हवा में तैरती दहशत
(लिमटी खरे)
देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की सुरक्षा में भारत सरकार पूरी तरह लापरवाह ही नजर आ रही है। महामहिम के हेलीकाप्टर के पंखों का छत से टकराना सामान्य बात नहीं मानी जा सकती है। भारतीय वायूसेना इस मामले को किस तरह लेकर जांच करती है, यह उनका आंतरिक मामला है। स्थानीय प्रशासन की रिपोर्ट पर संचालक नागर विमान पत्तन प्राधिकरण (डीजीसीए) भी इस मामले की जांच करेगा, किन्तु भारत सरकार को एक बार फिर अतिविशिष्ट लोगों की सुरक्षा के बारे में सोचना आवश्यक है।
गौरतलब होगा कि गत दिवस महामहिम जब उडीसा प्रवास पर थीं जब भुवनेश्वर हवाई अड्डे पर महामहिम राष्ट्रपति के हेलीकाप्टर के पंखे एक छत से टकरा गए। यह तो गनीमत थी कि इस हादसे में महामहिम प्रतिभा देवी, उनके पति देवी सिंह पाटिल सहित उडीसा के लाट साहेब एम.सी.भंडारी बाल बाल बच गए।
महामहिम के साथ घटी इस गंभीर चूक को सरकार कितना वजन दे रही है इस बात का अंदाजा महामहिम के आधिकारिक निवास राष्ट्रपति भवन की बयानबाजी से लगाया जा सकता है। महामहिम निवास इसे साधारण घटना बता रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि जगन्नाथ पुरी में एक अर्बन हाट का उदघाटन करने के बाद महामहिम अपने पति और महामहिम राज्यपाल के साथ भुवनेश्वर लौट रहीं थीं जहां 16 सीटर चौपर के पंखे हवाई अड्डे की एक एस्बेस्टास की छत से जा टकराए और उसके चार में से तीन पंखे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।
गौरतलब होगा कि महामहिम राष्ट्रपति के साथ यह तीसरा गंभीर हादसा घटित हुआ है। इसके पूर्व भी मुंबई प्रवास के दौरान महामहिम के काफिले में शामिल एक हेलीकाप्टर को उतरने की अनुमति दे दी गई थी, साथ ही वहां एक यात्री विमान को उसी रनवे पर उडान भरने की अनुमति उसी वक्त दे दी गई थी। वह तो पायलट की सूझबूझ थी कि हादसा टल गया वरना भारत देश किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचता कि जहां का तंत्र अपने प्रथम नागरिक की ही हिफाजत नहीं कर सकता वहां का तंत्र देश की सवा सौ करोड से अधिक की जनता की जान माल की हिफाजत की रक्षा का दावा कैसे और किस मुंह से करता है।
उस वक्त वायूसेना द्वारा इस घटना के जांच के आदेश दिए थे, जांच में क्या सामने आया है इस बात का खुलासा अभी नहीं हो सका है, किन्तु फिजां में तैर रही चर्चाओें पर अगर यकीन किया जाए तो मुंबई का मामला पूरी तरह अहं का था। बताया जा रहा है कि जांच में यह बात साफ तौर पर सामने आई है कि इस प्रकरण में महामहिम के काफिले में शामिल चौपर के पायलट ने एयर ट्रेफिक कंट्रोल (एटीसी) से हेलीकाप्टर उतारने की अनुमति ही नहीं ली थी।
इसके बाद बीते दिनों ग्वालियर में महामहिम के आगमन के पूर्व एक घटना में मध्य प्रदेश के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री सूबे के सरकारी पायलट केप्टन अनंत सेठी की जागरूकता के चलते बच गए। उस समय सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर दो स्कावडन को ``कलर`` देने के निमित्त ग्वालियर आ रहीं थीं। सेना में कलर से बडा कोई तगमा नहीं होता है।
जिस समय मध्य प्रदेश सरकार का विमान रनवे पर लैंडिंग के लिए पहुंचा तभी टेक्सी ट्रेक (रनवे के बीच में से एक छोटा रनवे जिस से गुजरकर विमान हैंगर में जाते हैं) जिसे टेिक्नकल एरिया भी कहते हैं, जिस पर वायूसेना के लोग ही आ जा सकते हैं, से एक वाहन आता दिखाई देने पर एटीसी ने विमान के पायलट अनंत सेठी को गो अरांउंड (लेंडिंग के दर्मयान ही पुन: टेक ऑफ) के आदेश दे दिए।
इस घटना के महज 20 मिनिट बाद ही महामहिम राष्ट्रपति का विमान वहां उतरना था। अमूमन देखा जाए तो व्हीव्हीआईपी के आगमन के लगभग आधे घंटे पहले ही सडकों को सील कर दिया जाता है, फिर ग्वालियर में जहां महमहिम को उतरना था वह तो भारतीय वायूसेना का एक एयर बेस था, जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।
इसके उपरांत इस घटना पर अपनी खाल बचाते हुए एयर फोर्स द्वारा यह कह दिया गया कि रनवे पर कुत्ते आ गए थे, जिस कारण एमपी गर्वमेंट के विमान को गो अरांउंड के आदेश देने पडे। सवाल यह उठता है कि वायू सेना के जिस रनवे पर उनका सर्वोच्च कमांडर आ रहा हो वह भी सर्वोच्च तगमा देना, उस रनवे पर कुत्ते आखिर कहां से आ गए। साथ ही साथ जब बीस मिनिट बाद महामहिम को आना था तो वे कुत्ते आखिर कहां हैं, क्या उन्हें पकड लिया गया या गोली मार दी गई। इस मामले में वायूसेना पूरी तरह खामोश ही नजर रही है। इस गंभीर लापरवाही पर केंद्रीय गृह मंत्री या देश के वजीरे आला की खामोशी आश्चर्यजनक ही थी।
बहरहाल गत दिवस भुवनेश्वर में हुआ हादसा सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है। गौरतलब होगा कि जब भी व्हीव्हीआईपी मूवमेंट होता है, तब एक एक जगह को मार्क किया जाता है। एक नहीं अनेकों बार उनके रूट की रिहर्सल होती है। उनके उपयोग में आने वाले वाहन या हेलीकाप्टर को कई बार दौडाया या उडाया जाता है।
इतना ही नहीं महामहिम राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को लेकर सडक पर चलने वाले वाहन या हवा में उडने वाले उडन खटोलों में उनके सारथी का परीक्षण बहुत बारीकी से किया जाता है। महामहिम के विमान या हेलीकाप्टर को उडाने वाले पायलट देश की वायूसेना के सर्वश्रेष्ठ पायलट ही होते हैं। इन पायलट को चुनते समय उनकी उडान दक्षता, आचार विचार, रहन सहन आदि मामलों में कतई कोताही नहीं बरती जाती है।
इसके साथ ही महामहिम के लिए बेहतर जहाज और बेहतर संसाधन मुहैया करवाए जाते हैं। भुवनेश्वर में भी यही हुआ होगा। महामहिम के आगमन के पूर्व पायलट ने कम से कम एक बार तो जगन्नाथ पुरी से भुवनेश्वर तक उडान भरकर रिहर्सल की ही होगी।
इसके अलावा जब भी विमान या चौपर लेंड करता है तो ग्रांउंड पर तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित कर्मचारी द्वारा उसे पार्क करवाने का काम किया जाता है। सरल शब्दों में अगर कहें तो जमीन पर आने के उपरांत पायलट को सामने खडे कर्मचारी के इशारों पर ही मशीन को पार्क करना होता है।
हेलीकाप्टर जब भी उतारा जाता है तो जमीन पर बडे से गोल घेरे में एच का निशान बनाया जाता है, जिस पर ही जाकर यह खडा हो जाता है। इस निशान के इर्द गिर्द इतनी जगह क्लीयरेंस के लिए होती है कि हेलीकाप्टर के पंखे आसानी से घूम सकें। जाहिर सी बात है कि भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर के चौपर की लैंडिंग के लिए भुवनेश्वर में भी एसा ही किया गया होगा।
फिर क्या वजह थी कि महामहिम का हेलीकाप्टर इस ``एच`` को छोडकर दूर बने एक शेड से टकरा गया, और उसके तीन पंख मुड गए। जानकारों का कहना है कि गनीमत तो यह थी कि वहां एस्बेस्टास की शीट थी, अगर उसके स्थान पर पक्का लेंटर्न या लोहे का फ्रेम होता तो चौपर हवा में कितनी दूर फिकता और उसकी क्या गत होती इसकी कल्पना मात्र से ही सिहरन उतपन्न हो जाती है।
इसके पूर्व मध्य प्रदेश में मशहूर पाश्र्व गायिका अनुराधा पोडवाल को इंदौर से गुना ले जाते सरकारी हेलीकाप्टर की इंदौर के समीप ही फोर्स लैंडिंग में वे घायल हो गईं थीं, वह तो शुक्र था कि उनका चौपर खेत की गीली जमीन में गिरा, वरना अगर सतह सख्त होती तो हादसे की गंभीरता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। यही बात भुवनेश्वर में लागू होती अगर हादसा होता, वहां रनवे तो पूरी तरह से सख्त ही था।
एक नहीं दो नहीं पूरी तीन बार महामहिम की विमान यात्रा में गंभीर अनियमितताएं अनेक संदेहों को जन्म दे रहीं हैं। यह पहला मौका था जबकि महामहिम खुद उस चौपर में सवार थीं। वरना दो हादसे तो उनके आने के पूर्व ही घटे थे। देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति जो भारतीय सेनाओं की सर्वोच्च कमांडर हैं की हवाई यात्राओं में वायूसेना द्वारा इस तरह की गंभीरतम चूक को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। जब मुंबई हादसे में महामहिम के कान्वाय में शामिल चौपर के पायलट को दोषी माना जा चुका है, उसके बाद अगर इस तरह की अक्षम्य चूक हो तो संदेहों के बीज मन में प्रस्फुटित होना स्वाभाविक ही है।
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