बंग्लादेश के निशाने पर है हृदय प्रदेश
लचर पुलिसिंग का लाभ उठा रहे हैं घुसपैठिए
जिन्दा बमों के मुहाने पर बैठा है मध्य प्रदेश
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की ढीली पुलिस व्यवस्था का लाभ बंग्लादेश से अवैध रूप से आने वाले लोग उठा रहे हैं। इन दिनों बंग्लादेशियों की पहली पसंद बनकर रह गया है मध्य प्रदेश। केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार ढीली पोली पुलिस व्यवस्था के चलते घुसपैठियों ने हृदय प्रदेश में तेजी से आमद देना आरंभ कर दिया है। हाल ही में काश्मीरी लोगों के साथ मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की पुलिस का विवाद इसी का एक हिस्सा माना जा रहा है।
सूत्रों ने कहा कि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार का राज्य की पुलिस पर कोई नियंत्रण नहीं बचा है। बाहर से आकर मध्य प्रदेश में रहने वालों की न तो मुसाफिरी दर्ज हो रही है और ना ही स्थानीय तौर पर पुलिस द्वारा उनका कोई रिकार्ड ही रखा जा रहा है। सूत्रों ने आगे कहा कि दिल्ली की तर्ज पर मध्य प्रदेश में किराएदारों का पूरा ब्योरा और पुलिस वेरीफिकेशन वक्त की मांग है।
नाम गुप्त रखने की शर्त पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने मध्य प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था पर भी उंगली उठाई है। उन्होंने कहा कि इस समय सबसे अधिक तादाद में बंग्लादेशी और काश्मीरी लोग मध्य प्रदेश में रह रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि अपने भ्रष्ट तंत्र और अपने स्थानीय संपर्कों के माध्यम से इनमें से अधिकांश ने अपना राशन कार्ड, ड्राईविंग लाईसेंस, वोटर आईडी आदि भी एमपी का ही बनवा लिया है।
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि देश में कहीं भी आतंकी वारदात को करने के बाद इन लोगों के लिए मध्य प्रदेश में सर छुपाना काफी मुफीद होता है। हर शहर में नई बनी झुग्गी बस्तियों में रहने वालों में बंग्लादेशी और काश्मीरी लोगों की खासी तादाद होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। सूत्रों की मानें तो ये घुसपेठिए ही शहरों में लूट और डकैती की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। गौरतलब है कि लगभग दस साल पहले दिग्विजय सिंह के शासनकाल में अवैध तौर पर मध्य प्रदेश में रहने वाले बंग्लादेशी लोगों की तादाद महज 11 ही बताई गई थी पुलिस द्वारा जबकि वास्तव में यह संख्या उसी वक्त हजारों में थी। कहा जा रहा है कि टीन टप्पर लोहा लंगर यानी कबाड़ा व्यवसाय इन्हें बेहद पसंद आता है। इसी बहाने ये घरों की टोह लेते रहते हैं। इनकी जनानियां घरों में काम करके वहां पतासाजी करती रहती हैं। इन दिनों कबाड़ वाले अहल सुब्बह छः बजे ही आवाज लगाते दिख जाते हैं। अनेक लोगों ने यह शिकायत भी की है कि अगर उनके घरों के दरवाजे खुले होते हैं तो ये घरों में घुसकर सामान भी पार कर दिया करते हैं।
आज यह आंकड़ा लाखों में पहुंच गया हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इनमें से अधिकांश तो मतदादा परिचय पत्र बनवा भी चुके होंगे। वोट बैंक की खातिर किसी भी विधायक ने विधानसभा और किसी भी सांसद ने लोकसभा में इनकी असली गिनती जानने की जहमत नहीं उठाई है। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मध्य प्रदेश इन दिनों जिन्दा बमों के मुहाने पर बैठकर सांसे ले रहा है। पुलिस भी न तो इन पर नजर रख रही है और ना ही इनका कोई रिकार्ड रखने में ही दिलचस्पी दिखा रही है। कांग्रेस और भाजपा ने तो इस वोट बैंक के मद्देनजर असंगठित कामगार मजदूरों के लिए एक प्रकोष्ठ का गठन कर दिया है।
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