आदिवासियों को छलने
में लगे गौतम थापर . . . 5
हवा हवाई वायदों से
ठगा आदिवासियों को
नौकरी का प्रलोभन
दे हड़प ली आदिवासियों की जमीन
(ब्यूरो कार्यालय)
घंसौर (साई)। देश
की मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान
झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के सहयोग से संस्कारधानी जबलपुर
से महज सौ किलोमीटर दूर स्थापित होने वाले 1260 मेगावाट के पावर प्लांट में आदिवासियों की
जमीनें हवा हवाई वायदों से लेने की शिकायतें आम हो रही हैं।
प्राप्त जानकारी के
मुताबिक कंपनी द्वारा यह प्रलोभन दिया गया था कि जिन परिवारों की भूमि को
अधिग्रहित किया जा रहा है उनके परिवार के एक सदस्य को कंपनी द्वारा पात्रतानुसार
नौकरी में प्राथमिकता दी जाएगी। इसमें यह साफ नहीं किया गया है कि उस परिवार के
सदस्य को स्किल्ड या अनस्किल्ड लेकर की नौकरी दी जाएगी। अगर अनिस्किल्ड लेबर की
श्रेणी में परिवार के सदस्य को नौकरी दी जाती है तो उसकी दिहाड़ी बेहद ही कम बैठने
की उम्मीद है। आज प्रबंधन पांच सालों से अपनी बात से पलटता ही दिख रहा है।
आदिवासियों ने
बताया कि इसी तरह कंपनी ने यह भी प्रलोभन दिया था कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य
पिछड़ा वर्ग के सदस्यों के पुनर्वास की योजना को भी प्रोजेक्ट में शामिल किया
जाएगा। इसका तातपर्य यह है कि जरूरी नहीं है कि उनके स्थायी पुनर्वास की कोई ठोस
व्यवस्था की जाए।
कंपनी ने यह भी कहा
है कि भू अर्जन अधिनियम के अंतर्गत भू अर्जन की जा रही भूमि के मूल्यांकन के आधार
पर शत प्रतिशत राशि के साथ ही साथ दस फीसदी राशि जमा कराए जाने के संबंधी कार्य
संबंधित कलेक्टर्स के द्वारा भू अर्जन अधिनियम तथा संबंधित विधिक उपबंधों और
शासनादेशों के अंतर्गमत दिए गए प्रावधानों तथा शर्तों के आधार पर किया जाएगा।
कंपनी ने यह भी कहा
है कि भूमि का भूअर्जन जिस उपयोग के लिए किया जा रहा है कंपनी उसका उपयोग वही
करेगी। इसके लिए कंपनी द्वारा उपयोग में परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा। इस भूमि पर
निर्माण के दौरान कंपनी इस बात का पूरा ध्यान रखेगी कि सामान्य जनता को निस्तार
आदि में असुविधा न हो।
कंपनी ने शासन को
यह भी आश्वासन दिया है कि कंपनी को दी गई भूमि या उसके किसी भाग अथवा उस पर
निर्मित किसी भी निर्माण अथवा भवन आदि को कंपनी बेचने, बंधक रखने, दान देने, पट्टे पर देने या
अन्य प्रकार से अन्तरित करने का काम नहीं करेगी।
आदिवासियों ने
बताया कि संयंत्र के निर्माण के शुरूआती दिनों में प्रलोभनों में फंसकर आदिवासियों
द्वारा अपनी जमीने दे दी गई थीं, इसके बाद से संयंत्र प्रबंधन से वायदे
मनवाने के लिए उनके द्वारा लगातार संयंत्र के चक्कर लगाए जा रहे हैं, पर संयंत्र प्रबंधन
टस से मस होने को राजी नहीं है। अब तो संयंत्र प्रबंधन ने संयंत्र क्षेत्र के
चारों ओर चारदीवारी भी बनवा दी है, द्वार पर द्वारपाल भी हैं जो आदिवासियों को
ना केवल संयंत्र में प्रवेश से रोकते हैं, वरन् उन्हें दुत्कारने से भी नहीं चूक रहे
हैं।
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