पहले कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में पराजय का मुंह देखने वाले शिवराज पाटिल को गृह मंत्रालय जैसा संवेदनशील और महात्वपूर्ण मंत्रालय सौंपकर पहले ही अपनी कमजोरी जाहिर कर दी थी। कांग्रेस शायद भूल गई कि देश के गृह मंत्री के पद पर लौह पुरूष माने जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसी हस्ती को भी कांग्रेस ने ही बिठाया था, जिनकी नैतिकता, कार्यप्रणाली और देशप्रेम के ज़ज़्बे को आज भी लोग सलाम करते हैं। पाटिल के बाद इस आसनी को चिदम्बरम को सौंपा गया। चिदम्बरम के कार्यकाल में यह मुंबई पर यह पहला आंतकी हमला है, किन्तु नक्सली हमलों में न जाने कितने लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
मंबई के इस और पिछले आतंकी हमलों पर भाजपा द्वारा कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेकर हाय तौबा मचाई जा रही है। सरकार से त्यागपत्र की मांग की जा रही है। पर भाजपा शायद यह भूल जाती है कि इसके पहले अटल इरादों वाले अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के गृहमंत्री रहे लाल कृष्ण आड़वाणी के कार्यकाल में खौफ का पर्याय बन चुके आतंकवादियों को सरकार ने अपने ही जहाजांे में ले जाकर कंधार में छोड़ा था। तब कहां गई थी इन नेताओं की नैतिकता?
इतना ही नहीं राजग के पीएम इन वेटिंग के गृह मंत्री के कार्यकाल में ही देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद पर आतंकवादी हमला हुआ, अक्षरधाम के रास्ते रघुनाथ मंदिर और अमरनाथ यात्रा के दौरान न जाने कितने निरीह लोगों को भूना गया। क्या देश के नेताओं की याददाश्त इतनी कमजोर हो गई है कि चंद साल पहले घटी घटनाओं को भी याद रखने में उन्हें परेशानी होने लगी है।
उधर दूसरी ओर सत्ता की चाभी संभालने वाली कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी का कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में कहा गया यह कथन वास्तविक कम चुनावी ज्यादा लगता है कि सरकार आतंकी हमलों के बाद मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती है। सोनिया गांधी यह भूल जाती हैं कि देश में आधी सदी से ज्यादा राज उन्हीं की कांग्रेस पार्टी ने किया है, और पिछले सवा सात सालों से देश में उन्हीं की पार्टी की सल्तनत है।
अब जबकि कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव हो गए हैं, और कुछ में होने बाकी हैं के साथ ही साथ लोकसभा चुनाव की पदचाप भी सुनाई देने लगी है तब कांग्रेस अध्यक्ष की तंद्रा टूटती प्रतीत हो रही है। अब उन्हें आम आदमी (मतदाता़ की याद सताने लगी है। वे कहने लगीं हैं कि हाथ पर हाथ धरे रह कर हम अपने उपर हमला होने नहीं दे सकते हैं।
वैसे सोनिया गांधी ने परोक्ष रूप से अपनी ही सरकार पर निशाना साधते हुए यह तक कह डाला कि जनता को चाहिए पक्के इरादों वाली सरकार। सोनिया गांधी के रणनीतिकार उन्हें यह बताना भूल गए कि संप्रग के कार्यकाल में हुए आतंकी हमलों की फेहरिस्त काफी लंबी है, उधर महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की ही सरकार है।
हमारी व्यक्तिगत राय में आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम न उठा पाने में सक्षम देश के राजनेताओं पर इसके लिए आपराधिक अनदेखी के मुकदमे दायर किए जाने चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के हाथों में दप्ती पर लिखी इबारत का जिकर यहां लाज़िमी होगा जिसमें उल्लेख किया गया था कि ‘‘हिन्दुस्तान को ज़ेड प्लस सुरक्षा कब मुहैया हो सकेगी?‘‘
यहां गौरतलब होगा कि यूपीए के शासनकाल में कुल दस हजार से अधिक बेकसूरों को जान से हाथ धोना पड़ा था, 2009 के साल में ही देश भर में हुए 11 आतंकी हमलों में 340 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई। अगर कांग्रेस नैतिकता की बात करती है तो उस वक्त कांग्रेस की नैतिकता कहां थी, जब बेकसूर दम तोड़ रहे थे। कहा जा रहा है कि मुंबई में हुए बम हादसों की इबारत फरवरी में लिखी गई थी। भटकल बंधुओं की फोन वार्ता में ये तथ्य उभरकर सामने आए हैं।
इन धमाकों में लोगों से वसूले गए रंगदारी टेक्स का भी उपयोग किया गया है। इस खुलासे से बाबा रामदेव के उन आरोपों को भी बल मिलता है कि विदेशों में जमा काला धन आतंकियों के लिए संजीवनी का काम करता है। उधर इस पूरे मामले से ध्यान भटकाने के लिए कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर ‘हिन्दु आतंकवाद‘ का मुद्दा उछाल दिया है। राजा का कहना है कि इसमें हिन्दु आतंकवादियों का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। सवाल यह उठता है कि जब आतंकवाद का कोई धर्म, मजहब, जात पात नहीं होती फिर इसे हिन्दु या किसी अन्य धर्म से जोड़ने का तात्पर्य समझ से परे है। कांग्रेस के संकटमोचक हैं राजा दिग्विजय सिंह। राजा सदा ही प्रतिकूल परिस्थितियों मंे अनाप शनाप बयानबाजी से सभी का ध्यान मुख्य मुद्दे से भटका कर अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होते हैं और मुद्दा लोगों की स्मृति से विस्मृत ही हो जाता है।
9/11 हमले के बाद दुनिया के चौधरी अमेरिका ने अपनी आंतरिक सुरक्षा इतनी तगड़ी कर दी कि वहां परिंदा भी पर मार नहीं सकता। इससे उलट भारत गणराज्य के नीतिनिर्धारिकों ने कथित तौर पर ‘सहिष्णू‘ का लबादा ओढ़ कर अपने ‘नपुंसक‘ होने की बात को छिपाने का घिनौना प्रयास किया है। अमेरिका में सभी को एक आंख से ही देखा जाता है। वहां विदेशी प्रवेश के नियम बहुत ही सख्त हैं। चाहे राजा हो या रंक सभी को एक ही नजर से देखकर तलाशी ली जाती है। इससे उलट भारत में 2008 के आतंकवादी हमले के बाद कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बन पाई है। विडम्बना है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह और कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ‘‘गठबंधन धर्म‘‘ निभाने के चलते अपनी बेबसी का इजहार करने से नहीं चूकते। क्या उनके पास इस बात का उत्तर है कि उनके लिए बड़ा कौन है -‘‘गठबंधन धर्म‘‘ या राष्ट्र धर्म‘‘?
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