तिवारी के हंटर से सहम गए माननीय!
(रवीन्द्र जैन)
भोपाल। मप्र के मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी ने इस पद से रिटायर होने से एक घंटा पहले एक फैसला लिखकर प्रदेश के तमाम विधायकों को मायूस कर दिया है। तिवारी ने अपने फैसले में जहां एक ओर विधायकों के यात्रा भत्ते से संबंधित जानकारियां अपीलकर्ता को निशुल्क देने का आदेश दिया है वहीं स्पीकर से अनुरोध भी किया है कि विधायकों की निष्ठा को संदेह से परे रखने के लिए उनके टीए बिल से संबंधित सभी जानकारियां विधानसभा की वेबसाइट पर डाली जाना चाहिए। इस फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। मजेदार बात यह है कि मुख्य सूचना आयुक्त ने भी यह फैसला सुनवाई के लगभग एक साल बाद लिखा है।
आरोप है कि मध्यप्रदेश विधानसभा के कई विधायक विधानसभा की कार्रवाई में शामिल होने फ्री कूपन से रेल की यात्रा करते हैं और अपने निजी वाहन का बिल बनाकर विधानसभा सचिवालय से भुगतान भी ले लेते हैं। इस तरह कई वर्षों से कई विधायक एक ही यात्रा का रेल और वाहन दोनों का भुगतान ले लेते हैं। इस धांधली को सबसे पहले रवीन्द्र जैन (मैंने) ने खबर छापकर उजागर किया था, लेकिन एक दर्जन विधायकों ने मुझे विशेषाधिकार हनन का नोटिस थमा दिया। मैंने अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए विधानसभा सचिवालय से सूचना के अधिकार के तहत छह बिन्दुओं पर जानकारी मांगी। इस संबंध में मैंने दो अलग-अलग आवेदन विधानसभा सचिवालय के लोक सूचना अधिकारी को दिये। लेकिन उन्होंने निर्धारित 30 दिन में कोई कार्यवाही नहीं की तो मैंने विधानसभा सचिवालय के अपीलीय अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की लेकिन उन्होंने भी मेरी अपील यह कहते हुए खारिज दी कि इस जानकारी के प्रकट होने से विधायकों के विशेष अधिकार का हनन होगा। मैंने द्वितीय अपील राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त से की। मुख्य सूचना आयुक्त ने 7 अप्रैल 2011 को दोनों पक्षों की सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया।
22 मार्च 2012 को मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी सेवानिवृत्त होने वाले थे अपनी सेवानिवृत्ति के ठीक एक घंटे पहले तिवारी ने इस बहुचर्चित मुद्दे पर फैसला देते हुए लिखा है कि चाही गई जानकारी विधानसभा में माननीय विधायकों के कार्यों से संबंधित नहीं है। अपितु उनके देयकों से संबंधित है जो कि विधानसभा सचिवालय के अधीन एक प्रशासकीय कार्य है। अतरू इस जानकारी से विधायकों का विशेषाधिकार हनन संबंधित दलील सारहीन और निराधार है जिसे अमान्य किया जाता है। मुख्य सूचना आयुक्त ने अपने फैसले में विधानसभा के लोक सूचना अधिकारी को निर्देश दिया है कि अपीलार्थी उक्त जानकारी पाने का हकदार है। अतरू उसे 15 दिवस के अंदर सभी छह बिन्दुओं की जानकारी निशुल्क प्रदाय की जाए। मुख्य सूचना आयुक्त ने अपने फैसले में यह भी लिखा है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक क्रांतिकारी कानून है जिसकी उद्देशिका स्पष्ट तौर पर कहती है कि हमारे संविधान ने लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की है जो ऐसी सूचना में पारदर्शिता की अपेक्षा करता है जो उसके कार्यकरण तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अनिवार्य है।
वेबसाइट पर डालिए
अपने इस फैसले में मुख्य सूचना आयुक्त ने विधानसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया है कि सभी लोक सेवकों की संनिष्ठा और आचरण संदेह से परे होना चाहिए। जन प्रतिनिधियों के मामले में तो यह और आवश्यक है कि उनके आचरण और संनिष्ठा पर किचित मात्र भी संदेह न हो। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय स्पीकर विधायकों के देयकों से संबंधित सभी जानकारियां सार्वजनिक करें और उन्हें वेबसाइट पर डालने हेतु उचित आदेश करने का कष्ट करें।
विधायकों में मायूसी
मुख्य सूचना आयुक्त के इस फैसले से प्रदेश के ऐसे 100 से अधिक विधायकों में मायूसी छा गई है जो पिछले कई वर्षों से धड़ल्ले से एक ही यात्रा के दो-दो बिलों का भुगतान ले रहे थे। मेरा दावा है कि इसकी निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच हो जाए तो प्रदेश लगभग सवा सौ विधायकों की न केवल सदस्यता खत्म हो जायेगी बल्कि उन पर इस कृत्य के लिए आपराधिक प्रकरण भी दर्ज हो सकता है।
दूरगामी परिणाम होंगे
मुख्य सूचना आयुक्त के इस फैसले से न केवल मप्र विधानसभा बल्कि देश की तमाम विधानसभाओं में इसका असर दिखेगा जहां विधायक रेल और वाहन दोनों का भुगतान ले रहे हैं।
(साई फीचर्स)
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