बुधवार, 16 मार्च 2011

बिहार की राह पर चल पडा शांति का टापू मध्‍य प्रदेश


हिंसा को बढ़ावा देते शिवराज
 
सूबे में आग्नेय अस्त्रों की बिक्री बढ़ाने का फरमान!
 
शांत पानी में कंकर मारने पर आमदा शिवराज
 
मोबाईल कंपनियों की फर्जी सिम की तर्ज पर होगी असलाह की बिक्री!
 
(लिमटी खरे)

देश के हृदय प्रदेश को शांति का टापू माना जाता रहा है। मध्य प्रदेश के रहवासी इस बात पर गर्व किया करते हैं कि उनके सूबे में आपराधिक गतिविधियां अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम रही हैं। यह अलहदा बात है कि पिछले कुछ सालों से शासन प्रशासन की अनदेखी के चलते हृदय प्रदेश भी सुरक्षित राज्यों की फेहरिस्त से बाहर हो गया है।
 
मध्य प्रदेश के ग्वालियर चम्बल इलाके को छोड़कर शेष अन्य क्षेत्रों में शस्त्र का लाईसेंस लेने में लोगों की बहुत ज्यादा दिलचस्पी नजर नहीं आती है। डकैतों की आरामगाह, शरणगाह और कार्यक्षेत्र रहे चम्बल के बीहड़ और ग्वालियर चंबल संभाग में शस्त्र रखना वहां के बाशिंदो का प्रिय शगल रहा है। गर्म खून और गुस्सा नाक पर लेकर चलने वाले लोगों द्वारा बात बात पर गोली दाग देना आम बात है। इन क्षेत्रों में शादी ब्याह, जलसों आदि में शस्त्रों का प्रयोग खुलेआम बैखौफ तरीके से होता आया है।
 
एक तरफ तो शासन प्रशासन द्वारा मेले ठेले, शादी ब्याह, जलसों त्योहारों में शस्त्रों विशेषकर फायरिंग का उपयोग रोकने के लिए सख्ती बरती जाती है, वहीं दूसरी ओर हृदय प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली चाल चरित्र और चेहरे को मूल मंत्र मानकर चलने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा ही सूबे में बंदूक और गोलियों की बिक्री बढ़ाने का तुगलकी फरमान सूबे की शांत फिजां में जहर घोलने का काम कर रहा है।
 
मध्य प्रदेश सरकार के गृह विभाग द्वारा मई 2010 में एक आदेश जारी कर सभी को चौंका दिया था। मजे की बात तो यह है कि विपक्ष में सुसुप्तावस्था में बैठी कांग्रेस ने भी इसका विरोध करने की जहमत नहीं उठाई। मई मंे जारी इस आदेश का मजमून कुछ इस तरह था कि प्रदेश के प्रत्येक लाईसेंसी हथियार विक्रेता को हर साल पच्चीस हथयार और ढाई हजार कारतूस बेचना अनिवार्य है, अन्यथा उसकी अनुज्ञा (लाईसेंस) का नवीनीकरण अगले साल नहीं किया जा सकेगा।
 
एक तरफ तो सरकार द्वारा हथियार की अनुज्ञा के नियम बेहद सख्त बनाए गए हैं, जिससे हथियारों का लाईसेंस रसूखदारों, पहुंच संपन्न, धनाड्य और राजनैतिक दमखम वालों के घर की लौंडी बनकर रह गए हैं। आम जरूरतमंद को हथियार का लाईसेंस लेने में पसीने आ जाते हैं।
 
प्रदेश की राजधानी भोपाल का ही उदहारण लिया जाए तो पिछले साल भोपाल में शस्त्रों के लिए 1916 आवेदन वैध पाए गए थे, जिसमें से 1603 लाईसेंस निरस्त कर दिए गए थे। बचे महज 313 नए शस्त्र लाईसेंस ही बनाए गए थे। भापाल में असलाह की बिक्री के लिए सोलह दुकानों को लाईसेंस प्रदाय किया गया है। नए फरमान के मुताबिक इन दुकानों को चार सैकड़ा बंदूकें और चालीस हजार कारतूस बेचना अनिवार्य है। इसके अलावा एक शस्त्र लाईसेंस पर साल भर में महज 25 कारतूस ही मिल सकते हैं। इस तरह 313 नए हथियारों के लाईसेंस पर सात हजार आठ सौ पच्चीस कारतूस ही चढ़ सकते हैं।
इन परिस्थितियों में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा शांति के टापू पर आग्नेय अस्त्रों का जखीरा एकत्र करने के बेबुनियाद मार्ग प्रशस्त किए जा रहे हैं। इस तरह हथियार और कारतूस की बिक्री में प्रतिस्पर्धा पैदा करने की गरज से लक्ष्य निर्धारित करना कहीं से भी तर्क संगत नहीं माना जा सकता है।
 
प्रदेश सरकार का यह तर्क भी गले नहीं उतरता है कि इस तरह लक्ष्य निर्धारित करने से हथियार विक्रेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। साथ ही साथ आर्म्स डीलर की अनुज्ञा लेने वाले दुकानदार जो अपने प्रतिष्ठान बंद रखते हैं, वे भी अपनी दुकाने खोलकर हथियारों को बेचने में दिलचस्पी दिखाएंगे। शिवराज सिंह यह भूल गए कि यह आदेश दूध मेवा प्रमोट करने के लिए नही वरन् हथियारों का उपयोग करने को प्रोत्साहित करने के लिए है, जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
 
इस आदेश के बाद अपने प्रतिष्ठान का आर्म्स डीलर लाईसेंस जिंदा रखने के लिए दुकानदार एक दूसरे के उपभोक्ताओं के नाम से फर्जी तरीके से कारतूस उसी तर्ज पर बेचेंगे जिस तरह मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों के लक्ष्य को पूरा करने के लिए मोबाईल रिटेलर करता है। गौरतलब है कि मोबाईल की सिम के निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए मोबाईल का छोटा रिटेलर फर्जी नामों से सिम खुद ही खरीदकर लक्ष्य पूरा कर देता है। इसमें सिम खरीदी के लिए निर्धारित प्रपत्र और वेरीफिकेशन भी नहीं हो पाता है। इसी तरह जीवन बीमा के निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी एजेंट या विकास अधिकारी द्वारा छोटे छोटे बीमे फर्जी नामों से कर दिए जाते हैं ताकि एजेंट की एजेंसी को बचाए जा रखा सके।
 
वैसे भी आम आदमी अपने घरों में आग्नेय शस्त्रों का रखना उचित नहीं मानता है, क्योंकि शांति के टापू में इन अस्त्रों का क्या काम। यह अलहदा बात है कि धनाड्य और पहुंच संपन्न लोग अपने रसूख को जतलाने के लिए छतों पर बैठकर फुलथ्रू से दुनाली साफ कर समूचे मोहल्ले में अपना जलजला कायम रखना चाहते हैं।
 
अब जिस भी नागरिक के घर पर उसे चोबीसों घंटे हथियार के दीदार होंगे, उसे देखकर उसका मन हिंसक होना लाजिमी है। जिस तरह किसी को अगर बार बार मदिरा के इर्द गिर्द घुमाया जाए तो वह मदिरा का गुलाम हो जाता है इसी तरह हथियारों को देखकर हिंसा के बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी हिंसक वीडियो गेम्स और सीआईडी जैसे सीरियल्स ने बच्चों के कोमल मन में बंदूक और हिंसा को स्थान दे ही दिया है। अगर शिवराज सिंह सरकार इस निर्णय पर अटल रहेगी तो वह हिंसा को ही बढ़ाने के मार्ग प्रशस्त करेगी।
 
इतिहास इस बात का साक्षी है कि आग्नेय अस्त्रों का उपयोग हमेशा से देश की रक्षा के लिए निर्धारित लोगों के द्वारा ही किया जाता रहा है। रसूखदारों के घरों में हथियार शोभा की वस्तु हुआ करते रहे हैं। इसके अलावा डकैत, बदमाश, जरायम पेशा लोगों द्वारा अवैध तरीके से हथियार रखे जाते रहे हैं। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के इस तरह के तुगलकी फरमान के बाद मध्य प्रदेश के हर जिले, कस्बे में हथियारों से निकलने वाली गोलियां और शोर सुनाई दे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आश्चर्य तो तब होता है जब सूबे में विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी इस तरह के संवेदनशील मसले पर चुप्पी साध लेती है। मतलब साफ है कि कांग्रेस भी भाजपा के मध्य प्रदेश को बिहार बनाने के मिशन में अपना मौन समर्थन दे रही है।

कोई टिप्पणी नहीं: