आदिवासियों को छलने
में लगे गौतम थापर . . . 9
झाबुआ पावर करेगा
पहले से ही प्रदूषित नर्मदा को और गंदा
नर्मदा का पीएच
दर्ज किया गया 9.02
(ब्यूरो कार्यालय)
घंसौर (साई)। तरह
तरह के प्रदूषणों के चलते पुण्य सलिला नर्मदा अपने उदगम अमरकंटक से दाहोद के बीच
बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। इसका पीएच 9.02 दर्ज किया गया है जो मानक से कहीं अधिक है।
संस्कारधानी जबलपुर के समीप बरगी बांध के मुहाने पर लगने वाले मशहूर उद्योगपति
गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर
लिमिटेड के कोल आधारित पावर प्लांट से इसका प्रदूषण कई गुना बढ़ने की उम्मीद है।
प्रचलित मान्यता यह
है कि यमुना का पानी सात दिनों में, गंगा का पानी छूने से, पर नर्मदा का पानी
तो देखने भर से पवित्र कर देता है। साथ ही जितने मंदिर व तीर्थ स्थान नर्मदा
किनारे हैं उतने भारत में किसी दूसरी नदी के किनारे नहीं है। लोगों का मानना है कि
नर्मदा की करीब ढाई हजार किलोमीटर की समूची परिक्रमा करने से चारों धाम की
तीर्थयात्रा का फल मिल जाता है। परिक्रमा में करीब साढ़े सात साल लगते हैं।
जाहिर है कि लोगों
की परंपराओं और धार्मिक विश्वासों में रची-बसी इस नदी का महत्व कितना है। लेकिन
दुर्भाग्य से जंगल तस्करों, बाक्साइट खदानों और हमारी विकास की भूख से
यह वादी इतनी खोखली और बंजर हो चुकी है कि आने वाले दिनों में उसमें नर्मदा को
धारण करने का सार्म्थय ही नहीं बचेगा। इसकी शुरुआत नर्मदा के मैलेपन से हो चुकी
है।
मजे की बात है कि
सरकार का जल संसाधन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल नदी जल में प्रदूषण की जांच
करता है और प्रदूषण स्तर के आंकड़े कागज़़ों में दर्ज कर लेता है, लेकिन प्रदूषण कम
करने के लिए सरकार कोई भी गंभीर उपाय नहीं कर पाता है। सरकारी सूत्रों से प्राप्त
जानकारी के अनुसार अमरकंटक और ओंकारेश्वर सहित कई स्थानों पर नर्मदा जल का स्तर
क्षारीयता पानी में क्लोराईड और घुलनशील कार्बनडाईऑक्साइड का आंकलन करने से कई
स्थानों पर जल घातक रूप से प्रदूषित पाया गया।
भारतीय मानक
संस्थान ने पेयजल में पीएच 6.5 से 8.5 तक का स्तर तय किया है, लेकिन अमरकंटक से
दाहोद तक नर्मदा में पीएच स्तर 9.02 तक दर्ज किया गया है। इससे स्पष्ट है कि
नर्मदाजल पीने योग्य नहीं है और इस प्रदूषित जल को पीने से नर्मदा क्षेत्र में
गऱीब और ग्रामीणों में पेट से संबंधित कई प्रकार की बीमारियां फैल रही है, इसे सरकारी
स्वास्थ्य विभाग भी स्वीकार करता है। जनसंख्या बढऩे, कृषि तथा उद्योग की
गतिविधियों के विकास और विस्तार से जल स्त्रोतों पर भारी दबाव पड़ रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें