जनाक्रोश ने निकाली सरकार की हेकड़ी
आज अन्ना की रिहाई मुश्किल
अनशन के लिए सज रहा रामलीला मैदान
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। 74 वर्षीय अण्णा हजारे की बुलंद आवाज और देशवासियों की हुंकार ने कांग्रेस के हुक्मरानों की सारी हेकड़ी निकालकर रख दी है। पुलिस अंततः अण्णा हजारे के सामने झुक गई है और उन्हें रामलीला मैदान पर एक पखवाड़े तक अनशन की अनुमति दे दी है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अण्णा तिहाड़ जेल के प्रशासनिक भवन में हैं, उधर दिल्ली का रामलीला मैदान सरकार द्वारा सजाया जा रहा है।
अण्णा की गिरफ्तारी के बाद देश भर में उनके समर्थन में जुटे लोगों के तेवर देखकर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक उठीं हैं। देशवासियों विशेषकर युवाओं के तीखे तेवरों ने कांग्रेस के कसबल ढीले कर दिए हैं। युवाओं में अपने आईकाल और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की चुप्पी से बहुत निराशा का वातावरण बना हुआ है।
दिल्ली के स्थानीय प्रशासन के सूत्रों का कहना है कि बारिश के कारण रामलीला मैदान खस्ताहाल में है, जिसे ठीक किया जा रहा है। इसे ठीक करने में आज सारा दिन लगने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके उपरांत इस मैदान को टीम अण्णा को सौंप दिया जाएगा। जब तक सिविल सोसायटी को रामलीला मैदान नहीं मिल जाता तब तक अण्णा हजारे तिहाड़ जेल को ही आशियाना बनाए रखने के मूड में दिख रहे हैं। हालात देखकर लग रहा है कि आज अण्णा की रिहाई मुश्किल ही है।
जेल सूत्रों का कहना है कि अण्णा हजार के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए जीबी पंत अस्पताल की टीम को अण्णा ने ससम्मान वापस लौटा दिया। अण्णा का कहना था कि जब जेल के चिकित्सक उन्हें फिट करार दे रहे हैं तब बाहर से चिकित्सकों की टीम बुलाने का क्या ओचित्य है। अण्णा के चिकित्सक डॉ.नरेश त्रेहान ने भी अण्णा का चिकित्सकीय परीक्षण कर उन्हें फिट बताया है।
टीम अण्णा के अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि 16 अगस्त को सुबह सरकार टीम अण्णा को इसलिए गिरफ्तार करती है क्योंकि उससे शांति भंग होने का खतरा होता है। फिर उसे सात दिन की हिरासत में भेज दिया जाता है। शाम ढलते ही टीम अण्णा से खतरा अचानक ही गायब हो जाता है, और उन्हें रिहा कर दिया जाता है। जेल के सूत्रों ने कहा कि अण्णा का कहना है कि इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के नेतृत्व में गजब का प्रजातंत्र देखने को मिल रहा है, जिसमें सरकार की मुखालफत करने वालों को बलात जेल में डाला और निकाला जा रहा है। सरकार ने लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गुड्डे गृडियों का खेल बना दिया है।
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