लगता है बीसवीं सदी का जेपी मिल ही गया
छली जनता को इंतजार था किसी जय प्रकाश नारायण का
आजादी दिलाने में अग्रणी कांग्रेस, भ्रष्टाचार में भी है अग्रणी
(लिमटी खरे)
भ्रष्टाचार, घपालों, घोटालों से आजिज आ चुकी भारत देश की जनता लंबे समय से इस बात के इंतजार में है कि कोई जयप्रकाश नारायण आए और इस राक्षक के संवाहक जनसेवकों के खिलाफ इंकलाब बुलंद करे। भ्रष्टाचार को आधार बनाकर अनेक भ्रष्ट बगुलाभगत राजनेताओं ने तरह तरह के स्वांग रचकर चुनाव अवश्य ही जीते हैं किन्तु बाद में वे अपने असली रंग में आए। छली, थकी, कराहती जनता के पास हाथ मलने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।
देश की आजादी में अग्रणी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस आजादी के उपरांत कुछ ही सालों में भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई। यह बात समझ से परे है कि नेहरू गांधी के आदर्शों पर चलने वाली कांग्रेस आखिर भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आने से हिचक क्यों रही है? आजादी के उपरांत देश पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाली कांग्रेस आखिर आज किसे आधार बनाकर चल रही है? क्या इक्कसवीं सदी में कांग्रेस के पास भ्रष्टाचार, घपले और घोटाले ही आधार बनकर रह गए हैं।
वैसे यह बात उभरकर सामने आने लगी है कि अन्ना हजारे के अनशन के बाद सरकार दबाव में आने लगी है। देश में चैतरफा अन्ना को समर्थन मिलने लगा है। अब कांग्रेस यह कह रही है कि वह अन्ना के साथ बातचीत को तैयार है। आखिर अब भला अन्ना हजारे क्यों बात करने चले, जब उन्होंने सरकार को चर्चा के लिए समय दिया था जब सरकार ने अन्ना हजारे को हल्के में लिया और अब जब गांधी के नाम को भुनाकर सत्ता की मलाई चखने वाली कांग्रेस को गांधीवादी ताकत का अहसास हुआ तब वह झुकती नजर आ रही है।
जयप्रकाश नारायण के बाद पहली बार किसी अराजनैतिक व्यक्तित्व द्वारा देश की व्यवस्था मंे घुन की तरह लगे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की है। इस मामले का सुखद पहलू यह है कि यह आंदोलन पूरी तरह गांधी वादी तरह से संचालित हो रहा है। इतना ही नहीं अन्ना हजारे ने इस आंदोलन का श्रेय लेने के लिए राजनेताओं को पूरी तरह प्रथक ही रहने का न केवल मशविरा दिया है, वरन अगर उमा भारती और चैटाला पहुंचे भी तो उन्हें ससम्मान लौटा दिया गया।
अन्ना का कहना सौ फीसदी सही है कि जिस राजनैतिक दल या राजनेता को इसका समर्थन करना है वह अपने अपने सदस्यों के माध्यम से लोकसभा या विधानसभा में इसका समर्थन दे। दिल्ली के जंतर मंतर पर आकर फोटो खिचाने से भला क्या होगा, यह तो उन नेताओं का पब्लिसिटी स्टंट ही माना जाएगा। भाजपा पर दबाव बनाने के लिए उमा भारती नित नए जतन कर रही हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है।
गौरतलब है कि लोकपाल विधेयक पहली बार लोकसभा में 1968 में पेश किया गया था। इसके बाद आठ मर्तबा यह लोकसभा में पेश किया गया, किन्तु भ्रष्ट राजनैताओं की कुटिल चालों के चलते यह कभी भी परवान नहीं चढ़ सका। अन्ना से भयाक्रांत कांग्रेस की सोच इस बात से उजागर हो जाती है जब उसके प्रवक्ता अभिषेक मनु संघवी यह कहते हैं कि सरकार को ब्लेकमेल किया जा रहा है। अरे सरकार को ब्लेकमेल तो लालू प्रसाद यादव, शरद पवार, ममता बनर्जी जैसे छोटे दलों के क्षत्रप किया करते रहे हैं, जिसके कारण खुद प्रधानमंत्री को मजबूर होने की बात देश के सामने कहना पड़ा। वस्तुतः तब कांगे्रस का सर शर्म से झुक जाना चाहिए था।
देखा जाए तो कांग्रेस चाहती है कि भ्रष्टाचार या अन्य मामलों में जो भी जांच एजेंसी का गठन किया जाए वह बिना दांत और नखून के हो, ताकि देश के माननीय जनसेवकों को खरोंच न आए और वे अपनी लूट खसोट को बदस्तूर जारी रख सकें। जब देश की अदालतों को संज्ञान लेकर सरकार को नसीहतें देना आरंभ कर दिया गया हो तब सरकार को खुद को समझ लेना चाहिए कि उसके सिस्टम में कहीं न कहीं गड़बड़ अवश्य ही है।
सीवीसी के मामले में ही देश ने देखा कि किस तरह एक भ्रष्टतम सरकारी अफसर को बचाने के लिए कंेद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल आगे आए और उनकी पैरवी की। फजीहत तो तब हुई जब सबसी बड़ी अदालत की पहल के उपरांत प्रधानमंत्री को मानना पड़ा कि उनसे गल्ति हो गई। इसके बाद भी प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा कपिल सिब्बल को नसीहत नहीं दी। मतलब साफ है कि मनमोहन और सोनिया दोनों ही भ्रष्टों और भ्रष्टों को बचाने वाले गिरोह के सरगना बनकर रह गए हैं।
विश्व में भ्रष्टाचार को लेकर अनेक देशों में हाल ही में हुई क्रांति से कांग्रेस को सबक लेना चाहिए। सरकार अगर पारदर्शी होकर नहीं मानी तो निश्चित तौर पर यह आंदोलन बहुत ही तीव्र गति से बढ़ेगा। इसमें बुद्धिजीवी लोगों के साथ ही साथ भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी आम जनता भी भागीदार बनती जा रही है। अब तो हर जिले ब्लाक स्तर पर अन्ना के इस आंदोलन की गूंज सुनी जा सकती है।
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