मंगलवार, 27 मार्च 2012

महाकौशल की सियायत में हाशिये पर जाते कमलनाथ.........?


महाकौशल की सियायत में हाशिये पर जाते कमलनाथ.........?



(रहीम खान)

बालाघाट (साई)। मध्य प्रदेश के कांग्रेसी सियायत में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला जबलपुर संभाग अर्थात् महाकौशल क्षेत्र जिसके अन्तर्गत बालाघाट, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, बैतुल, होंशंगाबाद, नरसिंहपुर, दमोह इत्यादि क्षेत्र को गिना जाता है। यहां के राजनीतिक परिदृश्य में नजर दौडाई जाये तो कांग्रेस की राजनीति में कभी किंग मेकर के रूप में पहचाने जाने वाले तथा प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के समय खासा प्रभाव रखने वाले छिंदवाड़ा जिले के सांसद एवं वर्तमान केन्द्र सरकार में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ की काबिलियत को क्षेत्र के लोगों ने हाथों हाथ लिया और कांग्रेसी ही नहीं इस क्षेत्र की जनता ने भी इनको पलक पावड़े बिछाकर स्नेह प्रदान किया।
इसे दुर्भाग्य कहा कहे या कमलनाथ की मजबूरी विकास के क्षेत्र में छिंदवाड़ा जिले को तो उन्होंने प्रगतिशील जिले की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। परन्तु दूसरों जिलों के लिये वह उतना कुछ नहीं कर पाये जितनी उनसे लोग अपेक्षा करते है। यह सही है कि जिस जिले से आप जीत के जाते है। उसकी चिंता पहले होना चाहिये। परन्तु कमलनाथ राजनीति का प्रभावशील व्यक्तित्व है उनसे दूसरे जिले के लोग अपेक्षायें रखते है तो कोई आश्चर्य वाली बात नहीं। क्योंकि वह नरसिंहा राव सरकार में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री फिर कपड़ा मंत्री और मन मोहन सिंह सरकार में उद्योग मंत्री फिर सड़क एवं भूतल परिवहन परिवहन और वर्तमान में शहरी विकास मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग का दायित्व उनके पास रहा है।
आम तौर पर राजनीति में यह कहा जाता है कि जिस नेता कि दिल्ली में पकड़ है वह कोई भी कार्य आसानी से करा सकता है विकास की सारी योजनाएं कमलनाथ छिंदवाड़ा को तो देते है पर दूसरे जिले में उनका योगदान समझ नहीं आता है। भूतल एवं परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने करोड़ो रूपयों की लागत से बनने वाली सड़कों के सौगात की घोषणा महाकौशल क्षेत्र के अन्य जिलों के लिये की थी परन्तु पद से हटते ही उस परियोजना का क्या हुआ कोई नहीं जानता।
प्रकृति की अपार वन खनिज संपदा अपने सीने में छिपाने वाले महाकौशल क्षेत्र के अंतर्गत वर्तमान में जो लोग सरकार में प्रतिनिधित्व कर रहे है उनमें जबलपुर से ईश्वरदास रोहाणी, विधान सभा अध्यक्ष, अजय विश्नोई पशु पालन विभाग के मंत्री, जयंत मलैया भी मंत्री है, सिवनी से ठाकुर हरबंशसिंह विधान सभा के उपाध्यक्ष है, मंडला से देवीसिंह सैयाम, सौंसर से नानाभाऊ मोहोड, बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन, राज्य सरकार में मंत्री होने के साथ हाल ही में बरघाट के पूर्व विधायक ढाल सिंह बिसेन को राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाकर केबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया।
इसी प्रकार भाजपा सरकार ने महाकौशल विकास प्राधिकरण का गठन कर इसका अध्यक्ष सिवनी के पूर्व विधायक नरेन्द्र दिवाकर को बनाकर लाल बत्ती दी गई। भाजपा का महाकौशल विकास का यह फंडा भी क्षेत्र की जनता में कोई उम्मीदें नहीं जगा पाया। अखबारों में बयानबाजी तक ही यह सीमित लगता है। राजनैतिक रूप से इतना सम्पन्न होने के बाद भी महाकौशल क्षेत्र सर्वागीण विकास के लिये तरस रहा है। इन सभी राजनेताओं की तुलना कमलनाथ से नहीं की जा सकती। क्योंकि वह राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा है और इनसे ज्यादा प्रभाव रखते है। उसके बाद भी अन्य जिलो को उनकी ओर से उतना योगदान नहीं मिल पाया। जिसकी अपेक्षा की जाती है।
निश्चित रूप से कमलनाथ राजनीति के अलावा एक प्रतिष्ठित उद्योगपति है। इसलिये अन्य राजनेताओं के अपेक्षा उनके पास समयाभाव रहता है। कांग्रेस के भीतर भी कमलनाथ ने जिन जिन लोगों को अपना आशीर्वाद दिया वह सब राजनीति के पीटे हुए मोहरे साबित हुए। उसके बाद भी उन्हीं पर विश्वास करने से कमलनाथ का राजनीति ग्राफ भी दूसरे जिलो में कम हुआ है। और अब पहले जैसे लोग उनसे मिलने के लिये उत्सुक नहीं रहते। उन्हें मालुम है कि हजारो रूपये खर्च करके हम उनसे मिलने जायेगें वहां मुश्किल से 2-5 मिनट का समय मिलेगा वह अपनी बात भी नहीं रख पायेगें और उनके दांये बांये लोग उन्हें वहां से हटा देगें।
कांग्रेस के भीतर निश्चित रूप से कमलनाथ का अपना एक स्वयं का आभा मंडल है और उन्होंने छिंदवाड़ा को अपनी राजनीति की कर्मभूमि बनाकर राजनीतिक प्रभाव का जो विस्तार किया था वह उनके कार्यप्रणाली से ही सब सिमटने लगा है। शिकारपुर हो या तुगलक रोड वहां छिंदवाड़ा वालें की तो पूछ परख है बाकी दूसरों की वह अहमियत नहीं। भाजपा के एक प्रभावशील नेता का कहना है कि कमलनाथ महाकौशल के दूसरे जिलों के हितो पर कुठाराघात करते है और जिन योजनाओं का पैसा दूसरे जिलों को मिलने वाला रहता है वह स्वयं अपने प्रभाव से छिंदवाडा ले जा लेते है।
फिर इन्हें महकौशल का नेता क्यों कहा जाय ? विकास के क्षेत्र में भी कमलनाथ अगर चाहते तो छिंदवाडा की तरह महाकौशल के अन्य जिलों को भी सम्पन्न कर सकते थे पर वह ऐसा नहीं कर पाये। लोगों को उनसे जितनी अपेक्षायें रही उस पर निश्चित रूप से वह विफल ही दृष्टिगोचर हो रहे है। कांग्रेस के ही एक प्रभावशील नेता का कहना है कि यह महाकौशल के कांग्रेस जनों का सौभाग्य था कि उन्हें कमलनाथ के रूप में एक ऐसा नेता मिला जो पार्टी के हेडक्वार्टर 10 जनपथ और 7 रेसकोर्स रोड़ पर अपना प्रभाव रखता है। किंतु उनकी कमजोरी रही कि वह अच्छे कार्यकर्ताओं की पहचान नहीं कर पाये।
चुनाव में उन्होने उन लोगों पर दांव लगाया जिसने उन्हें पार्टी के भीतर प्लस करने की जगह माइनस करने का कार्य किया। इतना ही नहीं जो लोगो ने कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा उनको ही वह अपने क्षेत्र में कांग्रेस के चुनाव प्रचार में घुमाते रहे इससे यह संदेश भी कांग्रेस के लोगों के बीच में गया जो लोगा कांग्रेस की कबर खोदते है वह अगर उनकी चापलूसी करे तो उसके सारे गुनाह माफ कर दिये जाते है। उनके इस प्रकार के कदम से कांग्रेस जनों में नाराजी भी देखी गई। इसे राज्य सरकार का प्रभाव कहे या कांग्रेेस की कमजोरिया स्वयं छिंदवाड़ा में स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में कमलनाथ भारी भरकम मेहनत करने के बाद भी कांग्रेस के उम्मीदवार को नहीं जीता पाये।
वर्तमान रेल बजट में ऐसी उम्मीदें थी कि कमलनाथ के सहयोग से छिंदवाडा के अतिरिक्त अन्य जिलों को भी बहुत कुछ मिलेगा। इसके लिये बाकायदा उनसे लोगों ने सम्पर्क बनाये रखा पर ऐसा कुछ नहीं हो पाया। जिसके चलते विपक्षी भाजपा को कमलनाथ के खिलाफ बोलने के अवसर उपलब्ध हो गया। हमेंशा अपने भाषणों में युवाओं के हितों की रक्षा की बात करने वाले कमलनाथ जैसे प्रभावशील नेता की स्थिति वर्तमान समय महाकौशल ही नहीं मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा तक सीमित होते दिख रही है।
इतना ही नहीं केन्द्रीय राजनीति में भी वर्तमान समय भले ही वह केन्द्रीय मंत्री हो पर वहां भी वह हाशिये पर ही नजर आ रहे है। हालांकि 1980 से लगातार संसद में छिंदवाड़ा जिले का प्रतिनिधि करने वाले कमलनाथ की वरिष्ठता हाशिये पर होने के बाद भी कोई अंतर नहीं आयेगा पर जनता और उनसे स्नेह रखने वाले लोगों में निश्चित रूप से एक उदासीनता का वातावरण महाकौशल में निर्मित हो गया है।
इस निराशा के मध्य आने वाले विधानसभा चुनाव 2013 एवं लोक सभा चुनाव 2014 में कमलनाथ को छिंदवाड़ा ही नहीं महाकौशल में भी अपनी खिसकती सियासी जमीन को बचाने के लिये समय रहते कुछ आवश्यक कदम उठाने होगे अन्यथा वह भी इस क्षेत्र के बीते हुए कल के नेता बन कर रह जायेगें। मीडिया अगर उनको महाकौशल ही नहीं मध्यप्रदेश का प्रभावशील नेता होने की संज्ञा देती रही तो इसके अपने अर्थ थे पर उस पर खरा उतरने में वह विफल हो रहे है। कांग्रेस के भीतर और बाहर लोग वरिष्ठता के नाते उनका सम्मान तो करते है पर लगाव अब पहले जैसा नहीं रहा।

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