क्रिकेट
डिप्लोमेसी!
(लिमटी खरे)
भारत और पाकिस्तान
के बीच कड़वाहट किसी से छिपी नहीं है। बार बार एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप सुलह
सफाई के बाद भी दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हो पाते हैं। भारत पर हुए
अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के ठीक बाद होने वाली भारत पाक क्रिकेट श्रंखला को
रद्द कर दिया गया था। पांच सालों के अंतराल में एक बार फिर भारत पाक के बीच
क्रिकेट के माध्मय से रिश्ते सुधारने की कवायद की जा रही है। इस बार कुख्यात आतंकी
दाउद अब्राहम के समधी और पाकिस्तार के मशहूर क्रिकेटर जावेद मियांदाद के भारत आने
पर बवाल मच गया। आज वे सारे लोग खामोश हैं जो 2008 में यह कहते हुए अपने सुर बुलंद
कर रहे थे कि भारत पर आतंकी हमले में जिस देश का सीधा सीधा हाथ हो, उस देश के साथ खेल
के मैदान में हम पींगें कैसे बढ़ा सकते हैं। 2008 में भी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार
ही सत्ता पर काबिज थी डॉ.मनमोहन सिंह ही वजीरे आजम थे, और आज भी यथा
स्थिति ही है।
भारत से टूटकर अलग
हुए पाकिस्तान पर आरोप लगते रहे हैं कि वह दहशतगर्दों के दबाव में आकर दुनिया भर
को धोखा देता रहता है। पाकिस्तान अपने देश में क्या करता है यह निश्चित तौर पर पाक
का आंतरिक और नितांत निजी मामला हो सकता है पर अगर उसकी आंतरिक गतिविधियों के कारण
दुनिया के अन्य मुल्कों का अमन चैन खतरे में पड़ जाए तो यह उसका निजी मामला नहीं रह
जाता है।
भारत गणराज्य की
सरकार ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारों के लिए क्या कुछ नहीं किया। सड़क, रेल और हवाई मार्ग
के दरवाजे खोले। सरहदों को समाप्त करने की दिशा में सार्थक पहल की। बावजूद इसके
भारत गणराज्य में दहशतर्गी फैलाने के बारे में पाकिस्तान यह कहे कि भारत ही सबूत
पेश करे। इसका तातपर्य यह है कि दूसरे संप्रभु देश की सरहदों में घुसकर भारत को ही
सबूत जुटाकर देने होंगे। जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन खुद चीख चीख कर
कह रहे हों कि उनके देश में हुए आतंकी हमले के पीछे अलकायदा का हाथ है जिसके तार
पकिस्तान से जुड़े हैं के बाद क्या भारत को साबित करने को कुछ रह जाता है।
पाकिस्तान के साथ
अनेक मोर्चों पर बातचीत में नाकाम भारत सरकार ने खेलों की बिसात बिछाकर पाकिस्तान
से संबंध बेहतर करने का तानाबाना आखिर बुना ही क्यों जा रहा है? जब साफ साफ तौर पर
भारत सरकार इस बात को जानती है कि देश की आर्थिक राजधानी पर हुए अब तक के सबसे बड़े
आतंकी हमले में पाकिस्तान का सीधा हाथ है, इस हमले के इकलौते जिंदा बचे मुजरिम अजमल
कसाब से भारत सरकार ने सारी पूछताछ पूरी कर ली, फिर क्या वजह रह
जाती है कि भारत सरकार क्रिकेट के माध्यम से संबंध सुधारना चाह रही है।
बहरहाल, भारत के मशहूर
क्रिकेट खिलाड़ी दिलीप सरदेसाई, मंसूर अली खान पटौदी, अजीत वाड़ेकर आदि को
अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से खेलने का मौका नहीं मिला। भारत की स्पिन चौकड़ी को
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की समाप्ति तक पाकिस्तान के साथ तीन से अधिक मैच खेलने
का मौका नहीं मिला।
इतिहास इस बात का
गवाह है कि भारत और पाकिस्तान की विभाजन की पीड़ा के बावजूद भारत पाक के क्रिकेट
बड़ा ही सोहाद्रपूर्ण वातावरण में खेला जाता रहा है। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम
अब्दुल हफीज कारदर की अगुआई में 1952 में भारत आई। इसके बाद 1961 तक क्रिकेट के
मामले में रिश्ते बहुत बेहतरीन रहे। विडम्बना ही कही जाएगी कि 1965 एवं 1971 के
युद्ध के बाद क्रिकेट के रिश्तों में भी कड़वाहट घुलने लगी थी।
इसके बाद 18 साल तक
लगातार भारत और पाकिस्तान ने एक दूसरे के साथ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच तो खेले
किन्तु एक दूसरे के साथ मैच नहीं खेले। 1978 में बिशन सिंह बेदी की अगुआई में भारत
की क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान का दौरा किया। इस दौरान भी अंतिम मैच में बाउंसर
गेंदों पर विवाद के चलते बिशन ंिसंह बेटी ने अपने बल्लेबाज वापस बुलाकर मैच से
बाहर का रास्ता ले लिया था।
भारत पाक के बीच
मैचों की श्रृंखला दस साल तक निर्बाध चली। 1989 में भारतीय टीम श्रीकांत के
नेतृत्व में पाकिस्तान गई। इस मैच के साथ ही सचिन तेंदुलकर और वकार यूनुस ने अपना
इंटरनेशलन क्रिकेट का आगाज किया किन्तु विडम्बना एक बार फिर वही हुई कि दोनों अगले
दस सालों तक एक दूसरे के सामने नहीं आ पाए। 1997 तक दोनों देशों ने एक बार फिर
द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृंखला नहीं खेली।
1997 में भारतीय
क्रिकेट टीम सचिन तेंदुलकर की अगुआई में तीन वन डे खेलने पाकिस्तान गई। इसके बाद
टेस्ट श्रृंखला 1999 में खेली गई। 1998 में परमाणु विस्फोट, 2001 में संसद पर
हमला, आदि मामले
ने एक बार फिर भारत पाक के बीच क्रिकेट की पिच खोद दी। इसके बाद 2004 में एक बार
फिर दोनों देशों में क्रिकेट के रिश्तों में सुधार दिखाई दिया।
2004 में तत्कालीन
प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने पकिस्तान का दौरा किया तब जाकर भारतीय क्रिकेट
टीम ने 14 साल बाद पाकिस्तान की सरजमी पर टेस्ट मैच खेला। 17 अप्रेल 2005 को
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में हुए मैच का लुत्फ पाक के राष्ट्रपति परवेज
मुशर्रफ ने भी उठाया। यह मैच भी क्रिकेट डिप्लोमेसी के तहत ही खेला गया था। आज भी
क्रिकेट डिप्लोमेसी को ही सर्वोपरि माना जा रहा है पर जब भारत अपने आतंकवाद पर
अपने रिसते जख्मों से लहू ना पोंछ पा रहा हो तब इस तरह की क्रिकेट डिप्लोमैसी वह
भी एक ऐसे पड़ोसी जो अपना ही अभिन्न अंग रहा हो और आज आतंकवाद को प्रश्रय दे रहा हो
के साथ उचित है? (साई
फीचर्स)
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