घुटनों पर खड़ी केंद्र सरकार
(लिमटी खरे)
गांधीवादी अण्णा हजारे की एक अपील पर देश के बच्चे, युवा, प्रौढ़, बुजुर्ग, वयोवृद्ध सभी सड़कों पर निकल आए। 16 अगस्त की सुबह से ही इलेक्ट्रानिक मीडिया की ‘फीस्ट‘ (लज़ीज भोजन) चल रही है। एंकर्स रिपोर्टस जगह जगह एकत्र भीड़ के साथ अपने अपने चेनल्स की टीआरपी बढ़ाने और ब्रेकिंग न्यूज देने का जतन कर रहे हैं। लोग भी घरों में दुबके बारिश के मौसम में चाय पकौड़ों के साथ दिल्ली का हाल जान रहे हैं। शाम ढलते ही ‘चियर्स‘ की आवाज के साथ फिर लोग टीवी पर ही आंखें गड़ा देते हैं। मयखानों में भी टीवी की भारी डिमांड हो गई है। चहुंओर अण्णा ही अण्णा नजर आ रहे हैं। अण्णा के अनशन के आठ दिन बाद मोटी चमड़ी वाले मंत्रियों को कुछ शर्म महसूस हुई और वजीरे आजम ने बैठकों का कभी न थमने वाला दौर आरंभ किया। अण्णा की हालत बिगड़ती जा रही है, पर प्रधानमंत्री बैठकों में व्यस्त हैं। वैसे यह शुभ संकेत से कम नहीं है कि अण्णा के अनशन के आठ दिनों बाद ही सही कम से कम बेशर्म, नपुंसक, निरंकुश, भ्रष्ट सरकार घुटनों पर खड़ी तो दिखाई दे रही है। देश में हुए घोटालों की शुरूआत आजादी के साथ ही आरंभ हो गई थी जो आज भी अनवरत ही जारी है।
देश ही नहीं विदेशों में भी यह प्रश्न आम हो चुका है कि क्या एक लोकपाल आने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा? जाहिर है सभी का उत्तर है, नहीं। फिर यह हाय तौबा क्यों? क्यों भारत गणराज्य का हर आदमी एक सीधे सादे शांत सुशील बुजुर्गवार किशन बाबू राव हजारे उर्फ अण्णा हजारे के पीछे एक सप्ताह से ज्यादा समय से भाग रहा है। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर हो रहा है कि अण्णा हजारे जो महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धि नामक गांव के निवासी हैं के पीछे समूचा देश भेड़चाल चल रहा है, वह भी इतने शातिर राजनेताओं के होते हुए अहिंसक तरीके से! मतलब साफ है कि एक लोकपाल के आने से भ्रष्टाचार तो नहीं मिटने वाला पर देश की जनता अपने जनसेवकों के तौर तरीकों और नूरा कुश्ती से आज़िज आ चुकी है।
देश में घपलों घोटालों की फेहरिस्त बहुत ही लंबी है। इनमें सबसे अधिक कांग्रेस की झोली में जाते हैं। 1948 में वी.के.कृष्णा मेनन का अस्सी लाख का जीप घोटाला। 1956 में पचास लाख का बीएचयू फंड घोटाला। 1957 मंे हरिदास मुंद्रा का सवा करोड़ रूपए का घोटाला। 1960 में जयंत धर्मा तेजा का लोन घोटाला जो 22 करोड़ रूपए का था के बाद 1976 में इंडियन ऑयल का ऑयल डील का दो करोड़ दो लाख का घोटाला। 1981 में अब्दुल रहमान अंतुले का ट्रस्ट घोटाला तो 1987 में बोफोर्स तोप सौदे का 64 करोड़ एवं एचडीडब्लू कमीशन घोटाला बीस करोड़ रूपए का हुआ था। बोफोर्स तोप घोटाले के बाद राजीव गांधी को सत्ता से बाहर फेंक दिया गया था। बाद में कांग्रेस के दांव पेंच के चलते मामले का खात्मा ही लगा दिया गया।
1989 में सेट किट्स जालसाजी पौने दस करोड़ रूपए की एवं इस समय का बड़ा घोटाला दो हजार करोड़ का एयर बस घोटाला था। इसके बाद घोटाले करोड़ों रूपयों में तो हुए किन्तु वे हजारों करोड़ में तब्दील हो चुके थे। 1992 में बिग बुल हर्षद मेहता ने पांच हजार करोड़ का घोटाला कर सुर्खियां बटोरीं। इसके बाद बारी आती है साढ़े छः सौ करोड़ रूपए के चीनी घोटाले की जो 1994 में हुआ। 1995 में हुए घोटालों की फेहरिस्त काफी लंबी कही जा सकती है। इस साल 43 करोड़ रूपए का कस्टम एण्ड टेक्स घोटाला हुआ जिसे वीरेंद रस्तोगी ने किया। मेघालय में तीन सौ करोड़ का वन घोटाला, पांच हजार करोड़ का प्रीफेशियल एलाटमेंट घोटाला, चार सौ करोड़ रूपए का यूगोस्लेव दिनार घोटाला, एक हजार करोड़ का कॉबलर घोटाला भी इसी साल हुआ।
1996 का वर्ष लालू यादव के नाम हो जाता है। इस साल साढ़े नौ सौ करोड़ का चारा घोटाला हुआ लालू के शासन काल में। इसके अलावा यूरिया घोटाला 133 करोड़ रूपए और तेरह सौ करोड़ रूपए का उर्वरक आयात घोटाला भी हुआ। 1997 में हुए सुखराम टेलीकाम घोटाले में 15 सौ करोड़ रूपए के लेन देन की आशंका थी। यह पहला मामला था जब किसी राजनेता को सजा हुई हो। इसी साल बारह सौ करोड़ रूपए का म्यूचुअल फंड घोटाला, 374 करोड़ रूपए का एनसी पावर प्रोजेक्ट घोटाला एवं हवाला के सूत्रधार जैन बंधुओ का बिहार भूमि घोटाला चार सौ करोड़ रूपयों का हुआ। 1998 मंे आठ हजार करोड़ रूपयों का टीक प्लांटेशन और दो सौ दस करोड़ रूपयों का उदय गोयल का एग्रीकल्चर घोटाला हुआ।
2001 में केतन पारिख का प्रतिभूति घोटाला एक हजार करोड़, यूटीआई घोटाला 32 करोड़, दिनेश डालमिया का शेयर घोटाला 595 करोड़ रूपयों का हुआ। 2002 में संजय अग्रवाल के गृह निवेश में छः सौ करोड़ रूपए और कलकत्ता स्टाक एक्सचेंज का एक सौ बीस करोड़ रूपयों का घोटाला सामने आया। इसके बाद 2003 में तो गजब ही हो गया। इस साल तेलगी ने धूम मचा दी। तेलगी ने बीस हजार करोड़ रूपयों का स्टाम्प घोटाला कर सभी को चौंका दिया। 2005 में डीमेट घोटाले के खाते में एक हजार करोड़ रूपए तो बिहार बाढ़ आपदा का छोटा सा सत्रह करोड़ रूपए का घोटाला तथा स्कॉर्पियन पनडुब्बी का 18 हजार 978 करोड़ का घोटाला हुआ। 2006 में पंद्रह सौ करोड़ रूपए का पंजाब सिटी सेंटर प्रोजेक्ट घोटाला, 175 करोड़ रूपए का ताज कारीडोर घोटाला हुआ।
2008 के उपरांत घोटालों की बाढ़ सी आ गई। इस साल हसन अली का पचास हजार करोड़ का जो 39 हजार 120 करोड़ का बताया जा रहा है के अलावा स्विस बैंक में जमा काला धन लगभग 21 लाख करोड़ रूपए, 95 करोड़ का सोराष्ट्र बैंक घोटाला, पांच हजार करोड़ रूपए का सैन्य राशन घोटाला, आठ हजार करोड़ रूपए का रामलिंगा राजू का सत्यम घोटाला प्रकाश में आया। 2009 में ढाई हजार करोड़ रूपए का चावल निर्यात घोटाला, सात हजार करोड़ रूपए का उड़ीसा खदान घोटाला, चार हजार करोड़ का झारखण्ड खदान घोटाला और एक सौ तीस करोड़ रूपए का झारखण्ड मेडीकल घोटाला सामने अया। पिछले साल यानी 2010 में एक लाख 76 हजार करोड़ का टूजी घोटाला, सत्तर हजार करोड़ रूपए का कामन वेल्थ गेम्स घोटाला, साढ़े नौ अरब का आदर्श सोसायटी घोटाला, दो लाख करोड़ का एस बैण्ड तो पेंतीस हजार करोड़ का खाद्यान्न घोटाला सामने आया है। इस तरह आजादी के बाद से अब तक खरबों करोड़ के घोटाले हो चुके हैं जिनमें से कुछ ही प्रकाश में आ सके हैं।
इतने घपले घोटाले करने के बाद भी मोटी चमड़ी वाले राजनेताओं को शर्म नहीं आई कि उन्होंने जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से एकत्र राजस्व की खुली लूट की है। इसमें सभी राजनैतिक पार्टियों की बराबर की भागीदारी है। कोई भी पार्टी अपने निहित स्वार्थों को तजकर देश की जनता के लिए कुछ करने का प्रयास नहीं करती है। संसद के अंदर नूरा कुश्ती का दौर आजादी के उपरांत से ही आरंभ हो गया था। इतिहास साक्षी है जब भी कोई घोटाला सामने आता है उसी वक्त केंद्र सरकार द्वारा इससे बचने के लिए पेट्रोलियम पदार्थों के दामों को बढ़ा दिया जाता है ताकि आम जनता का ध्यान इससे हट सके।
जनता अब जाग चुकी है। वैसे कहा जा रहा है कि अण्णा हजारे के आंदोलन को शीला दीक्षित द्वारा हवा दी जा रही है क्योंकि अब कामन वेल्थ गेम्स घोटालों की लपटें उन्हें घेरने लगी हैं। अण्णा के आंदोलन के बहाने विपक्ष और जनता का ध्यान कुछ समय के लिए ही सही इससे हट गया है। खैर जो भी हो देश की जनता ने अहिंसक तरीके से सड़कों को अण्णा के लिए थाम लिया है। अण्णा की सदगी, सच्चाई, पारदर्शिता, विनम्रता, दृढ़ता के सामने सारे राजनेता नतमस्तक ही नजर आ रहे हैं। जनता अण्णा को सर माथे पर बिठाए है। इसलिए क्योंकि अण्णा के साथ उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं जुड़ा दिख रहा है। कुछ समय पहले बाबा रामदेव का आंदोलन इसी रामलीला मैदान पर हुआ। सरकार ने बाबा के साथ बल प्रयोग किया और बाबा रामदेव ‘रणछोड़दास‘ हो गए।
अण्णा के अनशन के नौ दिनांे बाद सरकार अब बैठकों के दौर से गुजर रही है। साफ दिखने लगा है कि अण्णा एक अकेले नहीं हजारों हजारों करोड़ों अण्णा में तब्दील हो गए हैं। अब कड़वे वचन बोलने वाले कपिल सिब्बल और पलनिअप्पम चिदम्बरम एवं मनीष तिवारी समचार चेनल्स से एकदम गायब हो चुके हैं। हालात देखकर लगने लगा है कि आधा दर्जन राष्ट्रों हुई क्रांति के बाद अब भारत का नंबर है। सरकार खुद वार्ता की पहल कर अण्णा की शर्तें मान रही है, इसे शुभ संकेत माना जाएगा। सरकार घुटनों के बल खड़ी है, यह सफलता अण्णा हजारे की नहीं वरन् 121 करोड़ आम हिन्दुस्तानियों की है। इलेक्ट्रानिक मीडिया की इसमें अहम भूमिका है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया को लाखों करोड़ रूपए के पैकेज की तैयारी की जा रही है, ताकि आंदोलन का रूख बदला जा सके। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि अगर अब इस आंदोलन के शमन के प्रयास हुए तो इसके परिणाम बहुत अच्छे नहीं सामने आएंगे। सवाल यही है कि अगर सरकार को कथित सिविल सोसायटी की बातें माननी ही थीं तो फिर 16 अगस्त से अब तक इस तरह के सर्कस का क्या ओचित्य था? जाहिर है सरकार की मंशा में खोट है।
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