मंगलवार, 8 सितंबर 2009

महिला आरक्षण में सोनिया पिछड़ीं, युवाओं में राहुल ने मारी बाजी

लिमटी की लालटेन

महिला आरक्षण में सोनिया पिछड़ीं, युवाओं में राहुल ने मारी बाजी

केंद्र सरकार के कार्यकाल के सौ दिन पूरे हो गए, इन सौ दिनी एजेंडे में महिला आरक्षण बिल को भी स्थान दिया गया था। महिला आरक्षण बिल न तो सरकार में न ही सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस में परवान चढ़ सका। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी महिला होने के बावजूद भी इसे दोनों ही जगह लागू नहीं करवा सकीं। उधर कांग्रेस के युवराज एवं कांग्रेसियों की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने अपने ``युवाओं`` के एजेंडे को लागू करवाने में अघोषित तौर पर सफलता हासिल करवा ही ली। डॉ.एम.एम.सिंह के मंत्रीमण्डल में युवाओं की संख्या इस बार निश्चित तौर पर बढ़ी है। इतना ही नहीं राहुल ने हरियाणा, महाराष्ट्र और अरूणाचल प्रदेश में 20 फीसदी युवाओं को टिकिट देने की मांग कर एक बार फिर ताल ठोंक दी है। कांग्रेस मेें किसी की इतनी मजाल नहीं कि युवराज की बात का विरोध कर सके, सो जाहिर है इन तीनों राज्यों में बीस फीसदी युवा चेहरों को टिकिट मिलना तय ही है।

लेटर बम की जद में भाजपा

अनुशासित पार्टी होने का लबादा ओढने वाली भारतीय जनता पार्टी में अब लेटर बम की धूम मच गई है। एक के बाद एक पत्रों से भाजपा में अंदरूनी सैलाब उमडकर बाहर छलकने लगा है। हाल ही में उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूरी ने हाईकमान को एक पत्र लिखकर कुछ एसे प्रश्न पूछ लिए हैं, जिनके चलते पार्टी हाईकमान सकते में है। बताया जाता है कि इस पत्र में कुछ इस तरह के सवाल पूछे गए हैं, जिनके जवाब देने से पार्टी के मुखिया सदा ही बचते आए हैं। देखा जाए तो समूचे देश में हुए आम चुनावों में भाजपा औंधे मुंंह गिरी है, फिर सिर्फ उत्तराखण्ड में ही पार्टी ने नेतृत्व परिवर्तन को अपने एजेंडे में सर्वोपरि क्यों रखार्षोर्षो पार्टी के आला नेताओं ने पहले भी परोक्ष तौर पर पार्टी की हार के बाद जिम्मेदार नेताओं को महत्वपूर्ण पदों पर नवाजे जाने पर अपनी तल्ख नारजगी व्यक्त की जा चुकी है। लगता है पार्टी सुप्रीामो राजनाथ सिंह के कार्यकाल के अंतिम दिनों में भी वे विवादित होने से नहीं बच पाएंगे।

. . . पर कानून क्या कहता है

दुनिया भर में मशहूर किपलिंग की जंगल बुक के हीरो ``मोगली`` की कर्मस्थली से होकर गुजरने वाला स्विर्णम चतुZभुज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में फंसे पेंच को दूर कराने की गरज से एमपी के पूर्व वन मंत्री एवं विधानसभा के उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमण्डल लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से मिला। इस दौरान एक मजेदार वाक्या सामने आया। जयराम रमेश ने इस मामले में सूबे के पूर्व वन मंत्री हरवंश सिंह से पूछा कि आप भी वनमंत्री रहे है, अगर आपके सामने इस तरह की स्थिति आती तो आप क्या करतेर्षोर्षो ठाकुर हरवंश सिंह ने जवाब दिया कि जनता ने हमें चुना है, जनहित में जो हो वही किया जाना चाहिए और वे भी एसा ही करते। इतनी बात को प्रतिनिधिमण्डल के सदस्य द्वारा विज्ञप्ति के माध्यम से उनके कार्यक्षेत्र वाले जिले में मीडिया में बंटवा दिया गया। इसके बाद की बात गोल कर दी गई। सूत्रों के अनुसार जयराम रमेश ने साफ तौर पर कहा कि जनता के प्रति जवाबदेही सबसे अहम मामला है, किन्तु इस मामले में कानून क्या कहता हैर्षोर्षो केंद्रीय वनमंत्री ने कानून के हिसाब से चलने की बात ही कही। पेशे से अधिवक्ता रहे सूबे के पूर्व वन मंत्री ठाकुर हरवंश सिंह इस मामले में अगर वन विभाग के कानून की धारा दो का उल्लेख कर देते तो शायद जयराम रमेश निरूत्तर हो जाते, वस्तुत: ऐसा हुआ नहीं।

हेलीकाप्टर से भयाक्रांत आंध्र के नेता

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकाप्टर दुघZटना में हुई मौत से सूबे के नेताओं में चौपर (हेलीकाप्टर) को लेकर भय व्याप्त हो गया है। दरअसल आज से लगभग साढ़े सात साल पहले भी एक सूबे के एक वरिष्ठ नेता हेलीकाप्टर दुघZटना में असमय ही काल के गाल में समा गए थे। 3 मार्च 2002 को आंध्र के ही एक नेता और देश के पूर्व लोकसभाध्यक्ष जी.एम.बालयोगी भी हेलीकाप्टर दुघZटना में अल्लाह को प्यारे हो गए थे। उस दिन बालयोगी अपने एक अंगरक्षक के साथ सुबह पौने आठ बजे भीमवरम से रवाना हुए, कुछ ही मिनटों में उनके हेलीकाप्टर में तकनीकि खराबी आई और उनका चौपर हाई टेंशन बिजली की लाईन से टकरा गया था। हाल ही में मुख्यमंत्री रेड्डी के साथ भी चौपर दुघZटना हुई। संयोग से दोनों ही हेलीकाप्टर बेल कंपनी के थे। आने वाले समय में अगर आंध्र क्या समूचे देश के राजनेता अमरिका की मशहूर कंपनी बेल के हेलीकाप्टर में बैठने से परहेज करें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

परिसीमन ने उड़ाई भाजपा की नींद

महाराष्ट्र प्रदेश में आसन्न चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के नेताओं की नींद उडी हुई है। इसका कारण परिसीमन का जिन्न है। परिसीमन आयोग की सिफारिशें लागू होने के उपरांत सूबे में अब शहरी मतदाताओं की भूमिका एकाएक महत्वपूर्ण हो गई है। भाजपा शिवसेना गठबंधन के बारे में एनालिसिस करने वालों का कहना है कि लोकसभा के चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया है कि इस गठबंधन का प्रभाव शहरों के बजाए ग्रामीण इलाकों में तेजी से बढ़ा है। इसके साथ ही इस गठबंधन की नाक का बाल बने राज ठाकरे के रवैए ने नेताओं की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलका दी हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने बहुत पहले से ही शहरी मतदाताओं के महत्व को पहचान लिया था, और बिजली दरों में बढोत्तरी, रिलायंस इन्फ्रास्टक्चर और बेस्ट बस सर्विस के खिलाफ प्रदर्शन में महात्वपूर्ण भूमिका निभाकर एमएनएस ने एक तरह से शहरी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कवायद भी कर ली है। मनसे, शिवसेना और भाजपा के त्रिकोण में अब मनसे का पडला ही भारी दिखने लगा है। मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने दहाड कर कहा है कि सूबे में मुख्यमंत्री वे ही बनाएंगे। ठाकरे की इस दहाड के बाद भाजपा और शिवसेना की धडकने तेज होना स्वाभाविक ही है।

गुटबाजी से परेशान हैं सोनिया

सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की जड़ें अब देश भर में कमजोर हो चुकीं हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। आधी सदी से अधिक समय तक देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस को अब सूबों और केदं्र में गठबंधन की बैसाखी लेकर चलने पर मजबूर होना पड़ रहा है। अध्यक्ष के तौर पर नेहरू गांधी परिवार की इतालवी बहू सोनिया गांधी दस साल से अधिक का समय पूरा कर चुकीं हैं, पर उनके अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस में जान नहीं फूंकी जा सकी है। इसका कारण कांग्रेस के अंदर वर्चस्व को लेकर पसरी गुटबाजी ही है। एक दूसरे की जड़ें काटने के चक्कर में सूबों के क्षत्रप चुनावों में कांग्रेस को ही कमजोर करने से नहीं चूक रहे हैं। एक समय था जब नेता कांग्रेस को जिताने के लिए कृत संकल्पित नजर आते थे, किन्तु आज नेता ``खुद`` तक सिमटकर रह गए हैं। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने राजमाता को मशविरा दिया है कि नेता तो गुटबाजी करने से बाज नहीं आने वाले सो अब सीधे कार्यकर्ताओं से ही अपील की जाए। बताते हैं कि दिग्गी राजा की सलाह पर अब कांग्रेस अध्यक्ष ने कार्यकर्ताओं को पत्र लिखकर एकजुट हो तीन राज्यों में होने वाले चुनावों में कांग्रेस का परचम फहराने की अपील की है। देखना यह है कि सोनिया की कार्यकर्ताओं से की गई अपील कितनी कारगर साबित होती है।

नजीर बन सकता है फैसला

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में 13 अगस्त को एक याचिका दायर की गई थी, इस याचिका पर फैसला महज 13 दिनों के अंदर 26 अगस्त को ही दे दिया गया। उच्च न्यायालय के इतिहास में संभवत: पहला मौका होगा जबकि न्यायालय द्वारा इतनी जल्दी किसी प्रकरण का निष्पादन किया हो। 8218 क्रमांक से दायर इस याचिका को लखनादौन के एक अधिवक्ता मनीष केसरवानी ने दायर किया था। उच्च न्यायलय के त्वरित फैसले से वकील जगत भले ही नाखुश होगा किन्तु पक्षकार तो लड्डू बांट रहे होंगे। पक्षकारों का हित चाहने वाले कुछ वकीलों का मत है कि देश के सबसे बड़े न्यायालय सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में संज्ञान लेतेह हुए देश की हर अदालत को इस तरह से त्वरित न्याय दिलवाने की पहल करनी चाहिए। वैसे भी देश की अदालतों में न्यायधीशों की कमी के चलते मुकदमों की तादाद बहुत अधिक बढ़ चुकी है।

शिवराज को असमंजस में डाला ज्योतिरादित्य ने

चंबल के महाराजा एवं केद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान सेे जिला मुख्यालय विदिशा में स्थित उनके पूर्वजों द्वारा स्थापित तकनीकि कालेज को साधन संपन्न बनाने की गुहार लगाई है। दरअसल विदिशा के सम्राट अशोक इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना 01 नवंबर 1960 में उनके पूर्वजों सिंधिया राजघराने ने की थी। युवा तुर्क ज्योतिरादित्य ने पोषण आहार अनुदान के अलावा करोड़ 15 लाख रूपयों की पूर्व वषोZं के घाटे को भरने का आग्रह भी किया है। राजनैतिक बियावान में ज्योतिरादित्य के पिता एवं पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री माधव राव सिंधिया के सहयोगी रहे कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने भी शिवराज सिंह चौहान को इसी आशय का एक पत्र लिखकर सिंधिया घराने के प्रति अपनी निष्ठा का इजहार कर दिया है। बताते है कि इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान असमंजस में हैं। दरअसल विदिशा उनका पुराना तो सुषमा स्वराज का वर्तमान में संसदीय क्षेत्र है। इस मामले में सुषमा स्वराज द्वारा अभी तक कोई मांग नहीं की है। एसी स्थिति में अगर शिवराज सिंह द्वारा कांग्रेस के नेताओं के अनुरोध को स्वीकार कर लिया जाता है तो पार्टी मंच पर उनकी किरकिरी हो सकती है।

चुनाव और सड़क निर्माण से चिंतित हैं वासनिक

केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक महाराष्ट्र में अगले माह होने वाले चुनावों के चलते काफी चिंता में हैं। दरअसल अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में प्रस्तावित स्विर्णम चतुभुZज योजना के अंतर्गत बनने वाले उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश सीमा के सिवनी जिले के तत्कालीन कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के एक आदेश के तहत इस मार्ग पर काम रोक दिया गया है। इस मार्ग में आगे उनका संसदीय क्षेत्र भी आता है। 21 अगस्त को सिवनी जिले मेें हुए एतिहासिक बंद के बाद एनएच 07 पर पड़ने वाले महाराष्ट्र के कुछ हिस्से सुलग गए हैं। वहां भी आंदोलन तेजी से फैलने लगा है। इसी बीच खवासा से नागपुर तक के सड़क निर्माण के टेडर कर दिए गए हैं। सूत्रों का कहना है कि वासनिक की चिंता इस बात की है कि लोगों के बीच अब यह मैसेज जाने लगा है कि यह सब कुछ दिखावा 13 अक्टूबर तक के लिए है, चुनाव निपटने के बाद सडक निर्माण का काम आरंभ हो सकेगा या नहीं इस बारे में कहा नहीं जा सकता है।

विदेशी सगा, देशी सौतेला

विदेश से आई बीमारी स्वाईन फ्लू को केंद्र सरकार ने अपना सगा पुत्र मानते हुए उसे हाथों हाथ लिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा इससे निपटने करोड़ों रूपए खर्च कर दिए हैं, वहीं दूसरी ओर देशी बीमारी के बारे में सरकार की अनदेखी आश्चर्यजनक है। उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में मेनिंगोकाकल मेनिंजाईटिस (मस्तिष्क ज्वर) का आतंक फैला हुआ है। विशेषकर गोरखपुर जिला इसकी सबसे ज्यादा चपेट में है। गोरखपुर में इस साल अब तक 213 लोग इस बीमारी के चलते काल के गाल में समा चुके हैं। इसके साथ ही साथ उड़ीसा के कालाहांडी में डायरिया का प्रकोप जबर्दस्त है। कालाहांडी में महज एक पखवाड़े में ही 38 जानें गई हैं। सूबे के स्वास्थ्य मंत्री प्रसन्न आचार्य इस बात को स्वीकार भी कर चुके हैं। सच ही है जब आम आदमी ही मेड इन इंडिया की सील के बजाए मेड इन यूएसए को महत्व देता है तो भला बीमारी के बारे में सरकार इससे कैसे चूक जाए। मेिक्सको से उपजी बीमारी को भारत सरकार हाथों हाथ लेगी ही, देशी बीमारी का क्या उससे तो नीम हकीम ही निपट लेंगे।

खून की दो बूंद ही आतीं हैं काम

मध्य प्रदेश में व्याप्त बिजली के संकट से निपटने के लिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपनी कर्मभूमि राजगढ़ में बिजली के संकट को लेकर प्रदर्शन किया। दिग्गी राजा के साथ कांग्रेसियों की भीड़ ने जब अपने तेवर दिखाए तो पुलिस ने तबियत से लाठियां भांजी। कहा जाता है कि भीड़ में जब ``सार्वजनिक अभिनंदन`` होता है तब लाठी किसी का चेहरा नहीं देखती। हुआ यही, पुलिस की लाठियों से दिग्विजय सिंह घायल हो गए। राजा के सर पर चोट आई, तत्काल उन्हें अस्पताल ले जाया जाकर सर पर टांके लगवाए गए। उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आनन फानन राजगढ़ को सूखा ग्रस्त घोषित कर दिया। इतिहास गवाह है, आंदोलनों में जब भी किसी देशभक्त का खून माटी पर गिरा है, विजय पताका वहीं फहरी है। अब जनता के बीच यह सवाल अवश्य ही उठने लगा है कि अपने अपने क्षेत्रों की समस्याओं के लिए इस तरह के आंदोलन कर पुलिस की लाठियां खाने वाले नेताओं की प्रजाति कहां विलुप्त हो गई हैर्षोर्षो वर्तमान में दिखावे के लिए विपक्ष में बैठे नेता सत्ता पक्ष के साथ ``नूरा कुश्ती`` लड़ते ही नजर आ रहे हैं।

पुच्छल तारा

देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायायल द्वारा गठित की गई है केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी)। बताते हैं कि सीईसी का काम सुप्रीम कोर्ट में दखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की मदद के लिए मौका मुआयना कर वास्तविक प्रतिवेदन सर्वोच्च न्यायालय को सौंपना है। वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया नामक एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की याचिका पर भी सीईसी ने अपना प्रतिवेदन सुप्रीम कोर्ट को सौंपा है। इस मामले में कांग्रेस का एक प्रतिनिधमण्डल केदं्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से मिला, और वापस आकर उसने मीटिंग का ब्योरा दिया। कांग्रेस द्वारा जारी अधिकृत विज्ञप्ति में जयराम रमेश के हवाले से कहा गया है कि सीईसी के विशेष आमंत्रित सदस्य को पुन: स्थल निरीक्षण करने भेजा जाएगा। सवाल यह उठता है कि सीईसी जयराम रमेश के इशारे पर काम करने गठित की गई है, या फिर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन के लिए।

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