सोमवार, 26 जुलाई 2010

खेल बने नेताओं की जागीर

खेल बन गए हैं खिलवाड़
 
दबदबे के चक्कर में राजनेता नहीं छोडना चाहते कुर्सी
 
सरकार भी बोनी नजर आती है राजनेताओं के आगे
 
नेताओं की मनमानी से खेल जा रहे रसातल की ओर
 
बीमारी या निधन ही छुडवा सके हैं कुर्सी
 
(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य विश्व का अनूठा देश होगा जहां खेल संघों की कुर्सी छुडवाना आसान बात नहीं है। रसूख का पर्याय बन चुकी खेल संघों की कुर्सी पर राजनेता बरसों बरस चिपके ही रहते हैं, और सरकार है कि इन राजनेताओं की मनमानी के आगे घुटने टेककर बेबस ही नजर आती है। राजनेताओं, नौकरशाहों, उद्योगपतियों को खेल संघों की कुर्सी से हटाना सरकार के बस की बात नहीं दिखती। नेता हैं कि दिशा निर्देशांे को भी ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आते हैं।
 
खेल मंत्री की लाख कोशिशें भी परवान न चढ पाना इसका साफ उदहारण माना जा सकता है। खेल मंत्रालय ने इन नेताओं को कुर्सी से दूर रखने के लिए नए दिशा निर्देश (गाईड लाईन) तय कर दिए हैं, पर नेता हैं कि मानने को तैयार नहीं है। भारत में बचपन में खिलवाड शब्द का प्रयोग बहुतायत में किया जाता है। आज के खेल संघों को देखकर यह कहा जा सकता है कि देश में खेल अब खिलवाड बन गए हैं। नए दिशा निर्देशों के अनुसार कोई भी अध्यक्ष अधिकतम तीन और पदाधिकारी दो कार्यकाल ही पूरा कर सकता है।
 
महाराष्ट्र प्रदेश के पुणे से सांसद सुरेश कलमाडी पिछले 14 सालों से भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने हुए हैं। वर्ष 2000 से एशियाई एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष का पद भी कलमाडी के पास ही है। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी कलमाडी पर खासी मेहरबान नजर आती हैं, यही कारण है कि वे संसद की रक्षा मामलों की स्थाई समिति के सदस्य भी हैं। इसी तरह विवादों से गहरा नाता रखने वाले जगदीश टाईटलर भारतीय जूडो फेडरेशन के अध्यक्ष पद पर बीस साल से काबिज हैं। वे भारतीय आलंपिक संघ के उपाध्यक्ष का ताज भी अपने ही सर पर रखे हुए हैं। कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेता के सर पर जूडो की दिशा और दशा सुधारने की महती जवाबदारी है, पर आज भारतीय जूडो किस मुकाम पर है यह बात किसी से छिपी नहीं है।
 
अखिल भारतीय फुटबाल संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और केंद्रीय उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल अब इस संघ के अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हैं। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा दस सालों से अखिल भारतीय टेनिस संघ के अध्यक्ष हैं। भारतीय ओलंपिक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष विजय कुमार मलहोत्रा ने तो सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं, वे 1973 से भारतीय तीरंदाज संघ के अध्यक्ष पद पर जमे हुए हैं।
 
भारतीय बेडमिन्टन संघ के अध्यक्ष वी.के.वर्मा चौथी बार इसके अध्यक्ष बने हैं। वर्मा इसके अलावा एशियन बेडमिन्टन कनफडरेशन के सचिव और विश्व बेडमिन्टन फेडरेशन के उपाध्यक्ष भी हैं। हरियाणा के विधायक अजय सिंह चौटाला हरियाणा टेबिल टेनिस संघ पर अपना कब्जा 1987 से बनाए हुए हैं, वे सन 2000 से अखिल भारतीय टेबिल टेनिस संघ में अपनी जोरदार उपस्थिति भी दर्ज कराए हुए हैं। इसी तरह अभय सिंह चौटाला पिछले नौ सालों से भारतीय बाक्सिंग संघ पर अपनी दावेदारी बनाए हुए हैं। इन नियम कायदों को धता बताते हुए नानावटी ने भारतीय तैराकी संघ के सचिव की कुर्सी छटवीं बार संभाली है, वे 1984 से इस संघ में हैं।
 
कभी भारत गणराज्य की आन बान और शान का प्रतीक मानी जाने वाली भारतीय हाकी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। अनेकानेक वर्षों से मठाधीशों के कब्जे से मुक्ति के लिए छटपटाती हाकी दम तोड चुकी है। आलम यह है कि अब लोगों के मानस पटल में इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय खेल के प्रति भावनाएं नगण्य ही मानी जा सकती हैं। 1994 में जब के.पी.एस.गिल ने भारतीय हाकी की बागडोर संभाली थी, जब से अब तक भारतीय हाकी टीम में एक दर्जन से ज्यादा कोच आकर चले गए पर हाकी का स्तर जस का तस ही बना हुआ है।
 
भारतीय हाकी की दुर्दशा इस कदर हो चुकी है कि सेड्रिक डिसूजा से लेकर वासुदेव भास्करन तक को उनके नाकाम रहने के लिए कटघरे में खडा न कर सका भारतीय हाकी संघ। इनमें एम.के.कौशिक ही सौभाग्यशाली माने जा सकते हैं, जिन्होंने 1998 में भारतीय हाकी को एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक दिलाया था, विडम्बना यह कि भारतीय हाकी पर कब्जा जमाए मठाधीशों ने उन्हें भी बर्खास्त कर दिया। भारतीय हाकी संघ इस बात से भी विचलित नहीं हुआ कि जर्मन कोच गेहार्ड रेच ने 2005 में भारतीय हाकी के कोच का पद यह कहकर त्याग दिया था कि हाकी संघ एक पागलखाना है।

जब भी फुटबाल की बात की जाती है तो वर्ल्ड कप के शोकीन रातों की नींद गवां देते हैं, यह कहीं और नहीं वरन भारत में ही होता है। बावजूद इसके भारत में फुटबाल का स्तर काफी नीचे ही माना जा सकता है। इस संघ पर भाई भतीजावाद के आरोप नए नहीं हैं। संघ के सचिव अल्वर्टो कोलाको ने आर्मोडो कोलाको की पुत्री जेनेविव को इस संघ में शामिल करने के साथ ही उसे नेशनल टीम का कोआर्डिनेटर तक बना दिया, जबकि जेनेविव का कहना है कि वे इस पद के लिए अभी अपरिपक्व ही हैं। संघ में यह चर्चा आम हो चुकी है कि कोलाको अब तानाशाह बनकर सामने आ रहे हैं।

इसी तरह भारतीय टेनिस संघ खन्ना बंधुओं के चंगुल से मुक्त होने छटपटा रहा है। खन्ना परिवार का टेनिस संघ पर कब्जा 1988 से बरकरार है। 1988 से 1993 तक राजकुमार खन्ना टेनिस संघ के सचिव तो 2000 तक इसके अध्यक्ष रहे। इसके बाद राजकुमार खन्ना ने अपनी विरासत अपने पुत्र अनिल खन्ना को सौंप दी जो आज तक सचिव पद पर कायम हैं। पुरूष एकल में शीर्ष एक सौ की सूची में एक भी भारतीय का न होना क्या टेनिस संघ की नाकामी को दर्शाने के लिए काफी नहीं है। पर्याप्त धन होने के बाद भी अगर सालों में सानिया मिर्जा आगे आएं वह भी तीन दशक बाद तो इसे क्या कहा जाएगा? महेश भूपति, लियंडर पेस और सोमदेव बर्मन ही टेनिस के आकाश में चमकते सितारे हैं।

निशानेबाजी के मामले में कभी अव्वल रहने वाला भारत आज इस क्षेत्र में दुर्दशा के आंसू बहाने पर मजबूर है। मशहूर निशानेबाज अभिनव बिंद्रा कई बार देश के खेल ढांचे पर न केवल बरसे हैं, वरन उन्होंने बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का श्रेय भारतीय रायफल संघ को नहीं दिया। इस साल भी बिंद्रा और संघ के बीच काफी तकरार हुई इसका कारण यह था कि बिंद्रा नहीं चाहते थे कि उन्हंे ट्रायल के लिए बार बार हिन्दुस्तान न आना पडे।

इसी तरह निशाने बाजी के मसले पर एथेंस ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाले राजवर्धन राठौर, और विश्व विजेता रोंजन सोढी पहले ही संघ की दादागिरी का शिकार हो चुके हैं। इन दोनों को कामनवेल्थ प्रतियोगिता से महज इसलिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, क्योंकि दोनों ने पटियाला में ट्रायल का बहिष्कार इसलिए कर दिया था क्योंकि शाटगन रेंज तैयार नहीं थी।
 
एथलेटिक्स का जब भी नाम आता है तो हर किसी को स्कूली दिनों की याद आना स्वाभाविक है। स्कूली दिनों में हर कोई एथलेटिक्स का लुत्फ जरूर उठाता है। भले ही वह इस खेल में हिस्सेदार न बने पर दर्शक की भूमिका में जरूर ही रहता है। भारतीय एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी के कार्यकाल में 90 के दशक में एथलेटिक्स संघ ने कुछ परचम लहराए पर अनेक एथलीट्स ने देश को शर्मसार किया है।

2000 में हरियाणा की डिस्क थ्रो खिलाडी सीमा अंतिल ने वर्ल्ड जूनियर चेंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता किन्तु डोप टेस्ट में पाजिटिव पाए जाने पर उन्हें बाद में अपना पदक लौटाना भी पडा था। बुसान एशियन गेम्स में सुनीता रानी का प्रकरण काफी चर्चित रहा। सुनीता रानी को डोप टेस्ट और लंबी जांच में पाजिटिव पाए जाने पर अपना पदक लौटाना पडा था। इसी तरह 2005 में हेलसिंकी में हुई विश्व प्रतियोगिता में नीलम जसवंत सिंह डोप टेस्ट में पाजिटिव पाई गईं और भारत का सर शर्म से झुक गया था।
भारत में खेल संघ एक दशक से पूरी तरह से राजनेता, नौकरशाह और उद्योगपतियों के घरों की लौंडी बनकर रह गए हैं। शानो शौकत और स्टेटस सिंबाल का प्रतीक बने खेल संघों से इन मोटी चमडी वालों को हटाना अब आसान बात नहीं रह गई है। लंबी असाध्य बीमारी और निधन के चलते ही ये लोग संघ से विदा होते हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी 1986 से भारतीय फुटबाल संघ के अध्यक्ष थे। जब वे 2008 में गंभीर रूप से बीमार हुए तब जाकर उनके स्थान पर संघ के ही उपाध्यक्ष एवं केंद्रीय उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को अध्यक्ष बनाया गया। इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह जिनका निधन पिछले ही माह हुआ है, वे भी 1999 से नेशनल रायफल संघ के अध्यक्ष रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति परिस्थिति को देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत गणराज्य में खेल अब खिलवाड बनकर रह गए हैं।

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