शलाका पुरूष हरवंश सिंह
(लिमटी खरे)
ठाकुर हरवंश सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं। हरवंश सिंह के व्यक्तित्व पर
प्रकाश डालना सूरज को रोशनी दिखाने जैसा ही होगा। हरवंश सिंह ठाकुर ने गरीब परिवार
में जन्म लेकर हर मायने में जिन उचाईंयों को छुआ है वह हर किसी के बस की बात नहीं
है। इस मार्ग में उन्हें ना जाने कितने शूल निकालने पड़े, ना जाने कितने नश्तर चुभे होंगे, ना जाने कितनी प्रतिकूल धाराओं का सामना करना पड़ा होगा यह तो
वे ही जानें पर हरवंश सिंह कभी डिगे नहीं, रूके नहीं।
सिवनी में कांग्रेस का एक बड़ा तबका हर गल्ति को ठाकुर साहेब के मत्थे मढ़कर
अपने दायित्वों और कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। दरअसल, सिवनी में एक अजीब सी परंपरा का आगाज हो चुका है। सिवनी में
हरवंश सिंह के निधन से एक रिक्तता आई है, जिसे जल्द ही
सिवनी के कांग्रेस के नेता महसूस करने लगेंगे।
सिवनी में विमला वर्मा के उपरांत हरवंश सिंह ही थे जो कांग्रेस को जिंदा
रखते थे। दलगत सामंजस्य भी वे बेहतर तरीके से ही बनाने में सक्षम थे। आज उनके निधन
के उपरांत उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ी भीड़ ने साबित कर दिया है कि हरवंश सिंह वाकई
शलाका पुरूष थे।
संगठन में उनकी पकड़ का कोई सानी नहीं था। एक वाक्या याद पड़ता है। एक बार
एक काम के सिलसिले में प्रदेश के तत्कालीन वित्त मंत्री कर्नल अजय नारायण मुश्रान
के पास जाना हुआ। वहां प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठनात्मक ढांचे के बारे में
उनसे एक अन्य मंत्री चर्चा कर रहे थे। हमारे अभिवादन को कर्नल साहेब ने मुस्कुराकर
जवाब दिया और कुर्सी पर बैठने का संकेत किया। इसके उपरांत उन्होंने कहा कि राजा
साहेब (तत्कालीन मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह) ंके पास इतना समय नहीं है कि वे
संगठन को देख सकें। ऐसी परिस्थितियों में हरवंश सिंह ही दूसरे सक्षम व्यक्तित्व
हैं जो संगठन में जान डाल सकते हैं। बकौल कर्नल साहेब, दिग्विजय सिंह और हरवंश सिंह ही दो ऐसे राजनेता हैं जो हर
कार्यकर्ता को नाम से पहचानते हैं।
हरवंश सिंह की संगठन क्षमता और कार्यकर्ताओं पर पकड़ के साथ ही साथ सभी को
साथ लेकर चलने की सभी मुक्त कंठ से तारीफ किया करते थे। एक समय था जब वे कुंवर
अर्जन सिंह के करीब थे। इसके बाद वे कमल नाथ के करीब आए फिर राजा दिग्विजय सिंह के
नौरत्नों में शामिल हो गए। एक साथ तीन तीन क्षत्रपों को साधे रखना कोई हंसी खेल
नहीं था। जब तिवारी कांग्रेस बनी तब कांग्रेस और तिवारी कांग्रेस के बीच तालमेल भी
हरवंश सिंह जैसी शख्सियत के बलबूते की ही बात थी।
हरवंश सिंह ने चुनौतियों को सदा ही स्वीकारा है। उन्होंने कभी भी कठिन समय
में धैर्य नहीं खोया। एक बार उन्हें जब मंत्री पद से महरूम रखा गया था तब भी
उन्होंने इसे बहुत ही धैर्य के साथ स्वीकार करते हुए इसे समय का चक्र ही माना।
इतने बड़े बड़े पदों पर रहने के बाद भी अहंकार मानो उन्हें छू भी नहीं सका था।
ऐसा नहंी कि हरवंश सिंह के विरोधी नहीं थे। हरवंश सिंह के विरोधियों की
तादाद बहुत अधिक थी। हरवंश सिंह का नीतिगत और छद्म विरोध करने वाले आज उनकी
शवयात्रा में दुखी मन से शामिल हुए जो इस बात का परिचायक है कि हरवंश सिंह का
विरोध राजनैतिक था, व्यक्तिगत नहीं।
वे जब भी किसी से मिलते सहज भाव से नाम लेकर उसे पुकारते जिससे अपनत्व का
बोध होता था। पिछले दिनों रामकथा के दौरान उन्होंने मोबाईल पर रामकथा में आने का
न्योता दिया। पत्रकार वार्ता में उन्होंने इस आयोजन को अंतिम आयोजन की संज्ञा दी
और लोगों से भूल चूक के लिए क्षमा भी मांगी। लगता है मानों उन्हें आभास हो गया था
कि वे इस संसार को छोड़कर जाने वाले हैं।
हरवंश सिंह के निधन से अब कांग्रेस के अंदर रिक्कता आ गई है। यह वेक्यूम
कैसे भरेगा? कांग्रेस की स्थिति क्या होगी? इस बारे में विस्तार से मनन बाद में किया जाएगा। वर्तमान में
ईश्वर से प्रार्थना है कि हरवंश सिंह जैसे शलाका पुरूष की आत्मा को शांति प्रदान
करते हुए उनके परिजनों को इस दुख को सहन करने की क्षमता प्रदान करे। ऊॅ शांति . .
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