अब थुरूर की नागरिका पर सवालिया निशान!
एक पत्रकार ने मांगी आरटीआई के तहत जानकारी
बढ सकतीं हैं कांग्रेस और थुरूर की मुश्किलें
लौटानी पड सकती है खर्च की पाई पाई
छोडना पडेगा बंग्ला, नार्थ या साउथ ब्लाक होगा आशियाना
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। सोशल नेटविर्कंग वेव साईट टि्वटर के माध्यम से अघोषित तौर पर लोकप्रिय विवादित शिख्सयत का खिताब पाने वाले निर्वतमान विदेश राज्य मन्त्री शशि थुरूर को भारत सरकार ने जरूर अपने कुनबे से बाहर का रास्ता दिखा दिया हो पर थुरूर की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रहीं हैं। केरल के एक मलयाली भाषा के समाचार पोर्टल चलाने वाले एक पत्रकार ने अब सूचना के अधिकार के माध्यम से शशि थुरूर की भारतीय नागरिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। थुरूर अगर अपनी नागरिकता को प्रमाणित नहीं कर पाए तो उनके मन्त्री पद के बाद सांसद की कुर्सी भी उनसे छीनी जा सकती है। उस स्थिति में बतौर सांसद उन्होंने भारत गणराज्य की सरकार का जो भी धन खर्च किया होगा उसकी वसूली भी उनसे सम्भव है।
एक समाचार पोर्टल से जुडे ए.के.वर्मा ने शशि थुरूर द्वारा केरल राज्य के तिरअनन्तपुरम की मतदाता सूची में नाम जुडवाने का प्रमाणपत्र की प्रमाणिक प्रतिलिपी मांगकर सनसनी फैला दी है। केरल सरकार के सूत्रों का कहना है कि शशि थुरूर ने लोकसभा चुनावों के पहले 27 अक्टूबर 2008 को भारतीय निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची में नाम जुडवाने का आवेदन दिया था। वर्मा ने उस पर सवालिया निशान लगाते हुए पूछा है कि क्या आवेदन करते समय शशि थुरूर भारत के सामान्य नागरिक थे। कहा जा रहा है कि इसी दिन शशि थुरूर ने अपने मकान मालिक के साथ किराएनामा अनुबंध (रेंटल लीज एग्रीमेंट) निष्पादित किया था।
मामले का पेंच कई जगह उलझता प्रतीत हो रहा है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि शशि थुरूर की तिरूअनन्तपुरम की नागरिकता के बारे में अभी स्पष्ट तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। सूत्रों ने आगे बताया कि तिरूअनन्तपुरम की नगर पालिका निगम के कोवाडियार वार्ड के पार्षद ए.सुनील कुमार ने अपने लेटर हेड पर निगम के सचिव को पत्र लिखा था, जिसमें इबारत के बतौर यह उल्लेख किया गया था कि शशि थुरूर टी.सी./9/277/(2) कोवाडियार वार्ड के निवासी हैं, और उन्हें राशन कार्ड में नाम शामिल कराना है, अत: शशि थुरूर को निवास प्रमाण पत्र जारी किया जाए। इससे स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है कि सालों साल हिन्दुस्तान की सरजमीं से बाहर रहकर नौकरी करने वाले थुरूर के पास न तो भारत की नागरिकता है, न राशन कार्ड और न ही निवास प्रमाण पत्र।
इस मामले की गुत्थी तब और उलझती नज़र आती है जब निगम की पंजी में यह दर्ज है कि वे अति विशिष्ट व्यक्ति (व्हीव्हीआईपी) हैं, और अतिविशिष्ट व्यक्ति आवासीय समझौते और तिरूअनन्तपुरम नगर निगम प्रमाण पत्र क्रमांक 3175 दिनांक 06 नवंबर 2008 के अनुसार वे उपरोक्त विर्णत पते के निवासी हैं। देखा जाए तो मतदाता सूची में नाम पंजीबद्ध करवाने के लिए आवेदक को उस संसदीय क्षेत्र का मूल निवासी होना अत्यावश्यक होता है, साथ ही साथ मतदाता सूची में नाम शामिल करवाने के लिए आवेदक को फार्म 06 भी भरकर देना होता है, साथ ही थुरूर ने फार्म की धारा चार को भी नहीं भरा है जिसमें आवेदक को इस बात का उल्लेख करना होता है कि वह उस पते पर कब से निवास कर रहा है।
लगने लगा है कि विवाद और शशि थुरूर दोनों ही का चोली दामन का साथ है। शशि थुरूर ने होटल ताज में जो गुलछरेZ उडाए हैं, वे किसी से छिपे नहीं हैं। एआईसीसी मुख्यालय में चल रही चर्चाओ के अनुसार पता नहीं शशि थुरूर में क्या खासियत है जो कांग्रेस की राजमाता भी उनसे यह पूछने का साहस नहीं कर पा रहीं हैं कि होटल में दो माह तक मेहमानी का भोगमान किसने भोगा है। अब इस नई आफत के चलते एक बार फिर कांग्रेस और थुरूर की फजीहत होने ही वाली है।
उधर मन्त्रीपद गंवाने के बाद शशि थुरूर को बडे सरकारी बंग्ले को रिक्त करना होगा। वे पहली बार संसद बने हैं, इसलिए बडे बंग्ले की उन्हें पात्रता नहीं है। संसद के सूत्रों का कहना है कि पहली बार बने संसद सदस्यों को अमूमन नार्थ या सउथ ब्लाक में ही आवास दिया जाता है। लंबे राजनैैतिक अनुभवों को देखकर पहली बार संसद पहुंचे सदस्यों को अवश्य कोठियां दी गईं हैं।
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