गुरुवार, 5 मई 2011

उड़ने वाली राख गिरेगी जंगलों में, करेगी उर्वरक का काम

. . . तो गुलजार हो जाएंगे घंसौर के जंगल
 
पावर प्लांट्स की राख से बढ़ सकती है जमीन की उर्वरता
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली । थर्मल पावर प्लांट्स की चिमनी से निकलने वाली राख (फ्लाई एश) के मिट्टी मंे मिलने से जमीन की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। यह निष्कर्ष वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के एक इंस्टीट्यूट ने निकाला है। अगर एसा हुआ तो मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर (कहानापस) के बरेला में लगने वाले पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई एश से क्षेत्र के जंगल गुलजार हो जाएंगे।
मिनिस्ट्री ऑफ फारेस्ट एण्ड एनवार्यमेंट के सूत्रों का कहना है कि इस तरह का सफल प्रयोग दिल्ली मंे किया जा चुका है। नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन द्वारा दिल्ली के दादरी स्थित प्लांट से निकलने वाली राख को आसपास के ग्रामीणों मंे वितरित किया। दावा किया जा रहा है कि मिट्टी में मिली इस राख से वहां की उर्वरक क्षमता अचानक ही बढ़ी है। वहीं अनेक शोध यह भी बताते हैं कि फ्लाई एश अनेक मामलों में घातक भी है।
एनटीपीसी का दावा है कि इस राख से फल, सब्जियां, फूलों की खेती यहां तक कि वन विभाग चाहे तो इस राख को जंगलों में बिखेर कर वनों की मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ा सकता है। वर्तमान में इन संयंत्रों से निकलने वाली राख का उपयोग सीमेंट और सीमेंट की ईंट बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही साथ चिमनी से उड़ने वाली राख से आसपास के जल स्त्रोत दूषित हुए बिना नहीं रहते हैं।

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