नवजात शिशु का शव और संवेदनाएं
(शरद खरे)
जिले में नवजात शिशुओं के शव मिलने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी होना
चिंताजनक ही माना जा सकता है। किसी का जीवन समाप्त करने का हक भारत गणराज्य के
कानून में किसी को भी नहीं दिया गया है। अपराधियों के लिए मौत की या फांसी की सजा
इसमें अपवाद मानी जा सकती है। नवजात शिशुओं को जन्म कहीं न कहीं तो दिया ही गया
होगा! जिले की सीमा में अगर नवजात के शव मिल रहे हैं तो संभावना यह भी बलवती होती
है कि उसे इसी जिले में इस धरती पर लाया गया होगा। इसके लिए नर्सिंग होम्स या चिकित्सकों
को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है।
कहने को तो नर्सिंग होम्स में गर्भपात को अवैध बताने वाले बोर्ड चस्पा
होते हैं। बावजूद इसके इन नर्सिंग होम्स में धडल्ले से गर्भपात की खबरें आम हुआ
करती हैं। जिला मुख्यालय में ही अनेक जगहों पर अवैध गर्भपात की खबरें मिल जाती
हैं। दो तीन दशकों पहले गर्भपात के लिए एक संस्था का ही नाम जिले में सामने आता
था। बाकी मामलों में पड़ोसी प्रदेश महाराष्ट्र के चुनिंदा शहरों में ही इस तरह की
घटनाओं को अंजाम दिया जाता था। यद्यपि इस बात के प्रमाण कहीं नहीं है फिर भी आज
प्रौढ़ हो रही पीढ़ी इस बात को बेहतर समझ सकती है कि उस समय किन किन शहरों के नाम
इसके लिए सामने आया करते थे।
आज विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर क्या वजह है कि नवजात शिशुओं के शव
मिलने का सिलसिला थम ही नहीं पा रहा है। कुछ माह पहले जिला मुख्यालय की एकता
कालोनी में चिकित्सा क्षेत्र में ही कार्यरत एक सरकारी नुमाईंदे के घर के प्रांगण
में ही एक शिशु का शव मिला था। हाल ही में लखनादौन में एक शिशु का शव और उसके
उपरांत एक बार फिर लखनादौन शहर में ही पालीथिन में एक बच्चे का शव मिला है।
यह निश्चित तौर पर अच्छी परंपरा का आगाज कतई नहीं माना जा सकता है। जिले
में इस तरह की घटनाओं के बारे में विचार करने की जरूरत है। विशेषकर पालकों को इस
मामले में विचार करना ही होगा। दरअसल, अधकचरी पाश्चात्य
संस्कृति के चलते युवा नग्नता की अंधी सुरंग में घुसता ही चला जा रहा है। वह इसके
दूसरे मुहाने के दलदल से अनजान ही है, किन्तु वर्तमान
में उसके लिए यह एक खिलवाड़ की तरह ही है।
आज के इस परिवेश के लिए काफी हद तक टीवी और मोबाईल को ही जिम्मेदार माना
जा सकता है। आधुनिक दिखने की जुगत में युवा तेजी से नग्नता को अंगीकार करते जा रहे
हैं हो वाकई मेें चिंताजनक बात ही मानी जा सकती है। टीवी पर दिखाए जाने वाले
सीरियल्स और अश्लील विज्ञापनों का बुरा प्रभाव आज की युवा पीढ़ी पर पड़े बिना नहीं
है। अश्लील विज्ञापनों में कभी पिघली चाकलेट खाते नर नारी को एक दूसरे की ओर
आकर्षित होते दिखाया जाता है तो कभी किसी बडी स्प्रे से बाला को आकर्षित होते
दिखाया जाता है। क्या यह सब भारतीय समाज और संस्कृति के लिए उचित है? जाहिर है यह सब कुछ पूर्व के बजाए पाश्चयत्य संस्कृति के
अनुरूप माना जा सकता है। फिर क्या वजह है कि भारत सरकार के सूचना और प्रसारण
मंत्रालय द्वारा इस तरह के प्रसारण को अवैध करार देकर कार्यवाही क्यों नहीं की जा
रही है?
सिवनी जिले में भी अश्लीलता का चलन जोरों पर है। युवाओं की जिद पर उनके
पालकों द्वारा उन्हें मोबाईल तो दिला दिए जाते हैं पर क्या कभी किसी पालक ने अपने
यौवन की दहलीज पर कदम रखने वाले बच्चे के मोबाईल के अंदर झांककर देखा है? इसका उत्तर नकारात्मक ही ज्यादा आएगा। युवाओं के मोबाईल में
अश्लील सामग्रियों की भरमार हुआ करती है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
सिवनी जिले में अवैध रूप से मोबाईल में डाले जाने वाले गाने आदि का
कारोबार जोर शोर से चल रहा है। ‘स्टार कापीराईट
प्रोटेक्शन‘ द्वारा कुछ समय पूर्व एक दो बार
पुलिस की मदद से छापे भी मारे गए थे मोबाईल डाउनलोडिंग करने वाले कारोबारियों के
प्रतिष्ठानों में। स्टार कापीराईट प्रोटेक्शन की कार्यप्रणाली देखकर यही लग रहा है
मानो वे वैध अवैध, या अश्लील
क्लििपिंग के बदले इन प्रतिष्ठानों से आठ से दस हजार रूपए की सालाना राशि की मांग
ही कर रहे हों। जिन प्रतिष्ठान संचालकों द्वारा यह राशि अदा कर दी गई उन
प्रतिष्ठानों को मानो अश्लीलता परोसने की खुली छूट मिल गई है। पुलिस ने भी कभी
अपने स्तर पर इन प्रतिष्ठानों या व्यवसाईयों के कंप्यूटर्स का निरीक्षण करने की
जहमत नहीं उठाई है।
इसके साथ ही साथ अगर जिला मुख्यालय को ही लिया जाए तो जिला मुख्यालय में
निर्जन स्थानों पर युवक युवतियों को अश्लील हरकतें करते देख उमर दराज लोग भी शरमा
जाते हैं। इन युवाओं के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि अगर इन्हें कोई रोकता है तो ये
उस पर टूट पड़ते हैं। पुलिस के बेकर (पुराने चीता मोबाईल) भी रस्म अदायगी के लिए इन
युगलों को पकड़ने की जहमत नहीं उठाती है। बीते दिनों मसीही समाज के कब्रिस्तान में
दो जोड़ी प्रेमी युगलों को पुलिस ने आपत्तिजनक हालत में पकड़ा था। इनके साथ क्या
कार्यवाही की गई, यह बात किसी को नहीं पता।
युवा कच्ची मिट्टी के मानिंद होता है। उस जिस रूप में ढाल दिया जाए वह
आसानी से ढल जाता है। पालकों की अनदेखी और समाज में फैली गंदगी की परिणिती के रूप
में इस तरह के नवजात शिशु ही सामने आते हैं। सामाज से छिपकर अपने गर्भ में पल रहे
बच्चे को पाप समझकर उससे छुटकारा पाने के चक्कर में युवतियां इस तरह की घटनाओं को
अंजाम देती हैं, और इस पाप में वे चिकित्सक या
पैरामेडीकल स्टाफ बराबरी का भागीदार है जो यह करवाता है।
3 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही कहां
बिल्कुल सही कहां
बेहद अफसोसजनक।
सुन्दर रचना,बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें
सादर मदन
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