कहर बरपाने को तैयार आतंकी
फियादीन और लश्कर के कमांडरों की आमद से घबराई सरकार
(लिमटी खरे)
देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर अब तक के सबसे बडे आतंकवादी हमले के बाद एक बार फिर से लश्कर, फियादीन, सिमी, हूजी के गुर्गों ने देश में आतंक फैलाने का ताना बाना बुना जा रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली, व्यवसायिक राजधानी मुंबई, कोलकता सहित समूचे देश में हाई एलर्ट जारी किया है, जिससे साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में आतंकी किसी बडी वारदात को अंजाम दे सकते हैं।
गृह मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि मुंबई स्थिति भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, बाम्बे स्टाक एक्सचेंज, शिवसेना मुख्यालय, कोलकता के अमरिकी वाणििज्यक दूतावास, नागपुर के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यालय सहित दिल्ली के अनेक भीडभाड वाले इलाके इन आतंकवादियों के निशाने पर हैं।
गृह मंत्रालय ने हाई एलर्ट 26 नवंबर को मुंबई हमले के एक साल पूरे होने के महज एक सप्ताह के अंदर ही जारी किया है। गौरतलब होगा कि इसके पूर्व पिछले ही माह में लश्कर के कमांडरों की घुसपैठ की खबर ने गृह मंत्रालय की नींद हराम कर रखी थी।
खुफिया एजेंसियों के सूत्रों की मानें तो अक्टूबर माह में पाकिस्तान पोषित लश्कर ए तैयबा के चार कामांडर भारत में घुसपैठ करने में सफल रहे थे। केंद्र ने राज्यों के सहयोग से इन कमांडरों के छिपने के ठिकानों पर नजर रखने को कहा था ताकि आतंकी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के पहले ही इनके नापाक कदमों पर पानी फेरा जा सके। विडम्बना ही कही जाएगी कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल के अभाव के चलते आतंकवादी अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते हैं।
वैसे खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि बंग्लादेश और पाकिस्तान से आतंकवादियों की घुसपैठ तो इस साल मई माह से ही आरंभ हो गई थी,, किन्तु आतंकियों ने अब तक यहां कोई हमले को अंजाम नहीं दिया है, जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि आतंकी दिसंबर या गणतंत्र दिवस के आसपास कोई बडी घटना को अंजाम देने वाले हैं।
वैसे पिछले माह तक खुफिया एजेंसियों ने अपने खुफिया आपरेशन में 63 आतंकवादियों को मारने में सफलता हासिल की थी जिनमें अधिकतर कमांडर स्तर के थे। काडर के बजाए कमांडर्स को मारने के अच्छे प्रतिसाद सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि एक कमांडर को मार गिराने से उसके नीचे काम करने वाले लगभग दस आतंकवादी दिशाविहीन हो जाते हैं।
कमांडर पर धावा बोलने की सुरक्षा तंत्र की रणनीति कारगार साबित हो रही है। इस तरह अगर कमांडर को ही मार गिराया जाए तो उसके अंडर में काम करने वाले आतंकवादी निर्धारित मिशन को पूरा करने में काफी मशक्कत करते हैं, और मिशन के असफल होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं।
सूत्रों का कहना है कि एसी परिस्थिति में आतंकवादियों का मनोबल बुरी तरह टूट जाता है और वे घटना को अंजाम दिए बिना ही वापस लौट जाते हैं। वैसे भारत के सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों को अत्याधिक सतर्कता इसलिए भी बरतना चाहिए क्योंकि पिछले साल 26 नवंबर के बाद अब तक आतंकवादियों ने किसी घटना को अंजाम नहीं दिया है।
दरअसल हिन्दुस्तान में बंग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों को रोकने की दिशा में न तो केंद्र सरकार ही कोई रणनीति बना सकी है और न ही राज्यों की सरकारें। पिछले दो दशक से भी अधिक समय से बंग्लादेशी घुसपैठियों ने भारत की धरा को अपना घर बना लिया है।
आज हर सूबे में बंग्लादेशी नागरिकों की तादाद में बेतहाशा बढोत्तरी हुई है। भ्रष्टाचार के शिष्टाचार के चलते इन बंग्लादेशियों ने न केवल भारत में अपने आप को स्थापित ही किया है, वरन इन्हें मतदाता पहचान पत्र तक सहज सुलभ हो गए हैं। वोटबैंक की चाहत में जनसेवकों द्वारा भी इस बडी समस्या के खिलाफ कोई आवाज बुलंद नहीं की जा रही है।
आज शहरों में उपनगरीय इलाकों में अवैध तौर पर रह रहे पाकिस्तान और बंग्लादेश के नागरिकों की बडी तादाद मौजूद है। इनके पास चालक अनुज्ञा पत्र (ड्रायविंग लाईसेंस), वोटर आईडी, राशन कार्ड आदि सभी प्रमाण मौजूद हैं। इनका इतिहास खंगालने पर मालूम किया जा सकता है कि वस्तुत: इनके पिता या दादा कहां निवासरत थे।
बहरहाल लश्कर और फियादीन के कमांडर्स के भारत में घुसने की खबर निश्चित तौर पर भारत सरकार की पेशानी पर पसीने की बूंदें छलकाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकतीं हैं, क्योंकि अब तक सीरियल बम विस्फोट रहे हों या आतंकी हमले हर बार भारत सरकार के खुफिया तंत्र की नाकामी ही सामने आई है।
वहीं दूसरी ओर अमेरिका में वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद आज तक आतंकवादियों ने अमेरिका की ओर देखने तक का साहस नहीं जुटाया है, पर रही बात हिन्दुस्तान की तो यहां का लचर सुरक्षा तंत्र आतंकवादियों को गतिविधियों को अंजाम देने के लिए उपजाउ माहौल ही मुहैया कराता आया है।
पिछली दिल दहला देने वाली घटनाओं के बाद भी हिन्दुस्तान के शासकों ने कोई सबक नहीं लिया है। पिछले एक साल से आतंकवादियों की चुप्पी कहीं तूफान के पहले की शांति न साबित हो।
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