गुरुवार, 30 जुलाई 2009

मनमोहन के आगे बेबस शीला

(लिमटी खरे)

देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और भला क्या होगा कि देश की राजनैतिक राजधानी की सरकार पर तीसरी दफा काबिज होने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित आज भी केंद्र सरकार अथाZत मनमोहन सरकार के सामने घुटने टेके अपने अधिकारों के लिए चिरौरी कर रही हैं। इसका जीता जागता उदहारण बीते दिनों दिल्ली में हुई धुंआधार बारिश के बाद बनी स्थिति है।
महीनों की तपन के बाद जब बीते सोमवार को तीन घंटे झमाझम बारिश हुई तो दिल्ली में चलना मुहाल हो गया। लोग घरों से निकलकर सड़कों पर बह रहे पानी में अधडूबे ही जाने आने पर मजबूर थे। सवाल यह उठता है कि आखिर दिल्ली की इस दुर्दशा के लिए जवाबदार कौन है? सूबे की निजाम श्रीमति शीला दीक्षित अथवा वजीरे आला डॉ. मनमोहन सिंह।
एक तरह से देखा जाए तो दिल्ली में बारिश में होने वाली परेशानियों के लिए परोक्ष रूप से केंद्र सरकार ही दोषी मानी जा सकती है। इसका कारण यह है कि केंद्र सरकार द्वारा सालों बाद भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया है। इन परिस्थितियों में सब कुछ तो केंद्र सरकार ने अपने ही हाथों में रख रखा है, तब दिल्ली सरकार क्या खाक सुविधाएं मुहैया करवाएगी अपने सूबे के वाशिंदों को।
कहने को दिल्ली सरकार के पास दिल्ली नगर निगम (डीएमसी), दिल्ली पुलिस और दिल्ली विकास प्राधिकरण पर नियंत्रण है। शेष लगभग सारे विभाग तो केंद्र सरकार के इशारों पर ही काम कर रहे हैं। लोक निर्माण विभाग, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी), सहित अनेक विभाग केंद्र की देखरेख में ही कामों को अंजाम दे रहे हैं।
कहते हैं कि केंद्र सरकार का तर्क है कि इस सूबे में व्हीव्हीआईपी ज्यादा रहते हैं, इसलिए पुलिस को केंद्र के अधीन रखना ही ठीक होगा। यह बात कहां तक सच है इस बारे में केंद्र ही बेहतर बता सकता है, किन्तु यह सच है कि केंद्र के व्हीव्हीआईपी की सुरक्षा में दिल्ली पुलिस का एक बहुत बड़ा अमला कार्यरत है।
आलम यह है कि दिल्ली में नगर निगम में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कोई सीधा दखल नहीं है। दिल्ली में यातायात को नियंत्रित करने का काम संभालने वाली दिल्ली की यातायात पुलिस भी दिल्ली सरकार के उपर ही है। व्यवस्थाओं का आलम यह है कि हर एक कदम पर फैसला लेने के लिए दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल के दरबार में हाजिरी लगाकर अपना पक्ष रखना होता है, उपराज्यपाल की मर्जी से ही कोई फैसले पर मुहर लग सकती है।
दिल्ली सरकार के पास अधिकार नहीं होने के कारण उसे किसी भी योजना को मंजूरी देकर अमली जामा पहनाने के लिए कम से कम 13 से 14 विभागों की अनुमति की दरकार होती है। सोमवार को हुई भारी बारिश के बाद दिल्ली में जगह जगह जाम की स्थिति निर्मित हो गई थी।
इस जाम से निजात दिलाने के लिए यातायात पुलिस के मातहत भी सड़कों से नदारत ही थे। लोग घंटों जाम में फंसे मशक्कत करते रहे किन्तु उनकी सुध लेने वाला कोई भी जिम्मेदार सरकारी नुमाईंदा सड़क पर दिखाई नहीं दिया। एनडीएमसी के अधिकार क्षेत्र वाले सर्वोच्च न्यायालय के इर्द गिर्द पानी जमकर भर गया था, किन्तु एनडीएमसी के उपर से नीचे तक के अधिकारी खुर्राटे भर रहे थे।
वैसे केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को कुछ अधिकार तो दिए हैं, जिनके समुचित उपयोग से दिल्लीवासियों का नारकीय जीवन सुधर सकता है। बारिश आते ही दिल्ली में नगर निगम का अमला घरों घर जाकर छतों पर गमले, और बरामदों में रखे कूलर की जांच कर रहे हैं।
यह कवायद इसलिए की जा रही है, ताकि मच्छरों को पनपने से रोका जा सके और दिल्लीवासियों को डेंगू जैसे बुखार से बचाया जा सके। मगर क्या दिल्ली सरकार पोखरों में तब्दील सड़कों और नालियों में जमा पानी हटाने की दिशा में कुछ प्रयास करेगी। क्या इन पानी के एकत्र होने वाले स्थानों पर मच्छर नहीं पनपेंगे?
क्या मच्छर पलने से रोकने की जवाबदारी सिवनी दिल्ली के रहवासियों की ही है? यक्ष प्रश्न तो यह है कि एक दिन की बरसात मं ही पूरे शहर को शर्म से पानी पानी करने वाले बदइंतेजाम से रहने वाली दिल्ली सरकार ने क्या अपने नुमाईंदों का चालान काटा? उततर निश्चित तौर पर नहीं ही होगा।
इन परिस्थितियों में दिल्ली के रहवासियों द्वारा जानकारी के अभाव में दिल्ली सरकार को पानी पी पी कर कोसा जाना कहां तक उचित होगा। बेहतर होगा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाकर सूबे की सारी की सारी व्यवस्थाएं दिल्ली सरकार के नियंत्रण में ही रखी जाएं ताकि देश की राजनैतिक राजधानी में रहने वाले कम से कम बुनियादी जरूरतों के लिए तो न तरसें।

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शिवराज पर कसेगा संघ का शिकंजा!
- मध्य प्रदेश के रास्ते दो प्रमुख प्रचारकों को रास में भेजने की तैयारी
- मध्य प्रदेश होगा अब संघ की सीधी निगरानी में
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश सूबे में राज करने वाले शिवराज सिंह चौहान की स्वतंत्रता के दिन शायद समाप्त होने वाले हैं, जल्द ही उन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शिकंजा कसने वाला है। कप्तान और दवे की राज्य सभा में आमद के साथ ही साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश सूबा अब संघ की सीधी निगरानी में ही रहने वाला है।
आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में संभवत: यह पहला मौका है जबकि संघ के दो पूर्व प्रमुख प्रचारक एक साथ ही निर्विरोध रूप से पिछले रास्ते (राज्य सभा) से संसदीय सौंध तक पहुंच रहे हैं। मध्य प्रदेश में सुषमा स्वराज और नरेंद्र तोमर के लोकसभा के लिए चुने जाने पर रिक्त हुई प्रदेश की दो सीटों पर भाजपा के महाराष्ट्र प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी और प्रदेश के उपाध्यक्ष अनिल माधव दवे भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार बनाए गए हैं। गौरतलब होगा कि कप्तान सिंह सोलंकी जहां मध्य प्रांत में तो दवे भोपाल विभाग के प्रचारक रहे हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा की तादाद 143 है, जबकि शेष अन्य महज 84 ही हैं। वैसे भी सियासी गणित के हिसाब से विरोधी दल भाजपा को कहीं से भी चुनौति देने की स्थिति में नहीं है। 10 अगस्त को होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस के खेमे में पसरी मायूसी साफ दिखाई पड़ रही है।
वैसे इन दोनों ही नेताओं को अपेक्षाकृत काफी कम कार्यकाल ही भोगने को मिलेगा। नरेंद्र तोमर के द्वारा रिक्त की गई सीट पर प्रत्याशी कप्तान को 2 अप्रेेल 2012 तक कार्य करने का तो सुषमा स्वराज के द्वारा खाली की गई सीट पर भाजपा प्रत्याशी दवे को महज 11 माह का ही कार्यकाल मिल सकेगा। इसका कार्यकाल 29 जून 2010 तक ही है।
भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय 11 अशोक रोड़ में चल रही चर्चाओं के अनुसार संघ प्रष्ठभूमि के उक्त दोनों ही नेताओं के मैदान में उतारे जाने से संघ का मैसेज साफ दिखाई पड़ रहा है कि आने वाले दिनोंं में मध्य प्रदेश सरकार पर संघ अपना नियंत्रण रखना चाह रहा है।
बताते हैं कि हाल ही में हुए आम चुनावों मेंं पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी के कारण सत्ता से काफी दूर हुई भाजपा की स्थिति को लेकर संघ काफी चिंतित है। इन परिस्थितयों में भाजपा शासित राज्यों को वह अपने सीधे नियंत्रण में लेना चाह रहा है, ताकि हिन्दुत्व के एजेंडे को सूबे में फैलाया जा सके।
कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश में संघ का वर्चस्व मध्य प्रदेश सहित भाजपा शासित प्रदेशों में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। भाजपा में मची अंर्तकलह से निपटने संघ की यह अघोषित रणनीति कितनी कारगर साबित होती है, यह बात तो समय के साथ ही सामने आएगी किन्तु यह तय है कि शिवराज सिंह चौहान के लिए आने वाला समय मार्ग के शूल निकालने में ही जाया
होगा।

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