अब घंसौर को झुलसाने की तैयारी
2900 करोड़ का पावर प्रोजेक्ट डल रहा है बरेला में
दस हजार टन कोयला रोज जलाया जाएगा
22 अगस्त की जनसुनवाई रोकने की मांग
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर को झुलसाने की तैयारी की जा रही है। मशहूर थापर ग्रुप के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा घंसोर के बरेला ग्राम में 600 मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट की तैयारी की जा रही है। गुपचुप तरीके से इसकी जनसुनवाई भी 22 अगस्त को आहूत की गई है।उर्जा मंत्रालय के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि झाबुआ पावर लिमिटेड नामक कंपनी द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के साथ मिलकर आदिवासी बाहुल्य घंसौर के बरेला ग्राम में यह प्रोजेक्ट डाला जा रहा है। उधर कोल मंत्रालय के सूत्रोें ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए उपयोग में आने वाले कोयले के लिए कोल लिंकेज अभी प्रदान नहीं किया गया है।मध्य प्रदेश पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की वेव साईट पर इस परियोजना की जन सुनवाई के तथ्य मौजूद हैं। इसके लिए 3.20 एमटीपीए ईंधन की आवश्यक्ता दर्शाई गई है। पानी की आवश्यक्ता की पूर्ति रानी अवंतिबाई सागर परियोजना (बरगी बांध) के सिवनी जिले के गडाघाट और पायली के करीब वाले डूब क्षेत्र से पूरी की जाएगी।परियोजना में दर्शाया गया है कि इसका बायलर पूरी तरह कोयले पर ही आधारित होगा। इसके साथ ही साथ 220 एकड़ सरकरी, 360 एकड़ गैर कृषि एवं मात्र 20 एकड़ कृषि भूमि का क्रय किया गया है। इसके लिए आवश्यक कोयले को साउथ ईसटर्न कोल लिमिटेड के अनूपुर शहडोल स्थित खदान से कोयला आयात किया जाएगा। मजे की बात तो यह है कि यह परियोजना प्रतिघंटा 3262 मीट्रिक टन पानी पी जाएगी।इस परियोजना में क्षेत्र के लोगों की बड़ी मात्रा में जमीने खरीदे जाने की खबर है। बताया जाता है कि कमजोर वर्ग के लोगों को इसका मुआवजा लगभग 70 हजार रूपए प्रतिएकड़ तो प्रभावशाली और राजनैतिक पहुंच संपन्न लोगों की जमीनों को प्रतिएकड़ दो से ढाई लाख रूपए का मुआवजा दिया गया है।इस परियोजना के मुख्य महाप्रबंधक आर.पी. चितले ने दूरभाष पर चर्चा के दौरान कहा कि नियमानुसार कंपनी जिन परिवारों की जमीन का अधिगृहण कर रही है, उन परिवारों के एक सदस्य को नौकरी पर अवश्य रखेगी। शेष बचे स्थानों के बारे में उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। चितले यह स्पष्ट नहीं कर सके कि स्किल्ड लेबर या अनिस्किल्ड लेबर के तौर पर ग्रामीणों को नौकरी या प्राथमिकता दी जाएगी।साथ ही जमीन क्रय करने की बात पर उन्होने सफाई देते हुए कहा कि आदिवासियों की जमीन कंपनी सीधे सीधे नहीं खरीद सकती है, अत: सरकार ने पहले इस जमीन को खरीदा है फिर कंपनी ने सरकार से यह जमीन ली है। सीजीएम चितले यह स्पष्ट नहीं कर सके कि कुल खरीदी गई जमीन में कितनी जमीन आदिवासियों से खरीदी गई है।व्याप्त चर्चाओं के अनुसार महज कुछ ही आदिवासियों की जमीन को कंपनी ने लिया है, शेष जमीन सामान्य वर्ग के लोगों की ही खरीदी गईं हैं, वह भी कहीं ओने पोने दाम पर तो कहीं अनमोल कीमतें देेकर।सूत्रों का यह भी कहना है कि जनसुनवाई का बजट भी आठ अंको की राशि में रखा गया है, किन्तु सिवनी जिले में शनिवार 22 अगस्त को होने वाली जनसुनवाई के बारे में लोगों को जानकारी का न होना अनेक संदेहों को जन्म दे रहा है। बताया जाता है कि इस बारे में न तो आसपास के गांवों में पर्यावरण एवं अन्य प्रभावों की जानकारी ही दी गई है और न ही मुनादी पीटी गई है कि जनसुनवाई 22 अगस्त को है। मांग की जा रही है कि 22 अगस्त को होने वाली जनसुनवाई को तत्काल निरस्त कर पहले क्षेत्रवासियों को इसके फायदे के साथ ही साथ दुष्प्रभावों की जानकारी दी जाए और फिर दावे आपत्ति पर जनसुनवाई आहूत की जाए।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें