0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 22
झाबुआ पावर प्लांट की पूरी तरह सैट जनसुनवाई पूरी
हर गल्ती को स्वीकार किया प्रबंधन ने
पर्यावरण नियंत्रण मण्डल ने स्वीकारी अपनी गल्ति
बंदूकधारी रहे चर्चा के विषय
मिश्रा हटाओ बचाओ चली मुहिम
जनसुनवाई को शून्य घोषित करने की मांग
(लिमटी खरे)
घंसौर (जिला सिवनी)। देश के हृदय प्रदेश में सिवनी जिले में घंसौर में देश की मशहूर थापर ग्रुप ऑफ कंपनीज के पावर प्लांट के 660 मेगावाट के पावर प्लांट के दूसरे चरण की जनसुनवाई गहमागहमी के बीच आज संपन्न हुई। इस जनसुनवाई में प्रबंधन और आयोजक पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण मण्डल ने अपनी हर गल्ति को स्वीकार किया। इसमें बीच में बंदूकधारी लोगों का आना चर्चा का िविषय बना रहा। यह जनसुनवाई पूरी तरह सैट ही नजर आई।
मंगलवार दोपहर 11 बजे आहूत जनसुनवाई लगभग आधे घंटे बाद आरंभ हुई। इस जनसुनवाई में जिला प्रशासन की ओर से अतिरिक्त कलेक्टर श्री कुलेश लगभग साढ़े बारह बजे मौके पर पहुंचे। इसके पहले ही स्थानीय युवा अमित तिवारी द्वारा पर्यावरण के संबंध में पूछे गए प्रश्नों का जवाब न तो मण्डल के कारिंदे और न ही प्रबंधन द्वारा दिया जा सका। इसके साथ ही जब माईक वरिष्ठ अधिवक्ता जकी अनवर खान द्वारा थामा गया तो प्रबंधन और मण्डन की ओर से कोई जवाब नही दिया जा सका।
श्री तिवारी और श्री खान के हर प्रश्न पर प्रदूषण नियंत्रण मण्डल तथा कंपनी प्रबंधन बगलें झांकता नजर आया। श्री खान ने जब प्रबंधन से प्रश्न किया कि विभाग की वेब साईट पर आज की जनसुनवाई क्यों नहीं है तो वहां उपस्थित अधिकारी द्वारा कहा गया कि वह है। जब लेपटाप पर इंटरनेट पर सारी चीजें दिखाईं गईं तो प्रबंधन और मण्डल के अधिकारियों के होश फाख्ता हो गए और दोनों की मिली भगत उजागर हो गई।
अमित तिवारी द्वारा जब पानी बरगी बांध के बजाए स्थानीय स्तर पर लेने की बात की गई तो प्रबंधन ने इसे झुठला दिया पर जब प्रमाण पेश किए गए तब प्रबंधन बगलें झांकता नजर आया। श्री तिवारी ने आरोप लगाया कि क्षेत्र में इस संयंत्र के लगने से काले हिरण पलायन कर रहे हैं तब प्रबंधन के पास इसका कोई जवाब नहीं मिला।
बाद में स्थानीय स्तर पर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला आरंभ हुआ। आरोप प्रत्यारोप का केंद्र बिंदु संयंत्र के स्थानीय प्रबंधक श्री मिश्रा बने। मौके पर मौजूद लोगों का कहना था कि प्रबंधन ने जान बूझकर मामले को पर्यावरण से मोडकर प्रबंधन पर ला दिया था ताकि इस संयंत्र के डालने से पर्यावरण के प्रभावों के बारे में कोई चर्चा न हो पाए।
इसी बीच प्रशासन के अधिकारियों के लिए निर्धारित द्वार से लगभग सवा मीटर लंबी दो काली बंदूकों के साथ खद्दरधारी लोगों का घुसना और बाहर निकलना चर्चा का विषय बना रहा। जब ये बंदूकधारी अपने आकाओं के साथ जनता के बीच घूमे तब भी लोग आश्चर्य कर रहे थे। बाद में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के आगमन के बाद ये वहां से गायब हो गए।
अमित तिवारी द्वारा वृ़़क्षरोपण की बात के जवाब में प्रबंधन ने अपनी गल्ति स्वीकारते हुए कहा कि उनसे गल्ति हुई है पर वे वृक्षरोपण के लिए कटिबद्ध हैं और जल्द ही इसे करवाएंगें। हर मामले में अपनी गल्ति स्वीकारने पर वहां उपस्थित जनसमुदाय इस जनसुनवाई को शून्य घोषित करने की मांग करने लगा।
वहां चल रही चर्चाओं के अनुसार पूर्व नियोजित षणयंत्र के तहत इस जनसुनवाई को संयंत्र के डलने से पर्यावरण पर डलने वाले प्रभावों से हटाकर प्रबंधन की कमियां और प्रबंधन की तारीफ में कशीदे गढने पर केंद्रित कर दिया गया था। मौके पर उपस्थित प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अधिकारी भी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए।
एक वक्ता का कथन वहां सराहा गया कि बरगी बांध ने क्षेत्र के किसानों को पानी नहीं दिया जा रहा है पर इस संयंत्र में थापर ग्रुप को लाभ पहुंचाने के लिए पानी की आपूर्ति के लिए अनुमति दी गई है। प्रबंधन द्वारा क्षेत्र में हरित पट्टी बनाने का वायदा तो किया गया पर हरित पट्टी कब बनेगी इस बारे में प्रबंधन मौन ही रहा। इससे उड़ने वाली फ्लाई एश के बारे में प्रबंधन का रूख अस्पष्ट ही रहा। प्रबंधन का कहना था कि वे सीमेंट फेक्टरी से बात कर रहे हैं फिर कहा कि सीमेंट फेक्टरी से अनुबंध हो गया है। जमीन अधिग्रहण के मामले में भी प्रबंधन ने कुछ साफ नहीं किया कि कितनी जमीन अब तक अधिग्रहित की जा चुकी है।
जनसुनवाई के दौरान व्याप्त चर्चाओं के अुनसार यह जनसुनवाई पूरी तरह सैट थी और महज औपचारिकता के लिए ही यह आहूत की गई थी। इस जनसुनवाई में लोगों ने पर्यावरण के अलावा अन्य समस्याओं की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया। बीच बीच में एडीएम श्री कुलेश कुछ बातें नोट करते अवश्य नजर आए। जनसुनवाई में तहसीलदार श्री चौधरी पर भी पांच करोड़ रूपए रिश्वत लेने के आरोप लगे जिस पर वे वहां से चलते बने।
इस दौरान लोगों ने सड़ांध मारती पुड़ी और सब्जी की ओर मीडिया का ध्यान आकर्षित करवाया। लोगों का कहना था कि वैसे तो आदिवासी के द्वारा शराब बनाने पर उसे पकड़ लिया जाता है पर संयंत्र के पास एक चर्चित ‘द ढाबा‘ में सरेआम शराब परोसी जा रही है। बाद में सरकारी मेहमानों का द ढाबा में जाकर जलपान करना भी चर्चा का विषय रहा।
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