इतिहास की क्लास ले
गए आडवाणी!
(महेश रावलानी)
सिवनी (साई)। ‘1984 में लोकसभा नहीं, शोकसभा के चुनाव
हुए थे। उस समय राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस आतुर थी। उस
चुनाव में कांग्रेस को जितनी सीटें मिली थीं उतनी सीटें तो पंडित जवाहर लाल नेहरू
और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भी कभी नहीं मिलीं।‘
उक्ताशय की बात कल
तक राजग के पीएम इन वेटिंग रहे एल.के.आडवाणी ने आज मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला के
दो तिहाई से ज्यादा रिक्त मैदान में जनसभा को संबोधित करते हुए कही। भाजपा नेता
आडवाणी आज देर शाम हेलीकॉप्टर से सिवनी पहुंचे और सभा स्थल पर लगभग आधे घंटे रूकने
के बाद वापस लौट गए। आडवाणी का भाषण पूरी तरह 2004 तक के लोकसभा
चुनावों पर केंद्रित लगा जिसमें उन्होंने संसद के इतिहास को बताने में ही ज्यादा
दिलचस्पी दिखाई।
लाल कृष्ण आडवाणी
ने कहा कि वे 1951 से सक्रिय
राजनीति में हैं, जब श्यामा
प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि वे समूचे भारत वर्ष के
अनेक जिलों में जा चुके हैं, कम ही जिले ऐसे बचे होंगे जहां वे नहीं गए
होंगे। उन्होंने कहा कि 1984 में भाजपा को महज दो सीट मिली थीं, उस चुनाव के बाद
कार्यकर्ता उनसे पूछा करते थे कि आखिर क्या हुआ कि लोकसभा में इतनी कम सीटें
मिलीं। इस पर वे कार्यकर्ताओं को जवाब दिया करते थे कि चौरासी का लोकसभा चुनाव
वाकई में शोकसभा का चुनाव था। उस समय सहानुभूति लहर का फायदा कांग्रेस को मिला। इस
समय इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षा कर्मियों ने हत्या कर दी थी।
आडवाणी ने कहा कि
देश में लाल बहादुर शास्त्री और गुलजारी लाल नंदा जैसे ईमानदार और योग्य
प्रधानमंत्री देश में हुए हैं। उन्होंने कहा कि 1989 के चुनावों में
भाजपा का परफार्मेंस देखने लायक था जिसमें भाजपा को 86 सीट मिली थीं।
गठबंधन सरकारों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस और भाजपा ही
दो ऐसी पार्टी हैं जिनके प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा समय तक रहे हैं, शेष दलों के पीएम
कुछ ही समय के लिए गद्दी पर बैठे। उन्होंने कहा कि एक समय था जब दिल्ली का 7 रेसकोर्स रोड का
बंग्ला (भारत के प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था, पर बाद में यह
खिसककर 10, जनपथ
(कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) हो गया है।
नरेश से नहीं मिल
पाए आडवाणी
अपने भाषण में
पूर्व उप प्रधानमंत्री आडवाणी ने कहा कि चुनाव आयोग के निर्देशों के चलते वे नरेश
दिवाकर से नहीं मिल पाए हैं, क्योकि अगर प्रत्याशी मंच पर आएगा तो उनकी
यात्रा का सारा खर्च प्रत्याशी के खाते में जुड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि वे चुनाव
आयोग से इस बारे में बात करेंगे। भाजपा प्रत्याशी नरेश दिवाकर को जिताने की परोक्ष
अपील करते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप (सिवनी की जनता) उन्हें जिता देगी तो वे
बतौर विधायक उनसे बाद में मिल लेंगे।
जुड़ सकता है यात्रा
का खर्च
वहीं, यह चर्चा भी मीडिया
के बीच रही कि एल.के.आडवाणी ने नरेश दिवाकर को जिताने की अपील की है, भले ही वह परोक्ष
तौर पर की गई हो, तो आडवाणी
की सिवनी यात्रा का खर्च नरेश दिवाकर के खाते में जोड़ा जा सकता है। वहीं, एक महिला वक्ता
द्वारा आडवाणी के आने के पूर्व नरेश दिवाकर को विजयी बनाने की अपील की गई, जिसे भी व्यय की
दृष्टि से प्रत्याशी के खाते में जोड़ने की चर्चा चलती रही।
पढ़ा गए इतिहास
वहीं, श्रोताओं के बीच यह
चर्चा चलती रही कि एल.के.आडवाणी द्वारा विधानसभा सिवनी के चुनाव प्रचार के दौरान
संसद के इतिहास को क्यों बताया जा रहा है। मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला लगभग दो
तिहाई खाली मैदान में श्रोता कुछ समय बाद ही इतिहास सुनने में दिलस्पी नहीं दिखाते
हुए धीरे धीरे सभास्थल से कूच करते देखे गए।
रहा महिलाओं का
स्थल रीता!
सिवनी में हुई इस
सभा में पुरूषों के लिए निर्धारित स्थल भी आधे से ज्यादा खाली ही था, वहीं दूसरी ओर
महिलाओं के लिए आरक्षित स्थल में मीडिया कर्मी अलबत्ता इस आरक्षित स्थल पर अवश्य
ही देखे गए। मीडिया कर्मियों के अनुसार उनके लिए आरक्षित स्थल में कुर्सियों पर एक
दर्जन से ज्यादा महिलाओं ने कब्जा जमा लिया था, अतः मजबूरी में
उन्हें महिलाओं के लिए आरक्षित किन्तु खाली पड़े स्थान पर जाकर रिपोर्टिंग करना
पड़ा।
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