बच्चों के प्रति संजीदा नहीं सरकारें
बुनियादी सुविधाओं का अभाव है आंगनवाड़ियों में
पैसा कमाने का जरिया बनीं आंगनवाड़ियां
राज्यों को भी नहीं परवाह बच्चों की
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। ‘‘सुविधाओं को तरसते देश के अधिकांश बच्चे आज भी कुपोषण से ग्रसित हैं। जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित कर सरकारों द्वारा खर्च किए गए अरबों रूपए पानी में ही बह गए हैं।‘‘ उक्ताशय के निश्कर्ष संसदीय समिति ने अपने प्रतिवेदन में निकाले हैं। सरकार को आड़े हाथों लेते हुए इस समिति ने माहिला एवं बाल विकास मंत्री को जमकर घेरा है। समिति ने पाया कि आधे से अधिक आंगनवाड़ियों में बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की महिलाओं को सुदृण और आत्मनिर्भर बनाने संबंधी संसदीय समिति ने अपना आठवां प्रतिवेदन संसद में पेश किया है। इस प्रतिवेदन में बच्चों के विकास के प्रति कोताही बरतने पर सरकार की कड़ी आलोचना की गई है। समिति ने देश में 1975 में आरंभ की गई योजना में कुछ अमूल चूल परिवर्तन करते हुए आंगनवाड़ी और शिशु गृह में पैदा होने के बाद से तीन साल तक के बच्चों को भी शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। समिति का मानना है कि इससे एक ओर बच्चों में कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकेगी वहीं दूसरी ओर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को भी शिशु गृह की सुविधा मिल सकेगी।
इस प्रतिवेदन में समिति ने पाया कि देश में संचालित आंगनवाड़ियों में आधी से अधिक जगहों पर पेयजल की सुविधा ही नहीं है। बच्चे प्यासे कंठ ही यहां रोते पाए गए। इतना ही नहीं इतनी ही संख्या में आंगनवाड़ियों में शौचालय ही नहीं थे। समिति ने महज पच्चीस फीसदी आंगनवाड़ियों में ही रसोईघर पाए। समिति ने यह भी पाया कि आंगनवाड़ी चलाने वालों के घरों पर ही एक कमरे में ही आंगनवाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं।
समिति को सबसे अधिक आश्चर्य इस बात पर हुआ कि आंगनवाड़ी कार्यकताओं के लगभग नब्बे हजार और समेकित बाल विकास सेवा में निरीक्षकों के लगभग पंद्रह हजार पद रिक्त होने के बाद भी राज्यों द्वारा इस बारे में केंद्र को अंधेरे में ही रखा जा रहा है। समिति ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया है कि चार दशकों के बाद भी इसके लिए पात्र लगभग सोलह करोड़ में से महज साढ़े सात करोड़ बच्चों को ही शामिल किया गया है।
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