रविवार, 28 फ़रवरी 2010

वाह री होली, जित देखो उत नओ नाम


वाह री होली, जित देखो उत नओ नाम
अनेकता में एकता भारत की विशेषता
होली तेरे नाम अनेक
(लिमटी खरे)

होली शब्द जेहन में आते ही सारा जहां रंगों से सराबोर दिखाई पडने लगता है। लगता है मानो कुदरत की सबसे अनुपम भेंट धरती और हम इंसानों सहित समूचे पशु पक्षी रंगों से नहा गए हों। होली का पर्व आते आते ही मन आल्हादित हो उठता है। युवाओं के मन मस्तिष्क में न जाने किसम किसम की भावनाएं हिलोरे मारने लगती हैं। प्रोढ और वृद्ध भी साल भर रंगो के इस त्योहार की प्रतिक्षा करते हैं। सबसे बडी और अच्छी बात तो यह है कि देश के हर धर्म, वर्ग, मजहब के लोग होली का पूरा सम्मान कर एक दूसरे से गले मिलने से नहीं चूकते हैं।
भारत को समूचे विश्व में अचंभे की नज़रों से देखा जाता है। इसका कारण यह है कि यहां हर 20 किलोमीटर की दूरी पर बोलचाल की भाषा में कुछ न कुछ परिवर्तन दिखने लगता है। हिन्दुस्तान ही इकलौता एसा देश है जहां हर धर्म, हर पन्थ, हर मजहब को मानने की आजादी है। दुनिया भर के लोग आश्चर्य इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि आखिर कौन सी ईश्वरीय ताकत है जो इतने अलग अलग धर्म, पन्थ, विचार, मजहब के लोगों को एक सूत्र में पिरोए रखती है।
अगर देखा जाए तो भारत कुदरत की इस कायनात का एक सबसे दर्शनीय, पठनीय, श्रृवणीय करिश्मा होने के साथ ही साथ महसूस करने की विषय वस्तु से कम नहीं है, यही कारण है कि हर साल लाखों की तादाद में विदेशी सैलानी यहां आकर इन्ही सारी बातों के बारे में अध्ययन, चिन्तन और मनन करते हैं। भारत के अन्दर फैली एताहिसक विरासतों में विदेशी सैलानी बहुत ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं।
भारत के अनेक प्रान्तों में होली को अलग अलग नामों से जाना जाता है। पर्व एक है, उल्लास भी कमोबेश एक ही जैसा होता है, बस नाम ही जुदा है। इसके साथ ही साथ इसे मनाने का अन्दाज भी बहुत ज्यादा हटकर नहीं है। अगर आप इब्नेबबूता (मुगलकालीन धुमक्कड) बनकर समूचे देश की सैर करें तो आप पाएंगे कि वाकई होली एक है, भावनाएं एक हैं, प्रेम का इजाहर कमोबेश एक सा है, बस अन्दाज कुछ थोडा मोडा जुदा है।
 
दुलैण्डी
होली शब्द के कान में गूंजते ही देवर भाभी के बीच की नोक झोंक, छेड छाड के फिल्मी दृश्य जेहन में जीवन्त हो उठते हैं। वैसे तो देश के अनेक भागों में देवर भाभी के बीच होने वाले पंच प्रपंच को होली से जोडकर देखा जाता है, पर हरियाणा में इसका बहुत ज्यादा प्रचलन है। मजे की बात यह है कि हरियाणा में इस दिन भाभी को देवर की पिटाई करने का सामाजिक हक मिल जाता है। इस दिन भाभी द्वारा पूरे साल भर की देवर की करतूतों हरकतों के हिसाब से उसकी पिटाई की जाती है। दिन ढलते ही शाम को लुटा पिटा देवर भाभी के लिए मिठाई लाता है।
फाग पूिर्णमा
बिहार में होली को फाग पूिर्णमा भी कहा जाता है। दरअसल फाग का मतलब होता है, पाउडर और पूिर्णमा अर्थात पूरे चान्द वाला। बिहार में शेष हिन्दुस्तान की तरह आम तरह की ही होली मनाई जाती है। ``नदिया के पार`` में दिखाई होली बिहार में खेले जाने वाले फगवा की ओर इशारा करती है। बिहार में होली को फगवा इसलिए भी कहते हैं क्योंकि यह फागुन मास के अन्तिम हिस्से और चैत्र मास के शुरूआती समय मनाई जाती है।
डोल पूिर्णमा
पश्चिम बंगाल में युवाओं द्वारा मनाई जाने वाली होली को डोल पूिर्णमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही केसरिया रंग का लिबास पहनकर युवा हाथों में महकते फूलों के गजरे और हार लटकाए हुए नाचते गाते मोहल्लों से होकर गुजरते हैं। कुछ स्थानों पर युवा पालकी में राधा कृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा रखकर सज धजकर उल्लास से झूमते नाचते हैं।
बसन्त उत्सव
पश्चिम बंगाल मेें इस उत्सव की शुरूआत नोबेल पुरूस्कार प्राप्त साहित्यकार गुरू रविन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। गुरूदेव के द्वारा स्थापित शान्ति निकेतन में बसन्त उत्सव का पर्व बहुत ही सादगी और गरिमा पूर्ण तरीके से मनाया जाता है। शान्ति निकेतन के छात्र छात्राएं न केवल पारंपरिक रंगों से होली खेलते हैं, बल्कि गीत संगीत, नाटक, नृत्य आदि के साथ बसन्त ऋतु का स्वागत करते हैं।
कमन पण्डिगाई
तमिलनाडू में होली का पर्व कमन पण्डिगाई के रूप में भी मनाया जाता है। तमिलनाडू में होली पर भगवान कामदेव की अराधना और पूजा की जाती है। यहां मान्यता है कि भोले भण्डारी भगवान शिव ने जब कामदेव को अपने कोप से भस्म किया था, तो इसी दिन कामदेव की अर्धांग्नी रति के तप, प्रार्थना और तपस्या के उपरान्त भगवान शिव ने उन्हें पुर्नजीवित किया था।
शिमगो
मूलत: शिमगो गोवा के इर्द गिर्द ही मनाया जाता है। महाराष्ट्र की कोकणी भाषा में होली को शिमगो का नाम दिया गया है। शेष भारत की तरह गोवा के लोग भी रंगों को आपस में उडेलकर बसन्त का स्वागत करते हैं। इस पर्व पर ढेर सारे पकवान बनाए जाते हैं, आपस में बांटे जाते हैं। खासतौर पर पणजिम में यह त्योहार बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों का मंचन भी इसी दिन किया जाता है।
होला मुहल्ला
पंजाब में होला मुहल्ला का इन्तजार हर किसी को होता है। यह होली के दूसरे दिन आनन्दपुर साहिब में लगने वाले सालाना मेले का नाम है। मान्यता है कि होला मुहल्ला की शुरूआत सिख पन्थ के दसवें गुरू, ``गुरू गोविन्द सिंह जी`` द्वारा की गई थी। तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के दौरान सिख समुदाय के लोग खतरनाक खेलों का प्रदर्शन कर उनके माध्यम से अपनी ताकत और क्षमताओं का प्रदर्शन करते हैं।
रंग पंचमी
समूचे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित मालवा अंचल में होली का जश्न और सुरूर एक दो नहीं पूरे पांच दिन होता है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुरैडी से लेकर रंग पंचमी तक लोग होली पूरे शबाब पर होती है। धुरैडी के उपरान्त लोग पांचवा दिन अर्थात रंग पंचमी का बेसब्री से इन्तजार करते हैं। प्रदेश के कुछ भागों में तो होली से ज्यादा आनन्द रंग पंचमी का लिया जाता है। राज्य मेें खासतौर पर मछुआरा समुदाय इस पर्व को बडी ही धूमधाम के साथ मनाता है। वे जोरशोर से नाचते गाते बजाते हैं। इस दिन हुई शादी को वे बहुत ही शुभ मानते हैं।

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

1411

आखिर कैसे बचें बाघ बहादुर 

जयराम उवाच देश में आदमियों की कमी नहीं, बाघों की है
 

हुजूर आते आते बहुत देर कर दी
 

अवैध शिकार रोकना टेडी खीर
 

वनाधिकारी और पुलिस की मिलीभगत से घट रही है बाघों की संख्या
 

(लिमटी खरे)

आधी सदी से ज्यादा समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस ने 1973 में बाघों को बचाने के लिए टाईगर प्रोजेक्ट का श्रीगणेश किया था। उस वक्त माना जा रहा था कि बाघों की संख्या तेजी से कम हो सकती है, अत: बाघों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया। विडम्बना देखिए कि उसी कांग्रेस को 37 साल बाद एक बार फिर बाघों के संरक्षण की सुध आई है। जिस तरह सरकार के उपेक्षात्मक रवैए के चलते देश में गिद्ध की प्रजाति दुर्लभ हो गई है, ठीक उसी तरह आने वाले दिनों में बाघ अगर चिडियाघर में शोभा की सुपारी की तरह दिखाई देने लगें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बाघ संरक्षण के लिए भारत सरकार की तन्द्रा तब जाकर टूटी है, जबकि कैंसर लगभग अन्तिम अवस्था में पहुंच चुका है। कितने आश्चर्य की बात है कि हर साल हजारों करोड रूपए खर्च करने के बाद भी बाघों का अस्तित्व दिनों दिन संकट में पहुंचता रहा। 2007 में बाघ संरक्षित क्षेत्रों में सबसे अधिक 245 बाघ सुन्दरवन में थे, इसके अलावा बान्दीपुर में 82, कॉबेZट मेे 137, कान्हा में 127, मानस 65, मेलघाट 73, पलामू 32, रणथंबौर 35, सिमलीपाल में 99 तो पेरियार में 36 बाघ मौजूद थे।
2007 में हुई गणना के आंकडों के अनुसार सरिक्सा 22, बक्सा 31, इन्द्रावती 29, नागार्जुन सागर में 67 नामधापा 61, दुधवा 76, कलाकड 27, वाल्मीकि 53, पेंच (महाराष्ट्र) 40, पेंच (मध्य प्रदेश) 14, ताडोबा 8, बांधवगढ 56, डम्पा 4, बदरा 35, पाकुल 26, एवं सतपुडा में महज 35 बाघ ही मौजूद थे, इसके अलावा 2007 में सर्वेक्षण वाले अतिरिक्त क्षेत्रों में कुनो श्योपुर में 4, अदबिलाबाद में 19, राजाजी नेशनल पार्क 14, सुहेलवा 6, करीमनगर खम्मन 12, अचानकमार 19, सोनाबेडा उदान्ती 26, ईस्टर्न गोदावरी 11, जबलपुर दमोह 17, डाण्डोली खानपुर में 33 बाघ चििन्हत किए गए थे।
दूसरे आंकडों पर गौर फरमाया जाए तो 1972 में भारत में 1827 तो मध्य प्रदेश में 457, 1979 में देश में 3017, व एमपी में 529, 1984 में ये आंकडे 3959 / 786 तो 1989 में 3854 / 985 हो गए थे। फिर हुआ बाघों का कम होने का सिलसिला जो अब तक जारी है। 1993 में 3750 / 912, 1997 में 3455 / 927, 2002 में 3642 / 710 तो 2007 में देश में 1411 तो मध्य प्रदेश में महज 300 बाघ ही बचे थे।
दुख का विषय यह है कि देश में 28 राष्ट्रीय उद्यान और 386 से अधिक अभ्यरण होने के बाद भी छत्तीसगढ के इन्द्रावती टाईगर रिजर्व नक्सलियों के कब्जे में बताया जाता है। इसके साथ ही साथ टाईगर स्टेट के नाम से मशहूर देश का हृदय प्रदेश माना जाने वाला मध्य प्रदेश अब धीरे धीरे बाघों को अपने दामन में कम ही स्थान दे पा रहा है, यहां बाघों की तादाद में अप्रत्याशित रूप से कमी दर्ज की गई है।
दरअसल, भुखमरी, रोजगार के साधनों के अभाव और कम समय में रिस्क लेकर ज्यादा धन कमाने की चाहत के चलते देश में वन्य प्राणियों के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हैं। विश्व में चीन बाघ के अंगों की सबसे बडी मण्डी बनकर उभरा है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बाघ के अंगों की भारी मांग को देखते हुए भारत में शिकारी और तस्कर बहुत ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। सरकारी उपेक्षा, वन और पुलिस विभाग की मिलीभगत का ही परिणाम है कि आज भारत में बाघ की चन्द प्रजातियां ही अस्तित्व में हैं। मरा बाघ 15 से 20 लाख रूपए कीमत दे जाता है। बाघ की खाल चार से आठ लाख रूपए, हडि्डयां एक लाख से डेढ लाख रूपए, दान्त 15 से 20 हजार रूपए, नखून दो से पांच हजार रूपए के अलावा रिप्रोडेक्टिव प्रोडक्ट्स की कीमत लगभग एक लाख तक होती है। बाघ के अन्य अंगो को चीन के दवा निर्माता बाजार में बेचा जा रहा है।
बाघ संरक्षण की दिशा में केन्द्र और राज्य सरकार कितनी संजीदा है उसकी एक बानगी है मध्य प्रदेश के पन्ना जंगल। पन्ना में 2002 में 22 बाघ हुआ करते थे, इसी लिहाज से इस अभ्यरण को सबसे अच्छा माना गया था। 2006 मे वाईल्ड लाईफ इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया (डब्लूआईआई) ने कहा था कि पन्ना में महज आठ ही बाघ बचे हैं। इसके उपरान्त यहां पदस्थ वन संरक्षक एच.एस.पावला का बयान आया कि पन्ना में बाघों की संख्या उस समय 16 से 32 के बीच है। जनवरी 2009 में डब्लूआईआई ने एक बार फिर कहा कि पन्ना में महज एक ही बाघ बचा है। इस तरह अब किस बयान को सच माना जाए यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है। अपनी खाल बचाने के लिए वनाधिकारी मनमाने वक्तव्य देकर सरकार को गुमराह करने से नहीं चूकते और सरकार है कि अपने इन बिगडैल, आरामपसन्द, भ्रष्ट नौकरशाहों पर एतबार जताती रहतीं हैं।
एसा नहीं है कि वन्य जीवों के संरक्षण के प्रयास पहले नहीं हुए हैं। गुजरात के गीर के जंगलों में सिंह को बचाने के प्रयास जूनागढ के नवाब ने बीसवीं सदी में आरम्भ किए थे। एक प्रसिद्ध फिरंगी शिकारी जिम काबेZट को बाघों से बहुत लगाव था। आजादी के बाद जब बाघों का शिकार नहीं रूका तो उन्होंने भारत ही छोड दिया। भारत से जाते जाते उन्होंने एक ही बात कही थी कि बाघ के पास वोट नहीं है अत: बाघ आजाद भारत में उपेक्षित हैं।
इतना ही नहीं आजाद भारत में विजयनगरम के महाराजा ने उस जगह तीस महीनों में तीस बाघों को मौत के घाट उतारा जहां वर्तमान कान्हा नेशनल पार्क स्थित है। बावजूद इसके तत्कालीन जनसेवक मौन साधे रहे। खबरें यहां तक आ रही हैं कि मध्य प्रदेश में कुछ सालों पहले एक बाघ को इसलिए काल कलवित होना पडा क्योंकि उसने गांव वाले की गाय को खा लिया था। गुस्साए ग्रामीणों ने अधखाए गाय के शरीर में जहर मिला दिया था।
हर साल टाईगर प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार द्वारा आवंटन बढा दिया जाता है। इस आवंटन का उपयोग कहां किया जा रहा है, इस बारे में भारत सरकार को कोई लेना देना प्रतीत नहीं होता है। भारत सरकार ने कभी इस बारे में अपनी चिन्ता जाहिर नहीं की है कि इतनी भारी भरकम सरकारी मदद के बावजूद भी आखिर वे कौन सी वजहें हैं जिनके कारण बाघों को जिन्दा नहीं बचाया जा पा रहा है।
सरकार की पैसा फेंकने की योजनाओं के लागू होते ही उसे बटोरने के लिए गैर सरकारी संगठन अपनी अपनी कवायदों में जुट जाते हैं। वन्य प्राणी और बाघों के संरक्षण के मामले में भी अनेक एनजीओ ने अपनी लंगोट कस रखी है। जनसेवकों के ``पे रोल`` पर काम करने वाले इन एनजीओ द्वारा न केवल सरकारी धन को बटोरा जा रहा है, बल्कि जनसेवकों के इशारों पर ही सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजनाओं में अडंगे भी लगाए जा रहे हैं। केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री कमल नाथ चाहते हैं कि स्विर्णम चतुभुZज सडक परियोजना के उत्तर दक्षिण गलियारे को उनके संसदीय क्षेत्र छिन्दवाडा से होकर गुजार जाए। वर्तमान में यह मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर गुजर रही है। इसके निर्माण में बाघा तब आई जब सर्वोच्च न्यायालय में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा याचिका प्रस्तुत की गई।
बताते हैं कि याचिका में कहा गया है कि चूंकि शेरशाह सूरी के जमाने का यह मार्ग पेंच और कान्हा नेशनल पार्क के बीच वन्य जीवों के कारीडोर से होकर गुजर रहा है अत: इसके फोर लेन बनाने की अनुमति न दी जाए। यह एनजीओ किसके इशारे पर काम कर रहा है, यह तो वह ही जाने पर यह एनजीओ इस बात को भूल जाता है कि अगर इस मार्ग को छिन्दवाडा से होकर गुजारा जाएगा तब यह सतपुडा और पेंच के कारीडोर के मध्य से गुजरेगा। इस बात को न तो सिवनी के ही किसी जनसेवक ने उठाया है और न ही क्षेत्रीय प्रबुद्ध मीडिया ने भी नज़रें इनायत की हैं।
आजाद भारत के इतिहास में सम्भवत: पहली बार किसी वन मन्त्री ने खुद जाकर वन अभ्यारणों की स्थिति का जायजा लिया होगा। यह बात तो सभी जानते हैं कि किसी मन्त्री के निरीक्षण की सूचना के बाद जमीनी हालात फौरी तौर पर किस कदर बदल दिए जाते हैं। इसके पहले देश के पहले प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू, प्रियदर्शनी इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी वन्य जीवों के प्रति संजीद दिखे, पर इनके अलावा और अन्य निजामों ने कभी वन्य जीवों के प्रति उदार रवैया नहीं अपनाया।
बाघों या वन्य जीवों पर संकट इसलिए छा रहा है क्योंकि हमारे देश का कानून बहुत ही लचर और लंबी प्रक्रिया वाला है। वनापराध हों या दूसरे इसमें संलिप्त लोगों को सजा बहुत ही विलम्ब से मिल पाती है। देश में जनजागरूकता की कमी भी इस सबसे लिए बहुत बडा उपजाउ माहौल तैयार करती है। सरकारों के उदासीन रवैए के चलते जंगलों में बाघ दहाडने के बजाए कराह ही रहे हैं।
जंगल की कटाई पर रोक और वन्य जीवों के शिकार के मामले में आज आवश्यक्ता सख्त और पारदशीZ कानून बनाने की है। सरकार को सोचना होगा कि आखिर उसके द्वारा इतनी भारी भरकम राशि और संसाधन खर्च करने के बाद भी पांच हजार से कम तादाद वाले बाघों को बचाया क्यों नही जा पा रहा है। मतलब साफ है कि सरकारी महकमों में जयचन्दों की भरमार है। भारत में बाघ एक के बाद एक असमय ही काल कलवित हो रहे हैं और सरकार गहरी निन्द्रा में है।
भारत में वृक्षों की पूजा अर्चना की संस्कृति बहुत पुरानी है। एक जमाना था जब लोग झाड काटने के पहले उसकी पूजा कर क्षमा याचना करते थे, फिर कुल्हाडी चलाते थे। कल तक भारत सरकार द्वारा भी वृक्ष बचाने के लिए बाकायदा जन जागृति अभियान चालाया जाता था। विज्ञापनों का प्रदर्शन और प्रसारण किया जाता था, जिससे वनों को बचाने जन जागृति फैल सके। विडम्बना है कि वर्तमान में वनों को बचाने की दिशा में सरकारें पूरी तरह निष्क्रीय ही नज़र आ रही है।
वजीरे आजम डॉ.एम.एम.सिंह ने व्यक्तिगत रूचि ली थी बाघों के संरक्षण की दिशा में। उन्होंने पर्यावरणविद सुनीता नारायण की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया। कार्यदल के प्रतिवेदन पर बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया।। बावजूद इसके बाघों की संख्या में कमी चिन्ताजनक पहलू ही माना जाएग। आदिवासियों को मिले वनाधिकारों ने भी बाघों के परलोक जाने के मार्ग प्रशस्त किए हैं। बाघ के इलाकों के इर्द गिर्द मानव बसाहट भी इनके लिए खतरे से कम नहीं है।
तेजी से कटते जंगल, स्पेशल इकानामिक जोन जैसी विशाल परियोजनाएं, रेल विस्तार परियोजनाएं, बांघ निर्माण के साथ ही साथ बढते रिहायशी इलाकों के कारण बाघ सहित अन्य वन्य जीवों के घरोन्दे सिकुडते जा रहे हैं। बन्दर बिलाव तो शहरों में जाकर रह सकते हैं, पर बाघ या हाथी तो मुम्बई, दिल्ली में विचरण नहीं कर सकते न। इन्हें तो घने जंगल ही चाहिए, जहां मानवीय हस्ताक्षेप न हो।
बाघ बचाने लिए सरकार को चाहिए कि वह जंगल की कटाई पर रोक के लिए सख्त कानून बनाए, टाईगर रिजर्व के आस पास कडी सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराए, इसके लिए विशेष बजट प्रावधान हो, नए जंगल लगाने की योजना को मूर्तरूप दिया जाने के साथ ही साथ बाघ को मारने पर फांसी की सजा का प्रावधान किया जाना आवश्यक होगा। वरना आने वाले एक दशक में ही बाघ भी उसी तरह दुर्लभ हो जाएगा जिस तरह अब गिद्ध हो गया है।

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

योग गुरू नहीं परिपक्व राजनेता हैं बाबा रामदेव

योग गुरू नहीं परिपक्व राजनेता हैं बाबा रामदेव

राजनीति के दांव पेंच भली भान्ति जानते हैं बाबा

योग तो एक बहाना था असल मकसद राजनीति में आना था

गांधी बनने की जुगत में हैं रामदेव

(लिमटी खरे)

देश में कथित अध्यात्म गुरू, ज्योतिषविद, प्रवचनकर्ताओं आदि की कमी किसी भी दृष्टिकोण से नहीं है। इन सबके बीच धु्रव तारा बनकर उभरे योग गुरू बाबा रामदेव बडे ही सधे कदमों से चल रहे हैं। एक परिपक्व राजनेता के मानिन्द पहले उन्होंने देश के बीमारों को स्वस्थ्य बनाने का बीडा उठाया। देश के प्राचीन अर्वाचीन योग को एक नई पेकिंग में बाजार में लांच किया, फिर समाचार और दूसरे चेनल्स के माध्यम से घरों घर में अपनी आमद दी। अब जबकि उनके अनुयायियों की खासी तादाद हो गई है, तब उन्होंने लोहा गरम देख राजनीति में आने का हथौडा जड दिया है।

पिछले चन्द दिनों से बाबा रामदेव के मुंह से योग के माध्यम से लोगों को स्वस्थ्य बनाने के बजाए राजनीति में आने की महात्वाकांक्षाएं ज्यादा कुलांचे मारती प्रतीत हो रहीं हैं। बाबा के मुंह से निकली यह बात किसी को भी आश्चर्यजनक इसलिए नहीं लग रही होगी क्योंकि बाबा रामदेव ने बहुत ही करीने से सबसे पहले अपने आप को महिमा मण्डित करवाया फिर अपनी इस महात्वाकांक्षा को जनता पर थोपा है।

बाबा रामदेव का कहना है कि अब राजनीति नहीं वरन योग नीति का वक्त आ गया है। स्वयंभू योगाचार्य बाबा रामदेव ने देश में केंसर की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार को योगनीति के माध्यम से दुरूस्त करने का मानस बनाया है। बाबा ने बहुत सोच समझकर गरीब और अविकसित भारत देश में भ्रष्टाचार के साथ ही साथ विदेशों में फैले भारत के काले धन को भारत लाने का कौल उठाया है। बाबा का कहना है कि देश में अनेक प्रकार के अपराधों के लिए तरह तरह के कानून बने हैं, लेकिन भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने के लिए एक भी कठोर कानून नहीं है। बाबा यह भूल जाते हैं कि भ्रष्टाचार करते पकडे जाने पर न जाने कितने जनसेवक जेल की हवा भी खा चुके हैं।

बाबा का कहना सही है कि जनता की गाढी कमाई पर एश करने वालों के लिए सिर्फ और सिर्फ मृत्युदण्ड का प्रावधान होना चाहिए। बाबा के इस कथन से सत्तर के दशक में आई उस समय के सुपर डुपर स्टार राजेश खन्ना और मुमताज अभिनीत चलचित्र ``रोटी`` का ``यार हमारी बात सुनो, एसा एक इंसान चुनो जिसने पाप न किया हो जो पापी न हो. . . `` की याद ताजा हो जाती है। बाबा रामदेव देश के अनेक शहरों में अपने योग शिविर की दुकानें लगा चुके हैं इस हिसाब से वे भली भान्ति जानते होंगे कि देश में गरीब गुरबे किस तरह रहते हैं। यह बात भी उतनी ही सच है जितना कि दिन और रात कि बाबा के पास वर्तमान में अकूत दौलत का भण्डार है। बाबा अगर चाहें तो गरीब गुरबों के लिए एकदम निशुक्ल योग शिविर और चिकित्सा शिविर लगाकर दवाएं बांट सकते हैं। वस्तुत: बाबा रामदेव एसा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि यह भी जानते हैं कि राजनेताओं का काम सिर्फ भाषण देना है, उसे अमली जामा पहनाना नहीं।

बाबा रामदेव के एजेण्डे में तीसरा तथ्य यह उभरकर सामने आया है कि उन्होंने ``हिन्दी की चिन्दी`` पर अफसोस जाहिर किया है। बाबा का कहना है कि आजादी के इतने समय बाद भी हम ब्रितानी मानसिकता के गुलाम हैं। आज भी न्यायालयों में हिन्दी के बजाए अंग्रेजी का ही बोल बाला है। बाबा रामदेव के इस कथन से हम पूरा इत्तेफाक रखते हैं, पर सवाल यह है कि समूची ब्यूरोक्रेसी में ही अंग्रेजी का बोलबाजा है, बाबा रामदेव बहुत चतुर खिलाडी हैं, वे अगर नौकरशाहों पर वार करते तो वे देश पर राज करने का जो रोडमेप तैयार कर रहे हैं उसके मार्ग में शूल ही शूल बिछा दिए जाते, यही कारण है कि बाबा रामदेव नौकरशाहों पर परोक्ष तौर पर निशाना साध रहे हैं।

बाबा रामदेव के कदम ताल को देखकर यह माना जा सकता है कि वे आजादी के उपरान्त महात्मा गांधी की छवि को अपने अन्दर सिमटाना चाह रहे हैं। चाहे देश आजाद हुआ हो तब या वर्तमान परिदृश्य हो, राजनीति की धुरी गांधी के इर्द गिर्द ही सिमटी रही है। तब मोहन दास करमचन्द गांधी बिना किसी पद पर रहते हुए राजनीति के केन्द्र थे तो आज कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों राजकाज की कमान है। लगता है बाबा रामदेव चाहते हैं कि वे सोनिया गांधी की तरह ही सबसे शक्तिशाली बने रहें और सक्रिय राजनीति में न रहें। बाबा रामदेव यह भूल जाते हैं कि आदि अनादी काल से राजकाज में सहयोग का काम राजगुरूओं का होता रहा है न कि कथित योग गुरू का। न तो बाबा रामदेव राजगुरू हैं और न ही वे धर्म गुरू। रही बात अपने आप को सबसे श्रेष्ठ समझने की तो शंकराचार्य के बारे में टिप्पणी करने के उपरान्त उन्हें माफी भी मांगनी पडी थी यह बात किसी से छिपी नहीं है।

हमारा अपना मानना है कि बाबा रामदेव पूरी तरह मुगालते में हैं। हमने अपने पिछले आलेखों ``राष्ट्रधर्म की राह पर बाबा रामदेव`` और ``बाबा रामदेव का राष्ट्रधर्म`` में बाबा रामदेव की भविष्य की राजनैतिक बिसात के बारे में इशारा किया था। उस दौरान बाबा रामदेव के अंधे भक्तों ने तरह तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त की थीं। राजनेताओं को कोसना बहुत आसान है। जनसेवकों की मोटी खाल पर इसका कोई असर नहीं होता है। बाबा रामदेव ने भी जनसेवकों को पानी पी पी कर कोसा है। रामदेव यह भूल जाते हैं कि जैसे ही बाबा रामदेव उनकी कुर्सी हथियाने का साक्षात प्रयास करेंगे वैसे ही ये सारे राजनेता एक सुर में तान छेड देंगे और फिर आने वाले समय में बाबा रामदेव को अपनी योग की दुकान भी समेटना पड सकता है।

बाबा रामदेव के पास अकूत दौलत है। यह दौलत उन्होंने पिछले लगभग डेढ दशक में ही एकत्र की है। मीडिया की ताकत से बाबा रामदेव भली भान्ति परिचित हो चुके हैं। मीडिया चाहे तो किसी को फर्श से उठाकर अर्श पर तो किसी को आसमान से जमीन पर उतार सकता है। आने वाले समय में बाबा रामदेव अगर कोई समाचार चेनल खोल लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, साथ ही प्रिंट की दुनिया में भी बाबा रामदेव उतर सकते हैं। हमें यह कहने मेें कोई संकोच नहीं कि मीडिया के ग्लेमर को देखकर इस क्षेत्र में उतरे लोग सरेआम अपनी कलम का सौदा कर रहे हैं। मीडिया को प्रजातन्त्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। प्रजातन्त्र के तीन स्तंभ तो गफलत, भ्रष्टाचार, अनैतिकता के दलदल में समा चुके हैं। लोगों की निगाहें अब मीडिया पर ही हैं, और मीडिया ही अगर अंधकार के रास्ते पर निकल गया तो भारत में प्रजातन्त्र के बजाए हिटलर राज आने में समय नहीं लगेगा।

बहरहाल बाबा के एक के बाद एक सधे हुए कदम से साफ जाहिर होने लगा है कि बाबा रामदेव के मन मस्तिष्क में देश पर राज करने की इच्छा बहुत पहले से ही थी। उन्होंने योग का माध्यम चुना और पहले लोगों को इसका चस्का लगाया। जब लोग योग के आदी हो गए तो योग गुरू ने अपना असली कार्ड खोल दिया। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापन के पीछे यही उद्देश्य प्रतीत हो रहा है। अब बाबा रामदेव ने इसके कार्यकर्ताओं से ज्यादा से ज्यादा सदस्य बनाने का आव्हान कर डाला है। बाबा के कदमों को देखकर यही कहा जा सकता है कि ``योग तो एक बहाना था, बाबा रामदेव का असल मकसद तो राजनीति में आना था।``

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

अटल, राजनाथ से किनारा करती भाजपा

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

अटल, राजनाथ से किनारा करती भाजपा

भाजपा के नए निजाम गडकरी के लिए इन्दौर की ओमेक्स सिटी में हुए तीन दिनी सम्मेलन में भाजपा अपने आदर्श और पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी तथा निर्वतमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह से किनारा करते ही नज़र आई। इस सम्मेलन के मुख्य द्वार पर नए अध्यक्ष गडकरी के साथ राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवानी के ही चित्र नज़र आए। इसमें निर्वतमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी गेट पर दिखाया नहीं गया। सम्मेलन में जिस तरह से आडवाणी का महिमा मण्डन और बाकी पूर्व अध्यक्षों की उपेक्षा की गई उसके बाद से राजनैतिक फिजां में तरह तरह की चर्चाओं के बाजार गर्मा गए हैं। लोग तो यह तक कहने से नहीं चूक रहे हैं कि आडवाणी के बाहुपाश में बंधे नितिन गडकरी आने वाले समय में नितिन आडवाणी प्राईवेट लिमिटेड बनाकर ही छोडेंगे। भले ही लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद आडवाणी ने तज दिया हो पर प्रधानमन्त्री बनने की उनकी ललक में कहीं कमी नहीं आई है। चर्चा है कि पिछली बार लोकसभा चुनावों में बुरी तरह पिटने के बाद अब आडवाणी की चाहत देश भर में एक अलग छवि बनाने की है, और इसी मिशन के तहत अब पार्टी ने अटल बिहारी बाजपेयी से किनारा कर लिया है, साथ ही अपने पूर्व अध्यक्षों को भी हाशिए पर लाकर सिर्फ और सिर्फ आडवाणी को ही प्रोजेक्ट किए जाने की कार्ययोजना बनाई जा रही है।

महामहिम के आदेश से हिमाचल सरकार सकते में
देश में सबसे बडे संवेधानिक पद महामहिम राष्ट्रपति का फरमान हो या उनके कार्यालय का, बात एक ही मानी जाती है। महामहिम कार्यालय के फरमान ने हिमाचल प्रदेश की सरकार को संशय में डाल दिया है। हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के सारी गांव का 12वीं पास युवा निरंजन कुमार चाहता है कि उसे एक दिन का राष्ट्रपति या मुख्यमन्त्री बनना चाहता है। इस हेतु उसने महामहिम राष्ट्रपति को आवेदन कर एक दिन के लिए देश का राष्ट्रपति बनाने की गुहार लगाई है। निरंजन ने आगे कहा है कि अगर उसे एक दिन का राष्ट्रपति राष्ट्रपति नहीं बनाया जा सकता है, तो कम से कम उसे एक दिन का मुख्यमन्त्री ही बना दिया जाए ताकि वह कुछ करके दिखाए। निरंजन ने अपने आवेदन में एक दिन में देश के विकास और गरीबी दूर करने के सुझाव भी दिए हैं। उसने अपने आवेदन में कहा है कि देश में बहुत सारी एसी प्रतिभाएं हैं जो एक दिन में देश का विकास कर सकतीं हैं। इस आवेदन को राष्ट्रपति सचिवालय की बेलगाम नौकरशाही ने अिग्रम कार्यवाही के लिए हिमाचल सरकार को अग्रेषित कर दिया है। अब हिमाचल सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि अिग्रम कार्यवाही के मायने आखिर क्या हैं।

बंगाल के खाते में रहेगा इस बार का बजट
आम बजट आने को है, इस बार का समूचा बजट पश्चिम बंगाल के चुनावों के मद्देनज़र वहां समर्पित किया जा सकता है। इसका सबसे बडा कारण वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी और रेल मन्त्री ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल से होना है। वैसे भी रेलमन्त्री बनने के बाद ममता बनर्जी ने अपना सारा ध्यान बंगाल पर ही केन्द्रित कर लिया है। ममता तो बाकायदा अपना कार्यालय बंगाल से ही चला रहीं हैं। उन्होंने अपने पार्टी के मन्त्रियों को भी बंगाल पर ध्यान देने की बात कही है। बंगाल में रेल मन्त्रालय द्वारा जारी किए जाने वाले सरकारी विज्ञापनों में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह की तस्वीरें हटा दी गईं हैं। वहीं दूसरी और कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केन्द्र 10 जनपथ के सूत्रों की मानें तो बंगाल के चुनावों को मद्देनज़र रख प्रणव दा ने सोनिया को इसके लिए राजी कर लिया है कि वे अपना खजाना बंगाल के लिए खोल दें, अगर एसा हुआ तो देश के अन्य सूबों का दुर्भाग्य ही होगा, क्योंकि जो मन्त्री जिस सूबे से है, वह अपने सूबे को ठेंगा ही दिखा रहा है।

खून की होली की तैयारी में नक्सलवादी
देश में नक्सलवाद आग की तरह फैलता जा रहा है। लाल दायरा धीरे धीरे समूचे भारत को अपने आगोश में लेते जा रहा है। छत्तीसगढ में नक्सलवाद तेजी से उभरता जा रहा है। गुप्तचर एजेंसी के सूत्रों की मानें तो छत्तीसगढ से साढे छ:: सौ नक्सलवादियों का जत्थ होली पर तबाही मचाने के उद्देश्य से बिहार और बंगाल के अनेक इलाकों में घुस गए हैं। बताया जाता है कि ये सभी भाकपा माओवादी के हमलावर दस्ता पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के सदस्य हैं। कहते हैं कि ये सभी हर मामले में दक्ष हैं। छत्तीसगढ में केन्द्रीय सुरक्षा बल के दबाव बढने के उपरान्त ये नक्सलवादी यहां से कूच कर गए हैं। बिहार के सिल्दा में माओवादी हमले में 24 जवानों और जमुई में 12 लोगों की मौत हुई है। सूत्रों का कहना है कि इस बार होली में ये बुरी तरह आतंक बरपा सकते हैं।

रीढ विहीन हैं फिकरमन्द
देश का दुर्भाग्य है कि सरकार के अधिकांश मन्त्री पिछले रास्ते अर्थात राज्यसभा से संसदीय सौंध तक पहुंचे हैं, अर्थात जिन्हें जनता द्वारा नकारा गया है, या जो जनता का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं, वे देश के नीति निर्धारक बने बैठे हैं। अब देश के पांच मन्त्रियों को यह चिन्ता सताए जा रही है कि वे अगली बार कैसे अपनी लाल बत्ती को बरकरार रख पाएंगे। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के चहेते प्रतिरक्षा मन्त्री ए.के.अंटोनी,, उद्योग मन्त्री आनन्द शर्मा, खेल मन्त्री एम.एस.गिल, वन एवं पर्यावरण मन्त्री जयराम रमेश और सबसे खराब परफार्मेंस वालीं अंबिका सोनी इस साल रिटायर हो रहीं हैं। इसके अलावा इस साल 65 राज्य सभा सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो रही है। सभी का दुबारा पुनर्वास सम्भव प्रतीत नहीं हो रहा है। खासकर खेल मन्त्री एम.एस.गिल, सूचना प्रसारण मन्त्री अंबिका सोनी और पर्यावरण मन्त्री जयराम रमेश की कारगुजारियों से पार्टी के आला नेता खुश नहीं दिख रहे हैं।

दिग्गी में दिखती अर्जुन की छवि
पूर्व केन्द्रीय मन्त्री अर्जुन सिंह को बीसवीं सदी के अन्तिम दशकों में कांग्रेस का कूटनीतिक चाणक्य माना जाता था। ढलती उमर के चलते उन्हें राजनीतिक बियावान से शून्य की ओर धकेल दिया गया है। अर्जुन खामोश हैं, लोगों को बहुत आश्चर्य है। इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के दूसरे नंबर के ताकतवर महासचिव दिग्विजय सिंह में लोग अर्जुन सिंह का अक्स ढूंढते मिल रहे हैं। माना जा रहा है कि अब अर्जुन सिंह की तर्ज पर ही दिग्विजय सिंह चाणक्य बनने की जुगत में हैं। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को साधने की महती जवाबदारी दिग्गी के कांधो पर डाली गई। अर्जुन सिंह की राह पर ही चलते हुए उन्होंने बटाला एनकाउंटर और आजमगढ मामले में जमकर सियासत की। इतना ही नहीं भारी विरोध के बावजूद न केवल दिग्गी राजा वहां गए वरन अब तो वे कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को भी आजमगढ ले जाने की तैयारियों में जुट गए हैं। कांग्रेस के वर्तमान गांधी (राहुल और सोनिया) को साधकर राजा दिग्विजय सिंह ने ``एक साधे सब सधें`` की कहावत को चरितार्थ कर दिया है।

बिग बी के निशाने पर मीडिया
मीडिया और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की दोस्ती और बैर कोई नया नहीं है। बिग बी की तारीफों और आलोचनाओं से सदा ही मीडिया पटा पडा रहता है। अब अपनी इकलौती बहू को लेकर मीडिया और बिग बी आमने सामने हैं। मुम्बई मिरर में यह खबर आई कि एश्वर्या राय बच्चन को पेट का कैंसर है, इसलिए वे फिलहाल मां नहीं बन सकतीं। जैसे ही यह खबर फिजां में तैरी वैसे ही मीडिया की सुर्खियां बनते देर नहीं लगी। इससे अमिताभ बच्चन का परिवार बहुत आहत हुआ है। एशवर्या ने एक खत जारी कर यह पूछा है कि बिना पुष्टि के इस तरह की खबर जारी कर किसी का माखौल उडाने का आखिर क्या मतलब है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि अमर सिंह और अमिताभ की मित्रता के चलते हो सकता है कि समाजवादी पार्टी के नए मैनेजरों ने इस तरह की प्लांट खबर फिजां में तैरा दी हो। अभिषेक बच्चन ने टि्वटर पर टिप्पणी की है कि मीडिया ने पहले भी उनके और उनके पिता अमिताभ बच्चन के बारे में अनर्गल बातें कहीं हैं, जो बर्दाश्त की जा चुकी हैं पर घर की महिलाओं को तो कम से कम इस तरह के दुष्प्रचार से दूर रखा जाना चहिए।

मान गए कोडा को
करोडों रूपयों के घोटाले के आरोप में जेल की सलाखों के पीछे बैठे मधु कोडा भले ही अपने भाग्य और करनी को कोस रहे हों पर केन्द्र में कांग्रेसनीत सरकार उन पर जबर्दस्त तरीके से मेहरबान नज़र आ रही है। सी.पी.जोशी के नेतृत्व वाला ग्रामीण विकास मन्त्रालय आज भी अपने संसदीय सलाकार बोर्ड में उनके ओहदे को बरकरार रखे हुए है। कोडा इस समिति में स्थाई आमन्त्रित की हैसियत से हैं। मजे की बात तो यह है कि इस समिति के सदस्य कांग्रेस की नज़र में भविष्य के प्रधानमन्त्री राहुल गांधी भी हैं। जेल में रहने के कारण वे इस समिति की बैठक में भाग नहीं ले पाए हैं पर वे चाहें तो विशेषाधिकार के तहत इसमें भाग लेने की मंशा जता सकते हैं, और अगर उन्होंने इस तरह की मंशा जताई तो केन्द्र सरकार मुश्किल मे पड सकती है। उधर बिना धार का विपक्ष सब कुछ जानते बूझते इतने अहम मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठा है।

रक्षक बने भक्षक
पुलिस का काम आम जनता की जान माल की रक्षा का होता है। पुलिस के द्वारा आम जनता के जान माल को लूटना कोई नई बात नहीं है। पिछले दिनों मध्य प्रदेश के कटनी जिले में जो हुआ है, वह खाकी वदीZ पर काले दाग से कम नहीं है। फिर भी सूबे के मुख्मन्त्री शिवराज सिंह चौहान नीरो की तरह चैन की बंसी बजा रहे हैं। कटनी जिले के बरतारा बरतरी गांव में पुलिस का कहर टूटा एक दलित महिला पर। पुलिस ने एक महिला को ज़िन्दा ही जलाने का प्रयास किया। यह मामला संगीन अपराध की श्रेणी में आता है। यह सच है कि इस काम को अंजाम दिया है पांच पुलिस कर्मियों ने पर भरोसा तो सूबे के समूचे पुलिस महकमे के उपर से उठा है। इन पांचों को सजा मिलेगी या नहीं यह समय ही बताएगा पर इनके खिलाफ क्या कार्यवाही की जा रही है, यह आम जनता के सामने आना जरूरी है। इनके खिलाफ कठोरतम कार्यवाही होना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की हरकत करने के पहले खाकी धारण करने वाला लाख मर्तबा सोचे।

आखिर क्या बला है बीटी बैगन
इन दिनों बीटी बैगन का मामला मीडिया में छाया हुआ है। हर कोई बीटी बैगन का जिकर कर रहा है। चौक चौराहों पर बीटी बैगन का चर्चा आम है। बीटी बैगन, जयराम रमेश के बारे में तो लोग बढ चढकर बात कर रहे हैं, पर बीटी बैगन है क्या बला यह कोई बताने को राजी नहीं है। दरअसल जमीन में पाए जाने वाले एक बैक्टीरिया बेसिलस थुरिंजिएिन्सस अर्थात बीटी के एक जीन को निकालकर बैगन में प्रत्यारोपित कर दिया गया है। यह जीन एक खास तरह के प्रोटीन का निर्माण करता है, जिसकी वजह से बैगन के मूल गुणों में परिवर्तन हो जाता है। यह जीन फसल को कीडों से भी बचाता है, इसीलिए इस जीन की मदद से तैयार बैगन को बीटी बैगन कहा गया है। इसी जीन का प्रयोग कर देश में बीटी काटन का निर्माण भी हो रहा है। बीटी बैगन मानव स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त है या नहीं यह अभी साफ नहीं हो सका है। पूरी दुनिया में अभी किसी भी देश में इसके उत्पादन को मंजूरी नहीं मिली है, पर भारत है कि इस मामले में श्रेय लेने की गरज से इसका उत्पादन सबसे पहले करना चाह रहा है।

यह है अजमेर का हाल सखे
के सीरियल के लिए विख्यात एकता कपूर के साथ ख्वाजा की दरगाह अजमेर में जो कुछ हुआ वे शायद ही भूल पाएं। उनके प्रशंसकों ने उनके साथ जबर्दस्त तरीके से बदसलूकी की। इतना ही नहीं भीडभाड में दरगाह परिसर में एकता का मोबाईल भी जेब तराशों ने पार कर दिया। ख्वाजा के दर पर देश विदेश से लोग अपनी मुराद मांगने या पूरी होने पर मत्था टेकने आते हैं। यहां मची लूट किसी से छिपी नहीं है। ख्वाजा के सेवक होने का दावा करने वाले काली टोपी वाले साहेबान सदा ही अपने आने वालों पर टूट पडते हैं, एवज में वे श्रृद्धालुओं को बेवकूफ बनाकर मोटी रकम भीं एंठ लेते हैं। ख्वाजा के दर पर पुलिस का सख्त पहरा है, बावजूद इसके यह सब बदस्तूर जारी रहता है। मतलब साफ है कि जो भी होता है वह पुलिस की मिली भगत से ही होता है। अरे पैसे के भूखे सरकारी नुमाईन्दो कम से कम धर्मस्थलों को तो इस सबसे महफूज रखा होता।

झूल भैया झूल तेरी टोपी मे फूल
बडा पुराना गाना है यह, यह गाना तब सुनाया जाता है जब कभी भी बच्चे को बहलाना होता है। मध्य प्रदेश का आलम भी कमोबेश इसी तरह का है। सूबे के निजाम चाहे दिग्विजय सिंह रहे हों, उमाश्री, बाबू लाल गौर या फिर शिवराज सिंह चौहान, सभी ने सूबे के बच्चों को यही गाना सुनाकर बहलाने का जतन ही किया है। सूबे में बिजली की किल्लत हद दर्जे पर है। परीक्षा सिर पर है, और गांव गांव में बिजली का टोटा है। उधर शिवराज सिंह द्वारा दिल्ली आकर दूसरे सूबों को बिजली बेचने की बात कही जाती है। समूचे मध्य प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में बिजली की कटौती जारी है। इस कटौती से बिजली विभाग के मुख्यालय जबलपुर और भोपाल को मुक्त रखा गया है। एक समय था जब दिग्गी राजा के गढ राजगढ, कमल नाथ के छिन्दवाडा, जबलपुर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बिजली कटौती नहीं की जाती थी। आज नक्सल समस्या सर चढकर बोल रही है, फिर भी बालाघाट, मण्डला, डिण्डोरी आदि जिलों में बिजली कटौती जारी है। बच्चे लालटेन युग की ओर लोट रहे हैं, चिमनी और भभके में पढने को मजबूर बच्चों को इक्कीसवीं सदी में भी शिवराज सिंह चौहान वही पुराना गाना झूल भैया झूल सुना रहे हैं।

पुच्छल तारा
रायपुर से स्वति खरे ने ई मेल भेजा है। जिसके अनुसार भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा मन्दिर दो मिस्जद लो कहा गया है। दरअसल पेशे से राजनेता और उद्योगपति नितिन गडकरी के बारे में अब यह कहा जा रहा है कि वे अपने राजनेता के बजाए उद्योगपति के अनुभवों को साझा कर रहे हैं क्योंकि बाजार में किसी के साथ कुछ फ्री की स्कीम बडी ही कारगर साबित होती है।

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

दिग्भ्रमित लग रहे हैं भाजपा के आला नेता

दिग्भ्रमित लग रहे हैं भाजपा के आला नेता
कभी मन्दिर, कभी युवा तो कभी किसान पर जाकर टिक जाती है नेताओं की नज़रें
इस बार कमजोर विपक्ष साबित हुई भाजपा
सत्ता प्राप्ति हुई अहम, जनसेवा हुई गौड
(लिमटी खरे)

भारतीय जनता पार्टी का ग्राफ जिस तेजी से उपर उठा था, पिछले एक दशक में उतनी ही तेजी से अब वह रसातल की ओर जाता प्रतीत हो रहा है। पार्टी का एजेण्डा इन दिनों क्या रहा कोई भी ठीक तरीके से नहीं बता सकता है। इसका कारण भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेताओं का सत्ता संघर्ष कहा जा सकता है। यह सच है कि किसी की छवि बनाने और बिगाडने में मीडिया की बडी भूमिका रहती है, और मीडिया को अपने निहित स्वार्थों के लिए साध साधकर भाजपाई नेताओं ने पार्टी के बजाए खुद को स्थापित करने के प्रयास किए हैं।
अब भाजपा की लगाम बहुत साधारण कार्यकर्ता रहे नितिन गडकरी के हाथों में सौंपी गई है। गडकरी की भविष्य की योजनाएं क्या हैं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने क्या रोडमेप तैयार किया है, यह तो भविष्य में ही साफ हो सकेगा, किन्तु अब भाजपा का नया एजेण्डा राम मन्दिर, गंगा शुद्धिकरण और कश्मीर जैसे मुद्दे पर आकर टिक गया है। राम के नाम को भुनाकर एक बार भाजपा सत्ता की मलाई चख चुकी है, किन्तु सत्ता में आने के बाद वह अपने मुद्दे से भटक गई थी। अब दुबारा राम नाम के सहारे भाजपा की हिचकोले खाती नैया से वेतरणी पार करने का प्रयास जारी है।
इन्दौर में हुए तीन दिनी महाकुंभ में हुए मन्थन के उपरान्त जो तथ्य निकलकर आए हैं, उनसे यही समझा जा सकता है कि भाजपा किसी भी कीमत पर आम आदमी की परवाह के स्थान पर अब येन केन प्रकरणेन सत्ता हासिल करना चाह रही है। भाजपा के आला नेता भूल चुके हैं कि राम मन्दिर का मुद्दा अब शायद प्रासंगिक ही नहीं बचा है। 1992 में बावरी ढांचे के दौरान युवाओं ने जो जोश खरोश दिखाया था, वे अब 18 साल बाद अधेडावस्था को पा चुके हैं। उनके मानस पटल से बाबरी विध्वंस की यादें और उसके बाद भाजपा का यू टर्न विस्मृत नहीं हुआ होगा।
रही बात अब शिव की जटा से निकली गंगा मैया के शुद्धिकरण की तो भाजपा को देश की जनता को यह बताना ही होगा कि जब छ: साल वे सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर थे तब उन्होंने गंगा के लिए क्या किया। जनता यह सवाल अवश्य ही पूछेगी कि आखिर अब गंगा की याद कैसे आई और अब क्या यह राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवानी की जटा से निकलने वाली है। कश्मीर मुद्दा अवश्य ही प्रासंगिक माना जा सकता है। इस मामले में भी भाजपा का सत्ता में रहते हुए इतिहास मौन ही है। 2004 के बाद भाजपा विपक्ष में है, पर भाजपा के प्रदर्शन को देखकर कहा जा सकता है कि भाजपा एक कमजोर विपक्ष के तौर पर अपनी छवि बना सकी है।
तीन दिनी माथा फोडी के बाद एक तथ्य उभरकर साफ तौर पर सामने आया है कि इन तीन दिनों में भाजपा के आला नेताओं ने अपनी अलग अलग भाव भंगिमाएं दिखाकर मीडिया की सुर्खियों में रहने का प्रयास तो अवश्य किया है, किन्तु अन्तिम छोर के आम आदमी के लिए उसके जेहन में कितनी चिन्ता है, इस बारे में चर्चा की फुरसत भाजपा को नहीं मिल सकी, जो अपने आप में आश्चर्यजनक मानी जा सकती है।
भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता और वंशवाद के लिए कल तक कांग्रेस को ही पर्याय माना जाता रहा है, अब भाजपा भी उसी राह पर चली पडी है। भाजपा में भी इस तरह के गम्भीर रोग लग चुके हैं, जिनके इलाज के प्रति भाजपा संजीदा नहीं दिखाई पड रही है, यही कारण है कि भाजपा को कांग्रेस का भगवा संस्करण भी माना जाने लगा है। नाराजगी के चलते भाजपा के अनेक नेताओं ने इन्दौर सम्मेलन से किनारा करना ही उचित समझा।
उधर भाजपा के पितृ संगठन माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा के लिए जो कार्ययोजना तैयार की थी उसमें भी पलीता लगाने के प्रयास आरम्भ हो गए हैं। माना जा रहा है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत चाहते हैं कि टीम गडकरी में उन लोगों को शामिल किया जाए जो भाजपा में कायाकल्प करने का माद्दा रखते हों। संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो संगठन में अंगद की तरह पांव जमाए बैठे कुछ आला नेताओं की छुट्टी के हिमायती हैं संघ प्रमुख।
होना यह चाहिए कि टीम गडकरी में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोश, राजनाथ सिंह, अनन्त कुमार, वेंकैया नायडू अब मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाएं। इसके साथ ही साथ संगठन में उन चेहरों को तवज्जो दी जानी चाहिए जो कार्यकर्ताओं और जनता से बेहतर संवाद कायम कर सकें। गडकरी की ताजपोशी वैसे भी गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र कुमार मोदी को रास नहीं आई है। यही कारण है कि उन्होंने गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद उनसे जाकर सौजन्य भेंट करना तक उचित नहीं समझा। संघ जिन नेताओं को टीम गडकरी का हिस्सा बनाना चाह रहा है, उनकी राह में भाजपा के आत्म केन्द्रित नेताओं द्वारा शूल बोने के काम भी किए जा रहे हैं।
कुल मिलाकर इन्दौर के महाकुंभ के बाद यह साफ हो गया है कि भाजपा का एजेण्डा अब सत्ता प्राप्ति ही रह गया है। भाजपा के दिग्भ्रमित आला नेता अपने घालमेल वाले एजेण्डे को लेकर भविष्य की कार्ययोजनाएं बनाने में जुटे हुए हैं। यह सब देखकर भाजपा की आने दिनों वाली राह बहुत ही धुंधली ही नज़र आ रही है।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

आशा और आंगनवाडी कार्यकर्ताओं ने दिखाई जागरूकता और जीते इनाम

आशा और आंगनवाडी कार्यकर्ताओं ने दिखाई जागरूकता और जीते इनाम

मल्टीमीडिया अभियान में आंगनवाडी कार्यकर्ता सम्मेलन संपन्न

विदिशा 16 फरवरी। केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय के विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय डीएवीपी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और भारत निर्माण योजनाओं पर आधारित मल्टी मीडिया जनजागरण अभियान के आज दूसरे दिन आंगनवाडी और आशा कार्यकर्ताओं का सम्मेलन किया गया।
जिला महिला और बाल विकास विभाग और क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय डीएफपी के संयुक्त संचालन में विशेषज्ञों द्वारा आशा और आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी दी गई। सम्मेलन में डीएफपी के श्री डी.एन.अग्निहोत्री ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और भारत निर्माण योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने आंगनवाडी और आशा कार्यकर्ताओं को ग्रामीण विकास और बेहतर स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने के सुझाव दिए।
इस मौके पर महिला बाल विकास विभाग की सुपरवाईजर श्रीमति संध्या विठोलिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सम्मेलन में विदिशा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत आंगनवाडी और आशा कार्यकर्ता बडी संख्या में शामिल हुए। उन्होंने मंच पर पूछे गए शत प्रतिशत जवाब देकर अपनी जागरूकता का परिचय दिया।
इस अवसर पर डीएफपी की सागर और छिन्दवाडा इकाई द्वारा प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया, जिसमें विजेताओं को पुरूस्कार भी बांटे गए। सम्मेलन में आयी सभी आशा आंगनवाडी कार्यकर्ताओं ने डीएवीपी द्वारा लगाई गई स्वास्थ्य ग्राम स्वस्थ्य राष्ट्र एवं भारत प्रगति की ओर प्रदर्शनी का अवलोकन किया। मंगलवार को भी बडी संख्या में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने डीएवीपी द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन किया
आज के कार्यक्रम
दोपहर एक बजे से पंच सरपंच सम्मेलन
दोपहर दो बजे से निशुल्क् होम्योपैथी चिकित्सा परामर्श शिविर जिसमें भोपाल के होम्योपैथी चिकित्सक मौजूद रहेंगे।

कांग्रेस का भगवा संस्करण बनकर रह गई है भाजपा

कांग्रेस का भगवा संस्करण बनकर रह गई है भाजपा 
नारे लगाने में उत्साद हैं भाजपाई
 
ये है भाजपा की चाल, यह चरित्र और यह रहा चेहरा
 
(लिमटी खरे)

भारतीय जनता पार्टी के नए निजाम नितिन गडकरी के लिए मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी माने जाने वाले इन्दौर शहर का उपनगरीय इलाका सज धज कर तैयार है। भाजपा के पिछले एक दशक के कार्यकाल को देखकर लगने लगा है मानो यह कांग्रेस का भगवा संस्करण ही बनकर रह गई है। वर्तमान समय में सत्ता प्राप्ति के लिए हर स्तर पर जाने आमदा भाजपा द्वारा अपने सिद्धान्तों के साथ अनेक समझौते किए हैं और यह मुख्य धारा से भटकती दिख रही है।
पूर्व में भाजपा द्वारा सबसे अलग दिखने का दावा किया जाता रहा है। आज भाजपा सबसे अलग दिखने की बजाए अन्य राजनैतिक दलों की पिछलग्गू ही दिखाई पड रही है। भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों की झण्डाबरदार भाजपा के जितने निजाम बदले उन्होंने हर बार एक नया स्लोगन दिया पर उस बात पर कायम नहीं रह सकी। कभी सौगंध राम की खाते हैं, हम मन्दिर वहीं बनाएंगे का गगन भेदी नारा लगाने वाली भाजपा ने जब अयोध्या में राम मन्दिर बनाने की बात आई तो अपने हाथ खीच लिए। मजे की बात तो यह है कि जब केन्द्र में भाजपानीत एनडीए और उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार थी, तब भाजपा ने यह कहकर मामले को ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया था कि मन्दिर मुद्दा एनडीए के मेनीफेस्टो का हिस्सा नहीं है।
फिर अत्याचार न भ्रष्टाचार, हम देंगे अच्छी सरकार, का नारा बहुत चला। इस नारे को जब अमली जामा पहनाने की बारी आई तो भाजपा टांय टांय फिस्स ही हो गई। भाजपा का समूचा कार्यकाल चाहे केन्द्र में रहा हो या सूबों में सदा ही भ्रष्टाचार के लिए चर्चित रहा है। ताबूत, शक्कर, दूरसंचार, यूटीआई जैसे बडे घोटालों के दाग अभी भी भाजपा के धवल आंचल से धुल नहीं सके हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके शिबू सोरेन से भी हाथ मिलाने में भाजपा ने कोताही नहीं की।
जिस एनरान को अरब सागर में डुबो देने की बात भाजपा द्वारा की जा रही थी, उसी एनरान के साथ भाजपा ने समझौता किया। भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार इस कदर सडांध मार रहा है कि कहा नहीं जा सकता, बावजूद इसके भाजपा के आला नेता खामोशी अिख्तयार किए हुए हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में नौकरशाहों ने अत्त मचा रखी है। सरकारी योजनओं में सरेआम डाका डाला जा रहा है। जनता हलाकान है पर भाजपा के आला नेता नीरो के मानिन्द चैन की बंसी बजा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में अरविन्द जोशी और टीनू जोशी तो छत्तीसगढ में बाबू लाल अग्रवाल के लाकर करोडों रूपए उगल रहे हैं। भाजपा के जनसेवक माल अंटी करने में लगे हुए हैं, पर शीर्ष नेतृत्व इसी जुगाड में है कि किस तरह केन्द्र में सत्ता में आया जाए और 7 रेसकोर्स (प्रधानमन्त्री का सरकारी आवास) पर कब्जा जमाया जाए। अगर देखा जाए तो आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस की तरह ही अब भाजपा ने भी आम आदमी की चिन्ता छोड दी है।
चुनाव आते ही अल्पसंख्यकों को रिझाने की गरज से भाजपा अपनी पार्टी लाईन से भटकती ही दिखाई देती है। जब भी कोई राजनैतिक दल के आला नेता रमजान के दौरान रोजा अफ्तार पर जाते हैं, तो भाजपाई चीख चीख कर कहते हैं कि यह मुसलमानों के तुष्टीकरण की नीति है, पर जब अफ्तार की दावत अटल बिहारी बाजपेयी या एल.के.आडवाणी के घर पर होती है तब इसे क्या कहा जाएगा।
विडम्बना ही कही जाएगी कि भाजपा द्वारा हमेशा जिन मुद्दों को आधार बनाकर कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दलों की आलोचना की जाती रही है, आज उन्हीं मार्गों पर भाजपा ने कदम बढा दिए है। कितने आश्चर्य की बात है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत अफसरान को उपकृत करने के लिए भाजपाई मुख्यमन्त्रियों द्वारा प्रोटोकाल तक को ताक पर रख दिया जाता है। मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी विकास मन्त्री अनूप मिश्रा राज्य मन्त्री थे, उस समय सेवानिवृत मुख्य सचिव आदित्य विजय सिंह को केबनेट का दर्जा दे दिया गया था। इतना ही नहीं वर्तमान में उर्जा मन्त्री राजेन्द्र शुक्ला हैं, ये स्वतन्त्र प्रभार वाले राज्य मन्त्री हैं, तो सेवानिवृत्त मुख्य सचिव राकेश साहनी को उनका सलाहकार बनाया गया है। यहां एक बार फिर विसंगति सामने आ रही है। मन्त्री राज्य मन्त्री स्तर के तो उनके सलाहकार राकेश साहनी को दिया गया है केबनेट मन्त्री का दर्जा। अर्थात राज्य मन्त्री के अधीन केबनेट मन्त्री काम करेंगे।
रही बात अत्याचार की तो गुजरात में नरेन्द्र मोदी के गोधरा काण्ड से भाजपा की रीति नीति उजागर होती है। वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश में पिछली बार जब भाजपा सरकार काबिज हुई थी, तब सिवनी जिले के भोमाटोला ग्राम में एक ही दलित परिवार की महिलाओं के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना लोगों के दिमाग से विस्तृत नहीं हुई होगी, कि किस कदर उच्च वर्ग के परिवारों द्वारा सरेआम गांव वालों के सामने इन महिलाओं के साथ बलात्कार किया था।
अब जबकि 17 फरवरी से मध्य प्रदेश के इन्दौर में भाजपा की तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यपरिषद की बैठक का आयोजन किया जा रहा है, तब मीडिया में तरह तरह के कायस लगाए जा रहे हैं कि भाजपा के नए निजाम अपनी किन किन रणनीति को अमली जामा पहनाने का प्रयास करेंगे। हो सकता है नितिन गडकरी के दिलो दिमाग में कुछ नया करने का अरमान हो, किन्तु अब तक के निजामों ने कुछ नया नहीं किया है। इस लिहाज से यही कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी और कुछ नहीं वरन् कांग्रेस का भगवा संस्करण ही बनकर रह गई है।

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

मल्टी मीडिया जागरूकता अभियान प्रदर्शनी उद्घाटित

मल्टी मीडिया जागरूकता अभियान प्रदर्शनी उद्घाटित
प्रदर्शनी से लोगों में जागरूकता बढेगी : शाह
विदिशा 15 फरवरी। ``भारत सरकार के सूचना प्रसारण मन्त्रालय द्वारा लगाई गई मल्टी मीडिया प्रदर्शनी से विदिशा जिले के लोगों में स्वास्थ्य और भारत निर्माण के प्रति जागरूकता में इजाफा होगा। इस तरह के आयोजनों से निश्चित तौर पर जन सामान्य के बीच सरकारी योजनाओं की जानकारी बेहतर तरीके से पहुंचाई जा सकती हैं।`` उक्ताशय की बात नगर पालिका विदिशा की अध्यक्ष श्रीमति ज्योति शाह ने डीएवीपी की मल्टीमीडिया प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर कही।
इस अवसर पर अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी श्री शरद चन्द शुक्ला, मुख्य कार्यपालन अधिकारी एम.एल.कौरव, महिला बाल विकास जिला कार्यक्रम अधिकारी नकी जहां कुरैशी सहित अनेक पार्षद और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। पालिकाध्यक्ष श्रीमति शाह ने इत्मीनान से समूची प्रदर्शनी का अवलोकन किया एवं डीएवीपी के फील्ड पब्लिसिटी ऑफीसर समीर वर्मा से प्रदर्शनी के बारे में गहराई से मालूमात की। जनसामान्य के लिए प्रदर्शनी खुलने के बाद बडी संख्या में नागरिकों ने इस प्रदर्शनी का आवलोकन कर स्वास्थ्य सम्बंधी सरकारी जानकारियों और भारत निर्माण योजना के बारे में विस्तार से जाना।
गौरतलब है कि भारत सरकार के सूचना प्रसारण मन्त्रालय के विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय द्वारा जिला मुख्यालय विदिशा के मेला ग्राउण्ड के रामलीला मैदान में मल्टी मीडिया प्रदर्शनी का आयोजन 15 फरवरी से 19 फरवरी तक किया गया है। इस प्रदर्शनी में सेवा सदन नेत्र चिकित्सालय, बैरागढ़, क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय सागर और छिन्दवाडा, भारत संचार निगम लिमिटेड, स्वास्थ्य, महिला बाल विकास, आयुष, आयुर्वेद, होम्योपैथिक एवं नगर पालिका द्वारा अपनी योजनाओं की जानकारी सहित स्वसहायता समूहों द्वारा अपने उत्पादों आदि का प्रदर्शन किया जा रहा है।
उल्लेखनीय होगा कि इस प्रदर्शनी में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी मल्टी मीडिया फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से आम जनों को दी जा रही है। इस अभियान में मुख्य रूप से जिला प्रशासन, जिला पंचायत, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, नेहरू युवा केन्द्र, क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय, गीत एवं नाटक प्रभाग, पत्र सूचना कार्यालय, आकाशवाणी, दूरदर्शन सहित स्व सहायता समूह, गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी है।

संगीन नहीं सपेरों के साए में रहेंगे भाजपाई

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
 
संगीन नहीं सपेरों के साए में रहेंगे भाजपाई
अमूमन देश के जनसेवक या जनसेवक बनने की चाह वाले लोगों का संगीनों के साए में रहना पुराना शगल रहा है, इतिहास में संभवतः यह पहला मौका होगा जबकि भाजपा के आला नेता संगीनों के साथ ही साथ सपेरों के साए में दो रात और तीन दिन रहेंगे। दरअसल इंदौर में 17 से 19 फरवरी तक चलने वाली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का जो स्थान चुना गया है, वह वर्तमान में खेत ही है। इस स्थल के चयन के पीछे भी तरह तरह की चर्चाओं के बाजार गर्मा गए हैं। कोई कहता है कि भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी के रिश्तेदार द्वारा उस जगह पर प्रापर्टी डीलिंग का काम कराया जा रहा है, अतः उन्हें उपकृत करने की गरज से उस स्थान का चयन किया गया है, कोई कोर्ट की अवमानना की बात कह रहा है। इसी बीच अधिवेशन स्थल पर सांपों के बहुतायत में निकलने की खबरों से भाजपा के आला नेता घबराए हुए हैं। आला नेताओं ने सांप से डर के बारे में आयोजकों को साफ तौर पर वाकिफ करा दिया है। आयोजकों ने फौरी तौर पर तो सांप के जितने बिल दिखे उन्हें बंद कर दिया है। इसके बाद भी आयोजक कोई चांस लेना नहीं चाहते सो आयोजन स्थल पर सपेरों और सांप पकडने में महारथ हासिल करने वालों को इंगेज कर लिया है। अब चर्चा आम है कि वन्य जीवों से प्यार जताने वालीं भाजपाई सांसद मेनका गांधी इन सांपों के बिल बंद कराने पर चुप क्यों हैं।
अलसाए निजामों को है सुरक्षा की चिंता!
देश की आंतरिक सुरक्षा किस कदर भिदी पडी है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। देश के वजीरे आजम भी इस मसले पर संजीदा हैं। यही कारण है कि उन्होंने देश के अनेक सूबों के निजामों को बुला भेजा और एक बैठक का आयोजन कर दिया। इस बैठक की कार्यवाही में अनेक प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने जो किया वह निश्चित तौर पर शर्मनाक ही कहा जाएगा। हुआ यूं कि बैठक के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा देश की आंतरिक सुरक्षा, बढती घुसपैठ, नक्सलवाद, अलगाववाद, पूर्वोत्तर विद्रोह, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय तनाव, सीमापार जारी आतंकवाद आदि पर मुख्यमंत्रियों से चर्चा कर रहे थे और देश के अनेक प्रदेशों के मुख्यमंत्री खुर्राटे भर रहे थे। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चैहान, राजस्थान के अशोक गहलोत, असम के तरूण गोगोई, केरल के वी.एस.अच्युतानंद और आंध्र के मुख्यमंत्री के.के.रोसेया प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान चैन की नींद सो रहे थे। सवाल यह उठता है कि देश के जो सूबे इन सभी मामलों में आंतरिक तौर पर असुरक्षित हों और प्रधानमंत्री के गंभीर भाषण के दौरान रोम के नीरो की तरह चैन की बंसी बजाएं तो हो चुकी जनता के जान माल की सुरक्षा।
रमन को तलब किया सुप्रीम कोर्ट ने
देश की सबसे बडी अदालत ने छत्तीसगढ सरकार से कहा है कि वह उन 12 लोगों को पेश करे जिन्होंने दंतेवाडा में नक्सलियों के खिलाफ छेडे गए अभियान में ग्रामीणों के मारे जाने की घटना की सीबीआई से जांच की मांग कर रहे थे। दरअसल ये 12 लोग पिछले कुछ दिनों से लापतागंज के निवासी हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी और सूरिंदर सिंह निज्जर की खण्डपीठ ने हिमांशु कुमार की याचिका की सुनवाई के दौरान रमन सिंह सरकार की कार्यप्रणाली पर तीखी आलोचना व्यक्त की है। कोर्ट ने इस आदेश की प्रति छग सरकार के मुख्य सचिव को तत्काल भेजने के आदेश भी दिए हैं। मानव अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु का कहना है कि छग सरकार द्वारा इन एक दर्जन लोगों को बार बार धमकाया जा रहा है, और इसके बाद ये लोग लापता हैं। मामले की सुनवाई 15 फरवरी को निर्धारित की गई है।
बंगाल चुनाव पर बाबा रामदेव की नजर
बाबा रामदेव लाख कहें कि सक्रिय राजनीति से उनका कोई सरोकार नहीं है, पर उनकी हरकतें और बयान बार बार इस ओर इशारा करते हैं कि वे राजनीति के अखाडे में कूदने की जबर्दस्त इच्छा रखते हैं। कभी वे विदेशों से काला धन वापस लाने के मसले में एन लोकसभा के चुनावों के दरम्यान भाजपा के सुर से सुर मिलाते नजर आते हैं और बाद में उसे भूल जाते हैं तो कभी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से गपचुप मुलाकात करते पाए जाते हैं। अब बाबा की नजरें पश्चिम बंगाल के चुनावों पर इनायत होती नजर आ रहीं हैं। बाबा रामदेव ने हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार को आडे हाथों लिया है। कहते हैं कि बाबा इस समय त्रणमूल कांगे्रस की सुप्रीमो ममता बनर्जी से पींगे बढाते नजर आ रहे हैं। ममता बनर्जी के नेतृत्व में सूबे में चल रही परिवर्तन की लहर में अब बाबा रामदेव भी कूदने आतुर दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि बाबा रामदेव इस साल अक्टूबर माह से पश्चिम बंगाल के हर जिले का दौरा करने वाले हैं। कोलकता में उन्होंने यह कहकर सभी को चैंका दिया कि पश्चिम बंगाल में बत्तीस सालों से वाम मोर्चा की सरकार है और यहां लोग भुखमरी के शिकार हैं, यहां तक कि लोग पत्ते और चींटी खाने को मजबूर हैं।
क्या ठाकरे ब्रदर्स इसकी आलोचना का साहस करेंगे!
पाकिस्तान के खिलाफ शिवसेना और मनसे दोनों ही के कर्ताधर्ता ठाकरे ब्रदर्स ने मोर्चा खोल रखा है। कोई भी मसला अगर पाक और मुबई से जुडा हो तो ठाकरे ब्रदर्स लोगों को काट खाने को दौडते हैं। हाल ही में एक मसला प्रकाश में आया है, जिसमें बोलने का साहस शायद ठाकरे ब्रदर्स नहीं कर पाएं क्योंकि इस मामले में उन्हें उत्तर भारत आकर मोर्चा खोलना पडेगा। दरअसल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में पतंगबाज के शौकीनों पर लाहौर हाईकोर्ट ने गाज गिरा दी है। कोर्ट ने पाक के पंजाब प्रांत में पतंगबाजी पर यह कहकर प्रतिबंध लगा दिया है कि यह शौक जानलेवा है। गौरतलब है कि पतंग उडाते समय गिरने से 18 लोगों की मौत और 24 घायल हो गए हैं। निराश पतंगबाजों के लिए हिन्दुस्तान के अनेक पतंगबाज संघ ने उन्हें बसंत के दौरान ही भारत आकर पतंगबाजी करने का न्योता दिया है, और वह भी आने जाने, रूकने खाने पीने के किराए के साथ। अब अगर ठाकरे ब्रदर्स में दम है तो उत्तर भारत आकर इनके खिलाफ मोर्चा खोलकर दिखाएं।
कौन बांधेगा बाघ को फ्रेंडशिप बेंड
बाघ संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय बैठक में भारत के प्रस्ताव को मानते हुए वेलंटाईन डे को बाघ दिवस के तौर पर मनाने सर्वसम्मति बन गई है। 14 फरवरी से अंतर्राष्ट्रीय बाघ वर्ष मनाने का भी निर्णय लिया गया है। कितनी विडम्बना है कि शिवसेना जिसका प्रतीक शेर ही है, वह वेलंटाईन डे पर प्रेमी युगलों को सरेआम पीटता है, और दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिन से बाघ वर्ष को मनाने का निर्णय लिया गया है। कारबेट नेशलन पार्क से वेलंटाईन डे पर आरंभ होने वाले बाघ वर्ष का समापन इसी साल नवंबर में साल पूरा होने से पहले ही रणथम्बोर नेशनल पार्क में किया जाएगा। वैसे भी दुनिया भर के कुल बाघों की आबादी का साठ फीसदी भाग भारत में ही मौजूद है। गौरतलब है कि भारत गणराज्य के वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश पहले भी कह चुके हैं कि देश में आदमियों की कमी नहीं है, कमी है तो बाघों की, सो बाघों की चिंता उन्हें दिन रात खाए जा रही है। रमेश की वन्य जीवों के प्रति चिन्ता का स्वागत किया जाना चाहिए किन्तु पूर्वोत्तर के राज्यों में आदमखोर बाघों द्वारा मारे गए लोगों के बारे में रमेश के इस तरह के बयान से उनका मानसिक दिवालियापन ही झलकता है।
मंहगाई: अब राकांपा हुई बावली
देश में मंहगाई का ग्राफ आसमान की बुलंदियों को छू रहा है। देश में आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस पार्टी इसके लिए अपनी ही सरकार के कृषि मंत्री शरद पंवार से इस मामले में बुरी तरह खफा है, पर सरकार चलाने की मजबूरी के चलते वह अपने देश की जनता के साथ होते अन्याय को चुपचाप देखने पर मजबूर है। मंहगाई पर कांग्रेस से घिरने के बाद राकांपा जिसके सुप्रीमो खुद शरद पंवार हैं, बुरी तरह बावली हो उठी है। मंहगाई पर अब राकांपा ने उल जलूल बयान देने आरंभ कर दिए हैं। राकांपा के मुखपत्र राष्ट्रवादी में कहा गया है कि चीनी न खाने से मर नहीं जाएंगे। मंहगाई पर तर्क के बजाए कुतर्क करते हुए इसमें कहा गया है कि चीनी नहीं खाने से किसी की मौत नहीं होती है। पत्रिका की सम्पादकीय में कुतर्क का आलम यह है कि उसमें लिखा है कि जिन्हें मधुमेह होता है, वे चीनी नहीं खाते हैं, पर उनकी मौत नहीं होती है। साथ ही अन्य सोंदर्य प्रसाधनों की उंची कीमतों के बारे में कोई नहीं कहता कि मंहगाई बढ रही है। शायद पत्रिका के संपादक यह नहीं जानते कि खाना न खाने से आदमी पर क्या बीतती है और लाली लिपिस्टिक न लगाने पर क्या बीतती है।
स्वाईन फ्लू बना पुलिस की कमाई का जरिया
देश में सर्दी का मौसम आते ही बर्ड और स्वाईन फ्लू का आतंक पसर ही जाता है। पक्षियों और सूअर जनित इन दोनों ही बीमारियों के चलते देश में दहशत व्याप्त है। क्या आप सोच सकते हैं कि देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की पुलिस द्वारा इसमें भी अवैध कमाई का रास्ता निकाला जाएगा। जी हां, यह सच है दिल्ली पुलिस ने इसमें भी कमाई का रास्ता खोज लिया है। पिछले दिनों दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया के नौकर के साथ घटे हादसे तो यही साबित होता है। बताते हैं कि किरण वालिया के घर खाना बनाने वाला नौकर टोप बहादुर जब अपने भाई राजन को आनंद विहार पैसे देने गया तो उसने पाया कि उसके भाई राजन को पुलिस ने पकड रखा था। बाद में पता चला कि पुलिस ने राजन को यह कहकर धमकाया कि उसे स्वाईन फ्लू है, और पास खडी एंबूलेंस में बैठे डाक्टरनुमा लोगों की तरफ इशारा कर उसका स्वास्थ्य परीक्षण कराने की बात कही जाकर उसके सारे पैसे छुडा लिए थे। बाद में जब पुलिस को पता चला कि यह दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया के खानसामा का भाई है तब जाकर उन्होंने राजन को छोडा मगर पैसे वापस नहीं किए।
तब गे एसे मनाएंगे वेलंटाईन
प्रेम के इजहार के पश्चिमी त्योहार वेलंटाईन डे का सुरूर भारत में भी सर चढकर बोल रहा है। प्रेमी प्रेमिका तो प्यार का इजहार कर लेंगे पर समलेंगिग अर्थात गे इसका इजहार कैसे करेंगे। भावनाओं को कागज पर उकेरने वाले कार्ड निर्माताओ ने गे लोगों को भी प्यार के इजहार करने के मार्ग प्रशस्त कर दिए हैं। दो पुरूष और दो महिलाओं की तस्वीर वाले कार्ड अब बाजार में उपलब्ध हो गए हैं। यू एण्ड मी वाले वेलंटाईन कार्ड से बाजार पट गया है। वैसे समलेंगिगता को कानूनी मान्यता के बाद चली बहस अब ठंडी पड गई है, पर गे लोगों के हौसले आज भी बुलंदियों पर हैं। गे अपने आप को कानूनी तौर पर सही ठहराने से नहीं चूक रहे हैं। रही सही कसर वेलंटाईन डे पर कार्ड के निर्माताओं ने पूरी कर दी है। राजधानी दिल्ली सहित समूचे देश में गे कार्ड की बिकावली में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया जाना इस बात का संकेत है कि अब गे लोगों के बीच शर्म और हया का पर्दा हट चुका है।
ये हैं असली लुटेरे जनसेवक
जनसेवक के बारे में लोगों की धारणाएं अब पूरी तरह बदल गई हैं। देश भर में भारतीय सेवा के अधिकारियों ने जनता को सरेआम लूटने के तरह तरह के जतन किए जा रहे हैं, वह भी नौकरशाहों के प्रश्रय में। मध्य प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों अरविंद जोशी और टीनू जोशी के पास मिली अकूत दौलत के बाद भी राजनेताओं का भरोसा भ्रष्ट नौकरशाहों पर से नहीं उठ सका है। मध्य प्रदेश में ही शिवराज सिंह चैहान ने अब परिवहन आयुक्त जैसा मलाईदार पद भारतीय पुलिस सेवा के एस.एस.लाल को सौंप दिया है, जिनके राजधानी भोपाल में कोलार स्थित डीके 5/221 नंबर के मकान में बिना किराएनामे के रह रहे खेमचंद ललवानी द्वारा करोडों रूपए का क्रिकेट का सट्टा खिलवाया जा रहा था। सीआईडी की टीम ने लाल के मकान से 13 दिसंबर 2006 को लगभग पांच लाख रूपए नकद, लेपटाप, मोबाईल फोन सहित अनेक लोगों को पकडा भी था, इनमें से दो दर्जन लोग आज भी फरार ही हैं। सच ही है, जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का।
गडकरी को हिन्दी पट्टी का अघोषित बहिष्कार
राजधानी दिल्ली में भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी की औपचारिक ताजपोशी में हिन्दी भाषी राज्यों की अनुपस्थिति खासी चर्चा में रही है। इस चुनाव में गडकरी के गृह प्रदेश महाराष्ट्र सहित मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे हिन्दी पट्टी के राज्यों की गैरमौजदी से सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चाओं के बाजार गर्मा गए हैं। गडकरी की ताजपोशी 19 राज्यों द्वारा की गई है। दिल्ली में हुए इस चुनाव में वहीं की भाजपा की गैरमोजूदगी को भी हल्के में नहीं लिया जा रहा है। लोगों का कहना है कि गडकरी समूची देश की भाजपा के बजाए महज 19 राज्यों की भाजपा के अध्यक्ष हैं। खाल बचाने को भाजपा द्वारा यह अवश्य ही कहा जा रहा है कि अनेक राज्यों में भाजपा के चुनाव नहीं होने से यह स्थिति बनी है। आदर्श और अनुशासन पर चलने का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा में पिछले साल के अंत तक चुनाव करवाए जाने थे, किन्तु सामंजस्य न बन पाने के कारण चुनाव टल गए हैं। लोगों का तो यह भी कहना है कि गडकरी की ताजपोशी अनेक सूबाई नेताओं को रास नहीं आई है और यही कारण है कि जानबूझकर राज्यों में समन्वय का अभाव बनाया गया है, ताकि गडकरी की ताजपोशी में वे शामिल न हो सकें।
चुनाव, रेल बजट, बंगाल और ममता
रेल मंत्रालय का कार्यभार चाहे जो संभाले वह सदा ही चर्चाओं में ही रहता है। वर्तमान रेल मंत्री ममता बनर्जी भी इससे अछूती नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, और रेल मंत्री को अपने मंत्रालय से ज्यादा चिंता बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने की है। रेल बजट में ममता बनर्जी अपना पूरा दुलार पश्चिम बंगाल पर उडेल दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे पिछली मर्तबा के रेल बजट में किए प्रावधानों को पूरा न किए जाने का दर्द भी ममता के चेहरे पर झलक रहा है, वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी पर बैगर आवश्क मंजूरियों के आधारशिला रखने और वादे पूरे न किए जाने के आरोप लगने लगे हैं। पिछले बजट में ममता ने कोलकता से लगभग 45 किलोमीटर दूर कचरापाडा में रेल डब्बों के कारखाने की घोषणा के अलावा 309 आदर्श स्टेशन में से आधे, 50 विश्वस्तरीय स्टेशन में से पांच, 12 दुरंतो एक्सपे्रस में से चार को पश्चिम बंगाल के लिए प्रावधान किया था, विडम्बना यह है कि ममता अपने ही सूबे में लक्ष्य से काफी पीछे दिख रहीं हैं।
पुच्छल तारा
मध्य प्रदेश के इंदौर से आशय अर्गल ने ईमेल भेजा है कि भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में सांपों नेताओं को डरने की आवश्यक्ता कतई नहीं है, डरना तो सांपों को चाहिए क्योंकि किसी भी पार्टी के नेता को सांप ने काट लिया तो उसे बचाया जा सकता है, पर अगर सांप को इन्होंने काट लिया तो सांप का बचना बहुत ही मुश्किल है।

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

मल्टी मीडिया जागरूकता अभियान का शुभारंभ कल
15 से 19 फरवरी तक सूचना प्रसारण मंत्रालय की प्रदर्शनी का आयोजन
विदिशा 14 फरवरी। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय, डीएवीपी द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत बेहतर स्वास्थ्य के लिए चलाई रही शासकीय कल्याणकारी योजनाओं की विस्तार से जानकारी देने के उद्देश्य से पांच दिवसीय जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। जिला मुख्यालय विदिशा के रामलीला मैदान में एनआरएचएम मल्टीमीडिया जनजागरूकता अभियान का आयोजन सोमवार से शुक्रवार तक किया गया है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार इस प्रदर्शनी षुभारंभ सोमवार 15 फरवरी को दोपहर तीन बजे किया जाएगा। इसमें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी मल्टी मीडिया फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से आम जनों को दी जाएगी। इस अभियान में मुख्य रूप से जिला प्रशासन, जिला पंचायत, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, नेहरू युवा केंद्र, क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय, गीत एवं नाटक प्रभाग, पत्र सूचना कार्यालय, आकाशवाणी, दूरदर्शन सहित स्व सहायता समूह, गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी होगी।
इन पांच दिनों में जिला पंचायत द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना, समग्र स्वच्छता अभियान, सूचना का अधिकार एवं अन्य ग्रामीण योजनाओं की जानकारी, पंच सरपंच सम्मेलन, आंगनवाडी कार्यकर्ता सम्मेलन आदि का आयोजन, महिला बाल विकास द्वारा विभागीय योजनाओं की जानकारी, प्रचार प्रसार, स्वस्थ्य शिशु प्रतियोगिता का आयोजन, नेहरू युवा केंद्र के वालंटियर्स द्वारा व्यवस्था में सहयोग, नुक्कड नाटक, गीत संगीत, एड्स नियंत्रण समिति द्वारा एड्स के प्रति जनजागरूकता बढाना एवं प्रचार प्रसार सामग्री का वितरण किया जाएगा।
इसी तरह क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय द्वारा एनआरएचएम व भारत निर्माण अभियान का प्रचार प्रसार, फिल्म शो, क्विज प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाएगा। डीएवीपी के गीत एवं संगीत प्रभाग द्वारा प्रतिदिन गीत संगीत, नाटक, कठपुतली शो आदि के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं और शासकीय योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। डीएवीपी द्वारा स्वस्थ्य ग्राम स्वस्थ्य राष्ट्र ग्राम विषय पर फोटो प्रदर्शनी और मल्टी मीडिया आधारित माडल प्रदर्शित किए जाएंगे।
पीआईबी, दूरदर्शन और आकाशवाणी द्वारा पांच दिवसीय अभियान की गतिविधियों का प्रचार प्रसार और स्व सहायता समूह और गैर सरकारी संगठन द्वारा किए जा रहे कार्याें और उत्पादों का प्रदर्शन किया जाएगा। इसके अलावा भोपाल के सेवासदन नेत्र चिकित्सालय द्वारा निशुल्क नेत्र परीक्षण शिविर, नेत्रदान शिविर और हेप्स भोपाल द्वारा होम्योपैथिक चिकित्सा केंद्र का आयोजन इस अभियान में विशेष तौर पर किया जा रहा है।

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की आवश्यक्ता

प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की आवश्यक्ता

टोल और आरटीओ बेरियर पर कब समाप्त होगी लूट

(लिमटी खरे)

देश भर में परिवहन का सबसे बडा साधन सडक मार्ग ही माना जाता है। सडकों पर दौडते वाहनों के सामने सबसे बडी समस्या के रूप में परिवहन, सेलटेक्स के साथ ही साथ टोल नाके बनकर उभरे हैं। इन वसूली वाले नाकों में जब चाहे तब वाहनों से अवैध वसूली की शिकयतें आम हैं। सरकारें इन शिकायतों पर ध्यान नहीं देती हैं, परिणामस्वरूप सडकों पर विवाद की स्थिति बनती रहती है।

अवैध वसूली का सबसे बडा अड्डा अन्तरप्रान्तीय परिवहन जांच चौकियां हैं। इन चौकियों को बाकायदा किन्तु अघोषित तौर पर ठेके पर दिया गया है। मध्य प्रदेश की परिवहन जांच चौकियों में हर दिन करोडों रूपयों की अवैध वसूली की जाती है। प्रदेश में सबसे अधिक आय और बेनामी आय वाली चौकियों में बडवानी की सेंधवा, मुरेना और सिवनी जिले की खवासा परिवहन जांच चौकी सदा से ही चर्चाओं में रही है।

इन परिवहन जांच चौकियों में सारा कारोबार रिमोट कंट्रोल से चलता है। अमूमन हर परिवहन, सेलटेक्स की जांच चौकियों में चौकी के दोनों ओर वाहनों की कतार देखते ही बनती है। जैसे ही इन चौकियों के आस पास कोई लाल पीली बत्ती वाली गाडी दिखाई पडती है, रिमोट से चलने वाली घंटी बजाते ही चौकियों के अन्दर का माजरा ही बदल जाता है। नंबर दो में चलने वाले काम नंबर एक में तब्दील हो जाते हैं।

इन चौकियों में कर्मचारियों की मेस देखने लायक होती है। यहां समिष और निरामिष लजीज भोजन की उम्दा व्यवस्था होती है। मुख्यमन्त्री, मुख्य सचिव, परिवहन सचिव, परिवहन आयुक्त आदि अगर प्रदेश की जांच चौकियों का औचक निरीक्षण कर लें तो वे पाएंगे कि एक समय में किसी भी चौकी में कुल तैनाती का महज चालीस फीसदी अमला ही मौजूद होता है। एक बात है, इन चौकियों में अपने कर्मचारियों के प्रति पूरी ईमानदारी बरती जाती है। माह के अन्त में जब चौथ वसूली का हिसाब किताब होता है, तो सभी को ईमानदारी के साथ उसका हिस्सा दिया जाता है। मजे की बात तो यह है कि पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर परिवहन विभाग में जाने की होड सी लगी होती है। इसका कारण यह है कि परिवहन विभाग में अवैध कमाई का सबसे अच्छा और फूलप्रूफ काम है।

मध्य प्रदेश में सेंधवा की परिवहन जांच चौकी को कंप्यूटरीकृत किया गया है। इसके अलावा खवासा सहित अन्य परिवहन जांच चौकियों को भी इसी तरह कंप्यूटरीकृत करने का प्रस्ताव एक दशक से भी अधिक समय से लंबित है। इसका कारण यह है कि अगर इन्हें कंप्यूटरीकृत कर दिया गया तो यहां पदस्थ कर्मचारियों की अवैध कमाई को लकवा मार सकता है। यही कारण है कि शासन के प्रस्ताव के बावजूद भी इनका कंप्यूटरीकृत जानबूझकर लंबित रखा जा रहा है। गौरतलब होगा कि सिवनी जिले के खवासा में सालों पहले ग्यारह लाख रूपए की लागत से कंप्यूटरीकृत जांच चौकी का प्रस्ताव लाया गया था, जिसे आज तक अमली जामा नहीं पहनाया गया है।

हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य के घरेलू उपयोग के सामान के वाहन को उन्ही के सूबे एमपी के मुरैना की परिवहन जांच चौकी में रोककर वाहन चालक के साथ बदसलूकी करने का मामला प्रकाश में आया है। विडम्बना ही कही जाएगी कि एक सूबे के मुखिया के घरेलू उपयोग के सामान को लेकर आने वाले वाहन को परिवहन कर्मियों द्वारा अन्तर्राज्यीय सीमा पर रोककर सरेआम चौथ वसूली और बदतमीजी की जाती है, और सूबे में शासन आंखे मून्दे बैठा रहता है। जब प्रशासनिक मुखिया के साथ इस तरह का हो रहा हो तब फिर आम आदमी के साथ क्या होता होगा इसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खडे हो जाते हैं।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ आदि सूबों की सीमाओं पर सेंधवा, नयागांव, खवासा, दतिया, मुरेना, झाबुआ, हनुमना, पिटोल, बुरहानपुर, खिलचीपुर, रजेगांव, सिकन्दरा, शाहपुर, चिरूला, सतनूर, बोनकट्टा आदि स्थानों पर अन्तराज्यीय परिवहन जांच चौकियां स्थापित हैं। इनमें से डेढ दर्जन से ज्यादा चौकियों में परिवहन और सेल टेक्स विभाग द्वारा कंप्यूटर लगाकर जोडने की कवायद सालों से की जा रही है।

इतना ही नहीं देश भर में सडक मार्ग में पडने वाले टोल नाकों पर भी अवैध वसूली जबर्दस्त तरीके से जारी है। अनेक स्थानों पर समयावधि पूरी होने के बाद भी आपसी सांठगांठ के चलते बाकायदा ``दादागिरी`` के साथ वाहन चालकों की जेब पर डाका डाला जाता है। बनाओ, चलाओ, वसूलो फिर शासन को सौंप दो (बीओटी) के आधार पर बनने वाली सडकों की राशि ठेकेदार द्वारा वसूली जाती है। इन सडकों या पुलों की राशि वसूलने में ठेकेदारों द्वारा मनमानी बरती जाती है।

देश भर में लोक निर्माण विभाग, केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, नेशनल हाईवे अथारिटी आदि द्वारा दिए गए ठेकों पर जब तब विवाद की स्थिति निर्मित होती रहती है। इन नाकों पर ठेकेदार द्वारा मनमानी दरों पर वाहनों से टोल टेक्स वसूला जाता है। हद तो तब हो जाती है जब रसीद मांगने पर ठेकेदार द्वारा अनाधिकृत रसीदें दी जाती हैं। केन्द्र सरकार के भूतल परिवहन विभाग द्वारा रस्म अदायगी के लिए 11 जून 2008 को देश के हर सूबे की सरकार को एक पत्र लिखकर इन अनियमितताओं और शिकायतों की ओर ध्यान आकषिZत कराया था।

केन्द्र और राज्य सरकारों में बैठे जनसेवकों की अर्थलिप्सा और अपने अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए साम, दाम दण्ड भेद की नीति अपनाई जा रही है। सरकार द्वारा सांसद, विधायक, सरकारी वाहनों के साथ ही साथ अधिमान्य पत्रकारों के वाहनों को टोल टेक्स से छूट प्रदान की है, किन्तु टोल नाकों में बैठे ठेकेदार के गुर्गों द्वारा पत्रकारों के साथ भी अभद्र व्यवहार करना एक प्रिय शगल बन गया है। कुल मिलाकर जब एक सूबे के प्रशासनिक मुखिया के घर का सामान ले जा रहे वाहन के साथ हुए हादसे के बाद भी परिवहन विभाग की मनमानी जारी रहने पर यही कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की आवश्यक्ता है।

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

ठाकरे के दरबार में पंवार!

ठाकरे के दरबार में पंवार!
खिलाडियों की सुरखा का जिम्मा किसका सरकार का या बाला साहेब का!
सियासतदार भूल जाते हैं अपने ही कहे वक्तव्यों को
(लिमटी खरे)

केन्द्रीय कृषि मन्त्री शरद पंवार ने रविवार को शिवसेना के सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के आवास ``मातोश्री`` की चौखट चूमकर साबित कर दिया है कि देश मेें सरकार नाम की चीज ही नहीं बची है। पंवार ने यह सियासी दांव तब खेला जबकि कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी द्वारा शिवसेना की गीदड भभकियों को दरकिनार कर महाराष्ट्र में मुम्बई का दौरा किया। इसके पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने देशद्रोह जैसे वक्तव्य भी दिए हैं, पर उनका बाल भी बांका करने में असफल दिख रही है केन्द्र और सूबे की सरकार।
देखा जाए तो पंवार ने कहा है कि उनकी बाला साहेब से मुलाकात का सियासी मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए, वे तो महज आईपीएल मैच के आयोजनों के मद्देनज़र ठाकरे से भेंट करने गए थे। गौरतलब है कि ठाकरे ने आईपीएल में आस्ट्रेलिया के खिलाडियों को नहीं खेलने देने की बात कही थी। हो सकता है आस्ट्रेलिया में हो रहे भारतीयों पर हमले से बाला साहेब व्यथित हो गए हों और उन्होंने यह फरमान जारी कर दिया हो।
शरद पंवार यह भूल जाते हैं कि सुरक्षा देने का काम केन्द्र या राज्य सरकार का है, न कि बाला साहेब ठाकरे का। वैसे भी एक सप्ताह पहले देश के गृह मन्त्री पलनिअप्पन चिदंबरम ने साफ कहा था कि केन्द्र सरकार पूरे देश में बाहर से आने वाले क्रिकेटरों को सुरक्षा देने के लिए तैयार है। ठाकरे ब्रदर्स द्वारा मुम्बई और समूचे महाराष्ट्र में लंबे समय से आन्तक बरपाया जा रहा है, और केन्द्र तथा राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे ही बैठी है। केन्द्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी कांग्रेस की सहयोगी है, इधर राज्य में दोनों ही की न केवल साझा सरकार है, वरन् गृह मन्त्रालय जैसा अहम विभाग राकांपा के पास ही है।
पंवार ने जो दिन चुना वह ही गलत कहा जा सकता है। पंवार ने राहुल गांधी की मुम्बई यात्रा के एन दूसरे दिन ही मातोश्री की देहरी चूमी है। ठाकरे परिवार की धमकियों की परवाह न करते हुए राहुल गांधी ने जिस बहादुरी का परिचय दिया है, उसकी तारीफ की जानी चाहिए। राहुल गांधी ने उस मिथक को तोड दिया है, जिसके अनुसार मुम्बई में ठाकरे बंधुओं की अनुमति के बिना पत्ता भी नहीं हिलना बताया जाता है। मुम्बई ठाकरे परिवार की जायदाद नहीं है। पहले भी मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री और कांग्रेस महासचिव कह चुके हैं कि बाला साहेब ठाकरे का परिवार मुम्बईकर नहीं वरन् मघ्य प्रदेश के बालाघाट जिले का है।
हो सकता है कि मुम्बई यात्रा के बाद राहुल गांधी को जो प्रसिद्धि मिल रही है, उसे कम करने की गरज से शरद पंवार ने बाला साहेब के चरणों में गिरकर क्रिकेट के सफल आयोजन की भीख मांगने का स्वांग रचा हो। पंवार यह भूल गए कि ठाकरे की इस तरह की चरण वन्दना से राज्य सरकार के मनोबल पर क्या असर पडेगा। राज्य सरकार पहले ही ठाकरे ब्रदर्स की आताताई हरकतों से परेशान है, फिर इस तरह के कृत्यों से रहा सहा मनोबल टूटना स्वाभाविक ही है।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि देश में बढती मंहगाई के लिए कांग्रेस द्वारा पंवार को आडे हाथों लिया जाना उन्हें रास नहीं आया है। साम, दाम, दण्ड भेद की राजनीति में माहिर पंवार का राजनैतिक इतिहास बहुत ज्यादा साफ सुथरा नहीं है। कल तक कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को गला फाडकर चिल्लाने वाले राकांपा के सुप्रीमो पंवार ने सत्ता की मलाई खाने के लिए न केवल केन्द्र बल्कि राज्य में भी उन्हीं सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस से हाथ मिला लिया।
वैसे राहुल गांधी के मुम्बई दौरे क बाद एक बात तो साफ हो गई है कि अगर सूबे की सरकार चाहे तो वह महाराष्ट्र से ठाकरे ब्रदर्स की हुडदंग को समाप्त कर सकती है। जब सेना की धमकी के बाद भी राहुल गांधी बेखौफ होकर मुम्बई में घूम सकते हैं तब फिर जब ठाकरे ब्रदर्स के इशारे पर उत्तर भारतीयों पर यहां जुल्म ढाए जाते हैं, तब सरकार सेना के सामने मजबूर क्यों हो जाती है, यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है।
पंवार की ठाकरे के दरबार में हाजिरी पर कांग्रेस भी बंटी ही नज़र आ रही है। एक तरफ प्रदेश इकाई द्वारा इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी जाती है, तो दूसरी ओर केन्द्रीय इकाई के प्रवक्ता द्वारा इसे सिर्फ क्रिकेट तक सीमित रखने की बात की जा रही है। उधर शिवसेना और भाजपा के हनीमून समाप्त होने के बाद उपजे शून्य में पंवार कुछ संभावनाएं अवश्य ही तलाश रहे होंगे।
राजनीति की परिभाषा ही यही है कि जिस नीति से राज हासिल हो वही राजनीति है। इस पर अमल करते हुए शरद पंवार द्वारा सोचे समझे कदम उठाए जा रहे हैं, यही कारण है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उछाल कर पंवार ने कांग्रेस का साथ छोडकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी। इसके बाद सोनिया की कांग्रेस से हाथ मिलाने में उन्होंने एक मिनिट की भी देरी नहीं लगाई।
आज महाराष्ट्र में भले ही कांग्रेस की सीटें राकांपा से कहीं ज्यादा हों पर सूबे में दबदबा राकांपा का ही है। इन परिस्थितियों में पंवार द्वारा बाला साहेब ठाकरे की शरण में जाकर नए सियासी समीकरणों का ताना बाना बुनने का प्रयास किया जा रहा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमारा कहना महज इतना ही है कि अगर विदेशों मेें पले बढे और शिक्षित हुए राहुल गांधी उत्तर भारतीय होकर मुम्बई की लोकल रेल में सफर कर सकते हैं तो फिर दूसरे उत्तर भारतीयों पर अत्याचार कैसे हो जाता है। इसके अलावा शरद पंवार सूबे के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं, वे सूबे की नब्ज अच्छे से पहचानते हैं, ठाकरे परिवार का उदय भी उन्हीं के सामने हुआ है, पंवार सियासत करें खूब करेें, पर कम से कम मुम्बई और महाराष्ट्र को प्रान्तवाद, भाषा वाद और व्यक्तिवाद की आग में झुलसने तो बचाएं।

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

आस्था के साथ खिलवाड ठीक नहीं!

आस्था के साथ खिलवाड ठीक नहीं!

रोकना होगा साई बाबा के नाम का व्यवसायीकण
 
(लिमटी खरे)
 
भारत धर्मभीरू देश है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। हिन्दुस्तान में हर धर्म, हर भाषा, हर संप्रादाय, हर पन्थ के लोगों को आजादी के साथ रहने का हक है। भारत ही इकलौता देश होगा जहां मिस्जद, मन्दिर, गुरूद्वारे, चर्च सभी की चारदीवारी एक दूसरे से लगी होती है। भारत में अनेक एसे सन्त पुरूष हुए हैं, जिनकी जात पात के बारे में आज भी लोगों को पता नहीं है, और ये सभी धर्मों के लोगों के द्वारा निर्विकार भाव से पूजे जाते हैं।
करोडों रूपए का चढावा आने वाले मन्दिरों में सबसे उपर दक्षिण भारत में तिरूपति के निकट तिरूमला की पहाडियों पर विराजे भगवान बालजी जिन्हें तिरूपति बाला जी के नाम से जाना जाता है, सबसे आगे हैं। इसके बाद नंबर आता है उत्तर भारत में जम्मू के निकट त्रिकुटा पहाडी पर विराजीं मातारानी वेष्णव देवी का। इन दोनों ही के बाद महाराष्ट्र प्रदेश के अहमदनगर जिले के शिरडी गांव के फकीर साई बाबा के धाम का नाम लिया जाता है।
शिरडी की भूमि में अचानक आए साई बाबा ने जो चमत्कार दिखाए वे पौराणिक काल के नहीं थे, आज के युग में लोगों ने बाबा को देखा है, महसूस किया है, और आज भी बाबा के प्रति लोगों की अगाध श्रृद्धा का कारण उनका चमत्कारिक व्यक्तित्व ही कहा जा सकता है। जीवन भर जिस फकीर ने अपने बजाए मानव मात्र की चिन्ता की है, उसके नाम को आज व्यवसायिक चोला पहनाया जाना निस्सन्देह निन्दनीय है।
सत्तर के दशक के बाद मनोज कुमार कृत ``शिरडी वाले साई बाबा`` चलचित्र और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की फिल्म ``अमर अकबर एन्थोनी`` में ऋषि कपूर का गाना ``शिरडी वाले साई बाबा, आया है दर पे तेरे सवाली. . .`` ने धूम मचा दी। जिस तरह गुलशन कुमार के माता रानी के भजनों के बाद समूची देश त्रिकुटा पर्वत पर विराजी माता वेष्णव देवी का दीवाना हो गया था, ठीक उसी तरह बाबा के भक्तों की कतारें बढती ही गईं।
साई भक्तों की आस्था के केन्द्र शिरडी का चर्चा में रहना पुराना शगल है। जब तक बाबा सशरीर थे, तब तक फर्जी नीम हकीम और ओझाओं द्वारा बाबा पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाकर इस स्थान को चर्चाओं का केन्द्र बनाया और अब तो सोने के सिंहासन और करोडों के दान के चलते यह स्थान चर्चाओं का केन्द्र बिन्दु बने बिना नहीं है। अब यह बाबा के व्हीआईपी दर्शन के चलते चर्चाओं में आ गया है।
साई बाबा संस्थान द्वारा लिए गए निर्णय कि काकड आरती के लिए पांच सौ रूपए तो धूप आरती के लिए ढाई सौ रूपए वसूले जाएंगे, साई भक्तों को जम नहीं रहा है। यद्यपि यह व्यवस्था वर्तमान में प्रयोग के तौर पर ही लागू की गई है, किन्तु तीन माह में ही बाबा के भक्तों के बीच इस व्यवस्था को लेकर रोष और असन्तोष गहराने लगे तो बडी बात नहीं। किसी भी अराध्य के दर्शन के लिए अगर उसके अनुयायी को कीमत चुकानी पडे तो यह उसकी आस्था पर सीधा कुठाराघात ही कहा जाएगा।
हो सकता है कि बाहर से आने वाले लोगों की परेशानी को ध्यान में रख संस्थान ने यह व्यवस्था बनाना मुनासिब समझा होगा, किन्तु उत्तर भारत में माता रानी वेष्णव देवी के दर्शन के लिए आरम्भ की गई हेलीकाप्टर सेवा का लाभ आम श्रृद्धालु उठाने की कतई नहीं सोचता है। वैसे भी माना जाता है कि अपने अराध्य के दर्शन जितने कष्ट के बाद होते हैं उतना ही पुण्य प्रताप भक्त को मिलता है।
शुल्क के बदले अराध्य के दर्शन की व्यवस्था माता वेष्णो देवी श्राईन बोर्ड ने आरम्भ की थी, जिसमें दो सौ रूपए से एक हजार रूपए तक का मूल्य चुकाने पर विशेष दर्शन की व्यवस्था की गई थी। बाद में भक्तों के भारी विरोध के बाद इस व्यवस्था को श्राईन बोर्ड ने बन्द कर दिया था। देश की राजधानी दिल्ली में साकेत में विशाल साई प्रज्ञा धाम चलाने वाले स्वामी प्रज्ञानन्द का कहना एकदम तर्कसंगत है कि शिरडी के सन्त साई बाबा गरीबों के मसीहा थे और उनके दर्शन के लिए धन के आधार पर भेदभाव किसी भी सूरत में तर्क संगत नहीं ठहराया जा सकता है।
शिरडी के साई बाबा पर देश के करोडों लोगों की अगाध श्रृद्धा है। बाबा किस जात के थे, यह बात आज भी रहस्य ही है। बाबा जहां बैठते थे, उस स्थान को द्वारका मिस्जद कहा जाता है। सभी धर्माें के लोगों द्वारा साई बाबा के प्रति आदर का भाव है। यही कारण है कि साई बाबा संस्थान शिरडी के कोष में दिन दूगनी रात चौगनी बढोत्तरी होती जा रही है। कोई बाबा को सोने का सिंहासन तो कोई रत्न जडित मुकुट चढाने की बात करता है।
बाबा को समाधि लिए अभी सौ साल भी नहीं बीते हैं और विडम्बना ही कही जाएगी कि बाबा की इस प्रसिद्धि को भुनाने में धर्म के ठेकेदारों ने कोई कोर कसर नहीं रख छोडी है। आज देश भर में बाबा के नाम पर छोटे बडे अस्सी हजार से अधिक मन्दिर अिस्त्त्व में आ चुके हैं। इनसे होने वाली आय किस मद में खर्च की जा रही है, इसका भी कोई लेखा जोखा नहीं है। साई के नाम पर लोगों को ठगने वालों की तादाद आज देश में तेजी से बढी है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
शिरडी का वह फकीर जो माया मोह से दूर था के समाधि लेने के बाद उनके मन्दिर या समाधि स्थल को भव्य बनाना उनके भक्तों की भावनाएं प्रदर्शित करता है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए। इसके साथ ही साथ बाबा के भक्तों को यह भी सोचना चाहिए कि साई बाबा ने सदा ही मानवमात्र के कल्याण की बात सोची थी। बाबा के प्रति सही भक्ति अगर प्रदर्शित करना है तो संस्थान और उनके दानदाता भक्तों को चाहिए कि शिरडी में सोने के सिंहासन या रत्न जडित मुकुट आदि के बजाए एक भव्य सर्वसुविधायुक्त अस्पताल अवश्य बनवा दें जिसमें हर साध्य और असाध्य रोगों का इलाज एकदम निशुल्क हो, इससे बाबा की कीर्ति में चार चान्द लग सकते हैं।