शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

थुरूर के पर कतरने से कतराती कांग्रेस

थुरूर के पर कतरने से कतराती कांग्रेस

(लिमटी खरे)

किसी भी संगठन के लिए अनुशासन से बढ़कर कोई चीज नहीं होती है। इतिहास गवाह है कि गैर अनुशासित व्यक्तित्व या संगठन के धराशायी होने में समय नहीं लगता है। भाजपा में कुछ सालों से अनुशासनहीनता चरम पर रही है, यही कारण है कि अटल बिहारी बाजपेयी के परोक्ष तौर पर सक्रिय राजनीति को गुडबाय कहने के साथ ही भाजपा का सूर्य अस्ताचल की ओर जाता साफ दिखाई पड़ने लगा है।


सवा सौ साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अनुशासनहीनता के किस्सों की कमी नहीं है। जैसे ही अनुशासन का क्रम टूटता है, वैसे ही इसके प्रभाव भी दिखाई पड़ने लगते हैं। कांग्रेस न जाने कितनी बार विभाजित हो चुकी है। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी ने भी कांग्रेस ई का गठन किया था, जो अब तक कायम है।


हाल ही में विदेशी राजनयिक से जनसेवक और मंत्री बने विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर ने सोशल नेटविर्कंग वेव साईट पर अपनी टिप्पणियां करके अपने आप को विवादित कर लिया है। कभी कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से व्यवसायिक राजधानी मुंबई तक की गई इकानामी क्लास की यात्रा के उपरांत इसे मवेशी दर्जा की संज्ञा, कभी काम का बोझ, तो कभी कुछ ओर।


हाल ही में उस वेव साईट पर अपने प्रशंसकों के सवालों के जवाब में थुरूर ने यह कहकर नई बहस को जन्म दे दिया है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है पर अवकाश का क्या ओचित्य हैर्षोर्षो


सोशल नेटविर्कंग वेव साईट पर टिप्पणियां करते हुए थुरूर देश के जिम्मेदार मंत्री कम, अलबत्ता वे वालीवुड के सिने स्टार की भूमिका में ज्यादा नजर आ रहे हैं। या यूं कहा जाए कि थुरूर के सर चढ़े इंटरनेट और सोशल नेटविर्कंग वेव साईट के नशे ने उन्हें हाई स्कूल के छात्र की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया है।


शशि थुरूर स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक हैं, उन्हें अपनी बात कहने या रखने का पूरा अधिकार है, किन्तु वे शायद यह भूल रहे हैं कि इस वक्त वे भारत गणराज्य के एक जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री हैं। राजनैतिक दलों का इतिहास रहा है कि अगर किसी भी राजनेता को अपनी राय व्यक्त करनी हो तो उसके लिए पार्टी मंच से मुफीद और कोई जगह नहीं रही है।


यह सब होने के बाद थुरूर द्वारा अपने विचारों का सार्वजनिक किया जाना ओचित्य से परे ही नजर आता है। साधारण कार्यकर्ताओं द्वारा गलत सलत अनर्गल बयानबाजी पर अनुशासन का कोडा चलाने वाली कांग्रेस पार्टी अपने ही केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर की जबान पर लगाम लगाने का साहस क्यों नहीं कर पा रही है, यह यक्ष प्रश्न जनता जनार्दन के मानस पटल पर घुमड़ना स्वाभाविक ही है।


थुरूर का कहना है कि हाल ही में वियतनाम के उपराष्ट्राध्यक्ष अंगुएन थि डोन जब भारत आए थे, तब भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने डोन के सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन किया था, इसमें डोन ने कहा था कि वियतनाम में हो ची मिन्ह के जन्म दिवस पर अवकाश न होकर विर्कंग डे है, एवं वहां के लोगों से उम्मीद की जाती है कि उस दिन उनके सम्मान में वे ज्यादा मेहनत करें।


थुरूर का उदहारण विचारणीय हो सकता है, किन्तु सोशल नेटविर्कंग वेव साईट को उचित मंच नहीं माना जा सकता है। अगर वाकई थुरूर इस तरह का उपक्रम भारत गणराज्य में करना चाह रहे हों तो बेहतर होता वे अपनी बात को कांग्रेस पार्टी के मंच पर या केबनेट (मंत्रीमण्डल की बैठक) में रखते। इस तरह किसी सोशल नेटविर्कंग का सहारा लेकर बयानबाजी करने से लगने लगा है कि मनमोहन सिंह की पकड़ उनके मंत्रीमण्डल के सहयोगियों पर पहले से कमजोर ही हुई है।


थुरूर को कांग्रेस सुप्रीमो इस तरह के कृत्य न करने के लिए समझाईश भी दे चुकी हैं। बावजूद इसके अगर थुरूर की उच्चश्रंखलता जारी है, तो इससे साफ है कि वे प्रधानमंत्री और कंाग्रेस अध्यक्ष को ठेंगे पर ही रख रहे हैं। थुरूर का मानना है कि बापू का कहा था, ``काम ही पूजा है``। वे शायद भूल रहे हैं कि उनका मूल काम विदेश विभाग की सेवा है, न कि लोगों (कथित प्रशंसकों) के जवाब देना।


लगता तो यह भी है कि इंटरनेट लनेZट, कंप्यूटर फ्रेंडली (नेट और कंप्यूटर के जानकार) थुरूर इस तरह के काम करके अपने सहयोगियों पर धाक जमाने का भी कुित्सत प्रयास कर रहे हैं। और भी मंत्री होंगे जिनसे उनके चाहने वाले पत्राचार करते होंगे, किन्तु उस पत्राचार के मजमून की जानकारी चंद लोगों के बीच तक ही सीमित रहती होगी। इंटरनेट पर सब कुछ दिखता है, थुरूर जी।


कांग्रेस द्वारा अगर अपने इस तरह के उच्चश्रंखल और बड़बोले मंत्री पर लगाम नहीं लगाई तो आने वाले दिनों में कांग्रेस को रक्षात्मक मुद्रा में खडा होना पड़ सकता है। वैसे भी थुरूर का ज्यादा समय विदेशों में ही बीता है, और वे शायद यह नहीं जानते कि बापू की जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश उनके विचारों और सिद्धांतों को समर्पित है।

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पवार और कांग्रेस की गले की फांस बनेगा विदर्भ का सूखा

सरकार बनाने में मुख्य भूमिका निभाएगा विदर्भ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए विदर्भ में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ सकता है। इस साल अपेक्षा से कम हुई बारिश से उपजी परिस्थितियों ने मतदाताओं का राकांपा और कांग्रेस से मोहभंग करवा दिया है।


गौरतलब होगा कि वर्तमान में सूबे में राकांपा और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार सत्ता पर काबिज है। दूसरी ओर केंद्र में भी कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन दूसरी बार अस्तित्व में आया है। केंद्रीय कृषि मंत्री का महत्वपूर्ण दायित्व राकांपा सुप्रीमो शरद पंवार के कांधों पर है।


प्राप्त जानकारी के अनुसार विदर्भ में संतरा पट्टी से लेकर कपास पट्टी तक किसानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। महराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर के इर्दगिर्द अकोला, रामटेक, वर्धा, यवतमाल, भंडारा, गोंदिया आदि एक दर्जन से अधिक तालुकों में किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय होने से वे आत्महत्या जैसा संगीन कदम उठाने पर मजबूर हैं।


गौरतलब होगा कि पिछले साल क्षेत्र में बारह सौ कपास उत्पादक किसान अर्थिक संकट के दौर से गुजरकर आत्महत्या कर चुके हैं। भले ही केंद्र सरकार कर्ज माफी की योजना पर अपनी पीठ थपथपा रही हो पर जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है।


वैसे भी विदर्भ में मेहान परियोजना (मल्टी मोडल इंटरनेशनल हब एंड एयरपोर्ट) लगभग पंद्रह हजार एकड़ जमीन को निगल चुकी है। मेहान वेसे भी महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कंपनी द्वारा पैदा की गई संस्था है। पूंजीपतियों से सांठगांठ के चलते यहां कि किसानों की उपजाउ जमीन जिस पर वे साल भर में तीन फसल लिया करते थे, को भी धनाड्य व्यापारियों को सौंपने की खबरें हैं।


समूचे विदर्भ और उससे सटे मध्य प्रदेश के इलाकों में रियल स्टेट के कारोबारियों की नजरें इनायत होने लगी हैं। इस इलाके में किसानों की उपजाउ जमीन खरीदकर किसानों को उनके मूल व्यवसाय से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। महानगरों के रियल स्टेट व्यवायियों ने यहां की एक एक इंच उपजाउ भूमि को खरीदकर उसे व्यवसायिक उपयोग में लाने की तैयारी की जा रही है।


नागपुर में कार्गो हब और ड्राय पोर्ट प्रस्तावित है, जिससे पूंजिपतियों ने पिछले एक दशक में यहां अपनी आमद दे दी है। जमीनों के बदले मिलने वाले पैसे किसानों द्वारा खर्च किए जा चुके हैं, अब उनके पास खाने के बांदे साफ नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर केंद्र और प्रदेश में कांग्रेसनीत सरकार तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री रहते हुए भी शरद पंवार द्वारा किसानों के लिए कुछ न किया जाना इस बार विधानसभा चुनाव में राकांपा और कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल से कम नहीं होगा।


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