भाजपा में स्थापित हो चुके हैं गड़करी
महात्वाकांक्षा उजागर न कर सबको साध लिया है गड़करी ने
रिसाए नेता फिर लौटे घर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। महाराष्ट्र की संस्कारधानी और सूबाई राजनीति से एकाएक उठकर भाजपाध्यक्ष बनकर राष्ट्रीय परिदृश्य में उभरने वाले नितिन गड़करी को कम ही आंका जा रहा था। माना जा रहा था कि वे पार्टी में अपने समकक्ष नेताओं के सामने बौने ही साबित होंगे। महात्वाकांक्षाओं को पिंजरें में बंद कर गड़करी ने वो चाल चली कि सारे पूर्वानुमान और आंकलन ही ध्वस्त हो गए। गड़करी अब भाजपा की राजनीति में पूरी तरह स्थापित ही नजर आ रहे हैं।
गड़करी के अध्यक्ष बनने के वक्त लोगों का आश्चर्य जायज था कि आखिर महाराष्ट्र जैसे सूबे का नेतृत्व भी न करने वाले व्यक्ति को कैसे देश का अध्यक्ष बना दिया गया। दरअसल गड़करी की जडें संघ में काफी गहराई तक गई हुईं हैं। अध्यक्ष बनने के बाद गड़करी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा और अपनी व्यक्गित महात्वाकांक्षांओं को अपने उद्देश्य के उपर हावी नहीं होने दिया।
गड़करी के करीबी सूत्रों का कहना है कि भाजपा में गुटीय राजनीति समाप्त करने के लिए उन्होंने पार्टी से विमुख होकर गए रिसाए अर्थात नाराज नेताओं की घर वापसी का अभियान चलाया। गड़करी दरअसल पार्टी में व्याप्त गुटबाजी से बुरी तरह आहत थे। जैसे ही उन्होंने संजय जोशी के पुर्नवास और उमा भारती की घर वापसी का कदम उठाया वैसे ही उनका विरोध होना आरंभ हुआ।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चाहते थे कि उमा भारती की घर वापसी ना हो पर पिछड़े वोट बटोरने के लिए उमा की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही थी। उधर गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी थे संजय जोशी के पुर्नवास में सबसे बड़ी बाधा। गड़करी ने दोनों ही अप्रिय फैसले लिए और आज पार्टी में सब कुछ सामान्य ही नजर आ रहा है।
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