बिजली: अटल या अटक योजना!
(शरद खरे)
लोगों को बिजली, पानी, सुरक्षा, भोजन की व्यवस्था कराना सरकार की महती
जवाबदेही है। इसके लिए सरकार को हर स्तर, पर हर संभव प्रयास करना आवश्यक होता है।
सरकारों का दीन ईमान अब नहीं बचा है। यही कारण है कि सरकारें अब लोगों की बुनियादी
जरूरतों की तरफ ध्यान देना मुनासिब नहीं समझती हैं। सरकारों को अपनी रियाया की कोई
चिंता नहीं रह गई है। बड़े बूढ़े बताते हैं कि जब देश पर ब्रितानी हुकूमत थी, उस वक्त लोगों द्वारा पानी और प्रकाश की
मांग की जाती थी तो क्रूर शासक लोगों पर कोड़े बरसाते हुए यह कहते कि पानी और
प्रकाश देना उनका काम नहीं है। पानी के लिए घरों में कुएं खोदो और प्रकाश की
व्यवस्था स्वयं ही करो।
आज आजादी के साढ़े छः दशकों के बाद भी
देश प्रदेश की हालत उस समय से बदतर ही नजर आ रही है। आज के समय में लोग पानी, बिजली, साफ सफाई आदि बुनियादी व्यवस्थाओं को
तरस ही रहे हैं। इसमें सिवनी जिला कोई अपवाद की श्रेणी में नहीं आता है। सिवनी
जिले में भी पानी और प्रकाश का अभाव साफ दिखाई पड़ जाता है। सूबे के निज़ाम 22 जून को सिवनी में अटल ज्योति अभियान का
श्रीगणेश करके चले गए हैं। सरकार और भाजपा दावा कर रही है कि चौबीसों घंटे बिजली
प्रदेश में मिलना आरंभ हो गई है। जमीनी हकीकत कुछ और ही कह रही है। सुबह, सवेरे से दोपहर बारह बजे तक बिजली की
आंख मिचौली जारी रहती है। कभी कभार शाम को भी बिजली आंख मारने लगती है सिवनी जिला
मुख्यालय में।
केवलारी और बरघाट विधानसभा की हालत लाईट
के मामले में बहुत ही दयनीय है। अटल ज्योति अभियान के आरंभ होने के बाद भी लाईट का
बुरा हाल है दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में। दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों के तीन
दर्जन से ज्यादा गांव के वाशिंदे आज़ादी के बाद से लाईट के इंतजार में हैं। इन गांवों
में लाईट का न होना आश्चर्यजनक इसलिए भी है क्योंकि इन दोनों ही विधानसभा
क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कांग्रेस और भाजपा के कद्दावर नेताओं ने विधानसभा और
लोकसभा में किया है। आजादी के बाद साढ़े छः दशकों में भी कांग्रेस भाजपा के
नुमाईंदों द्वारा लाईट के लिए इन गांव वालों की सुध न लिया जाना अपने आप में अनोखा
ही मामला है।
विद्युत मण्डल के अधिकारी इन गांवों को
वनबाधित ग्राम मानते हैं। वनबाधित क्या चीज होती है। जहां लोग रह रहे हैं, अगर वह वनबाधित क्षेत्र है, तो उन्हें वहां से विस्थापित किया जाना
चाहिए था, वस्तुतः जो हुआ नहीं। अगर विस्थापित नहीं किया गया तो उन्हें बिजली
मुहैया करवानी चाहिए थी। सरकारी चाल किस मंथर गति से चल रही है, इसका साफ उदाहरण हैं ये गांव। इन गांवों
में आज़ादी के उपरांत साढ़े छः दशकों में सरकारी नस्तियां परवान नहीं चढ़ पाई हैं, जो दुःखद है। एमपीईबी का कहना है, कि वन विभाग इस क्षेत्र में केबल के
माध्यम से लाईन डालने की बात कह रहा है, पर विस्तृत प्राक्कलन में इसका जिकर
नहीं है।
सरकारी स्तर पर बनाए गए विस्तृत
प्राक्कलन या डीपीआर में क्या है, क्या नहीं है, इस बात से बेचारे ग्रामीणों को क्या
लेना देना? ग्रामीण तो बस लाईट ही चाह रहे हैं। साढ़े छः दशकों में भी इन गांवों में
रोशनी की किरण न पहुंच पाना, आश्चर्यजनक ही है। जब ग्रामीण स्तर पर
यह हाल है, तो भला कैसे मान लें कि कांग्रेस भारत निर्माण कर रही है और भाजपा का
शाईनिंग इंडिया परवान चढ़ रहा होगा। सरकारी स्तर पर दावे क्या हैं और इनकी जमीनी
हकीकत क्या है, इस बात के बारे में जनपद पंचायत घंसौर की अध्यक्ष चित्रलेखा नेताम की
बात से स्थिति साफ हो जाती है। उनका कहना है कि एक लाईनमेन के भरोसे 45 गांव की व्यवस्था है। अगर यह सच है, तो वाकई जमीनी हालात भयावह ही माने जाएंगे।
एक लाईनमेन भला 45 गांव की व्यवस्था कैसे संभाल सकता है। घंसौर में कुल 77 ग्राम पंचायत में 250 गांव हैं, जिनमें लाईनमेन की तैनाती 15 है, इस लिहाज से चित्रलेखा नेताम का कहना
सही ही साबित हो रहा है। हालात दयनीय और भयावह हैं, फिर भी मोटी चमड़ी वाले राजनेता और
नौकरशाहों के कानों में जूं भी नहीं रेंग रही है।
घंसौर की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया
जा सकता है कि छोटा सा भी फाल्ट आने पर उसे सुधारने में हफ्तों लगना आम बात होगी।
घंसौर जहां कि तीन तीन पावर प्लांट प्रस्तावित हैं, जिनकी ठेकेदारी वहीं के नेता नुमा ‘दबंग‘ कर रहे हैं, पर उन्हें भी गांव वालों की सुध लेने की
फुर्सत नहीं है।
सिवनी जिले में कोल आधारित तीन पावर
प्लांट प्रस्तावित हैं। इनमें से एक का काम मंथर गति से जारी है। देश के मशहूर
उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स
झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा इस पावर प्लांट की संस्थापना का काम किया जा रहा है।
कहा जा रहा है कि इस पावर प्लांट को इस साल फरवरी में ही काम करना आरंभ कर देना
चाहिए था, किन्तु लेट लतीफी के चलते यह संभव नहीं हो सका। अगर इस पावर प्लांट का
काम पूरा हो भी जाता तो इससे उत्पादित बिजली का एक भी यूनिट सिवनी के खाते में
नहीं आता। गौतम थापर के कारिंदे इसे बेचकर मुनाफा कमाते।
अब ठंड का मौसम आ गया है। ठंड में बिजली
की मांग बढ़ना स्वाभाविक ही है। यह मांग गर्मी की अपेक्षा कम ही होगी, पर दिन छोटे होने से घरों में बिजली की
खपत बढ़ेगी ही। साथ ही साथ बच्चे परीक्षाओं की तैयारियों के लिए रतजगा भी करेंगे
इसलिए बिजली की मांग बढ़ सकती है। जिले में मीटर बाहर करने का काम युद्ध स्तर पर
किया जा रहा है। मांटो कार्लो नामक कंपनी के द्वारा यह काम करवाया जा रहा है।
इसमें नियमानुसार काम हो ही नहीं रहे हैं। घटिया पटियों पर बिना प्रापर अर्थिंंग
के मीटर बाहर हो रहे हैं। मीटर से कटाउट तक कॉपर वायर के बजाए एल्यूमीनियम के
घटिया वायर डालने की शिकायतें हैं, वह भी जोड़ जुगाड़ लगाकर, जबकि इस हिस्से में जोड़ नहीं होना
चाहिए।
चुनाव सर पर हैं, इसलिए जिला प्रशासन की व्यस्तता समझी जा
सकती है, किन्तु जिला प्रशासन से जनापेक्षा है कि बिजली विभाग को निर्देशित किया
जाए कि चौबीस घंटे बिजली न सही पर अघोषित बिजली कटौती से तो निजात दिलवाई जाए।
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