मंगलवार, 27 सितंबर 2011

बिरादरी में ही अनजान हैं भूरियाबिरादरी में ही अनजान हैं भूरिया


बिरादरी में ही अनजान हैं भूरिया

भूरिया को नहीं एमपी के 22 आदिवासी विधायक का समर्थन

आदिवासी अंचलों में बेगाने हैं भूरिया

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। रसातल में पहुंच चुकी मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी में नई जान फूंकने के लिए इसकी कमान राज्य सभा की राजनीति करने वाले सुरेश पचौरी के हाथों से लेकर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के हाथों में सौंपने के बाद भी सूबाई कांग्रेस की हालत में कुछ सुधार परिलक्षित नहीं हो पा रहा है। आदिवासियों के हितों के संरक्षण का स्वांग करने वाली कांग्रेस ने भूरिया के हाथों कमान सौंपकर आदिवासी वोट बैंक को प्रसन्न करने का असफल प्रयास ही किया है।

अध्यक्ष बनने के बाद कांतिलाल भूरिया द्वारा अब तक मध्य प्रदेश के समस्त जिलों का दौरा भी नहीं किया जा सका है। भूरिया का सारा ध्यान मालवांचल में ही प्रतीत हो रहा है। महाकौशल के आदिवासी बाहुल्य मण्डला, डिंडोरी, बालाघाट, सिवनी और छिंदवाड़ा से भूरिया ने पर्याप्त दूरी बना रखी है।

केंद्र में भले ही भूरिया ने लाल बत्ती का स्वाद चख लिया हो किन्तु जमीनी हकीकत यह है कि आदिवासियों के बीच आज भी वे अनजान चेहरा ही हैं। मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र में राजनीति करने वालों के बीच चल रही बयार के अनुसार भूरिया में चमत्कारिक बात नहीं है। कांतिलाल भूरिया एसा चेहरा कतई नहीं हैं जिसके बूते मध्य प्रदेश में कांग्रेस की डूबती नैया को किनारे लगाया जा सके। वैसे भी भूरिया को कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह का रबर स्टेंप माना जाता है।

गौरतलब है कि वर्तमान में मध्य प्रदेश में 19 फीसदी वोट आदिवासी समुदाय के हैं। प्रदेश में तकरीबन 22 अदिवासी विधायक हैं। कांतिलाल भूरिया के अध्यक्ष बनने के बाद इन्होंने अपनी बिरादरी के सांसद विधायकों तक की सुध नहीं ली है। एमपी कोटे के कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि भूरिया की ताजपोशी के बाद मध्य प्रदेश में दिग्गी काल की वापसी हो चुकी है।

मध्य प्रदेश के क्षत्रप भी कांतिलाल भूरिया से पर्याप्त दूरी बनाकर ही चल रहे हैं। रविवार को जबलपुर में आयोजित एक कार्यक्रम से महाकौशल के क्षत्रप कमल नाथ ने दूरी ही बनाकर रखी। इस प्रोग्राम में सूबाई कांग्रेसी निजाम भूरिया, नेता प्रतिपक्ष राहुल सिंह, पूर्व सांसद रामेश्वर नीखरा अवश्य पहुंचे पर कांग्रेस के आला क्षत्रप इससे गायब ही रहे। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में चल रही चर्चाओं के अनुसार इन परिस्थितयों में 2013 के चुनावों में मध्य प्रदेश में कांग्रेस से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करना बेमानी ही होगा।

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