गुरुवार, 30 जुलाई 2009

संदर्भ फोरलेन विवाद

सांप ही मारें, लकीर न पीटें

0 लिमटी खरे


फ®रलेन क® लेकर तरह तरह की अफवाहें जन्म ले चुकी हैं। क®ई कहता है, यह छिदवाड़ा से ह®कर जाएगी, त® क®ई एनएचएआई के कार्यालय के छिंदवाड़ा स्थानांतरण की बात कहकर अपनी धाक जमा रहा है। क®ई माननीय सवोंच्च न्यायलय के स्थगन की बात कर रहा है। इसी बीच सिवनी की विधायक एवं परिसीमन मेंं समाप्त हुई सिवनी ल®कसश की अंतिम सांसद ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चर्चा कर सवोंच्च न्यायलय में मध्य प्रदेश के वकील क® “ी खड़ा करने संबंधी विज्ञिप्त जारी करवा दी। कुल मिलाकर मामला क्या है, इसके निर्माण का कार्य क्यों रुका अथवा बलात र®का गया, इसमें नेताओं, प्रशासन और ठेकेदार की क्या “ूमिका है, यह बात साफ नहÈ ह® सकी है। ल®ग त® इस मामले में केंद्रीय “ूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ क® ही कटघरे में खड़ा करने से नहÈ चूक रहे हैं। राजनैतिक नफा नुकसान अपनी जगह हैं, किन्तु जब 18 दिसंबर 2008 क® पी¤नरहरि ने एक आदेश जारी कर वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया था, वह “ी म®हगांव से खवासा तक ही, तब कमल नाथ के पास “ूतल परिवहन के बजाए वाणिज्य और उद्य®ग मंत्रालय हुआ करता था। इसके साथ ही साथ जब नरसिंहपुर से लेकर बरास्ता छिंदवाड़ा फ®रलेन राष्ट™ीय राजमार्ग का प्रस्ताव आ चुका है, तब इस तरह की बातें बेमानी ही मानी जा सकती हैं।
हमारे अनुसार अब तक सार्वजनिक हुए प्रपत्रों और तथ्यों से प्रथम –ष्टया ज® मामला सामने आया है, उसके मुताबिक महाराष्ट™ की संस्कारधानी नागपुर सहित अनेक स्थानों से प्रकाशित ल®कमत, मुंबई से प्रकाशित डीएनए ने जनवरी 2008 से संयुक्त तौर पर एक मुहिम चलाई है, जिसमें पेंच नेशनल पार्क से ह®कर गुजरने वाले इस उत्तर दक्षिण गलियारे के उक्त विवादित शग के बन जाने से बाघों क® जबर्दस्त खतरा पैदा ह®ने की आशंका जताई गई है। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी में द®नों ही समाचार पत्रों ने इस तरह की बात क® विस्तार से रेखांकित किया है। इन द®नों का मूल उÌेश्य अगर वाकई बाघों क® बचाना है, त® इनका प्रयास नििÜचत तौर पर सराहनीय ही कहा जाएगा। इस तथ्य में कुछ संशय ही लग रहा है, क्योंकि इसके पूर्व स्वीकृत किया गया छिंदवाड़ा नागपुर रेल लाईन का अमान परिवर्तन के मुÌे क® इन्होंने छुआ तक नहÈ है। वस्तुत: यह रेल मार्ग पेंच के अंदर से ही ह®कर गुजर रहा है। अगर रेल गाड़ी यहां से ह®कर गुजर सकती है, त® सड़क पर चलने वाले वाहनों से इस तरह का सौत्®ला व्यवहार आखिर क्यों? इसके बाद वाईल्ड लाईफ ट™स्ट अ‚फ इंडिया की एक रिट पिटीशन ज® सवोंच्च न्यायालय में दाखिल की गई है, क® चमत्कारिक तरीके से सिवनी में उतारा गया। इस रिट पिटीशन के बारे मे माननीय सवोंच्च न्यायालय की वेव साईट पर कुछ “ी जानकारी उपलब्ध नहÈ है। सिवनी की फिजां में त्ौर रही अफवाहों के बीच क®ई “ी ठ®स बात सामने नहÈ आ पा रहÈ हैं। इसी बीच उत्साही युवा शिक्षाविद संजय तिवारी और पूर्व पार्षद “®जराज मदने ने आगे आकर शहरवासियों क® इकट्ठा किया और सवोंच्च न्यायालय में अपनी बात रखने का फैसला किया। इन द®नों के कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। फिर विधायक श्रीमति नीता पटेरिया ने पहल कर सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान के संज्ञान में इस बात क® लाया और उनकी विज्ञिप्त के अनुसार राज्य सरकार इस मामले में पक्ष रखने के लिए अपना वकील “ी वहां त्ौनात करने की इच्छा जाहिर की है। मुÌे की बात त® यह है कि सड़क निर्माण का कार्य अब तक सामने आए प्रपत्रों में कहÈ “ी र®के जाने की बात नहÈ कही गई है। तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि ने अवश्य केंद्रीय साधिकार समिति (सीईसी) द्वारा किए गए निवेदन पर वन और गैर वन क्ष्®त्रों में वृक्षों की कटाई र®कने का आदेश यह कहकर जारी किया है कि पूर्व में जिला कलेक्टर के समस्त आदेश इस आदेश के प्रशव से निष्क्रीय ह® जाएंगे। अब सवाल यह है कि इस मामले की जड़ कहां है। सं“वत: जड़ है पी¤नरहरि का वह आदेश ज® 18 दिसंबर क® जारी हुआ था। स“ी क® सबसे पहले तत्कालीन जिला कलेक्टर के उस आदेश क® निरस्त कराने की दिशा में पहल करना चाहिए। जब वृक्षों की कटाई आरं“ ह® जाएगी तब माननीय सवोंच्च न्यायालय के फैसले के उपरांत ज® ह®ना ह®गा वह ह® सकेगा। इस मामले में केंद्र में सत्तारुढ़ कांग्रेस और प्रदेश की शजपा का मौन सर्वाधिक आÜचर्यजनक है। इस सबसे ज्यादा हैरत अंगेज है इस मार्ग का निर्माण कराने वाली स˜ाव कंस्ट™क्शन कंपनी का मौन। हमारी नितांत निजी राय में अगर आठ माह से इस कंपनी का काम बंद है, और कंपनी हाथ पर हाथ रख्® बैठी है, तब उसने क®ई पहल क्यों नहÈ की? द® ही सूरतों में स˜ाव क® चुप रहना चाहिए या त® वह किसी बहुत बड़े दबाव में है, या फिर उसे उम्मीद से अधिक मुनाफा नजर आ रहा ह®। इस मामले में टेंडर की शतोZ में यह “ी बताया जा रहा है कि विलंब पर जबर्दस्त शिस्त (पेनाल्टी) निरुपित किए जाने का प्रावधान है। विलंब अगर ठेकेदार की अ®र से ह®गा त® सरकार उससे इसे वसूल करेगी और अगर विलंब सरकार की अ®र से ह®गा त® नििÜचत तौर पर ठेकेदार क® इस राशि क® सरकार से वसूल करने का अधिकार ह®गा। वर्तमान परिस्थितियों में ह®ने वाले विलंब में लगता है कि स˜ाव की पांचों उंगलियां घी में सर कड़ही में और धड़ सहित बाकी पूरा शरीर मख्खन में लपटा है।
कहा त® यहां तक “ी जा रहा है कि जिस तरह पूर्व में क“ी कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अजुZन सिंह के पत्र ´लीक´ हुआ करत्® थ्®, उसी तरह आज सिवनी की फिजां में एक के बाद एक आने वाले आदेश अथवा परिपत्र कालांतर के बाद ही लीक ह®कर बाहर आ रहे हैं। इसके पीछे क्या षणयंत्र है, यह त® समय के साथ ही सामने आ सकेगा पर यह तय ही माना जा सकता है कि क®ई न क®ई षणयंत्रकारी दिमाग इसके पाÜर्व में है। जिस किसी “ी शख्स ने तत्कालीन जिलाधिकारी के उक्त आदेश की सर्टिफाईड कापी निकलवाई ह®गी वह “ी इसी षणयंत्र का एक हिस्सा माना जा सकता है, क्योंकि कापी मिलने की तारीख से मीटर डाउन ह® चुका है, और जब तक ल®गों क® इस आदेश क® खारिज कराने की सूझेगी तब तक यह आदेश का मामला “ी टाईमबार ह® चुकेगा।
सुधि पाठकगणों से हमारा पुन: आग्रह है कि इस मामले में सांप ही मारने का कृत्य किया जाए, सांप मारने के उपरांत लकीर पीटने से कुछ हासिल नहÈ ह®ने वाला है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि सर्वप्रथम तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा 18 दिसंबर क® जारी उक्त आदेश क® निरस्त करवाएं फिर आगे की कार्यवाही क® अंजाम दें। अगर उक्त आदेश निरस्त ह® गया त® देश की इस महात्वाकांक्षी परिय®जना का कार्य स्वयंमेव ही आगे बढ़ने लगेगा, फिर “ले ही माननीय न्यायालय के आदेश के उपरांत इसे र®क दिया जाए। वर्तमान में न त® किसी ने माननीय सवोंच्च न्यायालय का स्थगन ही किसी क® दिखाया है, और न ही स्थगन संबंधी और क®ई तथ्य ही सामने आया है।

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