हांफती सुरक्षा व्यवस्था का नतीजा था शाहरूख कांड
(लिमटी खरे)
अमेरिका में एयर पोर्ट पर जांच के नाम पर वालीवुड के किंग खान को रोकने का मामला भारतीय मीडिया ने जबर्दस्त तरीके से उछाला है। आखिर एसा हुआ क्या है, जिसके पीछे इतनी हायतौबा मचाई जा रही है। अमेरिकी अधिकारी वहां के कानून का पालन ही तो सुनिश्चित कर रहे थे।पूर्व महामहिम राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम हों या तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडिस सभी के साथ अमेरिकी अधिकारियों ने एक सा सलूक किया। दरअसल अमेरिकी कानून किसी को भी इससे छूट प्रदान नहीं करता है, साथ ही साथ सितम्बर 2001 की घटना के बाद वहां सुरक्षा प्रक्रिया और भी चाक चौबंद हो गई है। इससे पहले हुई घटनाएं बहुत कम ही प्रकाश में आ पाईं हैं, क्योंकि जिनके साथ यह घटा उन्होंने समझ लिया था कि यह अमेरिका की सुरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है।इससे उलट भारत में एक के बाद एक आतंकी हमलों ने भी देश की सरकार की तंद्रा नहीं तोड़ी है। हमारे देश की हांफती सुरक्षा व्यवस्था के बीच चाहे जो बेरोकटोक आवागमन करने को स्वतंत्र है। रही बात नियम कायदों के पालन को सुनिश्चित करने की तो देशप्रेम का जज्बा अब कम ही देखने को मिलता है। चंद सिक्कों की खनक के आगे हमारे देश में कानून तार तार होता भी दिख जाता है।दरअसल होना यह चाहिए कि हिन्दुस्तान में भी आने वाले विदेशियों की जांच उसी कड़ाई के साथ की जानी चाहिए जिस सख्ती के साथ यूरोप के देशों में होती है। सब बातों से उपर हमें हमारी आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर ठोस कार्ययोजना बनाना चाहिए एवं इसका पालन सुनिश्चित करने के लिए ईमानदार अफसरों को पाबंद करना अत्यावश्यक है।पता नहीं क्यों भारत सरकार सदा से ही दुनिया के चौधरी अमेरिका के सामने अपने आप को हीन भावना से ग्रसित पाती है। अमेरिका का कोई डेलीगेट अगर भारत यात्रा पर होता है, तो उसके लिए सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए जाते हैं। हमें अभी भी याद है कि जब बिल िक्लंटन भारत यात्रा पर आए थे, तब उनके सुरक्षा काफिले में तैनात कुत्तों को पांच सितारा ली मेरीडियन होटल में रूकवाया गया था।इतना ही नहीं सत्ता के शीर्ष केंद्र माने जाने वाले साउथ और नार्थ ब्लाक में भी अमेरिकी खुफिया एजेंसी के अफसरान बेरोकटोक इस तरह घूमा करते थे, जैसे बाग में सैर कर रहे हों। मजे की बात तो यह है कि जब अंकल सैम (बिल िक्लंटन) ने राजघाट पर जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नमन करना चाहा तब समूचा राजघाट खाली करवाकर अमेरिकी एजेंसी के हवाले कर दिया गया था, जहां उनके खोजी कुत्ते झींगा मस्ती करते नजर आए थे।शाहरूख खान शायद भूल गए कि वे हिन्दुस्तान के रूपहले पर्दे के अदाकार हैं। हिन्दुस्तान की जनता उनकी अदाकारी के चलते उन्हें सर माथे पर बिठाती है, पर दुनिया के चौधरी अमेरिका को इससे क्या लेना देना। वहां का सिस्टम तो वही करेगा जिसके लिए उसे पाबंद किया गया है।एशिया और अरब देश के मुस्लिमों के साथ अमेरिका में इस तरह का सलूक आम बात है। क्या इससे पहले छपने वाली खबरोंं की बिनहा पर शाहरूख खान ने कभी आवाज बुलंद करने की कोशिश की। यहां बुंदेलखण्ड की एक कहावत का जिक्र लाजिमी होगा - ``जोन की नईयां फटी बिमाई, उ का जाने पीर पराई।`` अर्थात जिसके पैर फटे न हों वह दूसरे की पीड़ा क्या खाक समझेगा।आज शाहरूख के खुद के साथ एसा हुआ है, तब उन्हें लगा कि यह सब उनके नाम के साथ ``खान`` सरनेम जुड़े होने के चलते हुए। हो सकता है शाहरूख की नाराजगी का कारण और भी कुछ हो। एक एक सेकंड और मिनिट को रूपयों मेंं तोलने वाले शाहरूख खान को अगर घंटो बिना काम के ही बिठा लिया जाए तो उनकी त्योरियां चढ़ना स्वाभाविक ही है।हमारा मानना है कि भारत में रसूखदार लोगों को आम आदमी के लिए बने नियम कायदों का पालन करने की आदत नहीं होती है, यही कारण है कि वे विदेशों में भी इस सुविधा का उपभोग करना चाहते हैं, जो कि असंभव ही है। यहां ब्रिटेन का एक प्रसंग लाजिमी प्रतीत हो रहा है। ब्रितानी प्रधानमंत्री टानी ब्लेयर के पुत्र को निर्धारित से कम उम्र में शराब पीने के आरोप में पकड़ा गया। वहां के कानून के अनुसार अगर कोई कम उम्र का बच्चा शराब का सेवन करता है तो उसके माता पिता को थाने आकर दरोगा की चेतावनी सुननी होती है। टानी ब्लेयर ने उस कानून का पालन किया और थाने जाकर दरोगा की फटकार सुनी। हमारे यहां आप किसी सांसद विधयक तो क्या पार्षद के बच्चे को बंद करके तो देखें!वैसे इस मामले को तूल देकर मुद्दा बनाने के बजाए अगर इससे सबक लेकर हम अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था को फूलप्रूफ बनाने में जुट जाएं तो आने वाले दिनों में हम भी कम से कम सुरक्षा के मामले में अमेरिका की तरह ही नििष्फकर नजर आएंगे, हालात देखकर इसकी संभावनाएं नगण्य ही प्रतीत होती हैं।
सुषमा मनाएंगी वसुंधरा को
0 राजनाथ के लिए तारणहार बनकर उभरीं सुषमा
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की विदिशा संसदीय सीट से परचम फहराने वाली भाजपा की मुखर नेत्री सुषमा स्वराज एक बार फिर ताकतवर होकर उभर रहीं हैं। पार्टी अपने महत्वपूर्ण निर्णयों में सुषमा स्वराज की न केवल राय को ही वजन दे रही है, बल्कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से नेता प्रतिपक्ष के पद से त्यागपत्र के लिए उन्हें ही अधिकृत किया गया है।भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि भाजपा में जारी अंदरूनी मारकाट के चलते वसुंधरा राजे से त्यागपत्र लेना अब शीर्ष नेतृत्व की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने वसुंधरा राजे को त्यागपत्र देने के लिए मनाने के लिए सुषमा स्वराज को अधिकृत कर दिया है।सूत्रों ने यह भी कहा कि अब वसुंधरा राजे से पार्टी की ओर से इस मामले में सुषमा स्वराज के अलावा और कोई भी नेता बात नहीं करेगा। वैसे वसुंधरा राजे के पक्ष में विधायकों की लंबी फौज को देखकर पार्टी के कुछ नेता उनसे सहानभूति भी रखने लगे हैं। वहीं दूसरी ओर पार्टी द्वारा एक बार उनके त्यागपत्र का फैसला लेने के बाद अब समझौते की बात करके नेतृत्व अपनी किरकिरी भी नहीं करवाना चाहेगा।बताया जाता है कि पार्टी की ओर से वसुंधरा राजे को त्यागपत्र के एवज में पार्टी महासचिव का पद भी आफर कर दिया गया है। भाजपा की एक आधार स्तंभ रहीं विजयाराजे सिंधिया की पुत्री वसुंधरा राजे का रसूख राजस्थान में खासा देखने को भी मिल रहा है। पार्टी नेतृत्व को डर है कि कहीं दूसरे नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के समय विधायकों के माध्यम से वसुंधरा राजे अपनी कोई और मांग मनवाने पर न अड़ जाएं।सूत्रों का दावा है कि सुषमा स्वराज द्वारा बड़ी ही आसानी से वसुंधरा राजे को त्यागपत्र देने और नए नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के लिए तैयार करवा लिया जाएगा। यही कारण है कि पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें यह महती जवाबदारी सौंपी है।
. . . तो जबलपुर की सड़कों का निकल जाएगा कचूमर
- हवाई किले बना रही है झाबुआ पावर लिमिटेड
- कोल परिवहन हेतु ठोस व्यवस्था नहीं
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। जबलपुर से लगभग सौ किलोमीटर दूर सिवनी जिले की घंसोर तहसील के ग्राम बरेला में स्थापित होने वाले पावर प्लांट में लाए जाने वाले कोयले का परिवहन अभी भी अस्पष्ट है। वैसे कंपनी इसे रेल मार्ग से परिवहन करना दर्शा रही है। इसके साथ ही साथ रेल मार्ग के विकल्प के तौर पर सड़क मार्ग से कोयले का परिवहन किया जाएगा तो जबलपुर एवं सिवनी की सड़कों का कचूमर निकल जाएगा।कोयला मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा घंसौर तहसील के बरेला में स्थापित किए जाने वाले इस संयंत्र के लिए कोयले की आपूर्ति (लगभग 32 लाख टन प्रतिवर्ष) अनूपपुर की साउथ ईस्टर्न कोलफील्डस की खदान से किया जाना दर्शाया गया है।इसमें सबसे रोचक तथ्य यह है कि कोयले का परिवहन रेल मार्ग द्वारा होना बताया गया है। गौरतलब होगा कि कोयला अनूपपुर से ब्राडगेज से लाकर जबलपुर से नेरोगेज से लाया जाएगा, जो संभव प्रतीत नहीं होता है। आने वाले समय में नैनपुर से जबलपुर के अमान परिवर्तन का काम आरंभ हो जाएगा, तब नेरो गेज की पटरियां उखाड़ दी जाएंगी। इन परिस्थितियों में संयंत्र के संचालकों द्वारा सड़क मार्ग को ही विकल्प के तौर पर उपयोग में लाया जाएगा।वैसे भी अगर कोयले को रेल मार्ग द्वारा ब्राड गेज के माध्यम से अनूपपुर से जबलपुर लाया जाता है, तो कंपनी को फिर जबलपुर नैनपुर मार्ग (नेरोगेज) में इसे लादने के लिए दुबारा लोडिंग अनलोडिंग की समस्या से दो चार होना पड़ेगा। बताया जाता है कि जबलपुर के यार्ड में ब्राडगेज के रेक तो खड़े हो सकते हैं किन्तु नेरोगेज के रेक खड़े करने के लिए वहां अलग से रेल लाईन भी बिछानी पड़ेगी। इस तरह कंपनी द्वारा दिए गए प्रस्ताव में अनेक पेंच नजर आ रहे हैं।यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि घंसोर एवं लखनादौन तहसील की सड़कें इतने भारी भरकम लोड को सहने के लिए तैयार नहीं हैं, और न ही ये इतने वजन के लिए केंद्रीय सड़क रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के मापदण्डों के हिसाब से निर्मित हैं। इन परिस्थितियों में यही कहा जा सकता है कि अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट में झाबूआ पावर लिमिटेड द्वारा हवाई किले तैयार किए गए हैं।वर्तमान में सिवनी जिले की लखनादौन और घंसौर तहसीलों की सड़कें पहले से ही खस्ताहाल में हैं, फिर अगर इन सड़कों पर से भारी मात्रा में कोयले का परिवहन किया जाएगा तो आने वाले समय में इन सड़कों के चिथड़े उड़ने में समय नहीं लगेगा। बरेला में डलने वाले इस प्लांट में ट्रकों के माध्यम से कोयला या तो लखनादौन अथवा धूमा के रास्ते ही लाया जाएगा। आबादी वाले क्षेत्रों में ट्रकों की धमाचौकड़ी से दुघZटनाओं की संख्या में इजाफा होने से इंंकार नहीं किया जा सकता है।
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आखिर क्या संदेश देना चाहती है दिल्ली सरकार
0 राजीव गांधी के 65 वें जन्मदिवस पर जारी किया दिल्ली सरकार ने अजीबोगरीब विज्ञापन
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। इक्कीसवीं सदी के भारत की परिकल्पना कर आधारशिला रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के 65वें जन्मदिवस पर दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज हुई शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा आज जारी किया गया विज्ञापन लोगो के बीच चर्चा का केंद्र बना रहा।दिल्ली सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी डीआईपी/793/09-10 क्रमांक से जारी आधे पृष्ठ के रंगीन विज्ञापन में यूपीए अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री डॉ. मन मोहन सिंह के साथ ही साथ दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित के रंगीन छाया चित्र लगे हुए हैं।प्रिंट मीडिया में छपे इस विज्ञापन में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की फोटो के साथ कुछ परिन्दों को आकाश में उड़ते हुए दिखाया गया है, एवं साथ ही सफेद अक्षरों से बस ``राजीव`` ही लिखा हुआ है। इस विज्ञापन में राजीव गांधी के चित्र के आसपास 62 परिंदे उड़ते दिखाए गए हैं।जनचर्चा के अनुसार अखबारों को विज्ञापन जारी कर दिल्ली की कुर्सी पर लगातार तीसरी बार बैठने वाली श्रीमति शीला दीक्षित आखिर क्या संदेश देना चाह रही हैं। व्याप्त चर्चाओं के अनुसार कांग्रेस नेतृत्व के भाटचारण के उद्देश्य से जारी किया गया यह विज्ञापन अगर कोई कोटेशन या संदेश युक्त होता तो जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई के खर्च का ओचित्य समझ में भी आता, किन्तु वस्तुत: एसा कुछ भी इस विज्ञापन में नजर नहीं आता है।
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