घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी
थापर ग्रुप के पावर प्लांट डलने के मार्ग प्रशस्त
जनसेवकों का मौन सन्दिग्ध
(लिमटी खरे)
जनसेवकों का मौन सन्दिग्ध
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 16 मार्च। देश की ख्यातिलब्ध थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के एक प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील को झुलसाने की तैयारी पूरी कर ली है। पिछले साल 22 अगसत को बिना किसी मुनादी के गुपचुप तरीके से घंसौर में सम्पन्न हुई जनसुनवाई के बाद अब इसकी औपचारिकताएं लगभग पूरी कर ली गईं हैं। इसे जल्द ही केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय के पास भेजा जाने वाला है। गौरतलब है कि झाबुआ पावर प्लांट कंपनी द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के साथ मिलकर सिवनी जिले की घंसौर तहसील के बरेला ग्राम में 1200 मेगावाट का एक पावर प्लांट लगाया जा रहा है। इसके प्रथम चरण में यहां 600 मेगावाट की इकाई प्रस्तावित है। कोयला मन्त्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस कंपनी को अभी कोल लिंकेज प्रदान नहीं किया गया है।
केन्द्रीय उर्जा मन्त्रालय के भरोसेमन्द सूत्रों ने बताया कि इस परियोजना के लिए 3.20 एमटीपीए से अधिक के ईंधन की आवश्यक्ता होगी एवं इस संयन्त्र में पानी की आपूर्ति रानी अवन्ति बाई सागर परियोजना जबलपुर, (बरगी बांध) के सिवनी जिले के भराव वाले इलाके गडघाट और पायली के समीप से किया जाना प्रस्तावित है। यह परियोजना प्रतिघंटा 3262 मीट्रिक टन पानी पी जाएगी। सूत्रों का कहना है कि इस संयन्त्र का बायलर पूरी तरह कोयले पर ही आधारित होगा। इसके लिए कोयले की आपूर्ति साउथ ईस्टर्न कोलफील्उ लिमिटेड के अनूपपुर, शहडोल स्थित खदान से की जाएगी।
कंपनी के सूत्रों का कहना है कि थापर ग्रुप की इस महात्वाकांक्षी परियोजना के लिए 360 एकड गैर कृषि एवं मात्र 20 एकड कृषि भूमि का क्रय किया गया है। सरकार से 220 एकड भूमि भी लिया जाना बताया जाता है। कहते हैं कि जिन ग्रामीणों की भूमि खरीदी गई है उन्हें भी मुंह देखकर ही पैसे दिए गए हैं। कहीं कंपनी को जमीन अमोल मिल गई है तो कहीं अनमोल कीमत देकर। कंपनी के सूत्रों ने आगे बताया कि कंपनी ने जिन परिवारों की भूमि अधिग्रहित की है, उन परिवारों के एक एक सदस्य को नौकरी दिए जाने का प्रावधान भी किया गया है। वहीं चर्चा यह है कि स्थानीय लोगों को या जमीन अधिग्रहित परिवार वालों को अनस्किल्ड लेबर के तौर पर नौकरी दे दी जाएगी, और शेष बचे स्थानों पर बाहरी लोगों को लाकर संयत्र को आरम्भ कर दिया जाएगा।
इस समूचे मामले में सिवनी जिले के जनसेवकों की चुप्पी आश्चर्यजनक है। इस संयन्त्र की चिमनी लगभग एक हजार फिट उंची होगी, जिसके अन्दर कोयला जलेगा। यहां उल्लेखनीय होगा कि संयन्त्र से निकलने वाली उर्जा और कोयले की तपन को सह पाना आसपास के ग्रामीणों और जंगल में लगे पेड पौधों के बस की बात नहीं होगी। इसके लिए न तो मध्य प्रदेश सरकार को ही ठीक ठाक मुआवजा मिलने की खबर है, और न ही आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील के निवासियों के हाथ ही कुछ राहत लग पा रही है। कहा जा रहा है कि झाबुआ पावर लिमिटेड कंपनी द्वारा जनसेवकों को शान्त रहने के लिए उनके मंह पर भारी भरकम बोझ रख दिया है, ताकि घंसौर को झुलसाने के उनके मार्ग प्रशस्त हो सकें।
केन्द्रीय उर्जा मन्त्रालय के भरोसेमन्द सूत्रों ने बताया कि इस परियोजना के लिए 3.20 एमटीपीए से अधिक के ईंधन की आवश्यक्ता होगी एवं इस संयन्त्र में पानी की आपूर्ति रानी अवन्ति बाई सागर परियोजना जबलपुर, (बरगी बांध) के सिवनी जिले के भराव वाले इलाके गडघाट और पायली के समीप से किया जाना प्रस्तावित है। यह परियोजना प्रतिघंटा 3262 मीट्रिक टन पानी पी जाएगी। सूत्रों का कहना है कि इस संयन्त्र का बायलर पूरी तरह कोयले पर ही आधारित होगा। इसके लिए कोयले की आपूर्ति साउथ ईस्टर्न कोलफील्उ लिमिटेड के अनूपपुर, शहडोल स्थित खदान से की जाएगी।
कंपनी के सूत्रों का कहना है कि थापर ग्रुप की इस महात्वाकांक्षी परियोजना के लिए 360 एकड गैर कृषि एवं मात्र 20 एकड कृषि भूमि का क्रय किया गया है। सरकार से 220 एकड भूमि भी लिया जाना बताया जाता है। कहते हैं कि जिन ग्रामीणों की भूमि खरीदी गई है उन्हें भी मुंह देखकर ही पैसे दिए गए हैं। कहीं कंपनी को जमीन अमोल मिल गई है तो कहीं अनमोल कीमत देकर। कंपनी के सूत्रों ने आगे बताया कि कंपनी ने जिन परिवारों की भूमि अधिग्रहित की है, उन परिवारों के एक एक सदस्य को नौकरी दिए जाने का प्रावधान भी किया गया है। वहीं चर्चा यह है कि स्थानीय लोगों को या जमीन अधिग्रहित परिवार वालों को अनस्किल्ड लेबर के तौर पर नौकरी दे दी जाएगी, और शेष बचे स्थानों पर बाहरी लोगों को लाकर संयत्र को आरम्भ कर दिया जाएगा।
इस समूचे मामले में सिवनी जिले के जनसेवकों की चुप्पी आश्चर्यजनक है। इस संयन्त्र की चिमनी लगभग एक हजार फिट उंची होगी, जिसके अन्दर कोयला जलेगा। यहां उल्लेखनीय होगा कि संयन्त्र से निकलने वाली उर्जा और कोयले की तपन को सह पाना आसपास के ग्रामीणों और जंगल में लगे पेड पौधों के बस की बात नहीं होगी। इसके लिए न तो मध्य प्रदेश सरकार को ही ठीक ठाक मुआवजा मिलने की खबर है, और न ही आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील के निवासियों के हाथ ही कुछ राहत लग पा रही है। कहा जा रहा है कि झाबुआ पावर लिमिटेड कंपनी द्वारा जनसेवकों को शान्त रहने के लिए उनके मंह पर भारी भरकम बोझ रख दिया है, ताकि घंसौर को झुलसाने के उनके मार्ग प्रशस्त हो सकें।
1 टिप्पणी:
Paisa kya kya n karaye. Log apne hi hito ki parwah nahi kar rahe hai to Sarkar bhala kya chete.
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