सोमवार, 17 अगस्त 2009

आलेख 17 अगस्त 2009

क्या महज ``औपचारिक`` रह गई है गांधी टोपी!

(लिमटी खरे)


कहने को तो कांग्रेस द्वारा गांधी नेहरू परिवारों का गुणगान किया जाता है, किन्तु इसमें राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी का शुमार है या नहीं यह कहा नहीं जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, के बाद अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी के इर्द गिर्द ही कांग्रेस की सत्ता की धुरी घूमती महसूस होती है।
वैसे तो महात्मा गांधी और उनकी अपनाई गई खादी को भी अपनी विरासत मानती आई है कांग्रेस। पर अब लगता है कि वह इन दोनों ही चीजों से दूर होती चली जा रही है। अधिवेशन, चुनाव, मेले ठेलों में तो कांग्रेसी खादी के वस्त्रों का उपयोग जमकर करते हैं, किन्तु उनके सर से गांधी टोपी नदारत ही रहा करती है।
कांग्रेस सेवादल के ड्रेस कोड में शामिल है गांधी टोपी। जब भी किसी बड़े नेता या मंत्री को कांग्रेस सेवादल की सलामी लेनी होती है तो उनके लिए चंद लम्हों के लिए ही सही गांधी टोपी की व्यवस्था की जाती है। सलमी लेने के तुरंत बाद नेता टोपी उतारकर अपने अंगरक्षक की ओर बढ़ा देते हैं, और अपने बाल काढ़ते नजर आते हैं, ताकि फोटोग्राफर अगर उनका फोटो लें तो उनका चेहरा बिगड़े बालों के चलते भद्दा न लगे।
इतिहास गवाह है कि गांधी टोपी कांग्रेस विचारधारा से जुड़े लोगों के पहनावे का हिस्सा रही है। अस्सी के दशक के आरंभ तक नेताओं के सिर की शान हुआ करती थी गांधी टोपी। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू हों या मोरारजी देसाई, किसी ने शायद ही इनकी कोई तस्वीर बिना गांधी टोपी के देखी हो।
लगता है कि वक्त बदलने के साथ ही साथ इस विचारधारा के लोगों के पहनावे में भी अंतर आ चुका है। अस्सी के दशक के उपरांत गांधी टोपी धारण किए गए नेताओं के चित्र दुर्लभ ही देखने को मिलते हैं। करीने से काढे गए बालों और पोज देते नेता मंत्री अवश्य ही दिख जाया करते हैं।
आधुनिकता के इस युग में महात्मा गांधी के नाम से पहचानी जाने वाली गांधी टोपी अब नेताओं के सर का ताज नहीं बन पा रही है। इसका स्थान ले लिया है कांग्रेस के ध्वज के समान ही तिरंगे दुपट्टे (गमछे) ने। जब नेता ही गांधी टोपी का परित्याग कर चुके हों तो उनका अनुसरण करने वाले कार्यकर्ता भला कहां पीछे रहने वाले हैं।
एसा नहीं कि गांधी टोपी आजाद भारत के लोगों के सिरों का ताज न हो। आज भी महाराष्ट्र में अनेक गांव एसे हैं, जहां बिना इस टोपी के कोई भी सिर दिखाई दे जाए। इसके साथ ही साथ कर्नाटक और तमिलनाडू के लोगों ने भी गांधी टोपी को अंगीकार कर रखा है।
अस्सी के दशक के आरंभ तक अनेक प्रदेशों में चतुर्थ श्रेणी के सरकारी नुमाईंदों के ड्रेस कोड में शामिल थी गांधी टोपी पहनकर सरकारी कर्मचारी अपने आप को गोरवांिन्वत महसूस भी किया करते थे। कालांतर में गांधी टोपी ``आउट ऑफ फैशन`` हो गई। यहां तक कि जिस शिख्सयत को पूरा देश राष्ट्रपिता के नाम से बुलाता है, उसी के नाम की टोपी को कम से कम सरकारी कर्मचारियों के सर की शान बनाने में भी देश और प्रदेशों की सरकरों को जिल्लत महसूस होती है। यही कारण है कि इस टोपी को पहनने के लिए सरकारें अपने मातहतों को पाबंद भी नहीं कर पाईं हैं।
यह सच है कि नेताओं की भाव भंगिमओं, उनके आचार विचार, पहनावे को उनके कार्यकर्ता अपनाते हैं। जब नेताओं के सर का ताज ही यह टोपी नहीं बन पाई हो तो औरों की कौन कहे। यहां तक कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विर्कंग कमेटी में उपसिथत होने वाले नेताओं के सर से भी यह टोपी उस वक्त भी नदारत ही मिलती है।
मर्द के सर पर टोपी और औरत के सर पर पल्लू, अच्छे संस्करों की निशानी मानी जाती है। फिर आधी सदी से अधिक देश पर राज करने वाली लगभग सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के नेताओं को इसे पहनने से गुरेज कैसा। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू रहे हों या महामहिम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, किसी ने कभी भी इनकी बिना टोपी वाले छायाचित्र नहीं देखे होंगे। आधुनिकता और पश्चिमी फैशन की चकाचौंध में हम अपने मूल संस्कार ही खोते जा रहे हैं, जो निश्चित तौर पर चिंताजनक कहा जा सकता है।
वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने एक सूबे में तो वन्दे मातरम को सरकारी कार्यालयों में अनिवार्य कर दिया है। यह सच है कि भाजपा का जन्म राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आचार विचारों से ही हुआ है। क्या संघ के पूर्व संस्थापकों ने कभी गांधी टोपी को नहीं अपनायार्षोर्षो अगर अपनाया है तो फिर आज की भाजपा की पीढ़ी इससे गुरेज क्यों कर रही हैर्षोर्षो
युवाओं के पायोनियर (अगुआ) बन चुके कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी किसी कार्यक्रम में अगर जरूरत पड़ती है तो गांधी टोपी को सर पर महज औपचारिकता के लिए पहन लेते हैं, फिर मनमोहक मुस्कान देकर इसे उतारकर अपने पीछे वाली कतार में बैठे किसी नेता को पकड़ा देते हैं।
अगर देश के नेता गांधी टोपी को ही एक वजनयुक्त औपचारिकता समझकर इसे धारण करेंगे तो फिर उनसे गांधी के सिद्धांतें पर चलने की आशा करना बेमानी ही होगा। यही कारण है कि हाल ही के संसद के सत्र में कांग्रेस के शांताराम लक्ष्मण नाइक ने सवाल पूछा था कि क्या महात्मा गांधी को उनके गुणो, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, विचारों और सादगी के साथ दोबारा पैदा किया जा सकता है। इस समय उनकी बहुत जरूरत है। हम सब अपने उद्देश्य से भटक गए हैं और हमें महात्मा गांधी के मार्गदर्शन की जरूरत है। भले ही यह महात्मा गांधी के क्लोन से ही मिले।

-------------------------------------

बदल रहा है कांग्रेस का सत्ता और शक्ति का केंद्र

0 10 जनपथ के बजाए अब ताकतवर होने लगा है 12 तुगलक लेन!

0 जल्द ही सोनिया से राहुल को हस्तांतरित हो सकती है ताकत

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। राजनैतिक विश्लेषक चाहे जो भी आंकलन लगाएं किन्तु अब लगने लगा है कि कांग्रेस का सत्ता और शक्ति का केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) से खिसककर 12 तुगलक लेन (महासचिव राहुल गांधी का सरकारी आवास) की ओर बढ़ने लगा है।
राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि भविष्य को देखते हुए कांग्रेस के पदाधिकारी और मंत्री अब 10 जनपथ के बजाए 12 तुगलक लेन की देहरी को सलाम करते नजर आ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में अब सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया तेजी से आरंभ हो गई है।
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार के मंत्रियों में अब यह प्रतिस्पर्धा आरंभ हो गई है कि कौन राहुल गांधी के ज्यादा करीब है। निकटता पाने के उद्देश्य से मंत्रियों ने नए हथकंडे भी अपनाने आरंभ कर दिए हैं। बताया जाता है कि मंत्रियों ने अपने अपने विभागों की नई योजनाओं के श्रीगणेश के लिए राहुल गांधी को बकायदा पत्र लिखकर अनुरोध भी किया है।
सूत्रों की मानें तो मुकुल वासनिक, कांतिलाल भूरिया, नारायण सामी, विलासराव देशमुख, अंबिका सोनी, एम.एस.गिल, सुबोध कांत सहाय, कुमारी सैलजा, सी.पी.जोशी सहित लगभग एक दर्जन मंत्रियों ने राहुल गांधी को उनके विभाग की नई योजनाओं के उद्घाटन करने का अनुरोध किया है। यह अलहदा बात है कि राहुल गांधी ने अभी तक एक भी न्योता स्वीकार नहीं किया है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि कुशाग्र बुद्धि के धनी कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की चौसर की चालों को समझ पाना कांग्रेस के नेताओं के लिए आसान बात नहीं है। पहले तो दिग्गी राजा राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू बने, फिर उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के लिए भविष्य का रोड़मेप तैयार किया।
एक के बाए एक सफलता मिलने के बाद जब राहुल गांधी कांग्रेस की राजनीति में लगभग स्थापित हो चुके हैं, तब यह दांव खेला गया है, ताकि सत्ता में भी राहुल गाधी की दखल बढ़ाई जा सके और सत्ता तथा शक्ति के नए केंद्र के रूप में युवा तुर्क राहुल गांधी को स्थापित किया जा सके।
सूत्रों के अनुसार अब तक कांग्रेंस की धुरी संभालने वाले दो धु्रवों 23 मदर टेरेसा क्रीसेंट (सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल का आवास) और सत्य मार्ग पर गांधी परिवार के पुराने विश्वस्त विसेन्ट जार्ज के आवास पर भी इसकी आहट साफ सुनी जा सकती है।
अपने पसंद के युवा नेताअों को लाल बत्ती से नवाजकर राहुल गांधी ने वरिष्ठ मंत्रियों को यह संदेश दे दिया है कि युवा मंत्री अपने कामकाज के साथ ही साथ वरिष्ठों के काम पर नजर रखकर राहुल गांधी को रिपोर्टिंग करेंगे। उधर अनेक दिग्गज नेताओं की आंख की किरकिरी बने सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल को भी पैजामे के अंदर रखने की दिग्विजय सिंह की रणनीति काफी कारगर होती दिख रही है।

कोई टिप्पणी नहीं: