शनिवार, 26 दिसंबर 2009

जरूरत बांग्लादेशी घुसपैठियों पर नजर रखने की


जरूरत बांग्लादेशी घुसपैठियों पर नजर रखने की


(लिमटी खरे)


आने वाले दिनों में बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ तेज हो सकती है। इस तरह की आशंकाएं देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में फैलने लगीं हैं। इसके पीछी ठोस कारण भी दिए जा रहे हैं। मीडिया के अनुसार बांग्लादेश से कारोडों लोगों के पलायन की आशंका है। बंग्लादेश में तेजी से होते जलवायू परिवर्तन और भविष्य के संभावित कहर ने वहां के लोगों के मन में भय पैदा कर दिया है।
1971 में भारत पाक युद्ध के दरम्यान अस्तित्व में आए बांग्लादेश ने दुनियाभर के देशों से अपील की है कि वह बांग्लादेशी शरणार्थियों को अपने यहां पनाह देने देकर उनके पुनर्वास की दिशा में ठोस कदम उठाए। एक अनुमान के अनुसार बांग्लादेश के कोस्टल एरिया (तटीय क्षेत्र) में रहने वाले करोडों लोगों को वहां से पलायन करना होगा। यद्यपि बांग्लादेश ने भारत से सीधे तौर पर कोई गुजारिश नहीं की है किन्तु इन परिस्थितियों में बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए भारत में पनाह लेना सबसे मुफीद होगा।
वैसे भी कोपेनहेगन में ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता अवश्य जताई गई किन्तु इसका कोई कारगर हल निकलता नहीं प्रतीत हो रहा है। जलवायु परिवर्तन पर शोध करने वालों का दावा है कि आने वाले समय में एशिया और आफ्रीका का एक बहुत बडा भूभाग मानव जाति के रहने के लिए अयोग्य हो जाएगा। विशेषज्ञों का दावा है कि तब मानव आबादी का इतना बडा पलायन या विस्थापन होगा जो अब तक कभी भी नहीं हुआ है।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि आने वाले समय में भारत के तटीय क्षेत्रों में समुद्र जमकर तबाही बरपाएगा। इस तबाही में सुनामी या केटरीना से ज्यादा तेज और भयावह मंजर सामने आ सकता है। सुनामी और केटरीना जैसे तूफान आने के कुछ समय के उपरांत शांत हो गए थे, पर इस तबाही की सुबह होने की उम्मीद न के बराबर ही है। हिन्दुस्तान में मुंबई, मालद्वीव, कोलकता, गुजरात, उडीसा के तटीय इलाके, गोवा आदि के इसकी चपेट में आने की संभावनाएं प्रबल ही बताई जा रही हैं।
दुनिया में सबसे घनी आबादी वाले देश बांग्लादेश में लोगों में भय इसलिए भी व्याप्त है क्योंकि वहां के बसाहट वाले तटीय इलाक समुद्रतल से महज छ: से सात मीटर (तरकीबन 20 फीट) ही उपर हैं। विशेषज्ञों की मानें तो बांग्लादेश के तटीय इलाकों में निवास करने वाले लगभग दस करोड लोगों को अगले सत्तर सालों में अपनी सरजमीं छोडकर अन्यत्र ठिकाना बनाना ही पडेगा। वैसे भी बांग्लादेश में सबसे घनी आबादी बाले ढाका शहर की दूरी समुद्री सीमा से बहुत ज्यादा नहीं है।
जैसे ही भविष्य का रोडमेप बांग्लादेश के लोगों के सामने आता जा रहा है, वहां के लोगो के मानस पटल पर पलायन की बात कौंधना स्वाभाविक ही है। विशेषज्ञ यह भी बता रहे हैं कि आने वाले कुछ वषोZं में बांग्लादेश में अनाज की पैदावार में भी दस से तीस फीसदी की कमी होने की उम्मीद है।
गौरतलब होगा कि पहले से ही भारत अपनी कैंसर की तरह बढती आबादी को लेकर चिंतित है। आज भारत की आबादी ही भारत की प्रगति में सबसे बडी बाधा के तौर पर सामने है। न लोगों को खाने को रोटी है, न तन ढकने को कपडा और न सर छुपाने को जगह।
इसके साथ ही साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश के घुसपैठियों ने हिन्दुस्तान में आकर न केवल अपने आशियाने बनाए हैं, बल्कि देश में भ्रष्टाचार की जंग वाले सरकारी तंत्र में रिश्वत की दवा से अपने अपने राशन कार्ड, वोटर आईडी, चालक अनुज्ञा (ड्राईविंग लाईसेंस) आदि भी बनवा लिए हैं।
भारत को वैसे भी घनी आबादी वाले देशों में गिना जाता है। अगर बांग्लादेश से पलायन का आगाज होता है तो उनके लिए बेरोकटोक सीमा पार कर भारत आने के मार्ग प्रशस्त हो जाएंगे। तब इन अघोषित अनचाहे शरणार्थियों के रहने खाने की व्यवस्था बहुत ही बडा सरदर्द बनकर उभर सकता है।
यहां यह उल्लेखनीय होगा कि हिन्दुस्तान में आतंक बरपाने के लिए जिम्मेदार एक संगठन हूजी की जडें बांग्लादेश में गहरी जमी हुईं हैं। अगर बांग्लादेश से बडी तादाद में विस्थापित भारत आते हैं तो हूजी को भारत में जडें जमाने में देर नहीं लगेगी। उस वक्त भारत सरकार के सामने इस आंतरिक चुनौति से निपटना टेडी खीर ही साबित होगा।
ज्ञातव्य है कि कोपेनहेगन सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे बांग्लादेश के सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमण्डल के नेता सबेर हुसैन चौधरी ने वहां इस समस्या पर वजनदारी से प्रकाश डाला था। चौधरी ने मीडिया से मुखातिब होते हुए इशारों ही इशारों में कह दिया था कि कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन में जलवायू परिवर्तन से होने वाले आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय विस्थापन तथा पलायन पर भी गौर फरमाया जाना चाहिए।
भारत सरकार को चाहिए कि समय रहते अपने घनी बसाहट, अपर्याप्त खान पान के स्त्रोत, पाकिस्तान की नापक हरकतें और हूजी और सिमी जैसे संगठनों के साथ आंतरिक हालातों से समूचे विश्व को आवगत कराते हुए ऐसे तरीके खोजना चाहिए कि बांग्लादेश से विस्थापित होने वाले लोगों को दुनिया के अन्य देशों में बसाया जा सके।

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