रविवार, 22 अप्रैल 2012

जाने के पहले अग्रवाल को ठिकाने लगाकर जाएंगी शीला


जाने के पहले अग्रवाल को ठिकाने लगाकर जाएंगी शीला

संदीप रहे चुनावों में पूरी तरह निष्क्रिय

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के निजाम जे.पी.अग्रवाल के बीच लंबे समय से चल रहा शीत युद्ध नगर निगम चुनावों के एन पहले विस्फोटक दौर में पहुंचा जिससे संगठन मृत प्राय हो गया और कांग्रेस दिल्ली में चारों खाने चित्त गिर पड़ी। वहीं दूसरी ओर शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित भी नगरीय निकायों के चुनावों से कटे कटे नजर आए।
सियासी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार दिल्ली में लगभग डेढ़ दशक तक राज करने वाली श्रीमति शीला दीक्षित को कांग्रेस अब बदलकर किसी नए चेहरे को लाना चाह रही है ताकि वह इस बार विधानसभा चुनावों में अपना गढ बचा सके। कांग्रेस के सियासी कदम तालों को देखकर लगने लगा है कि अब शीला को केंद्रीय राजनीति में लाकर संगठन में उनका उपयोग किया जा सकता है पर केंद्र में लाल बत्ती के सहारे।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि दिल्ली में चुनावी हार का ठीकरा सत्ता और संगठन दोनों पर ही फूटना चाहिए। उन्होंने कहा कि मार्च के आखिरी सप्ताह में कांग्रेस की स्टेंडिंग कमेटी की बैठक के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जे.पी.अग्रवाल घर बैठ गए थे। प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार से उन्होंने अपने आप को बहुत ही दूर कर लिया था।
उन्होंने कहा कि अग्रवाल को तो यह कहते भी सुना गया कि मां (मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित) बेटे (सांसद संदीप दीक्षित) की जोड़ी को चुनाव में हार का स्वाद चखने दो फिर देखेंगे। इसके साथ ही साथ अग्रवाल गुट द्वारा मां बेटे पर पार्षद की टिकिटें भी करोड़ों रूपयों में बेचने के आरोप लग रहे हैं।
उक्त पदाधिकारी ने यह भी कहा कि पूर्वी दिल्ली के सांसद संदीप दीक्षित नगरीय निकायों के चुनाव जीतने की मंशा नहीं रखते थे। उन्होंने कहा कि मीडिया से ही ऑफ द रिकार्ड उन्हें यह जानकारी मिली है। दरअसल, संदीप दीक्षित ने अपने कुछ मीडिया मित्रों से यह कहा होगा कि वे यह चुनाव जीतना ही नहीं चाहते हैं।
कहा जा रहा है कि संदीप दीक्षित की दलील थी कि अगर कांग्रेस नगर निगम के चुनावों में बेहतर परफार्मेंस दिखाती है तो आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अगर यह चुनाव भाजपा जीतती है तो फिर कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपने आप को कंफर्टेबल महसूस करेगी।
उधर, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खेमे से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार शीला की दिल्ली राज्य से पदोन्नति कर उन्हें कें्रद्रीय राजनीति में ले जाने का प्रयास हो रहा है, जिसकी उन्होंने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। शीला दीक्षित एक तीर से दो शिकार करना चाह रही हैं। वे दिल्ली पर काबिज रहें या केंद्र की राजनीति में जाएं, पर हर हाल में वे दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष जे.पी.अग्रवाल का शमन चाह रही हैं।

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