सोमवार, 24 दिसंबर 2012

लोकतंत्र यहां पर जिंदा है? पर हम शर्मिंदा हैं


लोकतंत्र यहां पर जिंदा है? पर हम शर्मिंदा हैं

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य की स्थापना जिन उद्देश्यों के मद्देनजर की गई थी, भारत गणराज्य में प्रजातंत्र को जिस रूप में परिभाषित किया गया था वह आज के समय में प्रासंगिक नहीं रह गया है। आज भारत गणराज्य की स्थिति देखकर लग रहा है, मानो प्रजातंत्र का अर्थ हिटलरशाही हो गया है। आज का युवा जिसे आजादी कैसे मिली, आजादी के उपरांत भारत ने किस तरह अपने आप को संभाला और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा पता नहीं है, उसे अचानक इस बात का भान होने लगता है कि जब वह अपने हक की बात करता है तो निर्लज्ज शासक उसे लाठियों से पीट देते हैं। दिल्ली के इंडिया गेट की जो तस्वीरें सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स से सार्वजनिक हुई हैं उनसे साफ होता है कि देश की पुलिस को ब्रितानी गोरों की पुलिस समझकर देश की बेटियां झांसी की रानीके मानिंद लोहा ले रही थीं। आज समूची दुनिया के सामने भारत सरकार और खाकी वर्दी की जो छवि प्रस्तुत हुई है उससे समूचा भारत गणराज्य कह रहा है -लोकतंत्र यहां पर जिंदा है, पर हम शर्मिंदा हैं।

अस्सी की उम्र में पहुंचने वाले लोगों को इस बात का भान होगा कि गुलाम भारत में किस तरह जीवन यापन किया जाता था। घर के बुजुर्ग बताते हैं कि घोड़ों और साईकल पर सवार होकर गोरे ब्रितानी आते और लगान वसूला करते थे। उस समय अगर किसी के द्वारा शिकायत की जाती कि पानी नहीं मिल पा रहा है तब ब्रितानी चिल्ला कर कहते -‘‘पानी की जवाबडारी हमारी नहीं है, पानी का इटजाम खुद करो।इसी तरह अब सुरक्षा की बात जब आ रही है तो कमोबेश उसी तर्ज पर देश की हुकूमतें परोक्ष तौर पर कह रहीं हैं कि सुरक्षा की व्यवस्था खुद करो। महिलाएं अपनी अस्मत की रक्षा खुद करें बस सरकार का काम भाषणों में महिलाओं की सुरक्षा, बेटी बचाओ, महिलाओं को बराबरी का दर्जा जैसी बातों को शामिल करना रह गया है।
कितने आश्चर्य की बात है कि देश में बलात्कार जैसे संगीन अपराध में न्याय पाने के लिए हजारों युवाओं के द्वारा विजय चौक और इंडिया गेट जाकर गगनभेदी नारे लगाए जाते हैं। पर संसद, नार्थ और साउथ ब्लाक की पत्थरों की दीवारों एवं रायसीना हिल्स स्थित महामहिम राष्ट्रपति के लोहे के दरवाजों से टकराकर वह लौट जाती है। दिल्ली का विजय चौक इतिहास में बड़े बड़े आंदोलनों का साक्षी रहा है, वहीं अब देश के नौनिहालों को लाठियों से इस कदर पीटा जाता है मानो कपड़े धोए जा रहे हों। हाड गलाने वाली ठण्ड में निरीह, निर्लज्ज, नपुंसक सरकार द्वारा ना केवल लाठियां भांजी जाती हैं, वरन् उन पर ठण्डे पानी की बौछार फेंकी जाती है। षणयंत्र पूर्वक उनके आंदोलन को कुचल दिया जाता है।
देश की बेटियां जिस तरह से पुलिस का मुकाबला कर रहीं हैं, उनके उस जज्बे पर समूचा देश उन्हें तहे दिल से सलाम कर रहा है। जैसे ही सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स यानी सोशल मीडिया के माध्यम से इंडिया गेट, विजय चौक के पुलिस बर्बरता के दृश्य सार्वजनिक हुए वैसे ही देश में एक तरह से सरकार और विपक्ष में बैठे जनता के नुमाईंदों के प्रति नाराजगी का संचार होना आरंभ हुआ। विपक्ष में बैठे एक दो नेताओं ने भी बस अपनी बात कहकर रस्म अदायगी कर ली। देश की बेटियों ने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की भूमिका में अपने आप को लाया तो निर्ल्लज नपुंसक पुलिस ने गोरे ब्रितानियों के अत्याचारों को भी शर्मसार कर दिया।
देश के युवा के मन में आक्रोश है। यह घुटन इस बात की है कि बलात्कार के मामले में सरकार का स्टेंड इतना लचीला और गैर जिम्मेदाराना कैसे है? युवा आश्चर्यचकित है कि एक महिला के साथ आवाज बुलंद करने में देश की पहली महामहिम महिला राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित, ममता बनर्जी, जयललिता, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मायावती, उमा भारती, पहली महिला आईपीएस किरण बेदी आदि को शर्म आ रही है। ये सभी अपने अपने मुंह में दही जमाकर बैठ गए हैं।
नौ दिन तक आंदोलन चलता है। हजारों युवाओं का हुजूम इंडिया गेट और विजय चौक पर आवाज देता है। हम इन युवाओं के हुजूम को सलाम करना चाहेंगे क्योंकि यह स्वप्रेरणा से किया गया आंदोलन था जिसमें राजनैतिक नेतृत्व कहीं से कहीं तक शामिल नहीं हो सका। समूचे देश ने सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स के माध्यम से देखा कि किस तरह से युवाओं ने अपने ही अधिकारों के लिए अपने ही देश की पुलिस से किस तरह जंग लड़ी। अनेक लोगों ने तो पुलिस को गोरे ब्रितानियों और युवाओं को देश भक्तों की संज्ञा दे डाली।
इस पूरे परिदृश्य का सबसे घृषित और निंदनीय पहलू यह था कि यह सब होने के बाद भी राससीना हिल्स पर ही महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे, देश की पहली महामहिम महिला राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित, ममता बनर्जी, जयललिता, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मायावती, उमा भारती, पहली महिला आईपीएस किरण बेदी आदि चैन की नींद सोते रहे।
राजनीति शास्त्र में लोकतंत्र या प्रजातंत्र में जनता द्वारा, जनता का, जनता के लिए शासनका ही उल्लेख मिलता है। लोकतंत्र या प्रजातंत्र तब तक ही सफल या कारगर रह सकता है जब तक इसमें जनता की मुहर लगी हो। वैसे तो लोकतंत्र में काफी समय से राजनेताओं द्वारा सेंध लगाई जा रही थी, किन्तु 2004 के उपरांत सत्ता में आई कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के शासनकाल में कांग्रेस के आलंबरदारों ने सत्ता को अपने घर की निजी परचून की दुकान समझ लिया है। मनमोहन सिंह ने गठबंधन धर्म को राष्ट्र धर्म के उपर समझकर गठबंधन के सहयोगियों और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को देश को लूटने का खुला लाईसेंस दे दिया।
सत्ता की चाभी परोक्ष तौर पर नौकरशाहों के हाथों में सौंप दी गई। इसका सीधा परिणाम 16 दिसंबर की रात गैंग रेप का शिकार होने के बाद केंद्रीय गृह सचिव का दिल्ली पुलिस की पीठ ठोंकना है। देश में नैतिकता अब बची ही नहीं है। सुशील कुमार शिंदे देश के गृह मंत्री की कुर्सी पर विद्यमान हैं। वे कहते हैं जनता की याददाश्त कमजोर होती है जनता सब कुछ भूल जाएगी। इसके बाद जब वे एक पत्रकार वार्ता करते हैं तब उनके बाजू में गृह सचिव आर.के.सिंह भी दिखाई देते हैं जो दिल्ली पुलिस की पीठ बलात्कार के बाद थपथपाते हैं। शिंदे भूल जाते हैं कि जिस आसनी पर वे बैठे हैं उस कुर्सी पर कभी लौह पुरूष वल्लभ भाई पटेल विराजमान थे।
महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, देश के मंत्री, सूबों के मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, युवराज राहुल गांधी आदि आखिर कैसे समझ सकते हैं देश की जनता की पीड़ा, देश का मिजाज। अगर उन्हें यह सब कुछ समझना है तो उन्हें निकलना ही होगा जेड़ प्लस सुरक्षा घेरे के बाहर, नेता शायद भूल जाते हैं कि जेड प्लस सुरक्षा घेरा भी उन्हें जनता के पैसों से ही मिल रहा है जिससे वे अपने आप को महफूज पा रहे हैं। यही कारण है कि आए दिन देश में बलात्कार की घटनाओं से आम आदमी सिहरा हुआ है और देश के जेड़ प्लस सुरक्षा धारियों की बेटियां पूरी तरह महफूज हैं। भरे हुए दिल से बस यही कहना चाहूंगा कि -

चले गए गोरे ब्रितानी, लगा हो गया लोकतंत्र जिंदा।
ना मचेगी लूट खसोट, ना मार सकेगा भ्रष्घ्टाचार का पर परिंदा।।
चहुं ओर मच गई लूट खसोट काम कर गया सरकारी कारिंदा।।
गैरों की कोन कहे, अपने ने ही जमकर लूटा हो गए हम शर्मिंदा।।।

- लिमटी खरे

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